Friday, May 29, 2015

मुट्ठी में खबर

कम समय में ज्यादा से ज्यादा सूचना यह नया सूत्र है इंटरनेट की दुनिया का|फेसबुक अब अपने प्रयोगकर्ताओं को सीधे समाचार देने वाला है|प्रसिद्ध न्यू मीडिया शोध साईट निमेन लैब के अनुसार इसकी शुरूआत अमेरिका से होगी| भारत फेसबुक का दूसरा सबसे बड़ा बाजार  है और अमेरिका के बाद यह भारत में भी होगा | इसके साथ ही समाचारों की दुनिया निर्णायक रूप से हमेशा के लिए बदल जाएगी|यह होते ही फेसबुक दुनिया का सबसे बड़ा समाचार  प्लेटफॉर्म बन जाएगा| वेबसाईट  के अनुसार फेसबुक अगले कुछ महीनों में ही समाचार प्रसारण के इस नए संरूप का परीक्षण करना शुरू कर देगा । शुरुआत में फेसबुक न्यू यॉर्क टाइम्सनेशनल जिओग्राफिक और बज़फीड के साथ मिलकर काम करेगी।फेसबुक का बिजनेस मॉडल यह है कि न्यूज कंटेंट प्रोवाइडर (जैसे अखबार, चैनल, एजेंसियां) अपने  समाचार फेसबुक को देंगे
फेसबुक उन्हें अपने उपभोक्ताओं को उनकी फीड में दिखाएगा  फेसबुक इसके  बदले में कंटेंट प्रोवाइडर्स के साथ लाभ का एक  हिस्सा बांटेगा| अभी यह होता है कि समाचार की  साइट अपना कंटेंट फेसबुक पर प्रमोट करते हैं और यूजर, यानी आप लिंक पर क्लिक करके समाचार की साइट या उस साईट पर जाते हैं जिसे शेयर किया गया है| लेकिन फेसबुक अब यह  नहीं चाहता कि प्रयोगकर्ता यानि आप और हम कहीं और जाएँ  फेसबुक पर ही आपको समाचार, वीडियो,आडियो  सब मिल जाएगा| अभी फेसबुक पर मौजूद लिंक पर क्लिक करके पाठक समाचार प्रदाता कंपनी के वेबपेज़ पर जाकर अपना मनपसंद समाचार या जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पर इस काम में लगभग आठ सेकंड का समय लगता है और आज के युग मेंखासतौर पर मोबाइल द्वारा इंटरनेट का उपभोग करने वालों के संदर्भ में यह समय काफी अधिक है। फेसबुक इसी समय को और कम कर के उपभोक्ताओं के लिए समाचार और सूचनाएं  प्राप्त करना और त्वरित बनाना चाहता है।
फेसबुक पब्लिशर्स की वेबसाइट पर जाने वाले ट्रेफिक के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण रखता है। साथ ही आज कल उपभोक्ता पूरे वेब पर सामग्री खोजने में वक्त जाया करने कि बजाय कुछ एप्प्स के माध्यम से अपनी मनपसंद सामाग्री प्राप्त करना ज्यादा मुफीद समझते हैं। इन वजहों से फेसबुक कई पब्लिशर्स के लिए एक ‘गेटकीपर’ की भूमिका में आ गया है जो यह निर्धारित करता है कि फेसबुक उपभोक्ता क्या देखेंगे या पढेंगे ।यदि कोई सूचनाओं के लिए सिर्फ फेसबुक का इस्तेमाल करता है और इसके लिए उपभोक्ता ने किसी समाचार संगठन  के पेज को लाईक कर रखा है या उसे अपना मित्र बना रखा है यदि समाचार संगठन के  फेसबुक पेज पर कोई खबर या सुचना साझा नहीं की गयी तो उपभोक्ता को पता ही नहीं चलेगा की इस तरह की कोई सुचना आयी भी कि नहीं क्योंकि समय की कमी के कारण कोई भी बार बार उस समाचार संगठन की वेबसाईट पर नहीं जाना चाहेगा |और यहाँ फेसबुक की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है |
 भारत में बारह  करोड़ से ज्यादा फेसबुक प्रयोगकर्ता होने का यह भी मतलब है कि देश का समर्द्ध तबका समाचारों  के लिए फेसबुक पर काफी हद तक निर्भर हो जाएगा|चूँकि यह वही तबका है जो विज्ञापनों से अपनी खरीद आदतें निर्धारित करता है |ऐसे में  पब्लिशर्स के लिए फेसबुक के साथ आना मजबूरी हो जाएगी अन्यथा उन्हें अपने वेब ट्रेफिक में भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है। कोई भी पब्लिशर अपने विज्ञापनदाताओं और उपभोक्ताओं के साथ बिना किसी बिचौलिए के संबंध रखना अधिक पसंद करेगा पर आज के समय में फेसबुक के बिना उन तक पहुँचना काफी कठिन होता जा रहा है क्योंकि फेसबुक के पास एक बहुत बड़े उपभोक्ता वर्ग का साथ है और उनके बारे में जो जानकारी उसके पास उपलब्ध है वह किसी पब्लिशर के पास होना असंभव है।फेसबुक आपकी रुचियों और पसंद के आधार पर अपने उपभोक्ताओं से समाचार या सुचना साझा करेगा |इसे आप यूँ समझ सकते हैं आप जिस क्षेत्र के लोगों से ज्यादा मित्रता करते हैं या किसी ख़ास विषय के पेज को ज्यादा लाईक करते हैं इन सबकी जानकारी फेसबुक के पास रहती है |फेसबुक इन जानकारियों के आधार पर आपको समाचार उपलब्ध कराएगा | अतः आने वाले वक़्त में फेसबुक उपभोक्ताओं को समाचार के लिए कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं रह जाएगी क्योंकि सब कुछ उन्हें फेसबुक पर ही मिल जाएगा।भारत में समाचारों की दुनिया इस प्रयोग से कितनी बदलेगी इसका फैसला होना बाकी है | 
जनसता में 29/05/15 को प्रकाशित 

