Friday, January 21, 2022

ऑनलाईन चुनाव की राह में बाधाएं


   

 
कोरोना काल ने ,मानव सभ्यता के बदलाव की तस्वीर को एक झटके में बदल दिया |मानव सभ्यता में इतना बड़ा बदलाव इससे पहले आग पानी और पहिये की खोज के बाद ही आये थे फिर इंटरनेट ने तस्वीर बदली और समाज में बहुत सी क्रांतिकारी घटनाएँ घटीं और ऑन लाइन का दौर आ गया पर अभी भी बहुत से लोग इंटरनेट से दूर थे क्योंकि उनके पास उन कामों के लिए परम्परागत विकल्प थे जिससे इंटरनेट से मानव सभ्यता का चेहरा जितनी तेजी से बदलना चाहिए था वो गति नहीं थी |लेकिन कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितयों ने अचानक ही कई सारे बदलाव कर दिए |घर और ऑफिस का अंतर मिट गया बहुत से पुराने रोजगार हमेशा के लिए अतीत हो रहे वहीं कई नए क्षेत्रों में रोजगार का सृजन हो रहा है  जिसमें सिर्फ कंप्यूटर और इंटरनेट का ही राज होगा|इस सारी प्रक्रिया से देश की राजनीतिक प्रक्रिया भी अछूती नहीं रही |देश के इतिहास में पहली बार कोरोना के कारण उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव आयोग ने रैली पर रोक 22 जनवरी तक लगा रखी है| आयोग ने राजनीतिक दलों को इंडोर मीटिंग के लिए 300 लोग अधिकतम या हाल की 50 प्रतिशत कैपिसिटी तक छूट दी है। कोरोना काल से पहले शायद ही किसी ने कभी कल्पना की हो कि पांच प्रदेश में चुनाव की रणभेरी बज चुकी हो पर कोइ भी चुनावी रैली भौतिक  रूप से न हो रही हो |उधर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि वह कोरोना के खतरे को देखते हुए ऑनलाइन वोटिंग कराए। ऑनलाईन वोटिंग के पक्ष में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं कि देश का धन और मानव श्रम बचेगा |चुनाव प्रक्रिया और गतिशील हो जायेगी |चुनाव में चुनाव आयोग, प्रशासन के सभी अंगों की सहायता लेता है जिससे प्रशासन के दैनिक कार्य चुनाव तक या तो बाधित रहते हैं या उनकी गति धीमी हो जाती है |ऑनलाईन वोटिंग पर्यावरण के लिहाज से भी अनुकूल होगी |

वैसे ई वोटिंग कोई नयी अवधारणा  नहीं है। कई  कंपनियां किसी मुद्दे पर जनता की सीधी  राय जानने के लिए एप का सहारा लेती हैं। ऐसे में बिना बिना कतार में लगे या फिर अपना समय खर्च किए बिना आसानी से देश में वोटिंग क्यों नहीं की जा सकती है। वैसे भी जब वर्चुयल  रैलियां हो रही हैं तो ऑनलाइन वोटिंग क्यों नहीं हो सकती।इंटरनेट के ज़माने से ही पूर्व देश  में पोस्टल वोटिंग का प्रावधान रहा है। जो लोग सेना में हैं या बाहर भारतीय दूतावासों में काम करते हैंवे इस अधिकार का उपयोग करते हैं। पोस्टल वोटिंग और ई-वोटिंग में अंतर सिर्फ इतना  है कि पोस्टल वोटिंग में चुनाव तिथि के सात दिन पहले तक वोट भेजने की अनुमति होती है जबकि ई-वोटिंग में उसी दिनउसी समय वोटिंग संभव हो जाती है|

