Friday, January 29, 2016

इंटरनेट से बदलती हिन्दुस्तान की तस्वीर

ले ही भारत की बहुसंख्यक आबादी इंटरनेट से दूर है, बावजूद भारत में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या दस करोड़ से ऊपर हो जाना अपने आप में बड़ा बदलाव है। इतनी तो दुनिया के कई विकसित देशों की आबादी नहीं होगी। दस करोड का यह आंकड़ा भारत की डिजिटल साक्षरता का भी आंकड़ा है यानी इतने लोग कार्य, व्यापार व अन्य जरूरतों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते है। पिछले तकरीबन एक दशक से भारत को किसी और चीज ने उतना नहीं बदला, जितना इंटरनेट ने बदल दिया है। रही-सही कसर इंटरनेट आधारित फोन यानी स्मार्टफोन ने पूरी कर दी। स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिहाज से भारत विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाजार है। आईटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लगाया है कि वर्ष 2019 तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग 65 करोड़ हो जाएगी। सिस्को के मुताबिक वर्ष 2014 में मोबाइल डेटा ट्रैफिक 69 प्रतिशत तक बढ़ा। साथ ही वर्ष 2014 में विश्व में मोबाइल उपकरणों एवं कनेक्शनों की संख्या बढ़कर 7.4 बिलियन तक पहुंच गई। स्मार्टफोन की इस बढ़त में 88 प्रतिशत हिस्सेदारी रही और उनकी कुल संख्या बढ़कर 439 मिलियन हो गई।इंटरनेट मुख्यत: कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है, पर स्मार्टफोन के आगमन के साथ ही यह धारणा तेजी से खत्म होने लग गई। जिस तेजी से मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है, वह साफ इशारा है कि भविष्य में इंटरनेट आधारित सेवाएं कंप्यूटर नहीं बल्कि मोबाइल को ध्यान में रखकर उपलब्ध कराई जाएंगी। भविष्य की इंटरनेट तकनीक एप आधारित होगी जिसके केंद्र में होगा मोबाइल इंटरनेट। विश्व के सबसे अधिक लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल ने मोबाइल इंटरनेट की इस बढ़ती ताकत को ध्यान में रखते हुए अपने खोज परिणामों में परिवर्तन करना शुरू कर दिया है। इसका मकसद मोबाइल से आने वाले खोज अनुरोधों में उन वेबसाइटों को प्राथमिकता देने का है जो कि मोबाइल उपकरणों के लिहाज से उपयुक्त हैं।यानी ऐसी वेबसाइट जो बड़े भारीभरकम शब्दों, भारी सॉफ्टवेयर जैसे फ्लैश आदि का इस्तेमाल नहीं करती हैं, वे खोज परिणामों में पहले दिखेंगी और वे वेबसाइट जिनका आकार मोबाइल के स्क्रीन के आकार के लिहाज से अनुपयुक्त है, वे सर्च परिणामों में काफी बाद में आएंगीं। इस बदलाव से कई वेबसाइटों का वरीयता क्रम बदल जाएगा। विश्वभर के स्मार्टफोन उपभोक्ताओं में से 89प्रतिशत इंटरनेट पर कुछ भी खोजने के लिए गूगल सर्च इंजन का इस्तेमाल करते हैं। ऐसे में इस नए तरीके के लागू होने से मोबाइल द्वारा इंटरनेट इस्तेमाल करने में काफी सुविधा हो जाएगी। माना यह जा रहा है कि इस रणनीति से गूगल की आमदनी में बढ़ोत्तरी होने की संभावना है, क्योंकि यदि उपभोक्ताओं को मोबाइल पर वेबसाइटों को देखने में आसानी होगी तो उनकी विज्ञापन देखने की भी संभावना भी अधिक हो जाएगी।