वर्ल्ड हेल्थ ओर्गानाईजेशन
ने प्रदूषण पर अपनी ताज़ा ग्लोबल रिपोर्ट में चेताया है कि दुनिया के
बीस सबसे प्रदूषित शहरों में से चौदह भारत में हैं. भारत दुनिया का सबसे प्रदूषित
देश है जहां हर साल बीस लाख से ज़्यादा लोग
प्रदूषित हवा की वजह से मरते हैं. पर्यावरण के मामले में भारत दुनिया के बेहद
असुरक्षित देशों में है। अधिकांश उद्योग पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी से चल रहे
हैं . देश की आबोहवा लगातार खराब होती जा रही है। शोध अध्ययन से यह पता चला है कि
कम गति पर चलने वाले यातायात में विशेष रूप से भीड़ के दौरान जला हुआ पेट्रोल
/डीजल चार से आठ गुना अधिक वायु प्रदूषण
उत्पन्न करता है, क्योंकि डीजल और पेट्रोल से निकले धुएं में 40 से अधिक प्रकार के प्रदूषक होते हैं.भारत ने 2013 में 'नेशनल
इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (NEMMP) 2020' का निर्माण भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए प्रदुषण की
स्थिति से निपटने के लिए किया गया . जिसका
मकसद राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा, वाहन-प्रदूषण
और घरेलू विनिर्माण क्षमताओं के विकास जैसे मुद्दों का समाधान करना था. जिसके तहत
पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाते हुए, भारत सरकार ने 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) में एक बड़ा बदलाव लाने की योजना बनाई है.
जिसमें प्रमुख है अगले दो दशकों में इलेक्ट्रिक कारों का प्रचलन बढ़ाने के लिए
ई-कॉमर्स कंपनियां, रीवा इलेक्ट्रिक कार कंपनी (RECC) जैसी भारतीय कार निर्माता, और ओला जैसी भारतीय ऐप-आधारित परिवहन नेटवर्क
कंपनियां काम कर रही हैं.
भारत की सबसे बड़ी घरेलू कैब कम्पनी
ओला का मानना है कि देश में
इलेक्ट्रिक वाहनों के चलने से
ग्राहकों को कहीं ज्यादा आर्थिक लाभ होगा और उन्हें मौजूदा दर का एक तिहाई से भी कम भुगतान करना
पड़ेगा. फिलहाल ईवी(इलेक्ट्रिक वेहिकल) को
ऑपरेट करने की कुल लागत का 30 प्रतिशत से अधिक लागत उनको चलाने में लगने
वाली ऊर्जा की है.पर परिवहन प्रदुषण से होने वाले नुक्सान को कम करने के लिए क्या
देश तैयार है ?भारत में ऊर्जा क्षेत्र अभी तक इस बदलाव के लिए
तैयार नहीं हो सका है. इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) उद्योग को उपयुक्त क्षमता प्रदान
करने के लिए भारत को अपने सभी पावर ग्रिड और सब-स्टेशनों में आमूल चूल परिवर्तन
करना होगा. ऐसे उद्योगों को बढ़ावा देने
के लिए विशेष जोर देने की आवश्यकता है. इसके लिए सरकार ने 2022 तक के लिए कुछ लक्ष्य निर्धारित किए हैं.
लेकिन समस्या का समाधान इतना आसान नहीं है. ब्लूमबर्ग न्यू एनर्जी
फाइनेंस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 57,000 पेट्रोल पंपों की तुलना में महज तकरीबन 350 ईवी चार्जर हैं. जबकि चीन के पास 2016 के अंत तक दो लाख से अधिक चार्जिंग प्वाइंट
थे.टाटा पावर के अनुसार साल 2030 तक
दिल्ली जैसे शहर में इस मान्यता के साथ कि शहर में दस लाख से ज्यादा इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) हों तो तीन
लाख से अधिक फास्ट चार्जर की जरूरत पड़ेगी. यह देश की विद्युत् व्यवस्था पर और
ज्यादा बोझ डालेगी जो कि पहले से ही कृषि क्षेत्रों में अत्यधिक सब्सिडी ,ऊँची दर और बिजली चोरी जैसी समस्याओं से जूझ
रही है |
30 से
40 किमी की दैनिक आवागमन वाली इलेक्ट्रिक वाहन
(ईवी) को 6 से 8 किलो वॉट घंटा विद्युत् ऊर्जा की आवश्यकता
होती है. सेंटर फॉर साइंस एंड रिसर्च के अनुसार यदि भारत में 80 प्रतिशत लोग ईवी को अपनाते हैं तो 2030 तक भारत की कुल ऊर्जा मांग में 5 प्रतिशत की बढ़ोतरी होगी.पहले ही विद्युत् ऊर्जा की कमी झेल रहे देश के लिए ये
एक बड़ी चुनौती होगी .
इस चुनौती से निपटने के लिए देश को विद्युत् उत्पादन बढ़ाना होगा और
इस मुद्दे से भी निपटना होगा जहाँ एक ही चार्जिंग प्वाईंट पर बहुत से लोग अपनी
गाड़ियों को चार्ज कर रहे होंगे .जहाँ एक ही
विद्युत् ग्रिड से बिजली आ रही होगी . इस अतिरिक्त बोझ के प्रबंधन के लिए
बुद्धिमत्ता से मूल्य से बिजली दरों का निर्धारण कम से कम विद्युत् नेटवर्क निवेश
के साथ करना होगा.इसके लिए रेल में
फ्लेक्सी किरायों के दरों के अभिनव प्रयोग को भी अपनाया जा सकता है जिसमें अलग –अलग समय के लिए अलग –अलग विद्युत् दरों का निर्धारण किया गया है |यानि जिस वक्त बिजली की मांग ज्यादा हो उस वक्त
उसकी दरें बढ़ा दी जाएँ और जब मांग कम हो तो उसकी दरें कम हो .लेकिन व्यवहार में
देखने में आया है कि देश में इस तरह के प्रयोगों को आम जनता प्रोत्साहित नहीं करती
और इसे आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है. इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) की ज्यादा उपलब्धता
बिजली कम्पनियों के लिए ज्यादा लाब पाने का मौका हो सकता है .अर्नेस्ट एंड यंग की
एक रिपोर्ट के अनुसार बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल साल 2030 तक ग्यारह बिलियन डॉलर का लाभ बिजली कम्पनियों
को करवा सकते हैं.यदि देश वास्तव में परिवहन प्रदूषण से निपटना चाहता है तो
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) के प्रयोग को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देना ही होगा ,लेकिन तस्वीर का दूसरा रुख यह भी है कि इलेक्ट्रिक
वाहन( ईवी) को स्वच्छ माना जा सकता है
लेकिन यदि बिजली पैदा करने के लिए
कोयले का ही इस्तेमाल किया जाएगा तो इसका परिणाम प्रदुषण को बढ़ाएगा ही इसलिए
इलेक्ट्रिक वाहन के प्रयोग को बढाने के लिए बिजली बनाने के लिए ऊर्जा के गैर
परम्परागत स्रोत का ही इस्तेमाल उचित होगा जिससे कार्बन उत्सर्जन कम हो, संयंत्र की क्षमता में सुधार हो, और समय-समय पर तकनीकी अपग्रेडेशन होता रहा.
जिससे भारतीय ऊर्जा क्षेत्र बेहतर ढंग से विकसित हो सके और देश में ईवी का
रास्ता पूरी तरह खुल सके.
4 comments:
very nice article
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - पुरुषोत्तम दास टंडन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन जन्म दिवस - पुरुषोत्तम दास टंडन और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
बहुत शानदार जानकारी।
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