Wednesday, August 27, 2025

मानसिक रोगी बना रहे हैं ओ टी टी प्लेटफ़ॉर्म

 

पिछले कुछ वर्षों में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की लोकप्रियता जिस रफ्तार से बढ़ी हैउसी तेजी से केबल और डीटीएच सब्सक्रिप्शन की गिरावट दर्ज की गई है। इसका एक बड़ा कारण है—दर्शकों की बदलती प्राथमिकताएं। आज का दर्शक कंटेंट सिर्फ देखने भर के लिए नहीं देखतावह उसे अपने समयसुविधा और मन:स्थिति के अनुसार चुनना चाहता है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने न केवल यह आज़ादी दी हैबल्कि कंटेंट की विविधता और संवेदनशीलता के लिहाज़ से भी पारंपरिक टेलीविज़न को पीछे छोड़ दिया है। युवा पीढ़ी जो इंटरनेट और सोशल मीडिया के साथ बड़ी हुई हैअब रिमोट कंट्रोल और फिक्स्ड टाइम स्लॉट में नहीं बंधना चाहती।  

टेलीविजन और ओटीटी में सिर्फ तकनीक का नहीं सोच का भी अंतर हैपारंपरिक टीवी जो एक परिवार का सामूहिक अनुभव था वो अब व्यक्ति की निजी स्क्रीन हो गया है। आज की पीढ़ी दोस्तों और परिवार के साथ बैठकर तय समय पर कुछ देखने की बजायअकेले में अपने मोबाइल या लैपटॉप पर मनचाहा कंटेंट देखना पसंद करती है। सैद्धान्तिक तौर पर देखा जाये तो कम विज्ञापनकहीं भी किसी भी समय कंटेंट देखने की आजादी के चलते व्यक्ति के पास काफी समय बचना चाहिए था मगर अब मनोरंजन का समय सीमित नहीं रहा है वो हमारे हर खाली पल में घुस गया है। ऑफिस का ब्रेक हो या रात की नींद से पहले का समय हर जगह ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया एप्स हमारी जिंदगी में घुस गये हैं। बिंज वॉचिंग आज की हकीकत बन गई है। अब दर्शक हफ्तेभर इंतजार नहीं करते कि अगला एपिसोड कब आएगावो एक ही दिन में छह-छह घंटे की वेब सीरीज़ खत्म कर देते हैं। उन्हें लगता है कि ये मनोरंजन हैलेकिन असल में ये आदत दिमाग को थकाने वाली और नुकसानदायक है। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने हमे चुनने की आजादी तो दी हैमगर ऑटो प्ले नेक्स्ट एपिसोडसजेस्टेड फॉर यू जैसे मनोवैज्ञानिक ट्रिगर का उपयोग करके हमे बिंज वॉच में फंसा लेते हैं। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ सेंट्रल फ्लोरिडा में हुए एक अध्ययन के मुताबिक बिंज वॉचिंग से चिंताअवसाद और नींद की गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है। वहीं निरंतर स्क्रीन देखने और असीमित चुनाव ने लोगों में फोमो और चॉइस पैरालिसिस जैसी मानसिक स्थितियों ने जन्म दिया है। सोशल मीडिया वीडियोज और ट्रेंड के चलते लोग इस दबाव में रहते हैं कि वे हर नए कंटेंट को देखेंताकि कहीं वे किसी चर्चा या ट्रेंड से बाहर न रह जाएं।

