गंगटोक कुछ ऐसा दिखता है |
मैंने अपने जीवन में कई परम्पराओं को तोडा है जिसके गवाह मेरे अपने रहे हैं जब तक माता पिता के ऊपर आर्थिक रूप से निर्भर रहा उनके हिसाब से जीवन जीया पर जैसे ही आर्थिक रूप से स्वावलंबी हुआ सारी बेड़ियाँ एक एक करके तोड़ता गया और उन्हीं बेड़ियों में से एक है जब मौका मिले कहीं घूमने निकल जाओ |सच बताऊँ मैं बहुत आराम तलब आदमी हूँ और यात्रा मुझे कष्ट देती है पर यह कष्ट मुझे मजा देता है हर यात्रा के बाद मैं एक नए तरह का नजरिया लेकर वापस लौटता हूँ |मैं कौन हूँ इस दुनिया में क्या कर रहा हूँ ऐसे प्रश्नों के जवाब तो नहीं मिलते पर जवाब के थोडा और करीब हो जाता हूँ और शायद इसीलिये जब भी मुझे मौका मिलता है मैं इस कष्ट का मज़ा लेने निकल पड़ता हूँ |
वो कहते हैं न “मेरे मन कुछ और कर्ता के मन कुछ और” तो जिस यात्रा के लिए मैं इस बार निकल रहा था तब मेरे दिमाग में सिर्फ कुछ दिन आराम करना और भारत को थोडा और करीब से देखना था इससे ज्यादा कुछ नहीं था पर जब मैं इस यात्रा से लौटा तो जीवन के प्रति एक नया नजरिया पुष्ट होता गया और वो था “कर्ता बनने की कोशिश न करो” जीवन एक नदी है बस जिस तरफ नदी ले जा रही है चुपचाप बहते चलो,हम कुछ नहीं कर रहे हैं हमसे सब करवाया जा रहा है क्योंकि हमारा जीवन एकांगी नहीं यह बहुत से लोगों के जीवन से बंधा हुआ इसलिए यह संभव ही नहीं है कि आप कुछ कर रहे हैं |मैं अपनी बात और स्पष्ट करता हूँ और लौटता हूँ उस यात्रा वृतांत की ओर जिसकी उम्मीद में आप मेरा ब्लॉग पढ़ रहे हैं |इस बार मैंने पूर्वोत्तर भारत देखने का निश्चय किया पर कहाँ जाऊं कुछ समझ नहीं आ रहा था |गूगल किया और उससे भ्रम काफी बढ़ गया पूर्वोत्तर में कई राज्य हैं सबकी अपनी विशिष्टता हैं |मेरे पास किसी तरह एक हफ्ते का समय था तो मैंने सिक्किम जाने का निश्चय किया और जिसमें तीन दिन गैंगटोक एक दिन पीलिंग और दो दिन दार्जिलिंग शामिल थे| मैंने पहले ही लिखा मैं बहुत आरामतलब इंसान हूँ और उसी कारण पहले से ही सब व्यवस्था कर ली थी दिल्ली से बागडोगरा हवाई जहाज से,लखनऊ से दिल्ली ट्रेन से ,सब निश्चित था|
मतलब कहीं कोई तनाव न हो और मैं यात्रा का लुत्फ़ उठा सकूँ पर यहीं से होनी का खेल शुरू हुआ मेरी फ्लाईट के जाने और ट्रेन के पहुँचने के बीच लगभग सात घंटे का फासला था पर हमारी ट्रेन रास्ते में ही रह गयी और फ्लाईट हमें छोड़ के बागडोगरा के लिए उड़ गयी |यात्रा अभी शुरू हुई थी कि मेरे अनुभवों का खजाना भरने लग गया एक नए तरह का अनुभव जिसकी आजतक कोई ट्रेन न छूटी हो उसे हवाई जहाज के छूटने का सदमा सहना था खैर थोड़ी देर तनाव रहा फिर गीता सार याद आया क्या ले के आये थे बस सारा तनाव छूमंतर |अब शांत दिमाग से आगे की योजना पर ध्यान देना था नए टिकट बुक करने थे और समय पर बागडोगरा पहुंचना था जिससे आगे की बुकिंग न प्रभावित न हो खैर एयरपोर्ट पहुँचने से पहले मैं टिकट बुक कर चुका था अब अगली फ्लाईट का इन्तजार था जो दिन के तीन बजे उड़ने वाली थी मैं सोच रहा था अगर मेरी फ्लाईट न छूटी होती तो इस वक्त मैं बागडोगरा में होता खैर जीवन यूँ होता तो क्या होता जैसी सोच में