Tuesday, May 29, 2018

डिजीटल ट्रांजेक्शन पर बढ़ता जोर

इंटरनेट  के जमाने में देश में  बदलाव की प्रक्रिया की धुरी बन रहे हैं स्मार्ट फोन.भारत में ऑनलाइन शॉपिंग को बढ़ावा देने में इंटरनेट आधारित स्मार्टफोन की बड़ी भूमिका है,खरीद प्रक्रिया का यह बदलाव सबसे ज्यादा स्मार्टफोन की खरीद को प्रभावित कर रहा है.इंटरनेट एक विचार के तौर पर सूचनाओं को साझा करने के सिलसिले के साथ शुरू हुआ था चैटिंग और ई मेल से यह हमारे जीवन में जगह बनाता गया फिर ऑनलाईन शॉपिंग ने खेल के सारे मानक बदल दिए पर  भारत में इस सूचना क्रांति के अगुवा बने स्मार्टफोन जिन्होंने मोबाईल एप  और ई वालेट के जरिये पर्स में पैसे रखने के चलन को खत्म करना शुरू कर दिया  . आईटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लागाया है कि सन २०१९ तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग ६५ करोड़ हो जाएगी जो जाहिर तौर पर इस ई लेन देन  की प्रक्रिया को और गति देगी .इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोशिएशन ऑफ इंडिया व केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिकभारत का ई-कॉमर्स का बाजार 12.6 बिलियन डॉलर का है और 2020 तक यह देश की जीडीपी में चार प्रतिशत का योगदान देगा.
नक़द से भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है,सरकार के लिए नोट छापना एक खर्चीला काम है . मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार साल 2011से 2105 तक ई भुगतान ने देश की अर्थव्यवस्था में 6.08 बिलियन डॉलर  का इजाफा किया है.मैकिन्सी ने अपनी एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि डिजीटल  लेन देन के बढ़ने से साल 2025 तक देश की अर्थव्यवस्था में 11.8 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी होगी .आंकड़े आने वाले कल की सुनहरी उम्मीद भले ही जगाते हैं पर ये मामला मानवीय व्यवहार से भी जुड़ा है जिसके बदलने में वक्त लगेगा भारतीय परिस्थितियों में मौद्रिक लेन देन विश्वास से जुड़ा मामला भी है जब हम जिसे पैसा दे रहे हैं वो हमारे सामने होता है जिससे एक तरह का भरोसा जगता है . डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने के लिए सरकार कारोबारियों को कैशबैक देने पर विचार कर रही है. इसके साथ ही सरकार ग्राहकों को अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर छूट भी दे सकती है. केंद्र सरकार का राजस्व विभाग एक ऐसे प्रस्ताव पर काम कर रहा हैजिसमें डिजिटल माध्यम से पेमेंट करने वालों को अधिकतम खुदरा मूल्य   पर छूट देने की बात भी हो सकती है. डिजिटल माध्यम से किसी उत्पाद या सेवा के लिए भुगतान सरकार के भीम एप या निजी कंपनियों के मोबाइल वॉलेट (पेटीएमफोन पेमोबिक्विक आदि ) की मदद ली जा रही  है. निजी मोबाइल वॉलेट कंपनियां पहले ही डिजिटल ट्रांजेक्शन करने वाले ग्राहकों को कैशबैक की सुविधा  दे रही हैं. 
