अंताक्षरी का समय बीत गया लेकिन पिछले कुछ वक्त तक “समय बिताने के लिए करना है कुछ काम” की श्रेणी में हमारे पास चीनी ऐप टिक टॉक था लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को देखते हुए सरकार द्वारा टिक-टॉक समेत 59 चीनी ऐप पर प्रतिबंध लगा दिया है |टिक-टॉक के गूगल प्ले स्टोर से हटते ही भारतीय ऐप-चिंगारी दस मिलीयन से ज्यादा बार डाउनलोड हो गया |इसी के साथ रोपोसो, मित्रों जैसे शुद्ध भारतीय ऐप्स लोगों की पसंद बनने लग गए |चिंगारी यूजर्स को वीडियो डाउनलोड करने और अपलोड करने, दोस्तों के साथ चैट करने, नए लोगों के साथ बातचीत करने, सामग्री साझा करने और फीड के माध्यम से ब्राउज करने की अनुमति देता है|यह ऐप्लिकेशन अंग्रेजी, हिंदी, बंगला, गुजराती, मराठी, कन्नड़, पंजाबी, मलयालम, तमिल और तेलुगु भाषा में उपलब्ध है | चिंगारी एप से कोई भी टिक-टॉक की तरह शॉर्ट वीडियो बना सकता है और उसे अपने साथियों के साथ शेयर कर सकता है | इसका मतलब यह है कि चीन के एप का विकल्प भारत में है और भारतीयों को अपने डाटा की सुरक्षा के बारे में अनावश्यक चिंता करने की जरुरत नहीं पर सवाल यह उठता है कि ऐसा पहले क्यों नहीं हुआ ?इसका एक बड़ा कारण इंसान का डाटा में परिवर्तन और जिसके पास ज्यादा डाटा वह कम्पनी व्यवसायिक रूप से ज्यादा शक्तिशाली होगी |
भारत की एप इकोनोमी बहुत तेजी से बढ़ रही है जबकि चीन राजस्व और उपभोग के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा बाजार बना हुआ है| वहीं अमेरिकन कम्पनियां एप निर्माण के मामले में शायद सबसे ज्यादा इनोवेटिव (नवोन्मेषी ) हैं |भारत सबसे ज्यादा प्रति माह एप इंस्टाल करने और उसका प्रयोग करने के मामले में अव्वल है |भारतीय एप परिद्रश्य का नेतृत्व टेलीकॉम दिग्गज एयरटेल और जिओ करते हैं यद्यपि स्ट्रीमिंग कम्पनियाँ जैसे नोवी डिजिटल और जिओ सावन और पेटी एम् ,फोन पे और फ्लिप्कार्ट जैसी ई कोमर्स साईट्स ने अपने आप को वैश्विक परिद्रश्य पर भी स्थापित किया है |फोर्टी टू मैटर्स डॉट कॉम साईट्स के मुताबिक़ गूगल प्ले स्टोर पर कुल 882,939 एप पब्लिशर्स में से 24359 भारतीय एप पब्लिशर्स हैं |कुछ बड़े भारतीय एप पब्लिशर्स में गेमेशन टेक्नोलॉजी,वर्ड्स मोबाईल,मूटोन,मिलीयन गेम्स ,एआई फैक्ट्री जैसे नाम शामिल हैं | गूगल प्ले स्टोर्स में उपलब्ध सभी एप पब्लिशर्स में से मात्र तीन प्रतिशत एप पब्लिशर्स ही भारतीय हैं |वहीं गूगल प्ले स्टोर पर कुल एप्स की संख्या 2,942,574, है जिसमें भारतीय एप की संख्या 121,834 है जो प्ले स्टोर पर कुल उपलब्ध एप्स का मात्र चार प्रतिशत है |