Tuesday, May 26, 2015

खोकर पाने का नाम जिंदगी

कभी कभी लिखना  कितना कुछ मुश्किल हो जाता है.अब मुझे ही देखिये कई  दिन से इस लेख के लिए विषय तलाश रहा हूं पर कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है.कभी कभी ऐसा होता है कि विचारों की भरमार होती है पर उस वक्त मैं उनको उतनी तवज्जो नहीं देता और फिर वे उड़ जाते हैं फिर कभी न आने के लिए और आज मुझे उनकी जरुरत है पर अब मैं उनको खो चुका हूं शायद याद करना इसी को कहते हैं.खोने पाने की इसी  उधेड़बुन में मुझे समझ में आया कि जिंदगी में पाने से ज्यादा खोना जरूरी है क्योंकि तब आप अपने आस पास की चीजों की ज्यादा कद्र करते हैं.अब देखिये न  हमारी जिंदगी में कितनी सारी चीजें  होती हैं पर हमें ज्यादा जरुरत  उन्हीं की होती है जो हमारे पास नहीं होती हैं.भाई यूँ ही तो किसी ने कह नहीं दिया था कि इफ यू रीच देयेर देयेर इज  नो देयेर,देयेर.यनि जब आप कोई चीज पा लेते हैं तो उसकी कद्र कम हो जाती है. आप समझ रहें न मैं क्या कहना चाह रहा हूं. जीवन में कुछ चीजों की कमी हो तो उनके प्रति हमारी ललक बनी रहती है.मैं एक उदाहरण से अपनी अपनी बात समझाता हूं .
बचपने में मुझे कहानियां पढ़ने का बड़ा शौक था वो भी परियों की मैं चाहता था कि काश कोई परी मेरे जीवन में भी हो जो मेरी सारी परेशानियों को दूर कर दे.धीरे –धीरे जब बड़ा हुआ तो यह समझ में आया कि परी जैसी कोई चीज तो होती ही नहीं अगर कोई परी मेरे जीवन में आ गई होती तो शायद किसी परी को पाने की चाह मेरे मन में है वो खत्म हो गई होती और मैं अपनी इस चाह का जिक्र यहां नहीं कर रहा होता.अब सोचिये जिंदगी के किसी मोड पर अगर मुझे कोई परी सही में मिल जायेगी तो मुझे कितनी खुशी मिलेगी,पर उस खुशी को महसूस करने के लिए मुझे उसकी कमी का एहसास होना भी जरूरी है.
जिंदगी में सब कुछ हमारे मन का नहीं होता पर जरा सोचिये कि यदि सब कुछ हमारे मन का हो रहा होता तो हम जिंदगी में कितनी खुशियों से महरूम होते.वैसे आप इतने न समझ तो हैं नहीं फिर भी मैं अपनी बात को और स्पष्ट करता हूं खुशी की पहचान वही कर सकता है जिसने दुःख झेला हो,जिंदगी की कद्र वही कर सकता है जिसने मौत को महसूस किया हो, किसी को पाने के एहसास को वही समझ सकता है जिसने जिंदगी में किसी को खोया हो. रोना ज़रूरी है उससे ज़्यादा जितना ज़रूरी होता है हंसना जीने के लिए, कहना ज़रूरी है उससे ज़्यादा जितना ज़रूरी होता है अक्सर खामोश रहना,चलना ज़रूरी है उससे ज़्यादा जितना ज़रूरी है गुमशुदा राहों पर रुक कर इंतज़ार करनामैं ज़रूरी हूँ खुद के लिए उससे ज़्यादा जितना ज़रूरी हैं  आप सब मेरे लिए. तो असल में जिंदगी की वो चीजें जो आपके लिए परेशानियों का कारण बनती हैं वो असल में ये वो चीजें हैं जिनसे रूबरू होकर आप जिंदगी का असली लुत्फ़ उठा सकते हैं.
छुट्टियों का मजा तो तभी है जब आप व्यस्त हों अगर आप खाली हैं तो रोज ही छुट्टी है पर क्या आप उन दिनों को एन्जॉय कर पाएंगे, नहीं कर पाएंगे क्योंकि आपके पास कोई काम नहीं है. कोई भी इंडीविजुअल   हमेशा ये दावा नहीं कर सकता है कि वो अपनी जिन्दगी में हमेशा सुखी या दुखी रहा है या रहेगा चेंज को कोई रोक नहीं सकता सुख के पल बीत गए तो दुःख के पल भी बीत जायेंगे .अमेरिका के प्रेसीडेंट ओबामा जिस दिन चुनाव जीते उसके एक दिन पहले उनकी नानी का निधन हो गया जिसे वो बहुत चाहते थे . दुख के साथ सुख भी आता है. अगर आपके साथ बहुत बुरा हो रहा है तो अच्छा भी होगा भरोसा रखिये.ऐसा हमारी आपकी सबकी जिन्दगी में होता है लेकिन हम सत्य को एक्सेप्ट करने की बजाय भगवान् और किस्मत न जाने किस किस को दोष देते रहते हैं अगर हम इस बदलाव को  एक्सेप्ट कर लें तो न कोई स्ट्रेस रहेगा और न ही कोई टेंशन लेकिन ऐसा हो नहीं पाता है जब हमारे साथ सब अच्छा हो रहा होता है तो हम भूल जाते हैं कि जिन्दगी पाने  का नाम नहीं बल्कि खोने का नाम है  जहाज़ सबसे सुरक्षित पानी के किनारे होता है लेकिन उसे तो समुद्र  के लिए तैयार किया गया होता है बिना लड़े अगर आप जीतना चाह रहे हैं तो आज की दुनिया में आप के लिए कोई जगह नहीं है .जिंदगी को बेहतर बनाने का रास्ता दुश्वारियों से होकर गुजरता है भले ही असली दुनिया में परियां न होती हों पर उनके सपने अभी भी मुझे आते हैं.इसलिए आपके आस पास जो भी है चाहे वो रिश्ते हों या चीजें उनकी कद्र कीजिये क्योंकि जिंदगी में आपने कुछ भी पाया है वो जरुर कुछ खो कर पाया होगा. सोच क्या रहे हैं अगर आपने अपना कीमती समय न खोया होता तो क्या जिंदगी के इस फलसफे से परिचित हो पाते.  
आई नेक्स्ट में 26/05/15 को प्रकाशित           

