Saturday, June 29, 2019

फेक न्यूज पर लगाम लगाना बड़ी चुनौती

फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा है कि 2016 में अमेरिकी चुनाव के बाद फर्जी राजनीतिक समाचारों पर अमेरिकी सरकार की तरफ से कार्रवाई में नाकामी के कारण ऑनलाइन स्तर पर गलत सूचनाओं की बाढ़ आ गई और एक निजी कम्पनी होने के नाते इसे रोकने के हमारे पास ज्यादा टूल्स नहीं थे. उन्होंने कहा यह तय करना हमारा काम नहीं है कि कौन सी जानकारी तथ्यात्मक रूप से सही और कौन सी गलत। कंपनी के मुताबिक यह काम तथ्य जांच करने वाले लोगों का है जुकरबर्ग के इस बयान के बाद फेक न्यूज पर लगाम लगाने के लिए किसकी जवाबदेही होनी चाहिए ?यह बहस एक बार फिर से छिड़ गयी है. पिछले एक दशक में हुई सूचना क्रांति ने अफवाहों को तस्वीरें और वीडियों के माध्यम से ऐसी गति दे दी है जिसकी कल्पना करना मुश्किल है .वैसे भी  सरकारों ने हमेशा से ही काल्पनिक तथ्यों के जरिए प्रोपेगंडा को बढ़ावा दिया है। पर  सोशल मीडिया के तेज प्रसार और इसके आर्थिक पक्ष  ने झूठ को तथ्य बना कर परोसने की कला को नए स्तर पर पहुंचाया है और इस असत्य ज्ञान के स्रोत के रूप में फेसबुक और व्हाट्स एप नए ज्ञान के केंद्र के रूप में उभरे हैं . कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक शोध में सामने आया है कि लोगों को यदि गलत सूचनायें दी जाएं तो वैकल्पिक तथ्यों से ज्यादा उन पर थोपे गए तथ्यों पर विश्वास करते हैं. भारत फेक न्यूज की इस विकराल  समस्या का सामना इन दिनों कर रहा है. फेक न्यूज के चक्र को समझने के लिए मिसइनफॉर्मेशन और डिसइनफॉर्मेशन में अंतर समझना जरूरी है.मिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचनाओं से है जो असत्य हैं पर जो इसे फैला रहा है वह यह मानता है कि यह सूचना सही है. वहीं डिसइनफॉर्मेशन का मतलब ऐसी सूचना से है जो असत्य है और इसे फैलाने वाला भी यह जानता है कि अमुक सूचना गलत है, फिर भी वह फैला रहा है. भारत डिसइनफॉर्मेशन और मिसइनफॉर्मेशन के बीच फंसा हुआ है.
 एसोचैम डेलायट की रिपोर्ट के  अनुसार देश में  इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या साल 2020 तक 60 करोड़ के पार  पहुंच जाएगी. फिलहाल इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की कुल संख्या 34.3 करोड़ है.इतनी बड़ी इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की  तो दुनिया के कई विकसित देशों की कुल आबादी की भी नहीं है.यानी इतने लोग कार्य, व्यापार व अन्य जरूरतों के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते है. गलत सूचनाओं को पहचानना और उनसे निपटना आज के दौर के लिए एक बड़ा सबक है। फेक न्यूज आज के समय का सच है.फेक न्यूज की समस्या को डीप फेक वीडियो ने और ज्यादा गंभीर बना दिया है .असल में डीप फेक वीडियो में आर्टिफिसियल इंटेलीजेंस एवं आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए किसी वीडियो क्लिप पर किसी और व्यक्ति का चेहरा लगाने का चलन तेजी से बढ़ा है. इसके जरिए कृत्रिम तरीके से ऐसे क्लिप विकसित कर लिए जा रहे हैं जो देखने में बिल्कुल वास्तविक लगते हैं.