Thursday, February 23, 2012

Are you virtually active

                                
All i want is every thing
जी हाँ बस इतना सा ही ख्वाब है उसका  पर ये महज़ ख्वाब ना बन कर रह जाए इस के लिए एफर्ट करना जरूरी है .मुझे पताहै भाषण सुनने का आपको शौक नहीं है और इस सीख को सुनते सुनते आपके कान पक गए हैं मैं तो बस अपना अनुभव आपसे शेयर कर रहा हूँ कि आम के आम गुठलियों के दाम महज़ कहावत नहीं बल्कि रीयल्टी है.चिलैक्स ड्यूड समझाता हूँ.क्या है जो मिसिंग मिसिंग थोड़ी मस्ती दैट इस दाथिंग बोले तो बिलकुल सही इन्टरनेट अभी तक हम सबके लिए इन्टरनेट का मतलब था सोशल नेटवर्किंग साईट्स ,सर्फिंग टाईम पास ,चैटिंग और फोटो /वीडियो शेयरिंग ही था पर अब इसके थोडा आगे सोचा जाए और इस मस्ती को अपने जीवन से जोड़ दिया जाए  बोले  तो एक दम रापचिक देखिये वो जमाना तो अब रहा नहीं जब बुजुर्ग फरमाते थे कि अपने पैरों पर खड़े होकर दिखलाओ और उनके दिखाए रास्ते पर लोग चल पड़ते थे. अपना सी वी लेकर नौकरी की तलाश में पर अब तो बस अपना रेज्युमे पोस्ट करना होता है नौकरी.कॉम या मॉनस्टर.कॉम जैसी वेबसाइटों पर लेकिन दुनिया अब और आगे निकल चुकी है ज्यादातर भर्ती करने वाले और एचआर एक्सीक्यूटिव इंटरनेट पर कैन्डीडेट  की सक्रियता को जांचने के लिए ब्लॉग्स और सोशल मीडिया अकाउंट्स पर नज़र रख रहे हैंयह जानने के लिए क्या कैन्डीडेट  जॉब प्रोफाइल के लायक है यानि आपका फेसबुक प्रोफाईल या ट्विटर अकाउंट सिर्फ यारों से मिलने  और बहस करने की जगह भर  नहीं रहा इन सब के थ्रू आप अपने ख्वाब को रीयल्टी में कन्वर्ट कर सकते हैं.आइये समझते हैं कैसे?अक्सर लोग अपना ई मेल या फेसबुक अकाउंट बना कर भूल जाते हैं यह एक बड़ी गलती है नौकरियों की वेबसाईट पर अपना रेज्युमे अपलोड कर उन पर ध्यान ना देना. आपने एक कहावत तो सुनी होगी आउट ऑफ साईट आउट ऑफ माइंड तो वेब की इस वर्चुअल दुनिया में अगर आप एक्टिव नहीं रहेंगे तो बहुत जल्दी भूला दिए जायेंगे लोगों की नज़र में रहने के लिए प्रयास करना होगा ऐसा करने के लिए बस इस बात का ख्याल रखना है कि आपका ब्लॉग ट्विटर और फेसबुक वाल अप टू डेट रहे बात से ही बात निकलती है जिस क्षेत्र में आपकी रूचि हो ऐसे फोरम और ऑन लाइन ग्रुप्स का हिस्सा बनकर बात को आगे बढ़ाया जा सकता है.आप जितने ज्यादा एक्टिव  रहेंगे आपके नोटिस किए जाने की संभावनाएं उतनी ही ज्यादा होगीं,पर ध्यान रहे कुछ भी लिखने से पहले एकबार जरुर सोच लें कि आप क्या लिख रहे हैं. लोगों की दिलचस्पी बनाये रखने के लिए लिखा जाने वाला कंटेंट आपके काम ,सोच और क्षेत्र से जुड़ी नवीनतम घटनाओं का मिश्रण होना चाहिए.बी सेलेक्टिव आप किस्से जुड़ते हैं ये आपके प्रोफेशनल ब्रांड को बनाता है यूथ  के लिए नेटवर्किंग का ये रूल जानना  बहुत जरूरी है आपके संपर्कों की गुणवत्तासंपर्कों की संख्या से ज्यादा महत्व रखती है और सबसे महत्वपूर्ण Be Cautious  अगर आपने अपनी प्रोफाईल सेटिंग को गोपनीय नहीं बनाया तो सोशल मीडिया में आपकी हर एक सूचना पर बहुत से लोगों की नज़र होगी. .दूसरे के विचारों का सम्मान कीजिये आपके विचारों को खुद ब खुद सम्मान मिलने लग जाएगा इंटरनेट के इस ग्लोबल वर्ल्ड में अपनी स्किल्स से लोगों को परिचित कराइए और देखिये कितने अवसर आपका इन्तिज़ार कर रहे हैं तो इन्तजार किस बात का है अगर आप वर्चुअल स्पेस का हिस्सा नहीं है तो बन जाइए और यूँ ही कभी कोई अकाउंट बना लिया है तो उसपर समय बिताइए और फिर देखिये बात निकलेगी तो बहुत दूर तलक जायेगी.
आईनेक्स्ट में 23/02/12 को प्रकाशित 