Saturday, May 23, 2015

तुम अच्छे से होगे

तुम अच्छे से होगे जानता हूँ
अपना ख्याल रख रहे होगे जानता हूँ 
जिंदगी आगे बढ़ चली होगी जानता हूँ 
सच क्या था और झूठ क्या है 
जानते होगे जानता हूँ 
कौन चुप रहकर भी बोला था जानता हूँ
और कौन बोलते हुए भी अनबोला था जानता हूँ
अब मैं, मैं नहीं और तुम ,तुम नहीं
जानता हूँ
मेरे संदेशे अब धडकनें नहीं बढाते होंगे
जानता हूँ
अब कभी नहीं आओगे ये कहने
मैं कभी नहीं जाउंगी
जानता हूँ
हमारा मिलना
बस इत्तेफाक था जानता हूँ
पर क्यूँ हुआ ऐसा
नहीं जानता हूँ
काश इतना पहले जान पाता
तो आज इतना नहीं जान पाता
पर कम से कम
अब ये जानता हूँ
तुम अच्छे से होगे ............

Tuesday, May 19, 2015

इंटरनेट के स्मार्टफोन युग की दस्तक

इंटरनेट मुख्यता कंप्यूटर आधारित तकनीक रही है पर स्मार्ट फोन के आगमन के साथ ही यह धारणा तेजी से ख़त्म होने लग गयी और जिस तेजी से मोबाईल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ रहा है वह साफ़ इशारा कर रहा है की भविष्य में इंटरनेट आधारित सेवाएँ कंप्यूटर नहीं बल्कि मोबाईल को ध्यान में रखकर उपलब्ध कराई जायेंगीप्रमुख ओनलाईन शौपिंग वेबसाईट मायन्त्र ने घोषणा कर दी है की भविष्य में ऑन लाइन शौपिंग सिर्फ उसके मोबाईल एप से ही की जा सकेगी न की वेबसाईट से |भविष्य की इंटरनेट तकनीक एप आधारित होगी जिसके केंद्र में होगा मोबाईल इंटरनेट |स्मार्टफोन उपभोक्ताओं के लिहाज से विश्व में दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है। आईटी क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी सिस्को ने अनुमान लागाया है कि सन २०१९ तक भारत में स्मार्टफोन इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं की संख्या लगभग ६५ करोड़ हो जाएगी। सिस्को के मुताबिक वर्ष २०१४ में मोबाइल डेटा ट्रैफिक ६९ प्रतिशत तक बढ़ा. साथ ही वर्ष २०१४ में विश्व में मोबाइल उपकरणों एवं कनेक्शनों  की संख्या बढ़कर ७.४ बिलियन तक पहुँच गयी.स्मार्टफोन की इस बढ़त में ८८ प्रतशित हिस्सेदारी रही और उनकी कुल संख्या बढ़कर ४३९ मिलियन हो गयी. विश्व के सबसे अधिक लोकप्रिय सर्च इंजन गूगल ने मोबाइल इंटरनेट की इस बढ़ती ताकत को ध्यान में रखते हुए अपने खोज परिणामों में परिवर्तन करना शुरू कर दिया है|. इसका मकसद मोबाइल से आने वाले खोज अनुरोधों में उन वेबसाइटों को प्राथमिकता देने का है जो कि मोबाइल उपकरणों के लिहाज से उपयुक्त हैं.
यानि ऐसी वेबसाईट जो जो बड़े भारी भरकम  शब्दोंभारी  सॉफ्टवेयर जैसे फ़्लैश आदि का इस्तेमाल नहीं करती हैं| वे खोज परिणामों में पहले दिखेंगी और  वे वेबसाइट जिनका आकार  मोबाइल के स्क्रीन के आकार के लिहाज से अनुपयुक्त हैं वे सर्च परिणामों में काफी बाद में आएंगीं। इस बदलाव से कई वेबसाइटों का वरीयता क्रम बदल जाएगा |फोररेस्टर रिसर्च संस्था की एक रिपोर्ट के अनुमान के अनुसार १००० से अधिक कर्मचारियों वाले ३८ प्रतिशत से भी अधिक संगठनों की वेबसाइटें गूगल के नए मानकों पर खरी नहीं उतरतीहैं. अब या तो लोग अपनी वेबसाइटों को मोबाइल  उपकरणों के अनुसार बनाएं नहीं तो खोज परिणामों में पीछे छूट जाने के लिए तैयार रहें. विश्वभर के स्मार्टफोन उपभोक्ताओं में से ८९ प्रतिशत इंटरनेट पर कुछ भी खोजने के लिए गूगल सर्च इंजन का इस्तेमाल करते हैं | इस नए तरीके के लागू होने से मोबाइल द्वारा इंटरनेट इस्तेमाल करने में काफी सुविधा हो जाएगी| माना यह जा रहा है की इस रणनीति से  गूगल की आमदनी में बढ़ोत्तरी होने की संभावना  है क्योंकि यदि उपभोक्ताओं को मोबाइल पर वेबसाइटों को देखने में आसानी होगी तो उनकी विज्ञापन देखने की भी सम्भावना भी अधिक हो जाएगी | इस नए बदलाव के साथ गूगल मोबाइल इंटरनेट के माध्यम से होने वाली उसकी आय में पिछले कुछ समय में जो गिरावट आई है उसे थामना चाहता है और ज्यादा से ज्यादा लोगों को मोबाईल इंटरनेट से जोड़ना चाहता है जिससे लोग रोजमर्रा की छोटी से छोटी खोज भी गूगल के जरिये करें|भारत जैसे देश में जहाँ मोबाईल इंटरनेट का बेतहाशा इस्तेमाल बढ़ा है वहां ऐसी सुविधा  लोगों को और ज्यादा मोबाईल इंटरनेट से जोड़ने के लिए प्रेरित करेगी पर हमें इस तथ्य को भी नहीं भूलना चाहिए कि यहाँ इंटरनेट की आधारभूत संरचना विकसित देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी है और इंटरनेट के बाजारीकरण की कोशिशें जारी हैं वहां गूगल का यह प्रयास आम उपभोक्ताओं के  इंटरनेट सर्फिंग समय को कितना सुहाना बनाएगा इसका फैसला अभी होना है |
हिन्दुस्तान में 19/05/15 को प्रकाशित 

