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निराशा के घोर बादलों ने
जब डाला मेरे मस्तिष्क पर डेरा
मेरे स्वप्नों के छीना बन कर लुटेरा
चिंता करती जब मुझे हताश
खत्म होती जब जीवन की आस
महकती हवा देती तब मुझको सन्देश
जीवन के कुछ सुखद क्षण हैं शेष
सुख दुःख तो जीवन में आते जाते हैं
सुखी वहीं हैं "नादान" जो दुःख सह जाते हैं
इसी उम्मीद पर जीता मेरा मन
कभी तो पूरे होंगे मेरे स्वप्न
(साल था 1995 पुरानी डायरी के पन्ने पलटते हुए ये कविता दिखी )