Monday, February 20, 2012

तकनीक के नए मानक गढिये


जनवरी माह में पंजाब पुलिस ने पटियाला के समीप देवीगढ़ से एक ऐसे दर्जी को गिरफ्तार किया जिसने एक शादी शुदा महिला का जाली फेसबुक अकाउंट सिर्फ इसलिए बना दिया कि  उस महिला के पति से दर्जी का मनमुटाव हो गया था| ये घटना महज सोशल नेटवर्किंग साईट्स के दुरूपयोग की बानगी भर है ऐसी ना जाने कितनी घटनाएं रोज होती हैं |तकनीक  मानव समस्याओ का समाधान करने मे मदद करनेवाले औज़ारो, मशीनो और प्रक्रिया का विकास और प्रयोग है पर यदि तकनीक का इस्तेमाल सोच समझ कर ना किया जाए तो ये काम बिगाड़ भी सकती है .भारत जैसे विकास शील देश में तकनीक से लोगों को परिचित होने में वक्त लगता है पर दुनिया मार्शल मैक्लूहान के शब्दों में एक विश्व ग्राम में तब्दील हो चुकी है इसलिए तकनीक जो बनायी अमेरिका जैसे विकसित देश के लिए जाती है उसका इस्तेमाल भारत जैसे अनेक विकासशील देशों में होने लगता है पर उस देश का समाज उसके लिए कितना तैयार है इस विषय पर ध्यान कम दिया जाता है |मसलन इन्टरनेट को ही लिया जाए  इंटरनेट की उमर अब इकतालीस  साल हो चली  है। उम्र के लिहाज से देखा जाए तो इन्टरनेट अब प्रौढ़ हो चला है पर भारतीय परिवेश के लिहाज से इन्टरनेट एक युवा माध्यम है जिसे यहाँ आये अभी सोलह साल ही हुए हैं | इसी परिप्रेक्ष्य में अगर सोशल नेटवर्किंग को जोड़ दिया जाए तो ये तो अभी बाल्यवस्था में ही है .ऐसे में अभी इनके इस्तेमाल के मानक गढे जाने हैं जिससे सोशल नेटवर्किंग साईट्स का दुरूपयोग रोका जा सके तकनीक और मार्केट रिसर्च फर्म फारेस्टर रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार 2013 तक दुनिया में इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या 45प्रतिशत बढकर 2.2 अरब हो जाएगी।इस बढोत्तरी में सबसे ज्यादा योगदान एशिया का रहेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2013 तक भारत इंटरनेट यूजर्स के मामले में चीन और अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर होगा।भारत में इस वक्त ढाई करोड लोग सोशल नेटवर्किंग साईट्स से जुड़े हुए हैं फेसबुक अपने आई पी ओ के  शेयर विवरण पत्र (प्रोस्पेक्टस) में बताता  है,कि ये सोशल नेटवर्किंग साइट अपने उपयोगकर्ता (यूज़र) आधार को भारत, जापान और दक्षिण कोरिया में बढ़ाने का इरादा रखती है। ऐसा सतत विपणन, उपयोगकर्ताओं के अधिग्रहण प्रयासों और फेसबुक को ज्यादा सुगम्य बनाने हेतु मोबाइल एप्स समेत अपने उत्पादों में इज़ाफे  के माध्यम से किया जाएगा।