Tuesday, May 5, 2015

ठप हो जाएगा इंटरनेट

इंटरनेट की लोकप्रियता  का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज के समय में तकरीबन 85 प्रतिशत लोगों के पास इंटरनेट कनेक्शन है.इंटरनेट लाइव स्टेटिस्टिक्स के अनुसार 1995 से अब तक दस गुना इंटरनेट यूजर्स की बढ़ोतरी हुई है. तबसे लगातार इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है. ऑनलाइन पेमेंटऑनलाइन शॉपिंगऑनलाइन बिलिंगये सब इंटरनेट के जरिये ही तो मुमकिन हो पाया है. पर क्या होगा अगर समय पर काम आने वाला आपका साथी आपके साथ न रहे तोवैज्ञानिक और इंजीनियर्स की मानें तो वह दिन दूर नहीं जब इंटरनेट का नामोनिशान मिट जाएगा। सीधा सा मतलब है कि आने वाले समय में इंटरनेट को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
हालांकि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां और केबल बिछा सकती हैं पर उससे इंटरनेट बहुत ही महँगा हो जाएगा और आम आदमी की पहुँच से बाहर हो जाएगा। ऐसी स्थिति में या तो आपको अच्छी गति वाले इंटरनेट के लिए अधिक भुगतान करना होगा या फिर रुक-रुक कर चलने वाले इंटरनेट से समझौता करना पड़ेगा। हालांकि अभी तक तो इंटरनेट की मांग पूर्ति से हमेशा पीछे ही रही है पर आने वाले समय में इसके इतना अधिक बढ़ जाने की संभावना है कि उसकी पूर्ति आज के इंटरनेट ढांचे के आधार पर करना लगभग असंभव हो जाएगा। इंटरनेट के साथ एक समस्या बिजली को लेकर भी है। इंटरनेट लगभग उतनी ही बिजली इस्तेमाल करता है जितनी कि विमानन उद्योग द्वारा इस्तेमाल की जाती है। एक विकासशील देश की कुल बिजली खपत का लगभग २ प्रतिशत इंटरनेट पर खर्च होता है। यह केवल डाटा के आदान-प्रदान पर खर्च होने वाली बिजली का आंकड़ा है। इसके साथ यदि इंटरनेट का उपयोग करने वाले उपकरणों जैसे कम्प्युटरों और मोबाइल फोन को चलाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली को भी यदि जोड़ दिया जाये तो बिजली की इंटरनेट उपयोग पर होने वाली खपत देश की कुल बिजली खपत की लगभग ८ प्रतिशत हो जाती है। इंटरनेट की गति और बढ़ाने का सीधा-सीधा अर्थ है बिजली खपत में और अधिक इजाफा। भारत जैसे एक विकासशील देश में जहां बिजली की पहले ही काफी किल्लत है इंटरनेट की गति एवं क्षमता बढ़ाना टेढ़ी खीर साबित होगा। इस समस्या से निपटने का एक उपाय है कि डाटा को ट्रान्सफर करने की बजाय उसे सर्वरों के बड़े-बड़े स्थानीय नेटवर्कों में जमा कर लिया जाए। एक प्रतिष्ठित अकादमिक जर्नल के मुताबिक हाल ही में एक ऐसे ऑप्टिकल फ़ाइबर का परीक्षण किया गया है जो लगभग २५५ टेराबाइट डाटा प्रति सेकंड के हिसाब से आदान-प्रदान कर सकता है। यह अभी इस्तेमाल किए जाने वाले कमर्शियल ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क से करीब २१ प्रतिशत अधिक है। इस ऑप्टिकल फ़ाइबर की मदद से आने इंटरनेट पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सकेगा और इंटरनेट के भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों के मन में जो चिंताएँ हैं उनका भी निराकरण हो जाएगा। 
अब ये लोगों पर निर्भर करता है कि उन्हें बिजली की खपत इंटरनेट के लिए करनी है या बाकी जरुरी चीजों केलिए।
साल और........ इंजीनियरों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि बस आने वाले साल ही इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसका मुख्य कारण है कि पिछले दस सालों में इंटरनेट की स्पीड 50 गुना बढ़ी है. इससे उसकी क्षमता धीरे धीरे कम हो रही है. इस्तेमाल होने वाले ऑप्टिकल फाइबर भी चरम पर पहुँच चुका है और अब उसकी क्षमता और लाइट ट्रांसफर करने की नहीं रह गयी है. इसे निजात पायी जा सकती है. यदि और केबल लगाए जाएंतो समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है. पर इसमें अरबों रुपयों का खर्च आएगा। इंटरनेट कैपेसिटी क्रंच तक पहुँच गया है यानी फास्टर डेटा की हमारी डिमांड को आजीवन पूरा करने की स्थिति में नहीं रह गया है.
लंदन रॉयल सोसाइटी में अप्रैल में हुए इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों की मीटिंग में इसका समाधान निकालने पर चर्चा हुई.एक्सपर्ट्स ने इस चर्चा के दौरान कहा कि साल के भीतर ही केबल और फायबर ऑप्टिक्स फंक्शन करना बंद कर देंगे। चेतावनी देते हुए उन्होंने कहा कि2005 में इंटरनेट मेगाबाइट पर सेकंड की स्पीड देता था पर अब इंटरनेट की डाउनलोड स्पीड 100 एमबी प्रति  सेकंड हो गयी है| फाइबर ऑप्टिक्स अब और डेटा लेने के स्थिति में नहीं है. नतीजतन अब इंटरनेट बिल्स पर वृद्धि होगी। इसका कारण लगातार इंटरनेट की बढ़ती डिमांड है.बिजली भी अधिक लगने के आसार है.ये तो सिर्फ डेटा ट्रांसफर की बात है(ऑप्टिकल फाइबर हमारे कंप्यूटरलैपटॉपन को डेटा ट्रांसफर करने का काम करता है)अगर कंप्यूटरटीवीमोबाईल की बात करें तो देश का प्रतिशत बिजली उपभोग  लगेगा। इंटरनेट टेलिविजनलाइव विडियो स्ट्रीमिंग और लगातार शक्तिशाली होते कम्प्युटरों ने विश्वभर के संचार ढांचे पर दबाव डालना शुरू कर दिया है। ऑप्टिकल फ़ाइबर अपनी क्षमता के अंत पर हैं और वे और अधिक डाटा ले जाने में सक्षम नहीं हैं। इंटरनेट के विशेषज्ञों के अनुसार हमारे लैपटापकम्प्युटर और टैबलेट तक डाटा पहुँचाने वाले ऑप्टिकल फ़ाइबरों के नेटवर्क की क्षमता अगले लगभग ८ वर्षों में चुक जाएगी। जो फ़ाइबर ऑप्टिक केबल अभी प्रयोग किए जा रहे हैं उनमें और अधिक डाटा नहीं भेजा जा सकता है।

