इंटरनेट शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा | आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली|इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया|प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा पर जैसे जैसे तकनीक विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया और नयी नयी सेवाएँ इससे जुडती चली गयीं |आज के वक्त में इंटरनेट के बगैर जीवन की कल्पना करना थोडा मुश्किल है |जम्मू कश्मीर में लगी इंटरनेट की पाबंदी के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी यह इशारा करती है कि अब इंटरनेट महज एक तकनीक भर नहीं रहा बल्कि हमारी जीवन शैली का अंग बन चुका है |सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इंटरनेट के जरिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत मौलिक अधिकार है। इंटरनेट के जरिए कारोबार करने के अधिकार को भी अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ है।इंटरनेट को एक तय अवधि की जगह अपनी मर्जी से कितने भी समय के लिए बंद करना टेलीकॉम नियमों का उल्लंघन है।स्कूल-कॉलेज और अस्पताल जैसी जरूरी सेवाओं वाले संस्थानों में इंटरनेट बहाल किया जाना चाहिए।इंटरनेट अब सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ही नहीं जरुरी है बल्कि हमारा पूरा समाजीकरण उसी से निर्धारित हो रहा है और यह जीवन के हर क्षेत्र को प्रभावित कर रहा है |
इंटरनेट ने लोक व लोकाचार के तरीकों को काफी हद तक बदल दिया है। बहुत-सी परंपराएं और बहत सारे रिवाज अब अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह प्रक्रिया इतनी तेज है कि नया बहुत जल्दी पुराना हो जा रहा है। विवाह तय करने जैसी सामाजिक प्रक्रिया पहले परिवार और यहां तक कि खानदान के बड़े-बुजुर्गों, मित्रों, रिश्तेदारों वगैरह को शामिल करते हुए आगे बढ़ती थी, अब उसमें भी ‘ई’ लग गया है। अब लोग मैट्रीमोनी वेबसाइट की सहायता से जोड़ियां ही नहीं बना रहे, शादियां भी रचा रहे हैं। देश की ऑनलाइन मैट्रीमोनी का कारोबार अगले तीन साल में 1,500 करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, वैवाहिक वेबसाइटों पर साल 2013 में 8.5 लाख प्रोफाइल अपलोड की गई, जिनकी संख्या साल 2014 में बढ़कर 19.6 लाख हो गई। यानी एक साल में 130 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी । सामाजिक रूप से देखें, तो जहां पहले शादी के केंद्र में लड़का और लड़की का परिवार रहा करता था,जिसमें भी लड़के की इच्छा ज्यादा महत्वपूर्ण रहा करती थी | अब वह धुरी खिसककर लड़के व लड़की की इच्छा पर केंद्रित होती दिखती है। यह अच्छा भी है, क्योंकि शादी जिन लोगों को करनी है, उनकी सहमति परिवार में एक तरह के प्रजातांत्रिक आधार का निर्माण करती है, न कि उस पुरातन परंपरा के आधार पर, जहां माता-पिता की इच्छा ही सब कुछ होती थी। इस पूरी प्रक्रिया में महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार देने वाला इंटरनेट और शादी करने वाले विभिन्न एप बन रहे हैं |
हमारे रसोई घर इनोवेशन का माध्यम भी हो सकते हैं इस ओर कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया तभी तो दादी नानी के हाथों के बने विभिन्न व्यंजन उनके जाने के साथ इतिहास हो गये पर जब हमारे रसोईघरों को इंटरनेट का साथ मिला तो भारत में एक नई तरह की खाना क्रांति आकार लेने लगी|ताजा उदाहरण है भारत में एप के माध्यम से घर में बने खाने का तेजी से बढ़ता व्यापार,बदलती जीवन शैली, बढ़ता माध्यम वर्ग और काम काजी महिलाओं की संख्या में इजाफा और दुनिया में दुसरे नंबर पर सबसे ज्यादा स्मार्ट फोन धारकों की