कल तक स्क्रीन का मतलब घरों में सिर्फ टीवी ही होता था पर आज
उस स्क्रीन के साथ एक और स्क्रीन हमारी जिन्दगी का अहम् हिस्सा बन गयी है वो है
हमारे स्मार्ट फोन की स्क्रीन जहाँ मनोरंजन से लेकर समाचारों का सारा खजाना
मौजूद है रही सही कसर फेस्वुक लाईव फीचर ने पूरी कर दी है | ऑनलाईन मनोरजन उद्योग भारत में बगैर हलचल के
तेजी से पैर पसार रहा है | मनोरंजन के लिए हमारी निर्भरता
का प्राथमिक माध्यम टेलीविजन
पिछड़ रहा है |समाचारों
के मामले में हमारी निर्भरता टीवी और समाचार पत्रों पर कम हुई है और इसकी जगह
विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पहले ही ले चुके हैं पर मनोरजन के क्षेत्र में
टीवी की बादशाहत बरकरार रही पर इसको असली टक्कर इंटरनेट में 4 जी तकनीक और डाटा
पैक के साथ मनोरंजन के विभिन्न एप से मिलनी शुरू हो गयी है |शुरुआत यूट्यूब के वीडियो से हुई |आज लगभग छ
करोड़ भारतीय (60 मिलीयन ) महीने में अडतालीस घंटे यूट्यूब पर वीडियो देखने में
बिताते हैं |ये इस ओर इशारा करता है कि भारतीय दर्शकों की
मनोरंजन जरूरतों को टीवी अकेले पूरा करने में अक्षम है दूसरा अपनी मनोरंजन जरूरतों
को पूरा करने के लिए दर्शक टेलीविजन की बंधी बंधाई समय सारिणी से
निजात चाहता है |यानि पसंद का कंटेंट दर्शकों के पसंद के
समय के हिसाब से |गूगल के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल
देश से वीडियो अपलोड होने की संख्या में नब्बे प्रतिशत की
बढ़ोत्तरी हुई है और वीडियो देखने के समय में अस्सी प्रतिशत का इजाफा हुआ है |तथ्य यह भी यूट्यूब पर वीडियो देखने के समय में इजाफा स्मार्ट फोन की
बढ़ती संख्या के साथ हुआ है | मनोरंजन उद्योग से जुड़े हुए
सभी बड़े समूह अपने यूट्यूब चैनल के साथ मैदान में मौजूद हैं |भारतीय वीडियो देखना बहुत पसंद कर रहे हैं आंकड़े भी इसकी पुष्टि कर रहे
हैं |2015 के आंकड़ों के मुताबिक यूट्यूब भारत के कुल
स्मार्टफोन उपभोक्ता मे से साठ प्रतिशत यूट्यूब के एप का नियमित रूप से इस्तेमाल
करते हैं और कुल छाछट प्रतिशत उपभोक्ता नियमित रूप से इंटरनेट पर यूट्यूब के इतर
वीडियो देखते हैं साल 2014 में यह आंकड़ा उनचास प्रतिशत था |आंकड़ों का विश्लेषण करते वक्त हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तब 4जी
तकनीक देश में शुरू हुई नहीं थी |इण्डिया मोबाईल
ब्रोड्बैंड इंडेक्स 2016 और के पी एम् जी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल नेट
डाटा उपभोग का अडतीस से बयालीस प्रतिशत हिस्सा वीडियो और ऑडियो पर खर्च किया जाता
है | डिजीटल विज्ञापनों पर बढ़ता खर्च भी इसी तथ्य को
इंगित कर रहा है साल 2015 में जहाँ इन पर 6010 करोड़ रुपये खर्च किये गये जिसके साल
2020 तक करीब चार गुना 25,520 करोड़ रुपये हो जाने की
उम्मीद है |
हिन्दुस्तान में 31/10/16 को प्रकाशित