Monday, October 8, 2012

कहानी कागज की



बदलती दुनिया के साथ बदलते हुए यांगिस्तानियों बदलाव नेचर का नियम है पर ये चेंज हमें इस बात का एहसास भी कराता है कि हम आगे बढ़ रहे हैं पर परिवर्तन का मतलब पुरानी चीजों से पीछा छुड़ाना नहीं है सुनहरे  वर्तमान की नींव इतिहास पर ही रखी जाती है.मैं बिलकुल भारी भरकम बात करके आपको बोर नहीं करना चाहता .आज की दुनिया इंटरनेट की दुनिया जिसमे काफी कुछ आभासी है पर कितना कुछ इसने बदल दिया है पर ये बदलाव यूँ ही नहीं हुआ है एक छोटा सा उदहारण है इंटरनेट ने कागज़ पर हमारी निर्भरता को कम किया है वो कागज़ जिससे हमारी ना जाने कितनी यादें जुडी हैं वो स्कूल की नयी किताबें जिससे आती खुशबू आज भी हमें अपने बचपने में ले जाती है और हम उस दौर को एक बार फिर जी लेना चाहते हैं वो कॉलेज की डिग्री का कागज़  जिसने हमें पहली बार एहसास कराया कि हमने जीवन का अहम पड़ाव पार कर लिया फिर वो शादी के कार्ड का कागज जब हम एक से दो हो गएअपने  पहले अपोइंटमेंट लेटर को कौन भूल सकता है जब आपने पहली बार फाइनेंशियल इंडीपेंडेंस का लुत्फ़ उठाया और ये सिलसिला चलता रहता है पर अब सबकुछ ऑन लाइन है .पर कभी कभी तो प्रिंट आउट भी  निकलना पड़ता है भले ही सब कुछ ऑन लाइन हो रहा है पर कागज़ तो हमारे जीवन का हिस्सा है ही ना अब इस लेख को कुछ लोग अखबार में पढेंगे कुछ नेट पर तो हो गया न ओं लाइन और ऑफ लाइन का कोम्बिनेशन .गुड ओब्सर्वेशन क्यूँ सही कह रहा हूँ ना .तो ये पेज जल्दी ही इतिहास का हिस्सा हो जायेंगे जब बच्चे लिखना पढ़ना कॉपी और कागज़ से नहीं टेबलेट और लैपटॉप पर सीखेंगेअब ग्रीटिंग कार्ड से लेकर शादी के कार्ड और अपोइंटमेंट लेटरसीधे   ई मेल किये जाते हैं पर वो कागज़ के कुछ टुकड़े ही थे जिनपर भविष्य के कंप्यूटर और इंटरनेट की इबारत लिखी गयी बोले तो कागज़ ही ने  जिन्होंने हमें ऑफ लाइन से ऑन लाइन होने का जरिया दिया तभी तो किसी भी वेबसाईट के खास हिस्से को वेबपेज ही कहते हैं  जबकि इस वेब पेज में उस पेज जैसा कुछ नहीं होता जिसे हम जानते हैं तो डायरेक्ट दिल से जब हम जड़ों से जुड़े रहेंगे तो आगे बढते रहेंगे पर उनसे कट कर हम कभी तरक्की के रास्ते पर नहीं बढ़ पायेंगे .
पर ये तो आधी बात हुई मैं तो कुछ और ही कहना चाहता हूँ  कि जीवन में कितनी बातें ऐसी होती हैं जिन्हें हम ओबियस मानकर छोड़ देते हैं पर जरा सा जोर डालने पर हमें पता पड़ता है कि उनकी हमारे जीवन में कितनी अहमियत होती है और कागज़ तो बहाना भर है आपको ये समझाने को हम कितने भी आगे क्यूँ ना निकल जाएँ  पर अपने बेसिक्स को न भूलें और  मॉडर्न हो जाने का मतलब पुरानी चीजों  को भूल जाना नहीं है बल्कि उनको याद करके आने वाली दुनिया को और बेहतर करना है अब उस मामूली कागज़ को लीजिए उसके साथ हम क्या करते हैं.हर मेल का प्रिंट आउट निकलना जरूरी तो नहीं है .प्रिंट आउट निकले पन्ने के दूसरी तरफ भी कुछ लिखा जा सकता है पर हम उन्हें रद्दी मानकर फैंक देते हैं .हम जितना कागज़ ज्यादा इस्तेमाल करते हैं उतना ही पेड ज्यादा काटे जाते हैं तो कागज का इस्तेमाल सम्हाल कर कीजिये तभी हम अपने  पर्यावरण को बचा पायेंगे तो कागज़ की इस कहानी के साथ आज के लिए इतना ही......
आई नेक्स्ट में 8/10/12  को प्रकाशित 

6 comments:

नुक्कड़वाली गली से... said...

kuch cheezein hamesha apni jagah banaye rakhtee hain..kagaz ki kahani naye dhang se padhkar mja aa gaya sir

Unknown said...

sirrrr????????????....;

Bhawna Tewari said...

sir.... baat to sahi hai, kagaz ki kahani to bahut hi rochak hai lekin iske sath bdlti zindagi ki kahani aur bhi rochak. bahut dinon baad kuch bdlta hua lekin khaas pdhne ko mila..

aaira said...

refreshing...after long time sir!!...

Shraddha Khare said...

kagaz ek esa sbad h jisko sun kr lagta h hm iske bina kese rh sakte h hm chahe jitne modern ho jaye hm kagaz ko nhi bhul sakte ye hmse juda h or hm isse

Vineet said...

Kagaj ki kahanee padh kar bachpan ki apni havai jahaj aur nave yaad aa gi.jo kabhi kisi dal pe ja atki,aur jo doob gi thi baris ke paani me.kagaj ki kahanee ko u hi bdhate rhne ki avasykata h.lakh modern ho jayen ham uski upyogita ko nkar nhi payenge kbhi.aur iska sadupayog ek dhyan dene yogy vishay h.

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