‘डीपफेक' वीडियो एक बिल्कुल अगल तरह  की समस्या  है और इसे फेक न्यूज की वाले वीडियो की श्रेणी से अलग रखा जाना चाहिए.इसमें वीडियो सही होता है पर तकनीक से चेहरे या वातावरण बदल दिया जाता है और देखने वाले को इसका बिलकुल पता नहीं लगता कि वह डीप फेक वीडियो देख रहा है .एक बार ऐसे वीडियो जब किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर आ जाते हैं तो उनकी प्रसार गति बहुत तेज हो जाती है.इंटरनेट पर ऐसे करोडो डीप फेक वीडियो मौजूद हैं .
तथ्य यह भी  आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है और ऐसे में इस तरह के वीडियो के संबंध में एक स्पष्ट नीति का विकास बहुत महत्वपूर्ण है. सस्ते फोन और इंटरनेट ने उन करोड़ों भारतीयों के हाथ में सूचना तकनीक पहुंचा दी है जो ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं। वे इंटरनेट पर मिली हर चीज को सच मान बैठते हैं और उस मिसइनफॉर्मेशन के अभियान का हिस्सा बन जाते हैं। दूसरी ओर विभिन्न राजनीतिक पार्टियों की साइबर आर्मी और ट्रोलर्स कई सारी ऐसी डिसइनफॉर्मेशन को यह जानते हुए फैलाते है कि वे गलत हैं या संदर्भ से कटी हुई हैं। इन सबके पीछे कुछ खास मकसद होता है। जैसे हिट्स पाना, किसी का मजाक उड़ाना, किसी व्यक्ति या संस्था पर कीचड़ उछालना, साझेदारी, लाभ कमाना, राजनीतिक फायदा उठाना, या दुष्प्रचार।
हालांकि फेसबुक इस तरह के वीडियो को बहुत गंभीरता से ले रहा है और वह इस बात का आंकलन कर रहा है कि कृत्रिम मेधा और आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल के जरिए बिल्कुल वास्तविक लगने वाले फर्जी वीडियो (डीपफेक वीडियो) को रोकने के लिए किस प्रकार के कदम उठाये जाने चाहिए.फर्जी वीडियो को पहचानने के लिए इंटरनेट पर कुछ सुविधाएँ थी जैसे  किसी भी विडियो की जांच करने के लिए उसे ध्यान से बार-बार देखा जाना चाहिए। यह काम क्रोम ब्राउजर में इनविड (InVID) एक्सटेंशन जोड़ कर किया जा सकता है। इनविड जहां किसी भी विडियो को फ्रेम दर फ्रेम देखने में मदद करता है वहीं इसमें विडियो के किसी भी दृश्य को मैग्निफाई (बड़ा) करके भी देखा जा सकता है। यह विडियो को देखने की बजाय उसे पढ़ने में मदद करता है. मतलब, किसी भी विडियो को पढ़ने के लिए किन चीजों की तलाश करनी चाहिए, ताकि उसके सही होने की पुष्टि की जा सके। जैसे विडियो में पोस्टर-बैनर, गाड़ियों की नंबर प्लेट और फोन नंबर की तलाश की जानी चाहिए, ताकि गूगल द्वारा उन्हें खोज कर उनके क्षेत्र की पहचान की जा सके। कोई लैंडमार्क खोजने की कोशिश की जाए। विडियो में दिख रहे लोग कैसे कपड़े पहने हुए हैं, वे किस भाषा या बोली में बात कर रहे हैं, उसको देखा जाना चाहिए। इंटरनेट पर ऐसे कई सॉफ्टवेयर मौजूद हैं जो विडियो और फोटो की सत्यता पता लगाने में मदद कर सकते हैं। फेक न्यूज से बचने का एकमात्र तरीका है, अपनी सामान्य समझ का इस्तेमाल और थोड़ी सी जागरूकता। उल्लेखनीय है कि डीपफेक वीडियो से जु़ड़ा खतरा हाल ही में उभरा है और इससे निपटने के लिए फेसबुक सहित अन्य सोशल मीडिया कंपनियों के पास अभी कोई नीति नहीं है.