लेकिन सिर्फ  स्मार्ट फोन प्रयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ने से लोग डिजीटल लेन-देन की तरफ ज्यादा बढ़ेंगे ऐसा अभी  सम्भव नहीं दिखता है.  डिजीटल लेन-देन की अपनी समस्याएँ हैं और समस्याएं हैं  इंटरनेट एंड मोबाईल एसोशिएसन की  रिपोर्ट के अनुसार  दिसंबर 2016 से दिसंबर2017 तक के साल में शहरी भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं  की संख्या 9.66 प्रतिशत बढ़कर अनुमानित 29.5 करोड़ हो गई. वहीं ग्रामीण भारत में इसी दौरान यह संख्या 14.11 प्रतिशत  से बढ़कर अनुमानित 18.6 करोड़ हो गई.ऑनलाइन उपभोक्ता अधिकार जैसे मुद्दों पर न तो कोई जागरूकता है न ही कोई ठोस सार्थक  कानून ई वालेट प्रयोग  और ऑन लाइन खरीददारी उपयोगिता के तौर पर बहुत लाभदायक है पर किन्ही कारणों से आपको खरीदा सामान वापस करना पड़ा या खराब उत्पाद मिल गया और उपभोक्ता अपना पैसा वापस चाहता है तो  अनुभव यह बताता है कि उसे पाने में तीन से दस  दिन तक का समय लगता है और इस अवधि में उस धन पर डिजीटल प्रयोगकर्ता को कोई ब्याज नहीं मिलता और  यह एक लम्बी थकाऊ प्रक्रिया है जिसमें अपने पैसे की वापसी के लिए बैंक और ओनलाईन शॉपिंग कम्पनी के कस्टमर केयर पर बार बार फोन करना पड़ता है .कई बार कम्पनियां पैसा नगद न वापस कर अपनी खरीद बढ़ाने के लिए गिफ्ट कूपन जैसी योजनायें जबरदस्ती उपभोक्ताओं के माथे मढ देती हैं और ऐसी परिस्थितियों में उत्पन्न हुई समस्या के समयबद्ध निपटारे की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है .जेब में पैसा होना एक तरह का आत्मविश्वास देता है . क्या वह आत्म विश्वास   जेब में पड़ा मोबाईल ई वालेट या डेबिट /क्रेडिट कार्ड दे पायेगा? आज भी देश के हर शहरों तक के कुछ मोहल्लों और गलियों में इंटरनेट और मोबाइल फोन की निर्बाध  सेवा नहीं है। इसलिए जरूरी यह भी है कि डिजिटल गेटवे की व्यवस्था को भी समानांतर तरीके से सुलभ और मजबूत किया जाए। जब तक इंटरनेट की अबाध सेवा नहीं होगीडिजिटल गेटवे की सहज सहूलियतें नहीं दी जाएंगीडिजिटल भुगतान को कामयाबी के साथ लागू नहीं किया जा सकेगा आर्थिक समाचार  एजेंसी ब्लूमबर्ग के एक सर्वे के अनुसार जर्मनी और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में बड़े भुगतान तक के लिए नोट का चलन ज्यादा है. अमेरिका में अभी भी छियालीस  प्रतिशत भुगतान नकद में होता है. अमेरिका और यूरोप के जिन देशों में ब्लूमबर्ग ने सर्वे कियाउन देशों में ई-वालेटक्रेडिट कार्डडेबिट कार्ड और बिटकाइन जैसी सहूलियतें भी पहले से मौजूद हैं। इसके बावजूद नार्वे को छोड़करबाकी जगहों पर नोट का ही ज्यादा इस्तेमाल चलन में है। डिजिटल भुगतान को लेकर लोगों की ललक तभी बढ़ पाएगीजब भुगतान के लिए उन्हें शुल्क  न देना पड़े इसलिए मुफ्त भुगतान सेवा वाले डिजिटल गेटवे अनिवार्य रूप से उपलब्ध  कराने होंगे. दूसरी समस्या जैसे जैसे ई लेन-देन बढ़ रहा है उसी अनुपात में साइबर अपराध की संख्या में इजाफा हो रहा है .  जागरूकता में कमी के कारण आमतौर पर जब उपभोक्ता ऑनलाईन धोखाधड़ी का शिकार होता है तो उसे समझ ही नहीं आता वो क्या करेये कुछ ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब जितनी जल्दी मिलेगा लोग उतनी तेजी से इलेक्ट्रौनिक ट्रांसेक्शन की तरफ बढ़ेंगे .देश की बड़ी आबादी अशिक्षित और निर्धन है वो आने वाले वक्त में कितनी बड़ी मात्रा में  डिजीटल लेन देन करेगी यह उस व्यवस्था पर निर्भर करेगा जहाँ लोग पैसा खर्च करते उसी निश्चिंतता और भरोसे को पा सकें जो उन्हें कागजी मुद्रा के लेन देन करते वक्त प्राप्त होती है  .

