मीडिया सवाल कई जवाब नहीं देश और विदेश में रोज नए सवाल खड़ा करने वाला मीडिया तंत्र आज खुद सवालों के घेरे में है कभी राडिया प्रकरण कभी पेड न्यूज़ और कभी खबरों को परोसने के पीछे निहित मंशा एक लोकतांत्रिक समाज में एक स्वतंत्र जन माध्यम का होना आवश्यक है. भारत में वो सारी चीजें मीडिया को हासिल है उसके बाद भी सवाल उठे हैं और मीडिया की विश्वसनीयता पर प्रश्न चिहन लगा है पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इन सवालों के
उठने की शुरुवात मीडिया से हुई है भारतीय संचार मीडिया का ढांचा वर्तमान में एक त्रि स्तरीय व्यवस्था के अंतर्गत काम कर रहा है .दो दशक पहले तक प्रिंट मीडिया का बोलबाला रहा करता था और अखबारों की उस हनक को आज भी लोग याद करते हैं पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी व्यवस्था में अख़बारों में जो कुछ भी छापा जा रहा था उसमे सबकुछ सही ही था उचित नहीं होगा तब रेडियो और टी वी के सीमित दायरे थे विज्ञापन ज्यादातर अखबार केंद्रित थे और अखबारों के समाचारों से कोई समस्या होने पर पर एक ही संस्था जो शिकयतसुनती थी वह प्रेस परिषद पाठक आमतौर पर उतना जागरूक नहीं था यानि उसे जो कुछ परोस दिया जाता वो उसका आनंद उठाता बगैर परेशानी के १९९१ में नयी आर्थिक नीति के लागू होने के बाद देश के आसमान विदेशी प्रसारकों के लिए खुल गए और अखबारों की सत्ता को चुनौती मिली टेलीविजन से पाठक धीरे धीरे दर्शक बनने लग गए और लोगों को पहली बार समाचारों की जीवन्तता का एहसास हुआ ध्वनि और चित्रों के माध्यम से लेकिन जल्दी ही यह परिद्रश्य भी बदल गया अब लोगों को ये पता चलने लगा गया कि किस खबर के क्या निहितार्थ है .प्रेस परिषद के अलावा टेलीविजन प्रसारकों का अपना एक संगठन है जहाँ कोई भी व्यक्ति किसी भी चैनल से सम्बंधित अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि इस संगठन का निर्माण खुद टेलीविजन चैनलों ने खुद अपनी साख बरक़रार रखने के लिए किया है . एक तरह से लोगों में मीडिया के प्रति जागरूकता बढी और मीडिया जो सवालों से परे था उस पर भी सवाल लगने शुरू हुए लेकिन इसका प्रभाव बहुत व्यापक नहीं था .२००० के दशक तक डॉट कॉम क्रांति हो चुकी थी और इन्टरनेट धीरे धीरे अपने पावं पसार रहा था पर परिवर्तन की असली शुरुवात हुई ब्लोग्स से अब हर आदमी एक पत्रकार था वो अपनी कहानी लोगों को सुना सकता था और इसके लिए न तो किसी पूंजी की जरुरत थी और न ही किसी के आगे हाथ जोड़ने की बस जो कहना चाहते हैं लिख डालिए रही सही कसर फेसबुक और ट्विट्टर जैसी सोसल नेटवर्किंग साईट्स ने पूरी कर दी यहाँ यह बात ध्यान देने की है जैसे मीडिया का विस्तार हो रहा है उसी अनुपात में उसकी आलोचना बढ़ रही है यानि जनता अब मुखर हो रही है इसका पता फेसबुक ट्विटर पर लोगों के द्वारा मीडिया कार्यकर्मों की गयी टिप्पड़ियों से लग जाता है यह स्थिति एक