इस नए बदलाव के साथ गूगल मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से होने वाली उसकी आय में पिछले कुछ समय में जो गिरावट आई है उसे थामना चाहता है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को मोबाइल इंटरनेट से जोड़ना चाहता है। भारत के लिए यह रास्ता महत्वपूर्ण इसलिए हो सकता है क्योंकि मोबाइल हैंडसेट अकेला ऐसा माध्यम है जिससे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचा जा सकता है। यह अकेला ऐसा माध्यम है जो शहरों और कस्बों की सीमा लांघता हुआ तेजी से दूरदराज के गांवों तक पहुंच भी गया है। इसके साथ ही देश में कंप्यूटर के मुकाबले मोबाइल पर इंटरनेट सुविधा हासिल करने वालों की संख्या भी बढ़ चुकी है। लोगों के लिए तो यह कई तरह की सुविधाएं हासिल करने का महत्वपूर्ण माध्यम है ही, साथ ही सरकार के लिए भी यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इससे लोग रोजमर्रा की छोटी से छोटी खोज भी गूगल के जरिये करेंगे। भारत जैसे देश में जहां मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल बेतहाशा बढ़ा है, वहां ऐसी सुविधा लोगों को मोबाइल इंटरनेट से जुड़ने के लिए और ज्यादा प्रेरित करेगी।सूचना क्रांति का शहर-केंद्रित विकास देश के सामाजिक आर्थिक ढांचे में डिजीटल डिवाइड को बढ़ावा दे रहा है। भारत की अमीर जनसंख्या का बड़ा तबका शहरों में रहता है जो सूचना प्रौद्योगिकी का ज्यादा इस्तेमाल करता है। उदारीकरण के पश्चात देश में एक नए मध्यम वर्ग का विकास हुआ जिसने उपभोक्ता वस्तुओं की मांग को प्रेरित किया। इसका परिणाम सूचना प्रौद्योगिकी में इस वर्ग के हावी हो जाने के रूप में भी सामने आया। देश की शेष सत्तर प्रतिशत जनसंख्या न तो इस प्रक्रिया का लाभ उठा पा रही है और न ही सहभागिता कर पा रही है। पर हमें इस तथ्य  को भी नहीं भूलना चाहिए कि यहां इंटरनेट की आधारभूत संरचना विकसित देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी है और इंटरनेट के बाजारीकरण की कोशिशें जारी हैं। ऐसे में सरकार का डिजिटल इंडिया बनाने का यह प्रयास आम उपभोक्ताओं के इंटरनेट सर्फिंग समय को कितना सुहाना बनाएगा, इसका फैसला अभी होना है। फिर कड़वी सचाई यह भी है कि तकनीक के इस डिजिटल युग में हम अब भी रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत समस्याओं के उन्मूलन में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। गौरतलब है कि सूचना तकनीक का इस्तेमाल मानव संसाधन की बेहतरी के लिए बहुत बड़ा प्रभाव छोड़ने में असफल रहा है। इसकी एक मिसाल भ्रष्टाचार उन्मूलन के मोर्चे पर मिलती है। माना जाता रहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल सरकारी योजनाओं में पारदर्शिता लाएगा और इसके जरिए भ्रष्टाचार पर लगाम कसी जा सकेगी। पर ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की नई रिपोर्ट हमारी आंखें खोल देती है जिसमें भारत को 176 देशों में भ्रष्टाचार के मामले में 94 पायदान पर रखा गया है।
हिन्दुस्तान युवा में 24/01/16 को प्रकाशित 

Wednesday, January 6, 2016

गाँवों में बढ़ते अनपढ़

