Wednesday, April 25, 2012
Monday, April 23, 2012
खतरे में है पानी
पानी का कोई रंग नहीं होता पर बगैर पानी के जीवन के सारे रंग बेकार हैं .जीवन की उत्त्पति पानी में ही हुई पर अब पानी खतरे में है|पानी के खतरे में होने का मतलब जीवन खतरे में है| लेकिन हम अभी तक पानी का सम्मान नहीं करना सीख पाए पानी और धर्म का करीबी रिश्ता हमेशा से रहा है हर मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे, और चर्च में हमेशा एक जलस्रोत रहता है। कोई भी धार्मिक स्थल ऐसा नहीं है जहां जल-स्रोत न हो। भारत के विभिन्न आर्थिक-कृषि-पर्यावरणीय-सामाजिक क्षेत्रों ने अपनी-अपनी व्यवस्था विकसित की थीं लेकिन उनके संरक्षण का कोई ठोस उपाय अभी तक नहीं किया गया और रही सही कसर हर समस्या को पश्चिम के नज़रिए से देखने ने पूरे कर दी .हम आधुनिक तो हो रहे हैं पर अपनी विरासत को नहीं सहेज पा रहे हैं .शिक्षा के बढते स्तर से ये उम्मीद की जा रही थी पर ऐसा हो न सका .भारत में पानी की बर्बादी अनियंत्रित है, क्योंकि पानी की निकासी की यहां कोई नियामक संस्था नहीं है। उदाहरण के लिए भूमि का मालिक अपनी ज़मीन पर पंप के ज़रिए कुंए से बेतहाशा पानी डाल सकता है। ग्रामीण इलाकों में इससे बड़ा अंतर आ सकता है, क्योंकि भारत का 85 फीसदी पानी कृषि में इस्तेमाल होता है, नई दिल्ली के शोध समूह, एनर्जी ऐंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के मुताबिक स्थिति कुछ ऐसी है. भारत के जल संसाधन मंत्रालय ने इस साल की शुरूआत में राष्ट्रीय जल नीति पर एक मसौदा प्रस्तुत किया था, जिसमें जल संचालन के लिए राष्ट्रव्यापी वैधानिक ढांचे की जरूरत को समझा गया। कदाचित इसे पानी के इस्तेमाल को सीमित करने के विपरीत राजनैतिक प्रभावों के चलते राज्य सरकारों की चिंता के मद्देनज़र सहमति नहीं मिल पाए। जल प्रबंधन एक पर्यावरणीय और तकनीकी मुद्दा होने के साथ ही सामाजिक-सांस्कृतिक मुद्दा भी है जो विकास से जुड़ा है ,विकास अपने आप में एक बहु आयामी धारणा है | विकास की आधुनिक अवधारणा में पानी को बिलकुल नजरअंदाज किया गया है और सारा जोर उर्जा पर दिया जाता रहा है । यूँ तो भले ही दावा यह किया जाता रहा है कि हम दुनिया में सबसे पुरानी सभ्यताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं पर सिविक सेन्स जैसी चीज अभी भी भारतीय समाज में दुर्लभ ही है और रही सही कसर अनियोजित विकास ने पूरे कर दी है |पानी कभी हमारी प्राथमिकता में नहीं रहा और इसका परिणाम भूजल का अनियंत्रित दोहन जिसका परिणाम विकास से बढ़ते अभाव के रूप में सामने आ रहा है.गिरते जल स्तर को उठाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं हुए और जो हुए वो नाकाफी ही रहे|अंधाधुंध औधोगिकीकरण वर्षा के जल को जमीन में जाने से रोक रहा है जिसके परिणाम में बारिश का वो कीमती पानी नालियों में बहकर गन्दा और खराब हो जाता है| बढ़ती जनसँख्या को खाना पहुँचाने के लिए कृषि में रासायनिक उर्वरकों का अत्यधिक इस्तेमाल भूजल की गुणवत्ता को खराब कर रहा है.