आई  नेक्स्ट /दैनिक जागरण में 29/06/2019 को प्रकाशित 


Wednesday, June 19, 2019

इलेक्ट्रिक वाहन का समय अ गया है



वर्ल्ड हेल्थ ओर्गानाईजेशन   ने प्रदूषण पर अपनी ताज़ा ग्लोबल रिपोर्ट में चेताया है कि दुनिया के बीस  सबसे प्रदूषित शहरों में से चौदह   भारत में हैं. भारत दुनिया का सबसे प्रदूषित देश है जहां हर साल बीस  लाख से ज़्यादा लोग प्रदूषित हवा की वजह से मरते हैं. पर्यावरण के मामले में भारत दुनिया के बेहद असुरक्षित देशों में है। अधिकांश उद्योग पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी से चल रहे हैं . देश की आबोहवा लगातार खराब होती जा रही है। शोध अध्ययन से यह पता चला है कि कम गति पर चलने वाले यातायात में विशेष रूप से भीड़ के दौरान जला हुआ पेट्रोल /डीजल  चार से आठ गुना अधिक वायु प्रदूषण उत्पन्न करता है, क्योंकि डीजल और पेट्रोल  से निकले धुएं में 40 से अधिक प्रकार के प्रदूषक होते हैं.भारत ने 2013 में 'नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (NEMMP) 2020' का निर्माण भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रदुषण की स्थिति से निपटने के लिए किया गया . जिसका  मकसद राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा, वाहन-प्रदूषण और घरेलू विनिर्माण क्षमताओं के विकास जैसे मुद्दों का समाधान करना था. जिसके तहत पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए, भारत सरकार ने 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) में एक बड़ा बदलाव लाने की योजना बनाई है. जिसमें प्रमुख है अगले दो दशकों में इलेक्ट्रिक कारों का प्रचलन बढ़ाने के लिए ई-कॉमर्स कंपनियां, रीवा इलेक्ट्रिक कार कंपनी (RECC) जैसी भारतीय कार निर्माता, और ओला जैसी भारतीय ऐप-आधारित परिवहन नेटवर्क कंपनियां काम कर रही हैं.

भारत की सबसे बड़ी घरेलू कैब कम्पनी  ओला का मानना है कि देश में  इलेक्ट्रिक वाहनों के चलने  से ग्राहकों को कहीं ज्यादा आर्थिक लाभ होगा और उन्हें  मौजूदा दर का एक तिहाई से भी कम भुगतान करना पड़ेगा. फिलहाल ईवी(इलेक्ट्रिक वेहिकल)  को ऑपरेट करने की कुल लागत का  30 प्रतिशत से अधिक लागत उनको चलाने में लगने वाली ऊर्जा की है.पर परिवहन प्रदुषण से होने वाले नुक्सान को कम करने के लिए क्या देश तैयार है ?भारत में ऊर्जा क्षेत्र अभी तक इस बदलाव के लिए तैयार नहीं हो सका है. इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) उद्योग को उपयुक्त क्षमता प्रदान करने के लिए भारत को अपने सभी पावर ग्रिड और सब-स्टेशनों में आमूल चूल परिवर्तन करना  होगा. ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए विशेष जोर देने की आवश्यकता है. इसके लिए सरकार ने 2022 तक के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं.

लेकिन समस्या का समाधान इतना आसान नहीं है. ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी फाइनेंस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 57,000 पेट्रोल पंपों की तुलना में महज तकरीबन 350 ईवी चार्जर हैं. जबकि चीन के पास 2016 के अंत तक दो लाख से अधिक चार्जिंग प्वाइंट थे.टाटा पावर के अनुसार साल 2030 तक दिल्ली जैसे शहर में इस मान्यता के साथ कि शहर में दस लाख  से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) हों तो तीन लाख से अधिक फास्ट चार्जर की जरूरत पड़ेगी. यह देश की विद्युत् व्यवस्था पर और ज्यादा बोझ डालेगी जो कि पहले से ही कृषि क्षेत्रों में अत्यधिक सब्सिडी ,ऊँची दर और बिजली चोरी जैसी समस्याओं से जूझ रही है |

30 से 40 किमी की दैनिक आवागमन वाली इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी)  को 6 से 8 किलो वॉट घंटा विद्युत् ऊर्जा की आवश्यकता होती है. सेंटर फॉर साइंस एंड रिसर्च के अनुसार यदि भारत में 80 प्रतिशत लोग ईवी को अपनाते हैं तो 2030 तक भारत की कुल ऊर्जा मांग में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.पहले ही  विद्युत् ऊर्जा की कमी झेल रहे देश के लिए ये एक बड़ी चुनौती होगी .

