हिन्दुस्तान दैनिक में दिनांक २१ नवंबर को प्रकाशित लेख
Sunday, November 21, 2010
Wednesday, November 17, 2010
गुस्सा तो जीवन का हिस्सा है
खुश रहो न यार , छोडो न यार सब चलता है , गुस्साने से क्या होगा ये कुछ ऐसी सीख हैं जो जिंदगी के किसी न किसी मोड पर आपको जरुर मिली होगी चलिए थोड़ी देर ये मानकर देखते हैं कि ये सब बातें सही हैं मतलब गुस्साने से कोई फायदा नहीं होता ज्यादा गुस्सा शरीर के लिए नुकसानदायक होता है गुस्सा क्या है? गुस्सा एक साइकोलोजिकल स्टेट ऑफ माईंड, जब हम अपने आस पास की चीजों और व्यवहार से संतुष्ट नहीं होते हैं तब गुस्सा आता है अब जरा मेडिकल साइंस की बात कर ली जाए गुस्सा आना आपके नोर्मल होने की निशानी है पर ज्यादा गुस्सा आना ठीक नहीं है लेकिन अगर आपको गुस्सा आता ही नहीं है तो ये गुस्सा आने से ज्यादा खतरनाक है गुस्सा दबाना शरीर और दिमाग पर बुरा इफेक्ट डालता है जिससे नींद कम हो जाती है गुस्से को दबाने का शरीर और मन, दोनों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। नींद नहीं आती, थकान होती है, एकाग्रता कम होती है और इन सबका परिणाम अवसाद, चिंता और अनिद्रा के रूप में सामने आ सकता है जिनसे कई गंभीर बीमारियाँ हो सकती हैं पर गुस्से के कई पोसिटिव अस्पेक्ट भी है बात न तो नयी और न ही अनोखी हाँ बस जरा सा नजरिया बदला है .इस दुनिया में बहुत कुछ बुरा है पर जो कुछ अच्छा है या हो रहा है वो कुछ लोगों के गुस्से के कारण ही है जो स्टेटस-को मेंटेन नहीं रखना चाहते हैं जो गलत बात के आगे झुकना नहीं चाहते हैं आइये देखते हैं गुस्सा किस तरह दुनिया और समाज को बदल रहा है अब जरा उन दिनों को याद करिये जब आपके घर में टीवी नहीं था और आपको पड़ोसी के घर टीवी देखने जाना पड़ता था तब कैसा लगता था बहुत गुस्सा आता था न लेकिन आपके गुस्से ने घर वालों को एहसास कराया कि घर में टी वी की जरुरत है .आइये थोडा पीछे चलते हैं बात महात्मा गाँधी की साऊथ अफ्रीका में उन्हें इसलिए ट्रेन से उतार दिया जाता है कि वो एक हिन्दुसतानी हैं उन्हें भी गुस्सा आया था पर इस गुस्से को व्यक्त करने का तरीका उनका थोडा अलग रहा नॉन वायलेंस का इस्तेमाल करके उन्होंने देश को आज़ाद कराने की कोशिश की जिसमें वो कामयाब भी रहे .अक्सर गुस्से का सम्बन्ध संतुष्टि के स्तर से जुड़ा होता है अब अगर आप संतुष्ट हो गए तो जो चीजें हमें मिली हैं हम उन्हें वैसे ही स्वीकार कर लेंगे फिर न विकास की कोई गुंजाईश होगी और न बदलाव की पर इसका मतलब ये मत निकालिए कि हमें बेवजह गुस्सा करने का हक मिल गया है कई बार गुस्सा हमारी सोच के गलत होने के कारण भी आता है जिस चीज को आप पसंद नहीं करते अगर आप वही दूसरों के साथ कर रहे हैं तो इसका मतलब आपकी सोच सही नहीं है ऐसे में आप के द्वारा यूँ ही लोगों पर सिस्टम पर गुस्सा करना गलत है इसलिए गुस्सा करते वक्त अपने दिमाग को खुला रखिये अगर आपका दिमाग कह रहा है कि आप सही हैं तो बिलकुल आपको गुस्सा करने का हक है ऐसे में अपने गुस्से को निकालिए पर हाँ सभ्यता से गुस्से में आपको कुछ भी करने या बोलने का हक नहीं मिल जाता आपके बॉस ने आपको डाटा आप बॉस का कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो ऑटो वाले पर अपना गुस्सा निकाल दिया ये सही तरीका नहीं है अपने एंगर का मैनजमेंट सही तरीके से अगर आप कर पायेंगे तो आपको लगेगा कि दुनिया को बेहतर बनाने में आपका योगदान दूसरों से कहीं ज्यादा होगा क्या कहेंगे आप इस गुस्से के किस्से पर .............
आई नेक्स्ट में १७ नवंबर को प्रकाशित
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