कुछ साल पहले जब ओटीटी प्लेटफॉर्म कई वायदे के साथ आये थे मसलन लंबे-चौड़े बंडल पैक से छुटकारामनचाही फिल्में और वेब सीरीज वो भी विज्ञापनों के बिनाकब क्या और कितना देखना है यह हक अब दर्शकों का होगा। मगर जैसे-जैसे समय गुजरा ये प्लेटफॉर्म भी वही पुराने फार्मुले पर निकल पड़े। कभी जो मनोरंजन था अब आदत बन रहा हैऔर यही आदत धीरे-धीरे हमें मानसिक रूप से अस्वस्थ कर रही है। हर पल फोमोसुझाव और ट्रैंड में बने रहने की दौड़ में हम सुकून की तलाश भूल गये हैं और बस बिना सोचे-समझे कुछ भी देख रहे हैं। ओटीटी और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म ने दर्शकों को कंटेंट चुनने की आज़ादी जरूर दी हैलेकिन कंटेंट की इस बाढ़ में सही चुनाव करना दर्शकों के लिए बड़ी चुनौती बन गया है। दूसरी ओरये बदलाव हमारे पुराने टीवी देखने के उस मज़ेदार दौर को भी पीछे छोड़ आया हैजब परिवार साथ बैठकर एक ही स्क्रीन पर कहानी का हिस्सा बनता था। मनोरंजन अब ज्यादा निजी और अकेलेपन के दूर भागने का एक जरिया हो गया है। यह समय है कि हम सचेत रूप से अपने समय और ध्यान को नियंत्रित करें हर समय बिंज वॉचिंगसतही रील्स में आनंद ढूंढने के बजायकुछ समय प्रकृतिरिश्तों और आत्मविकास में बितायें। तभी हम मानसिक सुकून और असली खुशी की तलाश कर पाएंगे।

 

प्रभात खबर में 27/08/2025 को प्रकाशित 

Tuesday, August 26, 2025

फिर लौट रहा है ब्लॉगिंग का दौर

 
90 के दशक के आखिरी सालों में जब इंटरनेट हमारी-आपकी ज़िंदगी में धीरे-धीरे दाख़िल हो रहा था, तब लेखन की दुनिया में ब्लॉगिंग के रूप में एक नई क्रांति ने जन्म लिया। ऐसा पहली बार हुआ था जब लेखकों को बिना किसी संपादक, प्रकाशक या अखबार के बजाय सीधे पाठकों से जुड़ने का एक मौका मिला। ब्लॉग्स ने लेखकों को एक मंच दिया जहाँ वे अपनी बात, अनुभव और विचारों को दुनिया के सामने रख सकते थे। वक्त बदलने के साथ जैसे-जैसे इंटरनेट की पहुँच बढ़ी, यह मंच भी और व्यापक होता गया। ब्लॉगिंग के उस दौर में कोई यात्रा के संस्मरण बाँट रहा था, कोई सामाजिक मसलों पर राय दे रहा वहीं कोई कविताएं लिख रहा था। लेकिन यह सिलसिला बहुत लंबा नहीं चला। सोशल मीडिया की दस्तक के साथ ही फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स सामने आए और धीरे-धीरे संवाद के तरीकों पर उनका असर दिखने लगा। अब लोग लंबा पढ़ने के बजाय छोटी, दृश्य आधारित सामग्री को तरजीह देने लगे हैं। पहले जहाँ लेख, कॉलम और विचार की शक्ल में संवाद होता था, अब वहीं रील्स, मीम्स और शॉर्ट्स का राज है। पर  बीते कुछ सालों में कुछ ऐसे डिजिटल कोने उभर रहे हैं जो शब्दों को फिर से अहमियत दे रहे हैं और आय कमाने का जरिया भी । ऐसे ही एक न्यूजलेटर आधारित प्लेटफॉर्म का नाम है सब्सटैक, जो लेखकों और पाठकों के लिए नए ब्लॉगिंग विकल्प के रूप में सामने आया है।
 