आई नेक्स्ट दैनिक जागरण में 29/05/18 को प्रकाशित 

Thursday, May 24, 2018

रुमाल महज़ रुमाल नहीं है

गर्मियों की छुट्टियाँ हो गयी हैं.कुछ लोग घूमने का कार्यक्रम  बना रहे होंगे तो कुछ के घर में शादी या ऐसा ही कोई और आयोजन होगा. जब इतने सारे कार्यक्रम  होंगे तो हम  सुन्दर दिखने के लिए कुछ कपडे वगैरह भी जरुर खरीदेंगे. कपड़ों का ही एक जरुरी हिस्सा है रुमाल ,पर क्या कोई रुमाल की खरीददारी अलग से करता है जैसे पैंट,शर्ट,साड़ी या सूट की करते हैं .वैसे एक दिन बगैर रुमाल के घर से निकल जाइए या रुमाल घर पर भूल जाइए .बहुत कुछ याद आ जाएगा.वैसे भी चीजों की कमी उनके न रहने पर ही खलती है. रुमाल फारसी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ मुंह पर मलने वाली चीज है.हाथ से लेकर मुंह साफ़ करने के अलावा रुमाल का कई इस्तेमाल हैं.अब ये आपके ऊपर है कि आप इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं.
       हिंदी फिल्मों के कई गानों में प्यार की शुरुवात नायिका के रुमाल खोने या मिलने से शुरू होती है. रुमाल भले ही एक छोटा सा कपडे का टुकड़ा भले ही हो पर वो हमारी जिंदगी में बहुत असर डालता है.जब आप मंदिर ,मस्जिद या गुरुद्वारा जाते हैं तो सर पर रुमाल डाल लेते हैं,यानि रुमाल का एक सुपर नेचुरल कनेक्शन भी है जो सीधे ऊपर वाले से हमें जोड़ता है वैसे कपडे तो तरह –तरह के होते हैं पर ऊपर वाले से जीवित रहते हुए जोड़ने का काम रुमाल ही करता है .वैसे हमारे  रुमाल कब बदल जाते हैं इसका पता ही नहीं चलता .हम कभी कपड़ों की तरह रुमाल को बदलने की प्लानिंग नहीं करते हैं,नए रुमाल आते हैं पुराने कहाँ चले जातें हैं न कभी हम जानने की कोशिश करते हैं न कोई हमें बताता है . 
      वैसे ही जिन्दगी में बहुत से लोग हमें ऐसे मिलते हैं जो हमारे काम आते हैं,हमारा जीवन आसान बनाते हैं और फिर चुपचाप हमें शुक्रिया कहने का मौका दिए बगैर जीवन से विदा हो जाते हैं. वैसे भी हमारे घर  में गैस से लेकर अखबार वाले शख्स का चेहरा हमें कहाँ याद रहता है ? ऐसे न जाने कितने लोग हैं जो हमारे जीवन में रुमाल की भूमिका निभा  रहे होते हैं. अपने महत्व का अंदाजा कराये बगैर. 
        रुमाल यूँ तो हमारे पहनावे का एक छोटा सा हिस्सा भर है पर ये हमारी जिन्दगी से जुड़ा हुआ है जैसे हम अपने दैनिक जीवन  में रुमाल खरीदने की प्लानिंग नहीं करते वैसे ही जिन्दगी को प्लान नहीं किया जा सकता.जो जैसे मिले उसे स्वीकार करना चाहिए.रुमाल का रंग अगर हमारे कपडे से नहीं मिलता तो चलेगा पर किसी भी रुमाल का न होना बिलकुल नहीं चलेगा. उसी तरह  ही जिन्दगी में रिश्तों का होना महत्वपूर्ण है उनका अच्छा या बुरा होना नहीं क्यूंकि जिन्दगी रहेगी तो रिश्तों को बेहतर किया जा सकता है पर जिन्दगी ही न रही तो लाख रिश्ते हों उनका कोई फायदा नहीं इसीलिये तो कहा जाता है जिन्दगी न मिलेगी दुबारा तो जी लो जी भर के तो अगली बार  अगर आपका रुमाल खो जाए तो उसे ढूंढने की कोशिश जरुर कीजियेगा क्योंकि ये रुमाल महज रुमाल नहीं हम सबकी जिंदगी का आईना भी है.
प्रभात खबर में  24/05/18 को प्रकाशित                                      