कैसे काम करता है इंटरनेट

इंटरनेट हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है। चाहे परीक्षा का परिणाम जानना होट्रेन का टिकट खरीदना होअपने दोस्तों और रिशतेदारों के संपर्क में रहना होकिसी भी चीज़ के बारे में जानकारी प्राप्त करनी हो  या विचारों का आदान-प्रदान करना हो हर काम के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल होने लगा है। चूंकि इंटरनेट हमारी ज़िंदगी के लिए इतना अहम हो गया है तो यह जानना भी जरूरी है कि यह काम कैसे करता है जिससे कि हम इसका सही इस्तेमाल कर सकें और इससे लाभ प्राप्त कर सकें। इंटरनेट की शुरुआत अमेरिका में एक फौजी परियोजना के रूप में 1960 के दशक के मध्य में हुआ था। आज यह दुनिया के कोने-कोने में फ़ैल चुका है। इंटरनेट विश्वभर के कम्प्युटरों का एक नेटवर्क है। इस नेटवर्क से जुडने वाले हर कम्प्युटर का एक विशिष्ट पता होता है जिसे आई॰पी॰ अथवा इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस कहते हैं। इसी एड्रैस के आधार पर एक कम्प्युटर दूसरे कम्प्युटर के साथ डाटा का आदान-प्रदान करता है। डाटा का यह आदान-प्रदान इंटरनेट प्रोटोकाल के द्वारा होता है। यदि आप अपने मित्र को कोई संदेश भेजना चाहते हैं तो आप अपनी भाषा जैसे हिन्दी या अँग्रेजी में लिखेंगे। आपका कम्प्युटर इसे एलेक्ट्रोनिक सिग्नलों में परिवर्तित करेगा और इंटरनेट के माध्यम से उसे आपके मित्र के कम्प्युटर तक भेज देगा। आपके मित्र का कम्प्युटर इंटरनेट प्रोटोकाल के आधार पर उन एलेक्ट्रोनिक सिग्नलों को पढ़ेगा और उसे वापस उस भाषा में परिवर्तित कर देगा जिसमें कि आपने उसे लिखा था। इंटरनेट कई बड़े-बड़े नेटवर्कों से मिलकर बना हुआ है। इन नेटवर्कों को आई॰बी॰एम॰ जैसी बड़ी-बड़ी नेटवर्क प्रदाता कंपनियाँ चलती हैं। पर आप हर किसी का इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस तो याद नहीं रख सकते हैं। ऐसे में आपकी मददगार साबित होती हैं डोमेन नेम सर्विस या डी॰एन॰एस॰। डी॰एन॰एस॰ एक प्रकार का डेटाबेस है जो विभिन्न कम्प्युटरों के नाम और उनसे जुड़े आई॰पी॰ एड्रैस की जानकारी जमा कर के रखता है। इंटरनेट पर जिस सेवा का सर्वाधिक इस्तेमाल होता है वह है वर्ल्ड वाइड वेब या डब्ल्यू डब्ल्यू डब्ल्यू और इस सेवा को संभव बनाता है हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल या एचटीटीपी। इस प्रोटोकाल का इस्तेमाल वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर इंटरनेट पर एक दूसरे के साथ संदेशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए करते हैं। वेब ब्राउज़र जैसे गूगल क्रोम या मोज़िला फ़ायरफ़ॉक्स एचटीटीपी के द्वारा वेब सर्वरों से संपर्क स्थापित करते हैं और वेब पेजों को खोजते हैं। जब हम किसी भी वेबसाइट का नाम अपने वेब ब्राउज़र में टाइप करते हैं तो हमारा वेब ब्राउज़र एचटीटीपी का इस्तेमाल करके उस वेबसाइट का डोमेन सर्वर खोजता है और यदि वेबसाइट काम कर रही है तो उसे आपके कम्प्युटर स्क्रीन पर दिखा देता है नहीं तो एचटीटीपी 404 नाम का संदेश आपके स्क्रीन पर फ्लैश कर देता है। इंटरनेट प्रोटोकाल का जो वर्जन अभी प्रयोग में हैं वह 232 भिन्न इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस के लिए बनी है और इससे ज्यादा एड्रैस को वह नहीं सम्हाल सकता है। आने वाले समय में इसके और उन्नत रूप सामने आएंगे जो और भी अधिक वेबसाइटों का इंटरनेट पर आना सुनिश्चित करेंगे। 
इंटरनेट से जुडी शब्दावली
इंटरनेट - इंटरनेट कम्प्युटरों का एक वैश्विक नेटवर्क है जो आपस में जुड़े हुए हैं और एलेक्ट्रोनिक सिग्नलों के माध्यम से एक दूसरे के साथ सूचनाओं एवं संदेशों का आदान-प्रदान करते हैं। 
आई एस पी - इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर उन संस्थाओं को कहते हैं जो आपको इंटरनेट सेवाएँ मुहैया करती हैं। 
आई॰पी॰ एड्रैस - इंटरनेट प्रोटोकाल एड्रैस वह विशिष्ट पता होता है जिसके द्वारा इंटरनेट से जुड़े कम्प्युटरों की पहचान की जाती है। 
डी॰एन॰एस॰ - डोमेन नेम सर्विस एक प्रकार का डेटाबेस है जो विभिन्न कम्प्युटरों के नाम और उनसे जुड़े आई॰पी॰ एड्रैस की जानकारी जमा कर के रखता है।
वर्ल्ड वाइड वेब - वर्ल्ड वाइड वेब इंटरनेट सर्वरों का एक सिस्टम है जो हाइपर टेक्स्ट मार्कप लैड्ग्वेज या एच टी एम एल का इस्तेमाल कर बनाई गई सामाग्री को इकट्ठा कर के रखता है और उसे इंटरनेट के माध्यम से उपभोक्ताओं को उपलब्ध करता है। 
एच टी टी पी - हाइपर टेक्स्ट ट्रान्सफर प्रोटोकाल का इस्तेमाल वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर इंटरनेट पर एक दूसरे के साथ संदेशों एवं सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए करते हैं।