इस चुनौती से निपटने के लिए देश को विद्युत् उत्पादन बढ़ाना होगा और इस मुद्दे से भी निपटना होगा जहाँ एक ही चार्जिंग प्वाईंट पर बहुत से लोग अपनी गाड़ियों को चार्ज कर रहे होंगे .जहाँ एक ही  विद्युत् ग्रिड से बिजली आ रही होगी . इस अतिरिक्त बोझ के प्रबंधन के लिए बुद्धिमत्ता से मूल्य से बिजली दरों का निर्धारण कम से कम विद्युत् नेटवर्क निवेश के साथ  करना होगा.इसके लिए रेल में फ्लेक्सी किरायों के दरों के अभिनव प्रयोग को भी अपनाया जा सकता है जिसमें अलग अलग समय के लिए अलग अलग विद्युत् दरों का निर्धारण किया गया है |यानि जिस वक्त बिजली की मांग ज्यादा हो उस वक्त उसकी दरें बढ़ा दी जाएँ और जब मांग कम हो तो उसकी दरें कम हो .लेकिन व्यवहार में देखने में आया है कि देश में इस तरह के प्रयोगों को आम जनता प्रोत्साहित नहीं करती और इसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है. इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) की ज्यादा उपलब्धता बिजली कम्पनियों के लिए ज्यादा लाब पाने का मौका हो सकता है .अर्नेस्ट एंड यंग की एक रिपोर्ट के अनुसार बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल साल 2030 तक ग्यारह बिलियन डॉलर का लाभ बिजली कम्पनियों को करवा सकते हैं.यदि देश वास्तव में परिवहन प्रदूषण से निपटना चाहता है तो इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के प्रयोग को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना ही होगा ,लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि इलेक्ट्रिक वाहन( ईवी) को स्वच्छ माना जा सकता है  लेकिन  यदि बिजली पैदा करने के लिए कोयले का ही इस्तेमाल किया जाएगा तो इसका परिणाम प्रदुषण को बढ़ाएगा ही इसलिए इलेक्ट्रिक वाहन के प्रयोग को बढाने के लिए बिजली बनाने के लिए ऊर्जा के गैर परम्परागत स्रोत का ही इस्तेमाल उचित होगा जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो, संयंत्र की क्षमता में सुधार हो, और समय-समय पर तकनीकी अपग्रेडेशन होता रहा. जिससे  भारतीय ऊर्जा क्षेत्र  बेहतर ढंग से विकसित हो सके और देश में ईवी का रास्ता पूरी तरह खुल सके.