शिक्षा एक ऐसा पैमाना है जिससे कहीं हुए विकास को समझा जा सकता है ,शिक्षा जहाँ जागरूकता लाती है वहीं मानव संसाधन को भी विकसित करती है |जनसँख्या की द्रष्टि से भारत एक ग्रामीण देश है जहाँ की ज्यादातर आबादी गाँवों में निवास करती है और इस मायने से  शिक्षा की हालत गाँवों में ज्यादा खराब है |वैसे गाँव की चिंता सबको है आखिर भारत गाँवों का देश है पर क्या सचमुच गाँव शहर  जा रहा है और शहर का बाजार गाँव में नहीं  आ रहा है नतीजा गाँव की दशा आज भी वैसी है जैसी आज से चालीस- पचास साल पहले हुआ करती थी सच ये है कि भारत के गाँव आज एक दोराहे पर खड़े हैं एक तरफ शहरों की चकाचौंध दूसरी तरफ अपनी मौलिकता को बचाए रखने की जदोजहदपरिणामस्वरुप  भारत में ग्रामीण अनपढ़ लोगों की संख्या घटने की बजाय बढ़ रही है|पिछले 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुकाबले भारतीय ग्रामीण निरक्षरों की संख्या में 8.6 करोड़ की और बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है|ये आंकड़े सामाजिक आर्थिक और जातीय जनगणना (सोशियो इकोनॉमिक एंड कास्ट सेंसस- एसईसीसी) ने जुटाए हैं|महत्वपूर्ण  है कि एसईसीसी ने 2011 में 31.57 करोड़ ग्रामीण भारतीयों की निरक्षर के रूप में गिनती की थीउस समय यह संख्या दुनिया के किसी भी देश के मुक़ाबले सबसे ज़्यादा थी|ताज़ा सर्वेक्षण के मुताबिक़, 2011 में निरक्षर भारतीयों की संख्या 32.23 प्रतिशत थी जबकि अब उनकी संख्या बढ़कर 35.73 प्रतिशत हो गई है|साक्षरों के मामले में राजस्थान की स्थिति सबसे बुरी है यहां 47.58 (2.58 करोड़) लोग निरक्षर हैं|इसके बाद नंबर आता है मध्यप्रदेश का जहां निरक्षर आबादी की संख्या 44.19 या 2.28 करोड़ है.बिहार में निरक्षरों की संख्या कुल आबादी का 43.85 प्रतिशत (4.29 करोड़) और तेलंगाना में 40.42 प्रतिशत (95 लाख) है|गाँवों में निरक्षरता के बढ़ने के कई कारण  हैंगाँव की पहचान उसके खेत और खलिहानों और स्वच्छ पर्यावरण से है पर खेत अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं भारत के विकास मोडल की सबसे बड़ी समस्या यह है कि यह गाँवों को आत्मनिर्भर बनाये रखते हुए उनकी विशिष्टता को बचा पाने मे असमर्थ रहा है यहाँ विकास का मतलब गाँवों को आत्मनिर्भर न बना कर उनका शहरीकरण कर देना भर रहा है|माना जाता रहा है कि शहरी सुविधाओं के आ जाने भर से गाँव विकास कर जायेंगे |पर वास्तव में ऐसा है नहीं सबसे बड़ी समस्या गाँव की बसावट को लेकर है गाँव में खेती और आबादी की जमीन का कोई निश्चित विभाजन नहीं है लोगों को जहाँ जगह मिलती है या जरुरत के हिसाब से निर्माण होता जाता है |जिसके पीछे शहरों की तरह कोई नियोजित आधार नहीं होता जिसमें रोड और नालियों के लिए पर्याप्त जगह छोडी जाती है जिससे बढ़ती आबादी से किसी तरह की कोई समस्या न आये |बगैर नियोजन के जरुरत के हिसाब से हुए ऐसे निर्माण बहुत सी समस्याएं लाते हैं |आंकड़े खुद ही अपनी कहानी कह रहे हैं कि गाँव में अशिक्षा ज्यादा है और वह बढ़ भी रही है|चूँकि गाँवों में भी विकास का पैमाना शहरी करण से ही आँका जाता है जिसका एक प्रमुख आधार पक्के मकान भी हैं जो गाँवों में बगैर किसी योजना के कर दिए जाते  हैं |विकास की इस आपाधापी में सबसे बड़ा नुक्सान खेती को हुआ है |