वाटर एड संस्था के मुताबिक भारत में हर साल तीन करोड़ सत्तहर लाख जलजनित बीमारियों का शिकार होते हैं पन्द्रह लाख बच्चे सिर्फ डायरिया जैसी बीमारी से मौत का शिकार होते हैं जिससे साठ करोड़ डॉलर का अतिरिक्त बोझ हर साल भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है|ये आंकड़े उस तस्वीर का एक छोटा हिस्सा भर हैं जो आने वाले सालों में पानी की कमी से बन सकती है |पीने के साफ़ पानी की व्यवस्था को भारतीय संविधान में प्रमुखता दी गयी है| आर्टिकल सैंतालीस कहता है कि राज्य अपने नागरिको को साफ़ पानी की व्यवस्था मुहैया कराये |पानी का स्तर जिस तेजी से गिर रहा है अगर कोई ठोस उपाय न किये गए तो साल २०२० तक भारत पानी की कमी के शिकार देशों में शामिल हो जाएगा और इसका असर जीवन के हर क्षेत्र में दिखेगा| भारत के नीतिनिर्धारकों ने चेतावनी दी है कि अगर देश में पानी की खपत को व्यवस्थित नहीं किया गया, तो आर्थिक वृद्धि अवरुद्ध हो सकती है। तेज़ आर्थिक वृद्धि और शहरीकरण मांग और आपूर्ति के अंतर को ज्यादा व्यापक बना रहे हैं। भारत में दुनिया की सोलह प्रतिशत आबादी रहती है जबकि दुनिया के भूजल श्रोत का मात्र चार प्रतिशत हिस्सा ही भारत के पास है |पानी के मुद्दे पर बात करते समय हमें यह बिलकुल नहीं भूलना चाहिए कि एक नागरिक के रूप में हम सबकी जिम्मेदारी ज्यादा है | इस समय भारत में बोतलबंद पानी का कुल व्यापार 14 अरब 85 करोड़ रूपये का है। यह देश में बिकने वाले कुल बोतलबंद पेय का 15 प्रतिशत है। दुनिया में बोतलबंद पानी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करने वाले देशों की सूची में भारत 10 वें स्थान पर है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से 122 देशों में पानी के स्टैंडर्ड के ऊपर किए गये एक अध्ययन में भारत को 120 वें स्थान पर रखा गया है। यहां एक दिन में प्रति व्यक्ति बोतलबंद का औसत उपयोग 5 लीटर है| जल जागरूकता जैसे मुद्दों पर या तो हम अनजान हैं या वो हमारी प्राथमिकता में नहीं मात्र क़ानून बना देने से इस मुद्दे की समस्या का समाधान संभव नहीं|भारत सरकार का पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय जल जागरूकता के लिए प्रयास कर रहा है पर व्यवहार में कोई खास परिवर्तन लोगों की मानसिकता में पानी को लेकर नहीं आया है|अपने जीवन में पानी की कमी को महसूस करने के लिए किसी आंकड़े की जरुरत नहीं बस थोड़ा सा पीछे नजर दौडाइए और देखिये दस साल पहले पानी की उपलब्धता और आज की स्थिति में फर्क आपको साफ़ महसूस होगा,इसलिए भू जल दोहन को लेकर कानून बनाना जरूरी हो गया है, लेकिन ये प्रस्तावित कानून सिर्फ सिंचाई और घरेलू उपयोग के लिए पानी निकालने वालों पर लागू होगा, या इसकी परिधि में औद्योगिक इकाइयां भी आएंगी ये सवाल अनुत्तरित है ?गंगा और यमुना नदियों के सफाई अभियान पर अरबों रुपैये खर्च करने के बाद भी जमीनी स्तर पर हालत जस की तस है जो बताता है कि पानी को लेकर राजनैतिक इच्छा शक्ति का अभाव है|सरकारी भवनों में वर्षा जल संचयन की कोई पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।शहरों में पुराने तालाबों की जगह बहु मंजिली इमारतों ने ले ली है जिससे भू जल संचयन की प्राकृतिक व्यवस्था बिगड़ी है और यह अनियोजित विकास का सटीक उदहारण है पर एक समस्या दूसरी अन्य समस्याओं को जन्म दे रही है |गिरते जल स्तर ने हमें इस विषय पर भी दुबारा सोचने को मजबूर किया है कि हम परपरागत कृषि सिंचाई प्रणाली के बारे में सोचें जिससे जल का सही और अधिकतम उपयोग किया जा सके इसलिए बेहतर जल नीति के लिए खेती की पद्धति और उद्योगों की तकनीक और उनके प्रबंधन पर भी सोचना होगा।
डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में 23/04/12 को प्रकाशित
डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट में 23/04/12 को प्रकाशित