एच टी एम एल - हाइपर टेक्स्ट मार्कप लैड्ग्वेज वह भाषा है जिसमें वेब पेज लिखे जाते हैं। 
वेब पेज - वेब पेज उन डिजिटल प्रपत्रों को कहते हैं जो हाइपर टेक्स्ट मार्कप लैड्ग्वेज या एच टी एम एल में लिखे जाते हैं। इन्हें इंटरनेट के माध्यम से देखा जा सकता है। 
वेबसाइट - वेबसाइट कई वेबपेजों का एक संग्रह है जिसे इंटरनेट के माध्यम से वर्ल्ड वाइड वेब पर खोजा जा सकता है। हर वेबसाइट का इंटरनेट पर एक विशिष्ट पता होता हइ जिस तक किसी भी वेब ब्राउज़र की मदद से पहुंचा जा सकता हइ। 
वेब ब्राउज़र - वेब ब्राउज़र एक सॉफ्टवेयर एप्लिकेशन है जो वर्ल्ड वाइड वेब पर मौजूद सामाग्री को खोज कर उसे आपके कम्प्युटर स्क्रीन पर दिखने का काम करती है। उदाहरण के लिए गूगल क्रोम या ओपेरा। 
यू आर एल - यूनीफॉर्म रिसोर्स लोकेटर वेब पेजों की वह विशिष्ट पहचान होते हैं जिनके माध्यम से जिनके माध्यम से वेब ब्राउज़र उन्हें इंटरनेट पर चिन्हित कर पाते हैं।
वेबसाईट कैसे पहुँचती है हम तक  
वेबसाइट बनाने के बाद उसे होस्ट सर्वर पर डाला जाता है। 
हर वेबसाइट का एक विशिष्ट यूनीफॉर्म रिसोर्स लोकटर या यू आर एल होता है। 
जब किसी वेब ब्राउज़र में यह विशिष्ट यू आर एल डाला जाता है तो वह वेब ब्राउज़र इंटरनेट के माध्यम से उस वेब सर्वर से संपर्क स्थापित करता है जहां पर वह वेबसाइट होती है। 
प्रत्येक वेब साइट एच टी एम एल में लिखी जाती है जिस में कुछ टैग होते हैं जो वेब ब्राउज़र को यह बताते हैं कि पेज कैसे दिखाना है। 
वेब पेज से संबन्धित जानकारी के आदान-प्रदान के लिए वेब ब्राउज़र और वेब सर्वर एच टी टी पी का इस्तेमाल करते हैं।
तकनीकी प्रगति है उम्मीद की किरण
इस दुनिया में अगर समस्या है तो उसका समाधान भी है. इंटरनेट की कैपेसिटी को बनाये रखने के लिए ऑप्टिकल फाइबर की मदद ली जा सकती है. हालांकि इसमें अरबों रुपयों का खर्चा है. वर्तमान नें जो हमारे पास ऑप्टिकल फाइबर मौजूद हैउसमें लाइट ट्रांसफर करने के लिए सिर्फ एक मात्र कोर ही है. पर जिस नए ऑप्टिकल फाइबर की प्लानिंग हो रही हैउसमें अलग अलग कोर है.होरिज़ॉंटल लेवल के साथ ही डेटा को तीन अलग अलग वर्टिकल लेयर पर भी शेयर किया जा सकेगा। इससे ट्रांसमिशन की कैपसिटी में इजाफा होगा।
जो फ़ाइबर ऑप्टिक केबल अभी प्रयोग किए जा रहे हैं उनमें और अधिक डाटा नहीं भेजा जा सकता है। हालांकि इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां और केबल बिछा सकती हैं पर उससे इंटरनेट बहुत ही महँगा हो जाएगा और आम आदमी की पहुँच से बाहर हो जाएगा। ऐसी स्थिति में या तो आपको अच्छी गति वाले इंटरनेट के लिए अधिक भुगतान करना होगा या फिर रुक-रुक कर चलने वाले इंटरनेट से समझौता करना पड़ेगा। हालांकि अभी तक तो इंटरनेट की मांग पूर्ति से हमेशा पीछे ही रही है पर आने वाले समय में इसके इतना अधिक बढ़ जाने की संभावना है कि उसकी पूर्ति आज के इंटरनेट ढांचे के आधार पर करना लगभग असंभव हो जाएगा। इंटरनेट के साथ एक समस्या बिजली को लेकर भी है। इंटरनेट लगभग उतनी ही बिजली इस्तेमाल करता है जितनी कि विमानन उद्योग द्वारा इस्तेमाल की जाती है। एक विकासशील देश की कुल बिजली खपत का लगभग २ प्रतिशत इंटरनेट पर खर्च होता है। यह केवल डाटा के आदान-प्रदान पर खर्च होने वाली बिजली का आंकड़ा है। इसके साथ यदि इंटरनेट का उपयोग करने वाले उपकरणों जैसे कम्प्युटरों और मोबाइल फोन को चलाने में इस्तेमाल होने वाली बिजली को भी यदि जोड़ दिया जाये तो बिजली की इंटरनेट उपयोग पर होने वाली खपत देश की कुल बिजली खपत की लगभग ८ प्रतिशत हो जाती है। इंटरनेट की गति और बढ़ाने का सीधा-सीधा अर्थ है बिजली खपत में और अधिक इजाफा। भारत जैसे एक विकासशील देश में जहां बिजली की पहले ही काफी किल्लत है इंटरनेट की गति एवं क्षमता बढ़ाना टेढ़ी खीर साबित होगा। इस समस्या से निपटने का एक उपाय है कि डाटा को ट्रान्सफर करने की बजाय उसे सर्वरों के बड़े-बड़े स्थानीय नेटवर्कों में जमा कर लिया जाए। एक प्रतिष्ठित अकादमिक जर्नल के मुताबिक हाल ही में एक ऐसे ऑप्टिकल फ़ाइबर का परीक्षण किया गया है जो लगभग २५५ टेराबाइट डाटा प्रति सेकंड के हिसाब से आदान-प्रदान कर सकता है। यह अभी इस्तेमाल किए जाने वाले कमर्शियल ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क से करीब २१ प्रतिशत अधिक है। इस ऑप्टिकल फ़ाइबर की मदद से आने इंटरनेट पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सकेगा और इंटरनेट के भविष्य को लेकर वैज्ञानिकों के मन में जो चिंताएँ हैं उनका भी निराकरण हो जाएगा। 
प्रभात खबर में 05/05/15 को प्रकाशित लेख 