सब्सटैक एक अमेरिकी ऑनलाइन न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म है जो लेखकों को फ्री या पेड सब्सक्रिप्शन के माधयम से अपनी सामग्री प्रकाशित करने की आजादी देता है। टेक क्रंच की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में इस प्लेटफॉर्म ने 5 मिलियन पे़ड और 40 मिलियन एक्टिव सब्सक्रिप्शन का आंकड़ा पार किया है। जिस तरह क्रियेटर्स यूट्यूब पर अपना चैनल बनाकर सीधे दर्शकों से जुड़ते हैंठीक उसी प्रकार सब्सटैक लेखकों को उनके पाठकों से सीधे जुड़ने का एक मौका देता है। यहाँ लेखकों को पूरी रचनात्मक स्वतंत्रता मिलती है और वे अपने सब्सक्राइबर लिस्ट और बौद्धिक संपदा के मालिक भी बने रहते हैं। जिस तरह एक समय ब्लॉग्स ने लेखकों और पाठकों के बीच एक संबंध स्थापित करते थे ठीक उसी प्रकार सब्सटैक जैसे प्लेटफॉर्म्स एक बार फिर आधुनिक ब्लॉगिंग वेबसाइट्स के रूप में सामने आये हैं। लेकिन पारंपरिक ब्लॉगिंग csx जहाँ लेखक आमदनी के लिए अक्सर वेबसाइट ट्रैफिकविज्ञापन और एसईओ जैसी चीजों के पीछे भागते थे| वहीं सब्सटैक ने उस पूरी प्रणाली को उलट कर रख दिया है। यहाँ लेखक का न तो एल्गोरिदम की कृपा पर निर्भर होता हैन ही क्लिक-बेट शीर्षकों की होड़ पर। पाठक स्वयं तय करता है कि वह किस लेखक को पढ़ना चाहता है और सब्सक्रिप्शन के जरिये लेखकों की भी सीधे कमाई हो जाती है।  एक्सिओस की एक रिपोर्ट के मुताबिक सब्सटैक पर एक लेखक अगर एक हजार सब्सक्राइबर्स बना लेता है तो वह लगभग 50 हजार डॉलर तक की कमाई कर सकता है। साल 2024 तक सब्सटैक का वार्षिक रेवेन्यू 25 मिलियन डॉलर को पार कर चुका है। कंपनी की कमाई मुख्यता पेड़ न्यूजलेटर्स की सब्सक्रिप्शन फीस के जरिये होती है। हालांकि तकनीक की इस दौड़ में आंकड़े हमे यह बताते हैं कि लोगों की लंबा पढ़ने की प्रवृति पहले जैसी नहीं रही है। स्टेस्टिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक औसत व्यक्ति जो साल 2004 में करीब 23 मिनट रोजाना पढ़ता था अब 2024 तक केवल 16 मिनट की पढ़ने को समय देता है। वहीं मोबाइल पर बिताया गया औसत समय  रोजाना 4 घंटे से भी अधिक हो चुका है। इसमें ज्यादातर समय लोग वीडियोसोशल मीडिया और स्क्रॉलिंग में खर्च कर देते हैं। ऐसे में लेखन आधारित प्लेटफॉर्म्स के लिए यह समय और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। 
कोविड महामारी के दौरान कई भारतीय लेखकों और पत्रकारों ने सब्स्टैकमीडियम जैसे प्लेटफार्म्स का रुख किया। हालांकि सब्सटैक की पहुँच अभी भारत में सीमित है। रॉयटर्स डिजिटल न्यूज रिपोर्ट 2024 के अनुसार केवल 12 प्रतिशत भारतीय ही डिजिटल न्यूज पढ़ते समय लंबे लेखों को प्राथमिकता देते हैं। ऐसे में पूरे इंटरनेट पर सतही और भावनात्मक और तुरंत उपभोग किए जा सकने वाले लेखों की बाढ़ सी आ गई है। चूंकि सब्सेटैक जैसे न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म पर लोग स्वयं सब्सक्रिप्शन शुल्क अदा करते हैंतो वे सतही समाचार की बजाय गुणवत्ता औऱ विश्लेषणात्मक सामग्री की अपेक्षा करते हैं। इंटरनेट पर जहाँ हर पल नए कंटेंट भरमार रहती हैवहीं एक तबका स्लो मीडिया का भी है। स्लो मीडिया का अर्थ है ऐसा कंटेंट जो त्वरित मनोरंजन नहीं बल्कि सोचसमझ और विवेक की माँग करता है। सब्सटैक जैसे प्लेटफॉर्म्स उसी दिशा में एक कदम हैं । जहाँ पाठक शोधपरकनए दृष्टिकोण आधारित लेखों को महत्व देते हैं।  हालांकि भारत में सब्सटैक पर लिखना जितना आसान हैलेखकों के लिए कमाना उतना ही मुश्किल है। आरबीआई का नियम कहता है कि अगर कोई भी ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन अगर  पाँच हजार से ज़्यादा का है तो ग्राहक को ओटीपी की जरूरत होती हैयह प्रक्रिया अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स पर पेमेंट करते समय कई बार विफल हो जाती हैजिससे लेखकों और पाठकों दोनों के लिए असुविधा उत्पन्न होती है। इसके साथ भारतीय लेखक इन प्लेटफॉर्म्स पर केवल भारतीय रुपये में ही भुगतान स्वीकार कर सकते हैंजबकि वैश्विक प्लेटफॉर्म्स प्रायः डॉलरयूरो जैसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा में लेन-देन करते हैं। इस असमानता के चलते भारतीय क्रिएटर्स को वैश्विक आय संभावनाओं का पूरा लाभ नहीं मिल पाता है। एक तरफ सोशल मीडिया की सफलता में भारतीय भाषाओं का बड़ा योगदान रहा हैवहीं दूसरी ओर अधिकतर न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म्स अंग्रेजी में है। हालांकि अभी भी भारत में पेड सब्सक्रिप्शन की स्वीकार्यता कम है। ये  भारतीय भाषाओं में लिखने वाले लेखकों के लिए यह मंच अभी तक पूरी तरह सहज नहीं बन पाया है। भारत में डिजिटल साक्षरता     और इंटरनेट की पहुँच तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में नई पीढ़ी के लेखकों के लिए सबस्टैक एक अहम मंच हो सकता है। जिस तरीके से यूट्यूब पर लाखो भारतीय कंटेंट क्रियेटर्स ने लाखों की संख्या में दर्शक बनाए और अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया ठीक उसी तरह सब्सटैक भी स्वतंत्र लेखकों के लिए आय का स्त्रोत बन सकता है। हाल में रॉयटर्स इंस्टीट्यूट की ओर से किये गए सर्वे के मुताबिक भारत में लोगों का पारंपरिक मीडिया से भरोसा घट रहा हैरिपोर्ट के मुताबिक लोगों का पारंपरिक खबरों पर भरोसा 38 प्रतिशत तक सिमट गया है। ऐसे में सबस्टैकलेखकों और पत्रकारों को संपादकीय दबाव से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से जनता से जुड़ने का अवसर दे रहा है।
 