उपस्थिति ये कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे घर पर खाना बनाने की प्रवर्ति प्रभावित हुई है | बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के अनुसार भारत में खाने का बाजार जो साल 2014 में तेइस लाख करोड़ रुपये का था | साल 2020 में इस बाजार के बयालीस लाख करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है और इसमें सबसे बड़ी भूमिका खाने के विभिन्न एप निभा रहे हैं जो घर पर बना खाना वाजिब कीमत पर आपकी मनपसंद जगह पर पहुंचा रहें हैं | ऐतिहासिक रूप से भारत में घर पर खाना बनाना कभी आर्थिक गणना में शामिल नहीं रहा पर एप के माध्यम से खाने का बढ़ता कारोबार इस मिथक को तोड़ रहा है |
इंटरनेट के आगमन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स के बढ़ते चलन ने संचार के चलनों को कई तरह से प्रभावित किया है जिसमें चिन्हों और चित्र का इस्तेमाल संवाद का नया माध्यम बन रहा है इसके पहले उपभोक्ता और प्रयोगकर्ता देश के युवा बन रहे हैं |जिसमें हैशटैग सबसे आगे है जो अपनी बात को कहने का एकदम नया जरिया है| हैशटैग सोशल (#) मीडिया में अपनी बात को व्यवस्थित तरीके से कहने का नया तरीका बन रहा है | जागरूकता के निर्माण के अलावा यह उन संगठनों के लिए वरदान है जिनके पास लोगों को संगठित करने के लिए विशाल संसाधन नहीं है |जिन लोगों के पास न तो समय है और न ही किसी ख़ास विचार धारा के प्रति प्रतिबद्धता कि वे किसी मार्च ,धरने या अध्ययन समूह में जा सकें |वे हैशटैग के सहारे तर्क वितर्क का हिस्सा बन रहे हैं | सोशल मीडिया पर चलने वाली दिशाहीन बहसें जटिल मुद्दों को व्यवस्थित कर ज्ञान में एक नया आयाम जोड़ रही हैं | हैशटैग के पीछे नेटवर्क नहीं विचारों का संकलन तर्क शामिल है |इससे जब आप किसी हैशटैग के साथ किसी विचार को आगे बढाते हैं तो वह इंटरनेट पर मौजूद उस विशाल जनसमूह का हिस्सा बन जाता है जो उसी हैश टैग के साथ अपनी बात कह रहा है | दूसरा तरीका है द्रश्यों के सहारे अपनी बात कहना जल्दी ही वह समय इतिहास हो जाने वाला है जब आपको कोई एसएमएस मिलेगा कि क्या हो रहा है और आप लिखकर जवाब देंगे। अब समय दृश्य संचार का है। आप तुरंत एक तस्वीर खींचेंगे या वीडियो बनाएंगे और पूछने वाले को भेज देंगे या एक स्माइली भेज देंगे। फोटो या छायाचित्र बहुत पहले से संचार का माध्यम रहे हैं, पर सोशल नेटवर्किंग साइट्स और इंटरनेट के साथ ने इन्हें इंस्टेंट कम्युनिकेशन मोड (त्वरित संचार माध्यम) में बदल दिया है। अब महज शब्द नहीं, भाव और परिवेश भी बोल रहे हैं। इस संचार को समझने के लिए न तो किसी भाषा विशेष को जानने की अनिवार्यता है और न ही वर्तनी और व्याकरण की बंदिशें। तस्वीरें पूरी दुनिया की एक सार्वभौमिक भाषा बनकर उभर रही हैं।
सजे हुए परंपरागत बाजार अभी इतिहास की चीज नहीं हुए हैं, शायद होंगे भी नहीं, पर ऑनलाइन शॉपिंग ने उनको कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है। परंपरागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचर, कपड़ों, बीज, किराने के सामान से लेकर फल, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। स्नैप डील कम्पनी की रिपोर्ट के अनुसार फिलहाल भारत में ऑनलाइन बाजार 800 अरब डॉलर का है जो लगातार बढ़ रहा है और वर्ष 2025 तक यह लगभग 2,000 अरब डॉलर का हो जायेगा |अब वक्त आ गया है कि सरकार आपात स्थिति में इंटरनेट बंद करने के इतर विकल्पों पर विचार करे क्योंकि इंटरनेट अब एक आवश्यक आवश्यकता बन चुका है |
दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण मे 14/01/2020 को प्रकाशित
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