Wednesday, May 9, 2018

जांचो और परखो का एक नया प्रयोग

ऑनलाईन रिव्यू आज किसी भी उत्पाद या सामग्री की गुणवत्ता और विश्वसनीयता को जांचने का एक अच्छा विकल्प बनकर उभरे हैं वो चाहे होटलों का चुनाव हो या फिर ऑनलाईन शॉपिंग करते वक्त सैकड़ों विकल्पों के बीच अपने  मनपसंद उत्पाद का चुनाव वैसे भी भारत में ऑनलाईन शॉपिंग का कारोबार तेजी से फ़ैल रहा है | पर देश में ऑनलाईन खरीद का कोई इतिहास न होने से नए लोग इंटरनेट के माध्यम से चीजें खरीदने में थोडा हिचकते है  |ऐसे में लोगों के  लिए पूर्व में उस सेवा या उत्पाद का उपयोग कर चुके लोगों द्वारा लिखी गयी समीक्षाएं एवं टिप्पणियां भावी उपभोक्ताओं  के लिए मददगार साबित होती हैं| इ-कॉमर्स वेबसाइट के माध्यम से खरीददारी करने का सबसे बड़ा फायदा लोगों को उत्पादों पर मिलने वाली छूट के अलावा अन्य उपभोक्ताओं द्वारा  खरीदे गए उन्हीं सामानों के बारे में अपनी राय भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है |ये टिप्पणियां एवं समीक्षाएं नए उपभोक्ताओं को सेवा या उत्पाद की खरीद  में मदद करती हैं| समस्त ऑनलाईन सामान बेचने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को अपनी बात कहने का मौका देती हैं| उपभोक्ता भी धीरे-धीरे इस मौके का इस्तेमाल अवसर की तरह करने लगे हैं आमतौर पर ऑनलाईन ई कॉमर्स साईट पर लिखी जाने वाली समीक्षाएं लिखित रूप में ही होती रहीं हैं पर पिछले तीन सालों में इंटरनेट के परिद्रश्य में काफी बदलाव आया है |इण्डिया मोबाईल ब्रोड्बैंड इंडेक्स 2016 और के पी एम् जी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल नेट डाटा उपभोग का अडतीस से बयालीस प्रतिशत हिस्सा वीडियो और ऑडियो पर खर्च किया जाता है | अमेजन जैसी ऑनलाईन शॉपिंग कम्पनी ने उपभोक्ताओं के रुख को भांपते हुए ऑनलाईन रिव्यू की दुनिया में एक नए तरह के प्रयोग की शुरुआत करने जा रहा है ऑनलाइन सम्बंधित शोध करने वाली एक संस्था एल 2 के अनुसार आने वाले समय में अमेज़न अपने उपभोक्ताओं को वीडियो के माध्यम से भी समीक्षाएं देने की सुविधा उपलब्ध कराने की दिशा में आगे बढ़ रहा है | अमेज़न ने लगभग अपने बीस  लाख व्यापार सहयोगियों को इस परीक्षण कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है|इस  योजना का पहला चरण दिसंबर के अंत तक शुरू  होने की उम्मीद है| जिसमें उपभोक्ता  टिप्पणियां एवं समीक्षाएं वीडियो के माध्यम से भी अमेज़न पर भेज सकेंगेइस फीचर को जोड़ने के पीछे अमेज़न का सीधा