तेजी से बदलते इस दौर में जहाँ रील्स और स्क्रॉलिंग ने हमारी गहराई से पढ़ने की आदत को हाशिए पर डाल दिया हैऐसे में सब्सटैक जैसे न्यूजलेटर प्लेटफॉर्म पाठकों को डिजिटल शोर से दूर जाकर ठहरनेसोचने और समझने का एक ऐसा स्थान देते हैं जहाँ अब भी शब्दों की अहमियत ज़िंदा है। भारत जैसे देशों में मुद्रीकरण नियमतकनीकी और भाषायी चुनौतियाँ जरूर हैंलेकिन जिस तरह एक समय ब्लॉगिंग ने लोगों के बीच अपनी जगह बनाई थीउसी तरह न्यूजलेटर आधारित लेखन भी धीरे-धीरे गंभीर पाठक वर्ग तैयार कर रहा है। अब जरूरत इस बात की है कि लेखक अपनी विश्वसनीयता और गुणवत्ता को बनाए रखे और पाठक शब्दों की अहमियत को फिर से समझें। क्योंकि इस डिजिटल भीड़ में वही टिकेगा जिसमें ठहराव होविचार और सबसे बढ़कर ईमानदारी हो।
अमर उजाला में 26/08/2025 को प्रकाशित 

Saturday, August 16, 2025

कला को मिलती नई पहचान

 

 कला हमेशा से मानव सभ्यता का दर्पण रही है। प्राचीन काल में गुफाओं की दीवारों पर उकेरी गई चित्रकारी से लेकर आधुनिक कैनवास पर जीवंत रंगों तक, कला ने समय के साथ कई रूप बदले हैं। लेकिन डिजिटल युग ने कला की मौलिकता और स्वामित्व को लेकर नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। इंटरनेट की दुनिया में तस्वीरें, संगीत या वीडियो को चंद सेकंड में कॉपी कर लिया जाता है, जिससे कलाकारों को उनकी रचना का उचित श्रेय और अधिकार नहीं मिल पाता। इस समस्या से निपटने के लिए नॉन-फंजिबल टोकन (एनएफटी) एक क्रांतिकारी समाधान बनकर उभरा है| जिसने कला, संगीत, गेमिंग सहित कई क्षेत्रों में एक नई क्रांति ला दी है। एनएफटी एक तरह का डिजिटल सर्टिफिकेट है, जो यह साबित करता है कि किसी डिजिटल संपत्ति का असली मालिक कौन है। यह डिजिटल संपत्ति डिजिटल आर्ट, फोटो, वीडियो, जीआईएफ, संगीत और यहाँ तक की किसी सोशल मीडिया पोस्ट किसी भी रूप में हो सकती है। 