Friday, April 20, 2012
कैसे उसको झेलूं में
यांगिस्तानियों का हिन्दुस्तान , सच यही है भारत
दुनिया के उन देशों में से एक है जहाँ आधी से ज्यादा आबादी युवा है तो जवानी जिंदाबाद
पर जवानी जोश की ज्यादा होती है होश की कम बस इतना पढते आपने मान लिया होगा कि मैं
कोई नया लेक्चर देने जा रहा हूँ पर वास्तव में ऐसा है नहीं हममें से ज्यादातर लोग
जो होश से काम नहीं लेते तुरंत निष्कर्ष निकाल लेते हैं lol खैर जब बात युवाओं की हो और इंटरनेट की न हो ऐसा
असम्भव है वैसे भी इंटरनेट जहाँ होश वालों के लिए दुनिया से जुड़ने आगे बढ़ने की
असीम संभावनाएं लाया है वहीं जोश वालों के लिए पोर्न वीडियो और लिटरेचर जैसा खतरा
भी . गूगल की रिपोर्ट बताती है कि “पोर्न”शब्द की खोज का आंकड़ा 2010 से 2012 के बीच दोगुना हो गया है .गूगल
ट्रेंड्स 2011 के मुताबिक पोर्न शब्द की खोज करने वाले दुनिया के शीर्ष 10 शहरों
में सात भारतीय शहर थे.दिल्ली में किये गए मैक्स हॉस्पिटल के सर्वे से पता चलता है
कि 47 प्रतिशत छात्र रोजाना पोर्न के बारे में बात करते हैं.टेक्नोलाजी रोज बदल
रही है दुनिया सिमट रही है पर क्या यांगिस्तानी इसके लिए तैयार है बचपने में एक
दोहा सुना था “धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ
होय माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय” पर आजकल तो हर काम एकदम फास्ट हो रहा है और हम
भी काफी जल्दी में हैं और इसका नतीजा देखिये नॅशनल क्राईम ब्यूरो के आंकड़ों के
लिहाज से भारत में साइबर अपराधों की सूची में पोर्न सबसे ऊपर है.बच्चे जल्दी बड़े
हो रहे हैं मानसिक रूप से वो इतने मेच्योर नहीं होते कि इन सब चीज़ों की गंभीरता
को समझ सकें तकनीक की सर्वसुलभता हर चीज को खेल बना रही है और इसका नतीजा एम् एम्
एस कांड और वीडियो क्लिप के रूप में सामने आ रहा है.थोडा चिल करते हैं इंटरनेट के
इस युग में सेंसरशिप की बात बेमानी है वैसे भी हम क्या देखना और पढ़ना चाहते हैं
ये कोई और क्यों बताये ,बात सही भी है लेकिन जब चीजें माउस
की एक क्लिक पर मौजूद हों तो थोड़ी सावधानी जरूरी है.आज का यांगिस्तानी ज्यादा
एनर्जेटिक और बोल्ड है जरुरत सेल्फ कंट्रोल की है .भारत में सेक्स को एक टैबू माना
जाता है उस पर सार्वजनिक रूप से बात करना ,बहस करना अभी भी
मुश्किल है.सेक्स एडुकेशन अभी भी बहस का ही मुद्दा है लेकिन तकनीक ने सब कुछ
आसानी से उपलब्ध करा दिया है वो कहावत आपने जरुर सुनी होगी बन्दर के हाथ में
उस्तरा ,अब बन्दर को क्या पता कि उस्तरे का क्या इस्तेमाल
करना है तो दिखावे मत जाओ अपनी अक्ल लगाओ जो उम्र सपने देखने और उन्हें पूरा करने
की है उस समय का सही और सकारात्मक इस्तेमाल किया जाना चाहिए.पोर्न लिटरेचर हो या
वीडियो थोड़ी देर के लिए आपको सुकून दे सकता है पर डूड ये मत भूलना कि वो आपकी
सायकी को डिस्टरब भी कर सकता है और फिर कहीं ऐसा न हो कि आप हिंदी फिल्मों के उस
डायलोग को याद करें कि यहाँ आने के तो बहुत रास्ते हैं और जाने कि नहीं.एक्सेस इस
एवरी थिंग इस बैड पर पोर्न का चस्का कब एडिक्शन बन जाता है ये पता नहीं चलता तो
जरुरत खुद की समझदारी को विकसित करने की है न कि सेक्स से सम्बंधित आधी अधूरी
जानकारी लेकर अपने व्यक्तित्व को खराब करने की.चलते चलते ये उम्र कार उर गिटार के
सपने पूरा करने की है न कि पोर्न को झेलने की .
आई नेक्स्ट में 20/04/12 को
प्रकाशित
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