बीत ही जाता है |खैर हम नियत समय पर बागडोगरा पहुँच गये |बागडोगरा एयरपोर्ट सिलीगुड़ी शहर में सेना द्वारा बनाया एयरपोर्ट है हरे भरे खेतों के बीच एक बहुत छोटा सा हवाई अड्डा जहाँ आप परेशान हो जायेंगे पिछले एक दशक में पूर्वोत्तर भारत आने वाले पर्यटकों की संख्या में खासी वृद्धि हुई है पर एअरपोर्ट की हालत बुरी है खैर दिनभर की भगादौडी के बाद अभी हम अपनी मंजिल पर नहीं पहुंचे थे |यहाँ से सिक्किम की राजधानी गंगटोक हमारा ठिकाना थी लगभग एक सौ बीस किलोमीटर की सड़क यात्रा अभी और करनी थी वह भी पहाडी रास्तों में ,हमारी टैक्सी पहले से ही बुक थी |
तिस्ता दिन के समय |
ड्राइवर सुकुल राय मिले ,पहली नज़र में मुझे वो एक घाघ टैक्सी ड्राइवर लगे मैंने सोचा पूरे रास्ते मैं चुप रहूँगा और दिन भर की थकान को सो कर पूरा करूँगा और हो भी क्यों न मैं सुबह तीन बजे से जग रहा था और मेरी ट्रेन के दिल्ली पहुँचने का सही समय साढ़े चार बजे था खैर हम बागडोगरा एयरपोर्ट से बाहर आये कहने को हम पश्चिम बंगाल में थे पर हर जगह बिहार के लोग मिल रहे थे उनके बोलने के अंदाज़ से साफ़ अंदाजा लगाया जा सकता था कि इनकी जड़ें बिहार में हैं |मैंने सुकुल जी से पूछा गंगटोंक पहुँचने में कितना वक्त लगेगा उसने कहा हम बड़ी आसानी से तीन साढ़े तीन घंटे में गंगटोंक पहुँच जायेंगे |मैंने शुक्र मनाया कि रात के नौ बजे तक हम होटल के अपने कमरे में होंगे पर वो दिन सचमुच एक खराब दिन था और आगे नियति हमारे सब्र की और परीक्षा लेने वाली थी हम सिलीगुड़ी से गंगटोंक के लिए बढे जमीन धीरे -धीरे ऊँची होने लगी मतलब हम पहाड़ पर जा रहे थे |सच बताऊँ किताबो के अलावा मुझे पूर्वोत्तर भारत का कोई ख़ास अंदाज़ा नहीं था पर यह यात्रा मेरी भारत के बारे में धारणा को हमेशा के लिए बदलने वाली थी |
हम उत्तर भारतीय लोग सिर्फ टीवी चैनल से अंदाजा लगाते हैं कि भारत क्या है और उसकी समस्याएं कैसी हैं |मेरे अंदाज़े के विपरीत सुकुल (ड्राइवर ) एक भले और ईमानदार इंसान निकले अगर उनको मैं पूर्वोत्तर के वाहन चालकों का प्रतिनिधि मानूं तो जो मेरी धारणा उत्तर भारत के ड्राइवरों को देख कर बनी थी पूर्वोत्तर के ड्राइवर ज्यादा स्वाभिमानी और मेहनतकश होते हैं |उन्होंने बताया हम लगभग दो घंटे पश्चिम बंगाल में चलेंगे और पैतालीस मिनट सिक्किम में ,शाम हो चुकी थी सूरज डूब रहा था और पहाड़ पहले हरे फिर धीरे -धीरे काले होने लग गये हवा में ठंडक थी पर इतनी भी नहीं कि आपको ठंडक लगे गाड़ी के शीशे खोल दिए गये और मैं जल्दी से सिक्किम पहुँच जाना चाहता था |
डूबता सूरज और ऊपर चढ़ते हम |
मैं भारत में ही था पर रास्ते में कोई गाड़ी हॉर्न नहीं बजा रही थी सब शान्ति से एक दूसरे को पास देते हुए आगे बढ़ रहे थे चढ़ती गाड़ी को रास्ता देने के लिए अगर गाड़ी थोड़ी पीछे भी करनी पड़े तो कोई हर्ज़ नहीं सब कुछ शान्ति से हो रहा था मोड़ पर जब दोनों तरफ की गाडिया एकदम अगल बगल होती ड्राईवर हँसते मुस्कुराते हुए एक दूसरे का हाल चाल लेते तिस्ता नदी की आवाज डराने वाली थी सिर्फ हर्र हर्र आवाज रास्ते में कई बाँध भी मिले जिनसे बिजली की जरूरतों को पूरा किया जा