 एनएफटी ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारिक टोकन है, जिसमें डिजिटल कला को पहले एक टोकन के रूप में परिवर्तित किया जाता है और बाद में क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करके उस टोकन को खरीदा या बेचा जाता है। यह टोकन इस बात को सुनिश्चित करता है कि किसी कला का असली रचनाकार या मालिक कौन है। इसे इस तरह से भी समझा जा सकता है जैसे पहले किसी दुर्लभ या नायाब पेंटिंग या वस्तु  को नीलामी के जरिये खरीदा-बेचा जाता था और खरीददार को उसके साथ एक स्वामित्व का प्रमाणपत्र भी दिया जाता था, ठीक उसी प्रकार एनएफटी में अगर डिजिटल पेंटिंग को खरीदा जाता है तो उसे उसका एक यूनिक स्वामित्व प्रमाण मिलता है जिससे उस वर्चुअल प्रॉपर्टी के असली रचनाकार और मालिक को ट्रेस किया जाता जा सकता है। भौतिक दुनिया में भले ही असली और नकली कला में फर्क करना मुश्किल हो सकता है लेकिन एनएफटी पर दर्ज डिजिटल कला के एकमात्र असली संस्करण को प्रमाणित करना आसान है। फर्क सिर्फ इतना है कि पारंपरिक कला को भौतिक रूप से छुआ जा सकता है, जबकि एनएफटी आर्ट पूरी तरह डिजिटल होती हैं। दरअसल एनएफटी ब्लॉकचेन तकनीक पर आधारित होते है। ब्लॉकचेन एक तरह का डिजिटल बही-खाता है, जो सभी लेन-देन को सुरक्षित और पारदर्शी तरीके से स्टोर करता है। यह कई कंप्यूटरों के नेटवर्क में फैला होता है, जिससे इसे हैक या बदला नहीं जा सकता। जब कोई कलाकार अपनी डिजिटल कला को एनएफटी में बदलता है, तो ब्लॉकचेन पर उसका स्थायी रिकॉर्ड बन जाता है। जो उसकी मौलिकता और स्वामित्व की गारंटी देता है। हर बार जब वह एनएफटी बेचा जाता है, तो इसका पूरा विवरण ब्लॉकचेन में दर्ज होता है, जिससे कोई भी इसकी प्रमाणिकता को सत्यापित कर सकता है।

 रिसर्च एंड मार्केट्स संस्था की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2024 तक एनएफटी का कुल  वैश्विक बाजार 35 बिलियन डॉलर था और 2032 तक यह बाजार 264 बिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। हालांकि भारत में एनएफटी बाजार अभी शुरुआती चरण में है। स्टैस्टिका की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2025 के अंत तक भारत में एनएफटी बाजार करीब 77 मिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। जो कि वैश्विक बाजार के मुकाबले काफी कम है। हालांकि भारत में डिजिटल कला का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन एनएफटी पर कानूनी और नियामक ढांचे की अस्पष्टता, क्रिप्टोकरेंसी पर प्रतिबंध और टैक्स संबंधी अनिश्चितताओं के कारण भारत में एनएफटी का विकास कुछ हद तक सीमित रहा है। भारत में बॉलीवुड सेलिब्रेटी भी एनएफटी पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं, बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन ने साल 2021 में अपने पिता की काव्य रचना मधुशाला के ऑडियो संस्करण के संग्रह को करीब 7 करोड़ में नीलाम किया था। इसके अलावा कलाकार इशिता बनर्जी ने भगवान विष्णु पर बनी अपनी डिजिटल कलाकृति को करीब ढाई लाख में बेचा था। एनएफटी का एक फायदा और है जब कोई कलाकर अपनी एनएफटी बेचता है, तो हर बार जब वह एनएफटी रीसेल होती है, तब मूल कलाकार को एक निश्चित रॉयल्टी भी प्राप्त होती है।