 अमर उजाला में 19/06/2019 को प्रकाशित 

Tuesday, June 18, 2019

न हो दिल की गलियां सूनी

अभी  मेरे व्हाट्स एप पर एक मेसेजनुमा जोक आया “कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है... अगर तुम  १०:३० बजे ही सो जाती है तो तुम्हारे  व्हाट्सएप्प पर "लास्ट सीन २:३० ए एम" क्यों दिखाता हैहा हा और मेरे दिमाग की बत्ती जल गयी असल में नए नए मोबाईल एप हमारी जिन्दगी में किस तरह असर डाल रहे हैं इसका अंदाजा हमें खुद नहीं है.एसएमएस में तो आप झूठ बोल कर निकल सकते थे कि मेसेज नहीं मिला पर ये नए नए चैटिंग एप और लास्ट सीन और ब्ल्यू टिक वाला स्टेट्स आपकी सारी हकीकत आपके दोस्तों और परिचितों के सामने बयां कर देते हैं.अब सोचने की बारी आपकी है. यूँकि ये बात आपको क्यूँ बताई जा रही है और इससे आपको क्यूँ फर्क पड़े,अच्छा सवाल है  तो भाई मामला ये है कि परिवार नियोजन  वाला नारा  तो  आपने सुना ही होगा कि बच्चे दो ही अच्छे. हाँ भाई ज्यादा बच्चे आफ़त ही होते हैं उसी तरह से यारी दोस्ती करना अच्छी बात है पर यारी दोस्ती जब ज्यादा और गलत लोगों से हो जायेगी तो आपको समस्या आयेगी ही. एक ओर मोबाईल क्रान्ति  ने हमें ग्लोबली कनेक्टेड तो कर दिया ही है. वहीं कहीं हम नेट बैकवर्ड न घोषित कर दिए जाएँ इस चक्कर  में जितने चैटिंग एप इंटरनेट पर उपलब्ध हैं वो सबके सब हमारे मोबाईल पर होने चाहिए, इस ललक ने कब हमें इतना एक्सप्रेशन लेस कर दिया कि हमें अपने रीयल एक्सप्रेशन को भूल टेक्नीकल एक्सप्रेशन यानि इमोजीस के गुलाम बन गये हैं .हंसी आये या ना आये ‘हा’ ‘हा’ लिख कर कोई स्माईली बना दो सामने वाला यही समझेगा कि आप बहुत खुश हैं, पर क्या आप वाकई खुश हैं?
            क्यूँ अब मैं थोडा सा हंस लूँअक्सर हम चैट पर यही कर रहे होतें वर्च्युल चैटिंग में हम जीवन की असली समस्याओं  का हल  ढूंढने लग गए हैं .हमारी फोनबुक में बहुत से लोगों के नंबर सेव रहते हैं और हम जितने ज्यादा चैटिंग एप डाउनलोड करेंगे हम उतने ही ज्यादा खतरे में रहेंगे क्यूंकि कोई न कोई चैटिंग एप हर कूल डूड के मोबाईल में रहता है और इससे कोई भी ,कभी भी आपको संदेसा भेज सकता है. यह जाने बगैर कि आप बात करने के मूड में हैं या नहीं. दूसरी चीज है आपकी प्राइवेसी,चैटिंग एप और कुछ न बताएं तो भी ये तो सबको बता ही देते हैं कि आप किसी ख़ास एप पर कितने एक्टिव हैं अगर इससे बचना है तो कुछ और एप डाउनलोड कीजिये. ये तो आप भी मानेंगे कि बगैर काम की चैटिंग खाली लोगों का काम है या आप इमोशनली वीक है और रीयल लाईफ में आपके पास कोई नहीं हैं जिससे आपकी उँगलियाँ मोबाईल के की पैड पर भटकती रहती हैं कि कहीं कोई मिल जाए ?
मामले और भी हैं ज्यादा चैटिंग ये बताती है कि आप फोकस्ड नहीं हैं और आपके के पास कोई काम नहीं है. ये समय  कुछ पाने का ,कुछ कर दिखाने का है.बात जिन्दगी की हो या रिश्तों की हम जितने सिलेक्टिव रहेंगे उतना ही सफल रहेंगे और यही बात एप और चैटिंग पर भी लागू होती है,जो आपके अपने है उन्हें वर्च्युल एक्सप्रेशन नहीं रीयल एक्सप्रेशन की जरुरत है.ईमोजीस आँखों को अच्छी लगती हैं पर जरुरी नहीं कि दिल को भी अच्छी लगे. जो रिश्ते दिल के होते हैं उन्हें दिल से जोडिये नहीं तो एक वक्त ऐसा आएगा जब आप होंगे और आपकी तन्हाई. मोबाईल की फोनबुक भरी होगी पर दिल की गलियां सूनी होंगीं तो अपने अपनों से मिलने जुलने का सिलसिला बनाये रखिये बी सिलेक्टिवबी फोकस्ड और हाँ दोस्ती  और चैटिंग कम ही अच्छी . 
प्रभात खबर में 18/06/2019 को प्रकाशित 

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