उद्देश्य खरीददारों को अपनी वेबसाइट पर रखना और उन्हें यू ट्यूब  जैसी सोशल मीडिया वेबसाइटों की ओर पलायन करने से रोकना है|इसी साल अक्टूबर में अमेज़न को "सामग्री-आधारित कीमत कटौती एवं प्रोत्साहन" के लिए एक पेटेंट भी मिला है| पेटेंट के अनुसार किसी इलेक्ट्रॉनिक वातावरण में उपभोक्ताओं को ऑडियो, वीडियो या इंटरैक्टिव सामग्री को ग्रहण करने का विकल्प दिया जा सकता है ताकि उन्हें छूट या अन्य लाभ दिए जा सकें। उदाहरण  के लिए यदि कोई उपभोक्ता अमेज़न के विवरण वाले पेज पर जाकर किसी उत्पाद की समीक्षा करने वाले वीडियो को देखता है तो जैसे जैसे वह वीडियो आगे बढ़ता जायेगा उत्पाद के दाम काम होते जाएंगे|यानि  अधिक समय तक विज्ञापन देखने वाले उपभोक्ता को अधिक छूट मिलेगी| अमेज़न का पेटेंट यह भी सुनिश्चित कर देगा की कि  कोई भी अन्य ऑनलाइन रिटेलर इस तरह की सुविधा अपने ग्राहकों को नहीं दे पायेगा | इस पेटेंट के साथ ही अमेज़न ने यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, जैसी कंपनियों के विज्ञापन व्यपार में भी सेंध लगाने की कोशिश की है| अब उपभोक्ताओं को अपने समय की कीमत का वास्तविक अर्थों में सही मूल्य मिलेगा और कीमत  को उपभोक्ताओं के व्यवहार से जोड़ने से कंपनी के प्रति वफादार उपभोक्ताओं की संख्या में वृद्धि होगी |जिससे ऑनलाइन रिटेलर ज्यादा समय तक  उपभोक्ताओं को अपनी वेबसाइट पर रोक पाएंगे|चीजों को देखकर और लोगों से राय लेकर खरीदने की सहज मानवीय भारतीय प्रवृत्ति है|भारत जैसे देश में जहाँ ग्रामीण क्षेत्र में लोग कम पढ़े लिखे हैं पर इंटरनेट डाटा की कम कीमतों के कारण मोबाईल इंटरनेट उनकी पहुँच में है |वे ऑनलाईन शॉपिंग या तो करते नहीं या करते वक्त भ्रम की स्थिति में रहते हैं कि किस उत्पाद को खरीदा जाए |उनके लिए यह सुविधा  जहाँ उन्हें ऑनलाईन शॉपिंग प्लेटफोर्म से जोड़ने का एक माध्यम बन सकती है वहीं  ई शॉपिंग कारोबार को और ज्यादा प्रमाणिक एवं सुहाना बना सकती है |तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि प्रायोजित समीक्षाओं के दौर में प्रायोजित वीडियो समीक्षाओं के आने का भी खतरा है जो लोगों के भ्रम को बढ़ा सकता है |  हालाँकि अभी यह कहना कठिन है कि अमेज़न द्वारा उठाये गए इस कदम का इ-कॉमर्स के क्षेत्र में वास्तविक प्रभाव क्या पड़ेगा पर इतना तो तय है कि इससे इस क्षेत्र में हलचल मचना तय है और यह हलचल  उपभोक्ताओं के लिए  कम दामों की सौगात लेकर आएगी|
निवाड़ टाईम्स में 09/05/2018 को प्रकाशित लेख 