Monday, May 4, 2015

इलेक्ट्रॉनिक कचरे का जहरीला संकट

भारत इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करने वाला दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा देश बन चुका है. भारत ने 2014 में 17 लाख टन इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल उपकरण कचरे के रूप में निकाले. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है|
तकनीकी के इस ज़माने में हर उस शब्द जिसके कि साथ 'जुड़ जाता है प्रगति का पर्याय  बन जाता है. इस समय  इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के बिना जीवन की कल्पना करना भी मुश्किल है। मोबाइल,कम्प्युटरलैपटॉपटैबलेटआदि जैसे इलेक्ट्रौनिक गैजेट  हमारे  जीवन का अभिन्न हिस्सा  बन गए हैं। नई तकनीक के साथ अपने आप को जोड़े रखने  के इस जुनून में हम भूल जाते  हैं कि पुराने कंप्यूटर  का क्या होगाकंप्यूटर  ही क्योंमोबाइलसीडीटीवीरेफ्रिजरेटरएसी जैसे तमाम इलेक्ट्रॉनिक उपकरण  हमारी जिंदगी का इतना अहम हिस्सा बन गए हैं कि पुराने के बदले हम फौरन नयी  तकनीक वाला खरीदने को तैयार रहते  हैं। लेकिन पुरानी सीडी व दूसरे ई-वेस्ट को कूड़ेदान  में डालते वक्त हम कभी ध्यान ही  नहीं देते  कि कबाड़ी वाले तक पहुंचने के बाद यह कबाड़ हमारे लिए कितना खतरनाक हो सकता हैवैसे  पहली नजर में ऐसा लगता भी नहीं है। बसयही है ई-वेस्ट का शांत  खतरा। लोगों की बदलती जीवन शैली और बढ़ते शहरीकरण के चलते इलेक्ट्रोनिक उपकरणों का ज्यादा प्रयोग होने लगा है मगर इससे पैदा होने वाले इलेक्ट्रोनिक कचरे के दुष्परिणाम से आम आदमी बेखबर है |
तकनीक की इस दौड़  में हम कभी इस तथ्य की ओर नहीं सोचते कि जब इन उपकरणों की उपयोगिता खत्म हो जायेगी तब इनका क्या किया जाएगा | ई-कचरे के अंतर्गत वे सभी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आते हैं जिनकी उपयोगिता समाप्त हो चुकी है। ई-कचरा या ई वेस्ट एक ऐसा शब्द है जो तरक्की के इस प्रतीक के दूसरे पहलू की ओर इशारा करता है वह पहलू है पर्यावरण का विनाश  ।
 पिछले साल दुनिया में सबसे ज्यादा 1.6 करोड़ टन ई-कचरा एशिया में पैदा हुआ. इनमें चीन में 60 लाख टन,जापान में 22 लाख टन और भारत में 17 लाख टन ई-कचरा पैदा हुआ. वहीं यूरोप में सबसे जयादा ई-कचरा करने वाले देशों में नॉर्वे पहलेस्विट्जरलैंड दूसरेआइसलैंड तीसरेडेनमार्क चौथे और ब्रिटेन पांचवें पायदान पर रहा. वहीं सबसे कम 19 लाख टन ई-कचरा अफ्रीका में पैदा हुआ. रिपोर्ट के मुताबिक2018 में ई-कचरे की मात्रा 21 फीसदी तक बढ़कर 5 करोड़ टन पहुंचने की संभावना है|जहां अमेरिका में पिछले पांच सालों में ई कचरे में 13 फीसदी बढ़ोतरी हुई है वहीं चीन में दोगुनी वृद्धि हुई है. आशंका है कि 2017 तक चीन अमेरिका को भी पीछे छोड़ देगा.पिछले साल पैदा हुए ई-कचरा में महज सात फीसदी मोबाइल फोनकैलकुलेटरपीसी,प्रिंटर और छोटे आईटी उपकरण रहेवहीं करीब 60 फीसदी हिस्सा घरों और कारोबार में इस्तेमाल होने वाले वैक्यूम क्लीनरटोस्टर्सइलेक्ट्रिक रेजर्सवीडियो कैमरावॉशिंग मशीन और इलेक्ट्रिक स्टोव जैसे उपकरणों का था.ई-कचरे का सबसे अधिक उत्सर्जन विकसित देशों द्वारा किया जाता है जिसमे अमेरिका अव्वल है. विकसित देशों में पैदा होने वाला अधिकतर ई-कचरा प्रशमन के लिए  एशिया और पश्चिमी अफ्रीका के गरीब अथवा अल्प-विकसित देशों में भेज दिया जाता है |यह ई-कचरा इन देशों के लिए भीषण मुसीबत का रूप लेता जा रहा है. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग ४ लाख टन ई-कचरा उत्पन्न होता है. राज्यसभा सचिवालय द्वारा  'ई-वेस्ट इन इंडियाके नाम से प्रकाशित एक दस्तावेज के अनुसार भारत में उत्पन्न होने वाले कुल ई-कचरे का लगभग सत्तर प्रतिशत केवल दस  राज्यों और लगभग साठ प्रतिशत कुल पैंसठ शहरों से आता है. दूसरे शब्दों में कहें तो भारत में ई-कचरे के उत्पादन में मामले में महाराष्ट्र और तमिल नाडु जैसे समृृद्ध राज्य और मुंबई और दिल्ली जैसे महानगर अव्वल हैं. एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार देश का लगभग ९० प्रतिशत ई-कचरा असंगठित क्षेत्र केअप्रशिक्षित लोगों द्वारा निस्तारित किया जाता है. इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग इस कार्य के लिए आवश्यक सुरक्षा मानकों से अनभिज्ञ हैं.  एक अखबार में प्रकाशित खबर के अनुसार इस वक़्त देश में लगभग १६ कम्पनियाँ ई-कचरे के प्रशमन के काम में लगी हैं. इनकी कुल क्षमता साल में लगभग ६६,००० टन ई-कचरे को निस्तारित करने की है जो कि देश में पैदा होने वाले कुल ई-कचरे के दस  प्रतिशत से भी काम है.