आंकड़ों के नजरिये से देश में उपभोक्ताओं की उपलब्धता के हिसाब से भारतीय एप की संख्या बहुत ही कम है |वैश्विक परिद्रश्य में आंकड़ों के विश्लेषण से कई रोचक तथ्य सामने आते हैं जैसे प्ले स्टोर्स पर उपलब्ध कुल भारतीय एप पब्लिशर्स की औसत रेटिंग पांच में से 3.65 है जो प्ले स्टोर पर सभी पब्लिशर्स की औसत रेटिंग 3.22 से बेहतर है |उसी तरह प्ले स्टोर पर भारतीय एप की औसत रेटिंग 1874 है जबकि प्ले स्टोर पर उपलब्ध सभी एप की औसत रेटिंग 1,112 से ज्यादा है|आंकड़ों की दुनिया से दूर कुछ धरातल की बात क्यों भारतीय एप वैश्विक स्तर पर सफल नहीं है |ऐप बनाना बहुत महंगा काम नही है परन्तु ऐप की मार्केटिंग एक अत्यंत ही महँगा और समय लेने वाला काम है।भारत मे फंडिंग इको सिस्टम का कम विकसित होना जिसके कारण ऐप निर्माताओं को फंडिंग नही हो पाती।ज्यादातर फण्ड प्रदाता विदेशी है और उनमें से भी मुख्य चीन के सॉफ्ट बैंक और अलीबाबा जैसी कम्पनियां शामिल है| भारतीयों में क्रिएटिविटी की कमी नही है पर जो ऐप बनते हैं उनका उतना प्रचार नही हो पाता जिसके कारण भी भारतीय ऐप इतने प्रसिद्ध नही हो पाए | चायनीज ऐप की प्रसिद्धि के पीछे चायनीज मोबाइल्स का भी बड़ा हाँथ है। ये ज्यादातर ऐप प्रिइंस्टॉल्ड होने के कारण काफी ज्यादा रीच कम समय मे पा जाते हैं जबकि इंडिया के ऐप को ये सुविधा नही मिलती|किसी भी भारतीय कम्पनी का मोबाईल इतनी ग्लोबल रीच नहीं रखता |भारत चीन के बाद दुनिया में सबस बड़ा मोबाईल बाजार है पर कोई भी भारतीय कम्पनी मोबाईल बाजार में अपना स्थान नहीं बना पाई |एप बाजार में भारत के पिछड़े होने के एक बड़ा कारण भारत और चीन की स्कूली शिक्षा में भी बहुत अंतर होना भी है । भारत मे अभी भी बच्चे परम्परागत पढ़ाई ही पढ़ रहे और उन्हें एक्सपेरिमेंट करने की ज्यादा छूट नही है | स्कूल स्तर पर कंप्यूटर शिक्षा पर दो तरह की समस्याओं का शिकार है| पहला स्कूलों में अभी भी फोकस एम् –एस वर्ड,एक्सेल,पावर प्वाईंट आदि पर है |दूसरा कंप्यूटर की प्राथमिक भाषाओँ को सिखाने में सारा जोर “बेसिक” और “लोगो” जैसी भाषाओं पर ही है |एक समय की अग्रणी कंप्यूटर भाषाएँ जैसे सी, लोगो ,पास्कल ,कोबोल बेसिक ,जावा जो की अब चलन से बाहर हो चुकी हैं अभी भी पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं जबकि कंप्यूटर प्रौद्योगिकी में अग्रणी देश ओपेन सोर्स सोफ्टवेयर और ओपन सोर्स लेंग्वेज को अपना चुके हैं जैसे कि आर , पायथॉन, रूबी ऑन रेल, लिस्प , टाइप स्क्रिप्ट , कोटलिन , स्विफ्ट और रस्ट इत्यादि |लेकिन इंटरनेट और मोबाईल क्रांति होने के साथ अब आने वाले दशक में इसमे वृद्धि होने की संभावना है |आंकड़े बताते है की आने वाले वक्त में एप बाजार में बड़ा परिवर्तन तभी होगा जब हम कंप्यूटर शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा दें और स्टार्ट अप कम्पनियों को वित्त के लिए इधर उधर भटकना न पड़े |जाहिर है भारतीय एप के डिजीटल प्लेटफार्म पर बढ़ती संख्या देश की बड़ी आबादी का जहाँ जीवन आसान करेगी वहीं साइबर अपराध जैसे मुद्दे पर एक नेटीजन के तौर पर एक आम भारतीय अपने डाटा को लेकर ज्यादा सुरक्षित महसूस करेगा |
नवभारत टाईम्स में 13/07/2020 को प्रकाशित
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