                      भारत के गाँव हरितक्रांति और वैश्वीकरण से मिले अवसरों के बावजूद खेती को एक सम्मानजनक व्यवसाय के रूप में स्थापित नहीं कर पाए|इस धारणा का परिणाम यह हुआ कि छोटी जोतों में उधमशीलता और नवाचारी प्रयोगों के लिए कोई जगह नहीं बची और खेती एक बोरिंग प्रोफेशन का हिस्सा बन भर रह गयी|देश में प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता 2010 के मुकाबले 2011 में 25.8 ग्राम बढ़कर 462.9 ग्राम प्रतिदिन हो गई। 2010 में यह 437.1 ग्राम थी,यानि देश में खाद्य संकट नहीं है पर जो लोग अनाज उपजा रहे हैं वही भुखमरी और कुपोषण का शिकार हैं|किसी भी देश के अन्नदाता वहां के किसान होते हैंजिनके खेतों में उगाए अन्न को खा कर राष्ट्र स्वस्थ मानव संसाधन का निर्माण करता है|आंकड़ों के आईने में देश ने काफी तरक्की की है पर वास्तविकता के  धरातल पर इस प्रश्न का उत्तर मिलना अभी बाकी है कि भारत के किसानों का परिवार कुपोषण और खराब स्वास्थ्य  का शिकार कब और कैसे होने लग गए |इस देश का कृषक मजदूर वर्ग पोषित खाद्य पदार्थ से महरूम क्यों है जिसका सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य और बढ़ती बाल म्रत्यु दर में हो रहा है|गाँव खाली होते गए और शहर भरते गए|इस तथ्य को समझने के लिए किसी शोध को उद्घृत करने की जरुरत नहीं है गाँव में वही युवा बचे हैं जो पढ़ने शहर नहीं जा पाए या जिनके पास अन्य कोई विकल्प नहीं हैदूसरा ये मान लिया गया कि खेती एक लो प्रोफाईल प्रोफेशन है जिसमे कोई ग्लैमर नहीं है |शिक्षा रोजगार परक हो चली है और गाँवों में रोजगार है नहीं नतीजा गाँव में शिक्षा की बुरी हालत|
                        सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून तो लागू कर दिया हैलेकिन इसके लिए सबसे जरूरी बात यानि ग्रामीण सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारने पर अब तक न तो केंद्र ने ध्यान दिया है और न ही राज्य सरकारों नेग्रामीण इलाकों में स्थित ऐसे स्कूलों की हालत किसी से छिपी नहीं हैजो मौलिक सुविधाओं और आधारभूत ढांचे की कमी से जूझ रहे हैंइन स्कूलों में शिक्षकों की तादाद एक तो जरूरत के मुकाबले बहुत कम है और जो हैं भी वो पूर्णता प्रशिक्षित  नहीं हैज्यादातर सरकारी स्कूलों में शिक्षकों और छात्रों का अनुपात बहुत ऊंचा है. कई स्कूलों में 50 छात्रों पर एक शिक्षक है|यही नहींसरकारी स्कूलों में एक ही शिक्षक विज्ञान और गणित से लेकर इतिहास और भूगोल तक पढ़ाता है. इससे वहां पठन-पाठन के स्तर का अंदाजा  लगाना मुश्किल नहीं हैजहाँ स्कूलों में न तो शौचालय है और न ही खेल का मैदान
विकास और प्रगति के इस खेल में आंकड़े महत्वपूर्ण हैं |वैश्वीकरण और उदारीकरण की आंधी में बहुत कुछ बदला है गाँव भी बदलाव की इस बयार में बदले हैं |पर यह बदलाव शहरों के मुकाबले बहुत मामूली है |देश के गाँवों का आधारभूत ढांचा पर्याप्त रूप से पिछड़ा हुआ है |जिसमें सडक ,अस्पताल ,स्कुल और इंटरनेट की उपलब्धता भी शामिल है |
अशिक्षा की इस बढ़ती खाई को तभी पाटा जा सकता है जब गाँवों से शहरों की और पलायन कम हो और गाँवों में आधारभूत ढांचे का तेजी से विकास हो|जाहिर है इसमें बड़ी सरकारी मदद की दरकार होगी और सरकार को गाँवों के विकास को अपनी प्राथमिकता में लाना होगा |देश को अपने अन्नदाता का सिर्फ पेट ही नहीं भरना है बल्कि उसे एक बेहतरीन मानव संसाधन में भी बदलना है ताकि यह देश गर्व के साथ कह सके कि हमारी अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है |
राष्ट्रीय सहारा में 06/01/16 को प्रकाशित 

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