विगत कुछ वर्षों में ई-कचरे की मात्रा में लगातार तीव्र वृद्धि हो रही है और प्रतिवर्ष लगभग 20 से 50 मीट्रिक टन ई-कचरा विश्व भर फेंका जा रहा है। ग्रीनपीस संस्था के अनुसार ई-कचरा विश्व भर में उत्पन्न होने वाले ठोस कचरे का लगभग पाँच प्रतिशत है। साथ ही विभिन्न प्रकार के ठोस कचरे में सबसे तेज़ वृद्धि दर ई-कचरे में ही देखी जा रही है क्योंकि लोग अब अपने टेलिविजन,कम्प्युटरमोबाइलप्रिंटर आदि को पहले से अधिक जल्दी बदलने लगे है। इनमें सबसे ज्यादा दिक्कत पैदा हो रही है कम्प्युटर और मोबाइल से क्योंकि इनका तकनीकी विकास इतनी तीव्र गति से हो रहा है कि ये बहुत ही कम समय में पुराने हो जाते हैं और इन्हें जल्दी बदलना पड़ता है। भविष्य में ई-कचरे की समस्या कितनी विकराल हो सकती है इस बात का अंदाज़ा इन कुछ तथ्यों के माध्यम से लगाया जा सकता है कि पिछले कुछ वर्षों में विकसित देशों में कम्प्युटर और मोबाइल उपकरणों की औसत आयु घट कर मात्र दो  साल रह गई है। घटते दामों और बढ़ती क्र्य शक्ति के फलस्वरूप इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों जैसे मोबाइलटीवीकम्प्युटरआदि की संख्या और प्रतिस्थापना दर में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है|जिससे निकला ई कचरा सम्पूर्ण विश्व में एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आ रहा है|भारत जैसे देश में जहाँ शिक्षा और जागरूकता का अभाव है वहां सस्ती तकनीक ई कचरे जैसी समस्याएं ला रही है|
घरेलू ई-कचरे जैसे अनुपयोगी टीवी और रेफ्रिजरेटर में लगभग एक हजार विषैले पदार्थ होते हैं जो मिट्टी एवं भू-जल को प्रदूषित करते हैं। इन पदार्थों के संपर्क में आने पर सरदर्दउल्टी , मतलीआँखों में दर्द जैसी समस्याएँ हो सकती हैं। ई-कचरे का पुनर्चक्रण एवं निस्तारण अत्यंत ही महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने ई-कचरे के प्रबंधन के लिए विस्तृत नियम बनाए हैं जो कि 1 मई 2012 से प्रभाव में आ गए हैं। ई-कचरा (प्रबंधन एवं संचालन नियम) 2011 के अंतर्गत ई-कचरे के पुनर्चक्रण एवं निस्तारण के लिए विस्तृत निर्देश दिये गए हैं। हालांकि इन दिशा निर्देशों का पालन किस सीमा तक किया जा रहा है यह कह पाना कठिन है। जानकारी के अभाव में ई-कचरे के शमन में लगे लोग कई  प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त  हो रहे हैं। अकेले दिल्ली में ही एशिया का लगभग 85 प्रतिशत ई-कचरा शमन के लिए आता है परंतु इसके निस्तारण के लिए जरूरी सुविधाओं का अभाव है। आवश्यक जानकारी एवं सुविधाओं के अभाव में न केवल ई-कचरे के निस्तारण में लगे लोग न केवल अपने स्वास्थ्य को  नुकसान पहुंचा रहे हैं बल्कि पर्यावरण को भी दूषित कर  रहे हैं। ई-कचरे में कई जहरीले और खतरनाक रसायन तथा अन्य पदार्थ जैसे सीसाकांसापारा,कैडमियम आदि शामिल होते हैं जो  उचित शमन प्रणाली के अभाव में पर्यवरण के लिए काफी खतरा पैदा करते हैं। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार भारत अपने ई-कचरे के केवल 5 प्रतिशत का ही पुनर्चक्रण कर पाता है।
ई-कचरे के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी उत्पादकउपभोक्ता एवं सरकार की सम्मिलित हिस्सेदारी होनी चाहिए । उत्पादक की ज़िम्मेदारी है कि वह कम से कम हानिकारक पदार्थों का प्रयोग करें एवं ई-कचरे के प्रशमन का उचित प्रबंधन करें,उपभोक्ता की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे को इधर उधर न फेंक कर उसे पुनर्चक्रण के लिए उचित संस्था को दें तथा सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह ई-कचरे के प्रबंधन के ठोस और व्यावहारिक नियम बनाए और उनका पालन सुनिश्चित करे.
 राष्ट्रीय सहारा में 04/05/15 को प्रकाशित लेख 

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