सकारात्मक परिवर्तन का संकेत देती है यानि यदि मीडिया संस्थान किसी एजेंडे पर चल रहे हो तो इसका पता लोगों को बहुत जल्दी लग जाता है और एजेंडा यदि नकारात्मक है तो उसका भंडाफोड हो जाता है .सूचना प्रवाह के इस युग में अब सूचनाओं को रोकना लगभग असम्भव हो गया है वहीं चैनलों और समाचार पत्रों के विस्तार ने अब उस दौर को भी खतम कर दिया है जब गिने चुने अखबार या चैनल हुआ करते थे .देखा जाए तो मीडिया पर उठते सवाल इस मायने में सकारात्मक संकेत देते हैं कि श्रोता /दर्शक /पाठक अब ज्यादा समझदार है और उसकी उम्मीदें मीडिया से बढी हैं इस दबाव का सामना करने के लिए ही टी आर पी और रीडरशिप की होड शुरू हुई है. हालाँकि कभी कभी इसके नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं लेकिन सूचनाओं की गति तेज हुई है वहीं दूसरी ओर मीडिया के जबरदस्त फैलाव ने अपने आप एक ऐसा तंत्र विकसित करना शुरू कर दिया है जो एक दूसरे पर नज़र रख रहा है इसीलिये अखबारों में ब्लॉग या इन्टरनेट से सम्बंधित एक कोना सुरक्षित करना शुरू कर दिया है वहीं समाचार पोर्टल और सोसल नेटवर्किंग साईट्स चैनलों की पहरेदारी कर रहे हैं टेलीविजन चैनल समाचार पत्रों के सम्पादकीय और सुर्ख़ियों पर भी बात कर रहे हैं इस प्रक्रिया का परिणाम ये हो रहा है कि आज की जनता ज्यादा जागरूक है और जनमत निर्माण की प्रक्रिया ज्यादा तेज हुई वो चाहे भ्रष्टाचार से जुड़ा लोकपाल बिल का मामला हो या किसानों और गरीबों के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रम इन सभी मामलों में जनमत के दबाव ने बड़ी भूमिका अदा की है . यह व्यवस्था भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ कंप्यूटर साक्षर भी हैं और निरक्षर भी हैं जहाँ अमीर भी हैं और गरीब भी मीडिया का ये त्रिस्तरीय मोडल हर तरह के पाठक /दर्शक /श्रोता को जगह देता है शायद इसीलिये सूचना के इस युग में सूचना साम्रज्यवाद भारत में टिक नहीं सकता और इसमें एक बड़ी भूमिका न्यू मीडिया निभाने वाला है इसलिए अगर सवाल उठ रहे है तो जवाब भी मिल रहे हैं इसका मतलब है हमारा मीडिया आगे बढ़ रहा है विकसित हो रहा है .
उठने की शुरुवात मीडिया से हुई है भारतीय संचार मीडिया का ढांचा वर्तमान में एक त्रि स्तरीय व्यवस्था के अंतर्गत काम कर रहा है .दो दशक पहले तक प्रिंट मीडिया का बोलबाला रहा करता था और अखबारों की उस हनक को आज भी लोग याद करते हैं पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ऐसी व्यवस्था में अख़बारों में जो कुछ भी छापा जा रहा था उसमे सबकुछ सही ही था उचित नहीं होगा तब रेडियो और टी वी के सीमित दायरे थे विज्ञापन ज्यादातर अखबार केंद्रित थे और अखबारों के समाचारों से कोई समस्या होने पर पर एक ही संस्था जो शिकयतसुनती थी वह प्रेस परिषद पाठक आमतौर पर उतना जागरूक नहीं था यानि उसे जो कुछ परोस दिया जाता वो उसका आनंद उठाता बगैर परेशानी के १९९१ में नयी आर्थिक नीति के लागू होने के बाद देश के आसमान विदेशी प्रसारकों के लिए खुल गए और अखबारों की सत्ता को चुनौती मिली टेलीविजन से पाठक धीरे धीरे दर्शक बनने लग गए और लोगों को पहली बार समाचारों की जीवन्तता का एहसास हुआ ध्वनि और चित्रों के माध्यम से लेकिन जल्दी ही यह परिद्रश्य भी बदल गया अब लोगों को ये पता चलने लगा गया कि किस खबर के क्या निहितार्थ है .