रहा है पर रात होने के कारण हम गाड़ी से नहीं निकले |फोटो खींचने का कोई सवाल ही नहीं था |रात के दस बज चुके थे अभी हम गैंगटोक से एक घंटे दूर थे पर भूख जोर मार रही थी सोचा चलो किसी पहाडी ढाबे के भोजन का आनंद लिया जाए वो भी धीरे –धीरे बंद हो रहे थे |गाड़ी किनारे लगी |हमने चाउमीन और चाय का ऑर्डर दिया |सुकुल जी ने हाथ मुंह धोने के लिए एक जगह दिखाई मैंने हाथ मुंह धोने के बाद जैसे ही सर उठाया नीचे विशाल तिस्ता नदी अपने पूरे वेग से उस चांदनी रात में बहती दिखी उस दुधिया रौशनी में तिस्ता का पानी चांदी जैसा चमक रहा था और मैं विस्मित खड़ा सोच रहा था आखिर कौन थे वे लोग जो सबसे पहले मानव सभ्यता के केन्द्रों से दूर यहाँ आकर बसे होंगे जहाँ जीवन कठिन लेकिन खुबसूरत है ,वो कौन से कारण रहे होंगे जो लोगों को मैदान छोड़कर पहाड़ में बसने के लिए प्रेरित करते होंगे वो भी तब जब सभ्यता को विकास का रोग नहीं लगा था और यहाँ बसना बहुत दुष्कर रहा होगा |बात ड्राइवरों की हो रही थी जब हम नाश्ता कर रहे थे मैंने सुकुल जी से कहा आप भी नाश्ता कर लो उन्होंने विन्रमता पूर्वक कहा वो सिर्फ चाय पीयेंगे |हम चाय पी ही रहे थे मैंने उनको अपने लिए एक शीतल पेय खरीदते देखा ,चूँकि उत्तर भारत में हमने ड्राइवरों का एक दूसरा रूप देखा भले ही ट्रेवल एजेंसी कहती है कि उनके खाने पीने से सवारी को कोई मतलब नहीं रहेगा पर वे इस जुगाड़ में रहते हैं कि पैसेंजर उनके खाने पीने का खर्चा उठाये पर यहाँ का ड्राइवर इस सारे मामले से ऊपर है और अपने खाने पीने का बोझ किसी भी जुगत से अपनी सवारी पर नहीं डाल रहा था मैंने तुरंत उन्हें पैसा देने से रोका और कहा इसका पैसा भी मैं ही दूंगा |हमारे इस वार्तालाप में ढाबा मालिक भी शामिल हो गया उसने पूछा मैं कहाँ से आया हूँ ,मैंने गर्व से बताया लखनऊ बस फिर क्या था वो बताने लगा वो भी लखनऊ से और विकास नगर में घर है मैंने कहा यहाँ काहे चले आये जंगल में उसने कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया और मुस्कुरा के बात को बदल गया उसकी बोलने की शैली से लग रहा था उसकी जड़ें बिहार में हैं हो सकता है लखनऊ में कोई रिश्तेदार रहता हो या उसका आना जाना लगा रहता हूँ एक उत्तर भारतीय के ढाबे में सारे कामगार मजदूर स्थानीय लोग थे यही है चमत्कार वो अपनी जमीन पर मजदूर थे और बाहर से आया एक आदमी मालिक बना बैठा था |अभी हमारा सफर जारी था सुकुल जी की हिन्दी को समझने में थोड़ी दिक्कत हो रही थी इसलिए ज्यादा बातचीत न हो पा रही थी पर एक चीज हम दोनों में कॉमन थी वो पुराने हिन्दी गानों के प्रति प्रेम खासकर नब्बे के दशक के जब हम जवान हो रहे थे |शांत चांदनी रात में हम नदीम श्रवण ,कुमार शानू ,अलका याग्निक और समीर की शानदार जुगलबंदी में गंगटोंक की तरफ बढ़ते चले जा रहे थे रास्ते धीरे –धीरे चौड़े होते जा रहे थे पर उंचाई बढ़ती जा रही थे सिक्किम में प्रवेश का एक विशाल द्वार हमारा स्वागत कर रहा था और गूगल मैप बता रहा था होटल देवाचीन रिट्रीट दस मिनट की दूरी पर है हम गैंगटोक में थे ..........
जारी
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