जलवायु में आने वाले परिवर्तन से नित नए खतरे उभर रहे हैं, चाहे अमीर हो या गरीब दुनिया का
कोई भी देश जलवायु में आने वाले परिवर्तन के खतरे से अनछुआ नहीं है | कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के नवीनतम अध्ययन में ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि जलवायु में आ रहे परिवर्तनों के
चलते इस सदी के अंत तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी गिरावट आ सकती है | लॉन्ग टर्म मेक्रो इकोनोमिक इफेक्ट्स ऑफ़ क्लाइमेट चेंज :अ क्रोस कंट्री
एनालिसिस शोध पत्र के अनुसार जहां वैश्विक अर्थव्यवस्था में सात प्रतिशत की गिरावट
आ सकती हैं, वहीं भारत की अर्थव्यवस्था दस प्रतिशत तक
कम हो सकती है | वहीं क्लाइमेट चेंज को नकारने
वाले अमेरिका को भी अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 10.5 प्रतिशत तक के
घाटे को सहने के लिए तैयार रहना होगा |पिछले चार दशकों
में देश के सबसे खराब तिमाही जीडीपी संकुचन का प्रभाव में एकमात्र एकमात्र
आशा की किरण कृषि क्षेत्र में ही देखा जा सकता है | अप्रैल और जून के बीच, जब देश की अर्थव्यवस्था 23.9प्रतिशत तक संकुचित हो गयी थी, तब इस कृषि
क्षेत्र ने 3.4 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की | लेकिन यह आशा की किरण
भी अब तेजी से धुंधली पड़ रही है | क्योंकि जलवायु
परिवर्तन से पड़ने वाला प्रभाव कृषि क्षेत्र में हो रही वृद्धि को प्रभावित कर सकता
है | भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट, जो कि अगस्त माह में जारी की गई है के अनुसार देश , को भविष्य में ज्यादा व्यापक सूखे और औसत बारिश में कमी का सामना कर पड़
सकता है |इसके अतिरिक्त चक्रवातों की उच्च आवृत्ति की
संभावना भी है|अकेले 2019 में, बारिश में तेज अस्थिरता के साथ आठ
चक्रवातों के कारण कृषि क्षेत्र की क्षति में वृद्धि हुई है |रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग या तापमान में तेज
वृद्धि फसल की पैदावार में गिरावट, संभावित आय को कम करने का कारण बना है | देश
में में 2008 से 2018 के बीच जल स्तर में गिरावट के साथ लगभग 52 प्रतिशत कुओं का भूजल सूख गया है |ऐसा पहली बार हुआ है कि देश के केन्द्रीय बैंक ने क्लाइमेट चेंज को
अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल किया है |एक
अनुमान के अनुसार देश की जी डी पी का तीन प्रतिशत क्लाइमेट चेंज के प्रभाव को कम
करने के लिए खर्च किया जाएगा |भारत जैसे अल्पविकसित देश
के लिए यह एक बड़ी रकम होगी और इस तरह के खर्च से समय रहते आवश्यक कदम उठा कर बचा
जा सकता था |
जलवायु परिवर्तन की इस तीव्रता के गंभीर परिणाम
देश के कृषि क्षेत्र और अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा |अभी भी देश की अर्थव्यवस्था कृषि पर ही टिकी हुई है
और इस क्षेत्र में पड़ने वाला प्रभाव समूची अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेगा | यदि देश के केन्द्रीय बैंक की वार्षिक रिपोर्ट को आधार माना जाए तो इसका मतलब होगा भारत की संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए अधिक बुरी खबर | यह स्थिति आगे भी चलती रहेगी क्योंकि भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देश जलवायु
परिवर्तन का शिकार होते रहेंगे और इसके बाद खाद्य उत्पादन में कमी आएगी और
फसल की पैदावार कम हो जाएगी | अगर कृषि क्षेत्र में खाद्य उत्पादन गिरता है और अनिश्चितता बढ़ती है, तो मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के लिए आर बी आई को और कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी | आरबीआई
जैसे संगठनों के लिए यह स्पष्ट हो गया है कि हमारे मानसून का पैटर्न बदल गया है और
वर्षा में अनियमितता ने इसे "विनाश का कारण " बना दिया है | खाद्य कीमतों पर जलवायु परिवर्तन के दीर्घकालिक प्रभाव पर्याप्त देखे जा
सकते हैं | जलवायु परिवर्तन से मिट्टी का क्षरण, भूमि गुणवत्ता का क्षरण, मरुस्थलीकरण, सूखे की बढ़ती आवृत्ति और तापमान में वृद्धि हो रही है | आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि यह देखते हुए कि भारत
पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव विश्व स्तर पर सबसे गंभीर होने की संभावना है, जलवायु जोखिम से उत्पन्न वित्तीय जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन और प्रबंधन के लिए एक उपयुक्त ढांचे की आवश्यकता है | मार्च 2020 में समाप्त वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि में कृषि
क्षेत्र का योगदान लगभग 15 प्रतिशत था जो बैंकों के समग्र ऋण का 12.6 प्रतिशत
($ 154 बिलियन) था | इसका मतलब है कि कृषि क्षेत्र पर झटका पड़ने से भारत की वित्तीय
प्रणाली के स्वास्थ्य पर सीधा असर पड़ सकता है |ऐसी
स्थिति में कृषि उपकरण और और इससे जुड़े
क्षेत्रों जैसे ट्रैक्टर, मोटर पंप, बीज और उर्वरक के लिए लिए गए ऋण पर किसानों के न चुका पाने की
संभावना ज्यादा है | इसके अलावा, फसल के नुकसान से बैंकों पर राजनीतिक दबाव होगा कि वे ऋणों को माफ़ करे या
अनिश्चित ब्याज दरों पर ऋण की पेशकश करें |कोविड 19 के
इस अनिश्चित समय में किसी समस्या को जानना समस्या को खत्म करने में पहला कदम हो
सकता है |
अमर उजाला में 28/09/2020 को प्रकाशित