भारत में फेसबुक की प्रवेश दर करीब बीस से तीस फीसदी है, जो जापान, रूस और दक्षिण कोरिया की 15 फीसदी से भी कम दर के मुकाबले बेहतर है, पर इतने सारे नए नेट उपभोक्ताओं ने एक समस्या को जन्म दिया है वो है इसमें सोशल नेटवर्किंग साईट्स मैनर का ना होना या यूँ कहें कि इसका इस्तेमाल किस तरह से करना है ये गिरने सम्हलने का दौर है पर भारत जैसे देश में जहाँ फैसले दिमाग से कम और दिल से ज्यादा लिए जाते हैं वहां ऐसे नए नेट यूजर समस्या भी खडी कर रहे हैं .जहाँ लोग मित्रता निवेदन रुचियों के हिसाब से नहीं बल्कि फोटो को देखकर भेज रहे हैं अकारण लोगों को टैग कर देना अश्लील वीडियो को देखने की लालसा में वाइरस की जकड में आ जाना जो आपके मित्रों की वाल पर भी बगैर आपकी जानकारी के पहुँच जाता है .लैंगिक समानता के दौर में महिलाओं को इन सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर पुरुषों से ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ती है .सोशल नेटवर्किंग साईट्स वर्चुअल दुनिया में सामाजिकरण के लिए हैं जहाँ आप अपनी तस्वीरें ,विचार ,वीडियो लोगों के साथ साझा कर सकें पर एक ऐसा देश जहाँ लोग बहस सुनने और समझने की बजाय सिर्फ बहस करना पसंद करते हैं जहाँ दूसरे पक्ष के लिए जगह ही  नहीं वहाँ ये तकनीक कई नए तरह
की समस्याएं भी पैदा कर  रही है और इसीलिये सरकार को भी इसे नियंत्रित करने के बारे में सोचना पड़ा|याद कीजिये भारत में मोबाईल को आये पन्द्रह साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है पर फिर भी हम अभी इसके सही इस्तेमाल का सही तरीका सीख ही रहे हैं ,चूँकि हमारे समाजीकरण में अभी तकनीक बहुत निचली प्राथमिकता में है और धीरे धीरे हमारे जीवन का हिस्सा बन रही है अगर हमें सोशल नेटवर्किंग साईट्स और सूचना तकनीक का अधिकतम सकारात्मक इस्तेमाल करना है तो इसे अपने सामाजिकरण का हिस्सा बनाना होगा और इसके लिए जिम्मेदारी उस युवा पीढ़ी पर ज्यादा है जो इनके प्रथम उपभोक्ता बन रहे हैं उन्हें ही इसके इस्तेमाल के मानक गढ़ने हैं और आने वाली पीढ़ी को इन मानकों से परिचित भी कराना है| अगर ऐसा हो सका तो कोई भी इन सोशल नेटवर्किंग साईट का इस्तेमाल करते हुए हिचकेगा नहीं.
अमरउजाला में दिनांक 19/02/12 को प्रकाशित 