बाजार ,दावे और हकीकत

भारत में खाद्य और भोज्य पदार्थ उपभोक्ताओं तक उच्च गुणवत्ता के साथ पहुंचे और उनके अधिकारों का हनन न हो, इसके लिए साल 2006 में फूड सेफ्टी ऐंड स्टैंडर्ड्स एेक्ट पास किया गया, जो खाद्य पदार्थों से जुड़ा हुआ था।इस एेक्ट में यूरोपीय संघ के विनियमन के साथ कई तरह की समानताएं हैं, जो खाद्य पदार्थों के पोषण और स्वास्थ्य दावों से जुड़ी हुई हैं। इस कानून का सीधा उद्देश्य उपभोक्ताओं को खाद्य पदार्थों के बारे में प्रामाणिक जानकारी देना है, जिससे वे खाद्य पसंदों के बारे में पर्याप्त रूप से सूचित रहें। जिसका तात्पर्य यह है कि जिन खाद्य पदार्थों का वे सेवन कर रहे हैं। उनके गुण-दोषों से वे भली-भांति परिचित हों। 

भारत खान-पान के मामले में काफी विविधता वाला देश है, पर भोजन में ऐसी बहुत-सी चीजें इस्तेमाल होती हैं, जिनमें काफी चिकित्सकीय गुण होते हैं पर ये चिकित्सकीय गुण काफी भ्रांतियों के भी शिकार होते हैं और इनकी प्रामाणिकता स्थापित नहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि केसर अस्थमा, अपच, बदन दर्द, बुखार, शुष्क त्वचा रोग और गर्भावस्था में लाभकारी होता है, वहीं घी याद्दाश्त बढ़ाने से लेकर अपच दूर करने में सहायक होता है। नींबू का अचार शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। 

ऐसे सारे दावों के पीछे कोई स्थापित या प्रामाणिक तथ्य नहीं है, बल्कि खानों के बारे में वह गहरी प्रतिबद्धता है, जो यह मानती है कि इन खाद्य पदार्थों में ऐसे औषधीय गुण होते हैं, जो समस्त भौगोलिक क्षेत्रों में सभी आयु, लिंग के व्यक्तियों में समान रूप से फायदा पहुंचाते हैं। भोज्य पदार्थों के औषधीय गुणों के बारे में यह पूर्ववृति इस तरह के खाद्य पदार्थों के व्यवसाय के लिए ऐसे विज्ञापन विकल्प देते हैं, जिनमें अकल्पनीय दावे किए जाते हैं और उपभोक्ता उनको अपना कर जहां एक और ठगी का शिकार होता है, वहीं अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ भी कर बैठता है।यद्यपि भारत में ऐसे खाद्य पदार्थों की बिक्री को प्रोत्साहन पारंपरिक मान्यताओं के आधार पर मिलता है, पर इन सामग्रियों में उपस्थित पोषण और स्वास्थ्य गुण स्वास्थ्य नियामकों के लिए एक चुनौती बन जाते हैं। फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स एेक्ट उन्हीं खाद्य सामग्रियों को अपने दायरे में लेता है, जिनके स्वास्थ्य और पोषण के बारे में दावे का वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध हो। भारत और दुनिया के अन्य देशों में बहुत से उपभोक्ता स्वास्थ्य और पोषण के लिए अपने पारंपरिक विश्वासों के आधार पर आयुर्वेद द्वारा निर्धारित खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल करते हैं। इसी कड़ी में पारंपरिक औषधियों को बढ़ावा देने और वैकल्पिक चिकित्सा को बढ़ावा देने के लिए साल 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना की गई, क्योंकि देश में आयुर्वेद की बहुत गहरी जड़ें हैं, पर इसी का हवाला देकर बहुत-सी कंपनियां दैनिक उपभोग की बहुत-सी वस्तुएं आयुर्वेद के नाम पर बेच रही हैं।
 
आयुर्वेद का बढ़ता व्यावसायिक इस्तेमाल ऐसे भ्रामक विज्ञापनों के जन्म का कारक बन रहा है, जो बगैर किसी वैज्ञानिक आधार के मधुमेह, कैंसर जैसी बीमारियों के दूर करने से लेकर बाल उगाने जैसा दावा करते हुए कई सारे ऐसे दैनिक उपभोग के उत्पाद बेच रहे हैं, जो अगर आयुर्वेद की श्रेणी में न आते, तो वे फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी के अंतर्गत आते और यह उनके द्वारा किए जा रहे दावों की जांच पड़ताल कर सकती थी। उपभोक्ता को ठगने से बचाने के लिए सरकार को इस दिशा में सोचने की तुरंत जरूरत है। 
अमर उजाला में 09/05/18 को प्रकाशित 

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