प्रेस परिषद के अलावा टेलीविजन प्रसारकों का अपना एक संगठन है जहाँ कोई भी व्यक्ति किसी भी चैनल से सम्बंधित अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है यहाँ यह महत्वपूर्ण है कि इस संगठन का निर्माण खुद टेलीविजन चैनलों ने खुद अपनी साख बरक़रार रखने के लिए किया है . एक तरह से लोगों में मीडिया के प्रति जागरूकता बढी और मीडिया जो सवालों से परे था उस पर भी सवाल लगने शुरू हुए लेकिन इसका प्रभाव बहुत व्यापक नहीं था .२००० के दशक तक डॉट कॉम क्रांति हो चुकी थी और इन्टरनेट धीरे धीरे अपने पावं पसार रहा था पर परिवर्तन की असली शुरुवात हुई ब्लोग्स से अब हर आदमी एक पत्रकार था वो अपनी कहानी लोगों को सुना सकता था और इसके लिए न तो किसी पूंजी की जरुरत थी और न ही किसी के आगे हाथ जोड़ने की बस जो कहना चाहते हैं लिख डालिए रही सही कसर फेसबुक और ट्विट्टर जैसी सोसल नेटवर्किंग साईट्स ने पूरी कर दी यहाँ यह बात ध्यान देने की है जैसे मीडिया का विस्तार हो रहा है उसी अनुपात में उसकी आलोचना बढ़ रही है यानि जनता अब मुखर हो रही है इसका पता फेसबुक ट्विटर पर लोगों के द्वारा मीडिया कार्यकर्मों की गयी टिप्पड़ियों से लग जाता है यह स्थिति एक
सकारात्मक परिवर्तन का संकेत देती है यानि यदि मीडिया संस्थान किसी एजेंडे पर चल रहे हो तो इसका पता लोगों को बहुत जल्दी लग जाता है और एजेंडा यदि नकारात्मक है तो उसका भंडाफोड हो जाता है .सूचना प्रवाह के इस युग में अब सूचनाओं को रोकना लगभग असम्भव हो गया है वहीं चैनलों और समाचार पत्रों के विस्तार ने अब उस दौर को भी खतम कर दिया है जब गिने चुने अखबार या चैनल हुआ करते थे .देखा जाए तो मीडिया पर उठते सवाल इस मायने में सकारात्मक संकेत देते हैं कि श्रोता /दर्शक /पाठक अब ज्यादा समझदार है और उसकी उम्मीदें मीडिया से बढी हैं इस दबाव का सामना करने के लिए ही टी आर पी और रीडरशिप की होड शुरू हुई है. हालाँकि कभी कभी इसके नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिले हैं लेकिन सूचनाओं की गति तेज हुई है वहीं दूसरी ओर मीडिया के जबरदस्त फैलाव ने अपने आप एक ऐसा तंत्र विकसित करना शुरू कर दिया है जो एक दूसरे पर नज़र रख रहा है इसीलिये अखबारों में ब्लॉग या इन्टरनेट से सम्बंधित एक कोना सुरक्षित करना शुरू कर दिया है वहीं समाचार पोर्टल और सोसल नेटवर्किंग साईट्स चैनलों की पहरेदारी कर रहे हैं टेलीविजन चैनल समाचार पत्रों के सम्पादकीय और सुर्ख़ियों पर भी बात कर रहे हैं इस प्रक्रिया का परिणाम ये हो रहा है कि आज की जनता ज्यादा जागरूक है और जनमत निर्माण की प्रक्रिया ज्यादा तेज हुई वो चाहे भ्रष्टाचार से जुड़ा लोकपाल बिल का मामला हो या किसानों और गरीबों के लिए मनरेगा जैसे कार्यक्रम इन सभी मामलों में जनमत के दबाव ने बड़ी भूमिका अदा की है . यह व्यवस्था भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ कंप्यूटर साक्षर भी हैं और निरक्षर भी हैं जहाँ अमीर भी हैं और गरीब भी मीडिया का ये त्रिस्तरीय मोडल हर तरह के पाठक /दर्शक /श्रोता को जगह देता है शायद इसीलिये सूचना के इस युग में सूचना साम्रज्यवाद भारत में टिक नहीं सकता और इसमें एक बड़ी भूमिका न्यू मीडिया निभाने वाला है इसलिए अगर सवाल उठ रहे है तो जवाब भी मिल रहे हैं इसका मतलब है हमारा मीडिया आगे बढ़ रहा है विकसित हो रहा है .
जनसंदेश टाईम्स में १७ जून को प्रकाशित