Tuesday, February 7, 2012

जोश में होश ना खोएं



हम तो ऐसे हैं भैया, जी हाँ उम्र ही कुछ ऐसी है जब उम्मीदों के दिन हैं सपनों के दिन हाँ और हौसला ऐसा कि  कुछ पाना है कुछ कर दिखाना है जवानी इसी का नाम है और ऐसे जवानों को हम यांगिस्तानी कहते हैं और जब हम यांगिस्तानी हैं तो हमारा एटीट्यूड भी तो ऐसा ही होना चाहिए न कूल सिर्फ उम्मीदे बंधाने और सपने देखने से तो काम चलेगा नहीं उनको रीयल्टी में भी तो कन्वर्ट करना है न अब करियर को ही लीजिए आज कितने ओप्शन हैं हमारे पास,जब मैं छोटा था तो मेरे पेरेंट्स का एक ही ड्रीम था कि मैं  किसी तरह एक बैंक में जॉब पा जाऊं रीसन सिंपल था फादर बैंक में थे और करियर के बारे में उन्हें तींन  चीजें पता थी डॉक्टर,इंजीनियर और एक आई ए एस पर मैंने बदलती दुनिया में कुछ अलग करने का फैसला किया और आज आपसे मुखातिब हूँ है न मजेदार आज कितने करियर ओप्शन हैं हमारे पास फिर जब हम हैं नए तो अंदाज़ क्यों हो पुराना आज पाठशाला का मतलब सिर्फ बोरिंग लेक्चर नहीं बल्कि हैपनिंग क्लास होती है जिसमे पवार पॉइंट प्रेसेंटेशन है आडियो  वीडियो क्लास को इंटरेस्टिंग बना रहे हैं एवीइशन से लेकर डिजाईनिंग तक न जाने कितने ऐसे एरिया हैं जहाँ लोगों को एम्प्लोय्मेंट मिल रहा है फिल्म ,मीडिया आर्किटेक्चर के कितने इंस्टीट्यूट हमारे आस पास खुल गए हैं, आप भी सोच रहे होंगे कि ये मैं कौनसी कहानी आपको सुना रहा हूँ ये तो आप सबको पता है .बस यहीं आपने गलती कर दी.इतनी जल्दी कंक्लुशन निकालना ठीक नहीं है फिर आप तो यगिस्तानी हैं मैं मानता हूँ आपको अपने सपने पूरे करने की जल्दी है पर पुरानी कहावत है न जोश के साथ होश का भी होना जरूरी है .अपने करियर को सही शेप देने के लिए ऐसे इंस्टीट्यूट काफी मददगार हो सकते हैं पर शेक्सपीयर ने कहा था याद आया न all glitters are not gold हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती तो हर इंस्टीट्यूट सही हो ये जरूरी नहीं .ऐसे किसी भी इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने से पहले ये पक्का कर ले  कि उसका रिकग्निशन सही संस्था से है या नहीं वहां पढाने वाली फैकल्टी कैसी है और सबसे अच्छा ये रहेगा कि वहाँ  पढ़े हुए स्टूडेंट्स से जरुर एक बार बात कर ली जाए क्योंकि माउथ पब्लिसिटी से बड़ी कोई पब्लिसिटी नहीं होती .कहीं ऐसा न हो जाए कि आप कहें न खुदा ही मिला न विसाले सनम .इस जांच पड़ताल में आप इन्टरनेट की मदद लेकर सही फैक्ट्स पता कर सकते हैं आजकल ऐसे इंस्टीट्यूट की बाढ़ सी आयी है जो आपके सपनों का सौदा कर रहे हैं .एक बात और कोई भी इंस्टीट्यूट आपकी प्रतिभा को चमका सकता है पर जो चीज आपके अंदर नहीं है उसे पैदा नहीं कर सकता आपके सारे दोस्त किसी मीडिया इंस्टीट्यूट में दाखिला ले रहे हैं इसलिए आपने भी एडमिशन ले लिया तो गलत है अगर आपको पढ़ने लिखने का शौक नहीं तो ऐसे सपने मत देखिये कि आप महज़ एडमिशन लेकर बड़े मीडिया प्रोफेशनल बन जायेंगे .पहले अपना आंकलन कीजिये कि आप क्या कर सकते हैं फिर सपने देखिये और उन सपनों को पूरा करने की कोशिश, किसी अच्छे इंस्टीट्यूट में दाखिला लेकर कीजिये .आजके इस ग्लोबलाइजड वर्ल्ड में आपका टैलेंट बहुत देर तक छिपा नहीं रह सकता पर वो टैलेंट है क्या इसकी जानकारी आपसे बेहतर किसी को नहीं हो सकती .बात को थोडा और स्पष्ट करता हूँ अगर लोहा अच्छा है तो धार अच्छी आयेगी ही .मौसम बदल रहा है सर्दियाँ खत्म हुईं ,सर्दियों के बाद एक मौसम और आता है न आप गलत समझे मैं एक्साम सीजन की बात कर रहा हूँ ,क्योंकि यही वो सीजन जो आपके ड्रीम्स को पूरा करेगा तो लग जाइए अपने सपनों का पीछा करने में .

 आई नेक्स्ट में 7/02/12 को प्रकाशित 


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