 एनएफटी, कलाकारों के साथ-साथ निवेशकों के लिए भी फायदे का सौदा है, इससे डिजिटल संपत्तियों में निवेश करने का एक नया रास्ता खुला है। साथ ही निवेशक ब्लॉकचेन पर दर्ज मूल कलाकार की रचना को ट्रेस करके आसानी से निवेश कर सकते हैं। और एक बेहतर सौदा मिलने पर उसे वापस बेच  सकते हैं। जैसे-जैसे हमारी दुनिया मेटावर्स और आर्ग्यूमेंटेंट रियेलिटी की बढ़ रही है, वैसे-वैसे एनएफटी का महत्व भी बढ़ रहा है। मेटावर्स जो कि एक आभासी डिजिटल दुनिया का कॉन्सेप्ट है, जिसमें आप वर्चुअल अवतार बनकर घूम सकते हैं, लोगों से मिल सकते हैं। यह इंटरनेट का अगला रूप है जहाँ लोग वेबसाइट देखने के बजाय खुद एक आभासी दुनिया में मौजूद रहते हैं। ऐसे में मेटावर्स में डिजिटल स्पेस, इंसानों के अवतार और कला को खरीदने बेचने के लिए भी एनएफटी का उपयोग किया जाता है।

उदाहरण के लिएडिसेंट्रलैंड और सैंडबॉक्स जैसे मेटावर्स प्लेटफॉर्म्स पर लोग लाखों रूपये में डिजिटल स्पेस खरीद रहे हैं। भारत में भी गेमिंग और वर्चुअल रियलिटी का बाजार तेजी से बढ़ रहा हैमोरडोर इंटेलिजेंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2025 के अंत तक भारत का गेमिंग बाजार 4 बिलियन डॉलर का भी आंकड़ा पार कर लेगा। एनएफटी मार्केटप्लेस के लिए गेमिंग एक बड़ा बाजार हैगेम कैरेक्टर्सवर्चुअल स्पेसलेवल्स समेत सारी वर्चुअल संपत्तियों के स्वामित्व के लिए उन्हें कंपनियाँ एनएफटी पर दर्ज कर रही हैं। जिससे इन डिजिटल संपत्तियों का स्वामित्व बरकरार रहता है।

 हालांकि एनएफटी बाजार में कई तरह के जोखिम भी हैं, जिनमें फेक एनएफटी बेचना, कीमतों में हेरफेर और कॉपीराइट उल्लंघन जैसे मामले शामिल हैं। एनएफटी के बारे में कम जानकारी और प्रशिक्षण के कारण बहुत से कलाकारों को इसके बारे में पता नहीं होता  जिसका फायदा उठाकर कई बार कई बार फर्जी लोग उनके डिजिटल आर्टवर्क को चोरी करके उन्हें एनएफटी पर बेच देते हैं। भारत और विश्व के तमाम देशों में एनएफटी से जुड़े रेगुलेशन न होने के कारण कलाकारों को कई तरह की समस्याएं भी हो सकती हैं। एनएफटी और क्रिप्टो का उपयोग कई बार मनी लॉन्ड्रिंग और अवैध लेन-देन के लिए भी होता है। एनएफटी की कीमतें पूरी तरह से बाजार की माँग और क्रिप्टोकरेंसी की वैल्यू पर निर्भर करती हैं। जिसमे काफी अस्थिरता देखी जाती है। कोई एनएफटी एक दिन लाखों में बिकता है, तो कुछ समय बाद उसकी कीमत हजारों तक भी आ सकती है। इस कारण निवेशकों को भारी नुकसान होने की संभावना बनी रहती है। पर्यावरणीय दृष्टि से देखें तो एनएफटी का एक बड़ा नुकसान ऊर्जा की खपत भी है, अधिकतर एनएफटी लेन-देन एथेरियम ब्लॉकचेन का उपयोग करते हैं, जिससे भारी मात्रा में बिजली खर्च होती है और कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है। हालांकि धीरे धीरे इसके पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने की कोशिश जारी है।

 कुल मिलाकर एनएफटी भविष्य में कला, मीडिया और डिजिटल अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह कलाकारों को उनकी रचनाओं के लिए एक बाजार देने के साथ-साथ उसकी मौलिकता और स्वामित्व की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। हालांकि इसके लिए ब्लॉकचेन की स्थिरता, कानूनी स्पष्टता और व्यापक स्वीकार्यता बेहद आवश्यक होगी। अगर इन चुनौतियों का समाधान किया जाता है तो एनएफटी डिजिटल क्रियेटिविटी के परिदृश्य को नया आकार देकर, कलाकारों और निवेशकों के लिए असीम संभावनाओं के द्वार को खेल सकता है ।

दैनिक जागरण में 16/08/2025 को प्रकाशित लेख 

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