Thursday, April 12, 2018

तकनीकी दुनिया में भी निशाने पर स्त्री

एक देश के तौर पर भारत महिलाओं के लिए कभी एक सुरक्षित स्थल के रूप में नहीं माना गया है 2017 के ग्लोबल वूमन,पीस एंड सिक्योरिटी इंडेक्स के अनुसार एक सौ तिरपन देशों में भारत का नम्बर इस इंडेक्स में 131 वां रहा है|यह इंडेक्स किसी देश में महिलाओं के न्याय,सुरक्षा और समावेशन जैसे मानकों पर किसी देश की स्थिति के आधार पर उन्हें आंकता हैबढ़ती सूचना तकनीक और महिलाओं के अधिकारों के प्रति बढ़ती जागरूकता से यह माना जाने लगा था कि तकनीक से देश में महिलाओं का जीवन बेहतर होगा पर पुरुष सत्तामक सोच तकनीक के इस रूप को भी प्रभावित कर रही है और  भारत में होती मोबाईल क्रांति महिलाओं का जीवन और दुश्वार कर रही है |आम तौर पर माना जाता है कि तकनीक निरपेक्ष होती है और यह लिंग भेद नहीं करती है पर देश में आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं भारत दुनिया के सबसे ज्यादा स्पैम काल करने वाले देशों में पहले स्थान पर है पर इस दर्द को पुरुषों के मुकाबले ज्यादा महिलाओं को ही झेलना पड़ रहा है |देश की महिलायें औसत रूप से पुरुषों के मुकाबले अठारह प्रतिशत आवंछित मेसेज और स्पैम कॉल प्राप्त कर रही हैं |
अपनी तरह के दुनिया में पहली बार इस तरह के शोध का दावा करने वाली स्वीडन की कम्पनी ट्रू कॉलर एप जो मुख्यतः लोगों को फोन नम्बर पहचानने में मदद करती है ने यह इसी साल जनवरी से फरवरी महीने में देश के पंद्रह शहरों में यह सर्वे किया है ट्रू कॉलर एप के देश में लगभग पंद्रह करोड़ उपभोक्ता हैं |चुने गए शहरों में पंद्रह  से पैंतीस साल की महिलाओं को इस शोध सर्वे में शामिल किया गया |जिन महिलाओं पर यह सर्वे किया उनमें हर तीन में से एक महिला को अश्लील और अभद्र भाषा के फोन काल या संदेश मिलते हैं और इनकी आवृत्ति बहुत ऊँची है |अठहत्तर प्रतिशत महिलाओं को हर हफ्ते ऐसी फोन काल की गयी जिनकी भाषा अभद्र और अश्लील थी जबकि बयासी प्रतिशत महिलाओं ने माना उन्हें ऐसे वीडियो और फोटो हर हफ्ते मिलते हैं |
फोन और वीडियो भेजने वाले इन लोगों में पचास प्रतिशत एकदम अनजाने लोग होते हैं जबकि ग्यारह प्रतिशत पीछा करने वाले होते हैं जो किसी तरह उन महिलाओं और लड़कियों के नंबर तक अपनी पहुँच बना लेते हैं |ऐसी कई ख़बरों से देश पहले से ही दो चार हो चुका है जहाँ लड़कियों ने फोन नंबर बेचे जाने की घटनाएँ प्रकाश में आईं हैं |उत्तर प्रदेश में इस तरह की घटनाएँ रोकने के लिए 1090 वूमेन पावर लाइन जैसी हेल्पलाईन जरुर शुरू की है पर तथ्य यह भी है कि अश्लील और अभद्र भाषा के कॉल और संदेशों वाली स्थिति से देश की ज्यादातर लड़कियों को झेलना ही पड़ता है और पुलिस में इनकी रिपोर्ट पानी सर के ऊपर से जाने पर ही होती है |इस शोध में यह तथ्य भी सामने आया है कि इस तरह की घटनाए होने पर सबसे पहला काम कोई महिला या लडकी उस नंबर या सोशल मीडिया एकाउंट को ब्लॉक करने का करती हैं या इस तरह के किसी एप का इस्तेमाल करती हैं जिनसे इस तरह के  कॉलर से मुक्ति मिले |मात्र दस प्रतिशत महिलायें इस तरह की घटनाओं  की रिपोर्ट पुलिस को करती हैं |ऐसी  स्थिति अश्लील और अभद्र फोन करने वालों की हिम्मत को बढाती हैं |उन्हें पता होता है कि अमूमन उनके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं होंगी और कार्यवाही के पहले स्तर में मात्र चेतावनी ही दी जाती है |सोशल मीडिया पर भी भारत की महिलाओं की उपस्थिति  भी बहुत अच्छी नहीं है यूके कंसल्टेंसी फार्म वी आर सोशल की एक रिपोर्ट के अनुसार सारी दुनिया में सोशल मीडिया में महिलाओं की  उपस्थिति पुरुषों के मुकाबले ज्यादा है पर फेसबुक जिसके भारत में सबसे ज्यादा प्रयोगकर्ता हैं मात्र चौबीस प्रतिशत महिलायें वहीं छियत्तर प्रतिशत पुरुष हैं |इस मामले में भारत की स्थिति अपने  पड़ोसियों पाकिस्तान और बांग्लादेश  से ही बेहतर है और यह असंतुलन हर उम्र वर्ग में है जो तेरह से लेकर पैंसठ वर्ष की आयु तक है | सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर भी महिलायें सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं जहाँ पुरुषों के मुकाबले  महिलायें ज्यादा ट्रोल की जाती हैं पिछले साल क्रिकेटर मिताली राज ,अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ,सोनम कपूर और तापसी पुन्नू को ट्रोल किया गया |ये वो महिलायें हैं जिन्होंने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बूते सारी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है फिर भी इनके कपड़ों और व्यकतिगत जीवन को लेकर इन्हें ट्रोल किया गया |जब समाज की इन नामचीन महिलाओं की ऐसी स्थिति है तो देश की आम  महिलाओं की सोशल मीडिया में क्या स्थिति होगी |तथ्य यह भी है कि आम पुरुषों के  मुकाबले महिलायें सोशल मीडिया पर उतनी स्वछन्द स्थिति का लुत्फ़ नहीं उठा सकतीं और अक्सर इस की कीमत अश्लीन संदेशों और फोटो के रूप में चुकानी पड़ती है |
उधर लड़कियां और महिलायें समाज के पितृ सत्तामक ढाँचे के कारण इसलिए चुप रहती हैं क्योंकि इस तरह की घटनाओं का दोष उनके ही सर मढ दिया जाएगा |कार्यवाही करने के केंद्र हमारे पुलिस थाने बिलकुल भी लिंग संवेदनशील नहीं है |जहाँ कोई भी महिला या लडकी अपने साथ हो रहे इस तरह के बर्ताव के लिए खुले मन से मदद मांग सके |इस तरह की स्थितियां कुल मिलाकर एक ऐसे दुष्चक्र का निर्माण करते हैं जिसमें पिसना इस देश की महिलाओं और लड़कियों की नियति बन जाता है |2018 के अंत तक साठ प्रतिशत भारतीयों के पास स्मार्ट फोन आ जायेगा यानि आने वाले वक्त में यह समस्या और बढ़ेगी अगर  तब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया जाएगा तो देश की लड़कियों और महिलाओं के लिए अभी स्मार्ट फोन का इस्तेमाल उतना सुहाना नहीं रहने वाला है जितना कि एक पुरुष के लिए  है |
नवभारत टाईम्स में 12/04/18 को प्रकाशित 

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