Wednesday, October 26, 2011

Reality bites common man

भारत में इस वक्त त्योहारों की धूम है वहीं टीवी पर रियल्टी शो का बोलबाला है टेलीविजन पर जब धारावाहिकों की शुरुवात हुई थी तो किसी ने नहीं सोचा था कि धीरे धीरे ये बुद्धू बक्सा  हम सबके जीवन को किस हद तक प्रभावित करने वाला है ड्राईंग रूम में दबे पाँव घुसने वाला टीवी आज शान से हमारे बेडरूम में बैठा है और ऐसा ही कुछ हुआ इसमें प्रसारित कार्यक्रमों के कंटेंट में भारत का पहला सोप ऑपेरा हम लोग एक मध्यम वर्गीय परिवार के संघर्ष की कहानी थी जिसे घर के सब लोग साथ बैठ कर देखा करते थे ,हम लोग से शुरू हुआ ये सफर आज भी जारी है पर इसके रूप बदल गए हैं जो हमें इमोशनल अत्याचार से लेकर राखी के इन्साफ और ऐसे ना जाने कितने रूपों में दिखते हैं जिन्हें आजकल हम रीयल्टी शो के नाम से जानते हैं मैं थोडा तफसील से आपको बताता हूँ भारत के पहले रियलिटी शो का श्रेय अंताक्षरी कार्यक्रम को प्राप्त है। 3 सितम्बर 1993 को शुरू हुए इस शो के करीब 600 एपीसोड दर्शकों तक पहुंचे और हजारों प्रतिभागियों ने इसमें हिस्सा लिया.आपको ये भी बताता चलूँ सफलता की नयी इबारत लिखने वाले इन रीयल्टी शो का इतिहास मात्र दो दशक पुराना है इनकी शुरुवात संगीत आधारित कार्यकर्मों से हुई पर 2001 में कौन बनेगा करोड़पति ने इसमें एक नया आयाम जोड़ते हुए दुनिया को ये दिखाया कि भारत में सामान्य ज्ञान को भी टेलीविजन से जोड़ा जा सकता है और ये प्रयोग ख़ासा सफल रहा फिर तो सच का सामनाराखी का स्वयंवरइंडियाज गॉट टैलेंटइस जंगल से मुझे बचाओखतरों के खिलाडीनच बलिएइंटरटेनमेंट के लिए कुछ भी करेगा,बार्नविटा क्विज कांटेस्टरोडीजस्प्लिटसविलाझलक दिखलाजाएक्स फैक्टरजस्ट डांसलिटिल चैंप्सरतन का रिश्ताकॉमेडी का महामुकाबलास्टंट मानियालव लॉक अप जैसे कार्यक्रमों का सिलसिला ही चल पड़ा . बिग बॉस जैसे शो ने तो जैसे खेल के सारे नियम ही बदल दिए .कई रीयल्टी शो पर अश्लीलता फ़ैलाने के आरोप भी लगे पर फिलहाल हर साल एक नए सीजन के साथ अनेक रीयल्टी शो हमारे सामने आ रहे हैं और दर्शक भी इन्हें स्वीकार कर रहे हैं रीयल्टी शो आज ज्ञान देने के अलावा शादियाँ करवा रहे हैं ,लोगों के झगड़े सुलझा रहे हैं हाँ वे आपका सामना सच से भी करा रहे हैं .पारिवारिक धारावाहिकों में प्रयोगधर्मिता गायब सी हो गयी है जिससे दर्शक एक खालीपन महसूस कर रहे थे और इस खालीपन को बखूबी भरा है जीवन की वास्तविक परिस्थियों में रचे बसे इस कार्यक्रमों ने जिसमे नायक या नायिका और कथानक जिंदगी के आस पास के ना होकर बल्कि वास्तविक ही होते हैं .दूरदर्शन के एकाधिकार के खत्म होने के बाद सैकड़ों  सेटेलाईट चैनलों ने दर्शकों के बीच अपनी जगह बनाई पर एक वक्त के बाद धारावाहिकों में वही सास बहू की कहानी या दो परिवारों के संघर्ष की दास्तान जैसे विषय घूम फिर के हमारे सामने आते रहे यही वक्त था जब भारत में टेलीविजन इंटरैक्टिव हो रहा था यानि मोबाईल  क्रांति ने दर्शकों को  एस एम् एस के रूप में ऐसी ताकत दे दी थी जिससे वो किसी भी धारावाहिक के बारे में अपनी राय सीधे चैनल को भेज सकते थे यहाँ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि एस एम् एस की इस ताकत के पीछे व्यवसायिक उद्देश्य भी थे क्योंकि टेलीविजन के कार्यक्रमों में भेजा जाने वाला एस एम् एस सामन्य एस एम् एस से कई गुना महंगा पड़ता है जिसका एक हिस्सा कार्यक्रम निर्माताओं या चैनल के पास जाता है .रीयल्टी शो की इस कहानी में सब कुछ अच्छा है ऐसा भी नहीं संगीत और गेम शो जैसे कार्यक्रमों को छोड़कर ज्यादतर कार्यक्रम शहरी इलीट क्लास को ध्यान में रखकर बनाये जाते हैं जिसमे ग्लैमर का तडका टीवी और सिनेमा के कलाकार लगते हैं जिससे वो हमारे आस पास के होकर भी हमारे नहीं होते हैं पर वक्त बदलते देर नहीं लगती जब सिलसिला शुरू हुआ है तो हम ये उम्मीद कर सकते हैं कि रीयल्टी शो के कार्यक्रमों में भी बदलाव आएगा और ये संगीत और गेम शो के अलावा अन्य  विषयों में आम आदमी को आगे लायेंगे और आप भी तो यही चाहते हैं .क्यों मैं सही कह रहा हूँ न .
आई नेक्स्ट में 26 अक्टूबर 2011 को प्रकाशित 

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