सिद्धांत में ऑनलाईन वोटिंग की अवधारणा बहुत लुभावनी लगती है पर भारत जैसे बड़े और विविधता वाले देश में  ऑनलाईन वोटिंग की राह में कई बाधाएं है|कुछ तकनीकी है और कुछ सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक |चुनावों की सार्थकता तभी है जब वे पूरी तरह निष्पक्ष हों और इस प्रक्रिया में शामिल सभी दलों का इस पर भरोसा हो पर ऑनलाईन वोटिंग में इस बात की गारंटी कोइ नहीं ले सकता |ऑनलाइन वोटिंग के लिए कंप्यूटर सिस्टम और एप्लिकेशन की जरुरत होगी जिसमें बग और त्रुटियां हो सकती है और जैसे ही यह पूरा सिस्टम इंटरनेट पर आएगा पूरी दुनिया के भारत विरोधी हैकर सक्रिय  हो उठेंगेइसके अतिरिक्त चुनाव की सुरक्षा के लिहाज से यह भी एक जटिल मुद्दा है कि कोई भी कंप्यूटर या सिस्टम ऐसा नहीं है जिसे हैक नहीं किया जा सकता। वोटिंग एक निजी और गुप्त प्रक्रिया मानी जाती है पर ऑनलाईन वोटिंग में इस पूरी प्रक्रिया को गोपनीय बनाये रखना बड़ी चुनौती है |एक ऐसा देश जहाँ चुनाव प्रक्रिया में धन और बाहुबल  की प्रधानता रहती है |ऑनलाईन वोटिंग में इसके माध्यम से इसे प्रभावित किया जा सकता है |दूसरी बात यह है कि यदि किन्ही कारणों से कोइ हैकर सिस्टम को हैक कर लेता है तो यह बात सार्वजनिक हो जाने का खतरा बना रहेगा तो किस व्यक्ति ने किस उम्मीदवार या किस पार्टी को वोट दिए हैं तो इससे मतदाता का नाम और उसकी पहचान सार्वजनिक हो जाएगी और इससे उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।इस तथ्य को समझने के लिए अक्सर लोगों के क्रेडिट कार्ड नम्बर और फोन नम्बर सार्वजनिक हो जाने की खबरों के माध्यम से समझा जा सकता है |ऑनलाईन वोटिंग में इस बात की गारंटी नहीं ली जा सकती कि मतदाताओं की पहचान गुप्त रखी जायेगी |

तीसरी और मुख्य बात भले ही इंटरनेट  का विस्तार लगभग पूर देश में हो गया है,लेकिन इसकी अच्छी स्पीड  और भरोसेमंद सेवा अभी भी हर जगह उपलब्ध नहीं है। आबादी के एक बड़े तबके के पास अभी भी  इंटरनेट की सुविधा नहीं है। बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं  के दौरान यह समस्या देश भर में देखी गई। चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोक्ताओं वाला देश है |राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा शिक्षा पर किये गए शोध से प्राप्त आंकड़ों के हिसाब से देश में केवल सत्ताईस प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जहाँ किसी एक सदस्य के पास इंटरनेट की सुविधा है किसी व्यक्ति के पास मोबाइल फोन का होना ‘डिजिटल’ होने का प्रमाण नहीं है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति स्मार्टफोन का उपयोगकर्त्ता हैतो भी वह स्वयं को ‘डिजिटल सेवी’ नहीं कह सकता हैजब तक कि उसके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी न हो और वह इंटरनेट पर प्रासंगिक और समय पर जानकारी प्राप्त करना न जानता हो। ऑनलाईन चुनाव के परिप्रेक्ष्य में यह एक बड़ी चुनौती होने वाली है यूनिसेफ की मार्च 2021 में आई रिपोर्ट के अनुसार  COVID-19 महामारी से पहले भारत में केवल एक चौथाई घरों (24 प्रतिशत) के पास इंटरनेट की सुविधा थी|  टेलीकम्यूनिकेशन इन्फ़्रास्ट्रक्चर के मामले में  संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी आंकड़े काफ़ी सोचनीय  हैंयूएन द्वारा जारी ई-गवर्नमेंट रिपोर्ट 2020 के मुताबिक़टेलीकम्यूनिकेशन इन्फ़्रास्ट्रक्चर इंडेक्स में भारत की स्थिति औसत से भी नीचे हैइस इंडेक्स में हम 0.2 अंक पीछे हैं | ICRIER और थिंक टैंक LIRNEAsia की ओर से डिजिटल पॉलिसी पर केंद्रित एक नए नेशनल सैंपल सर्वे से कोविड के दौरान डिजिटल कनेक्टिविटी में चालीस प्रतिशत  की बढ़ोतरी हुई  लेकिन डिवाइस की कमीखराब सिग्नल और इस तरह की पढ़ाई महंगी होने की वजह से ज्यादातर बच्चे  रिमोट एजुकेशन का लाभ लेने से वंचित रह गए| 13 करोड़ लोग 2020-21 के दौरान ऑनलाइन हुएइससे देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ कर 47 करोड़ तक पहुंच गई भले ही यह रिपोर्ट बच्चों की शिक्षा पर हो इससे यह जरुर पता चलता है कि इंटरनेट के मामले में देश को अभी लंबा रास्ता तय करना है |

भारत में लिंग अंतराल दुनिया में सबसे अधिक है। जब यह मोबाइल उपयोग के स्वामित्त्व में तब्दील हो जाता हैतो यह लिंग अंतराल और अधिक हो जाता है। भारत में लगभग सोलह प्रतिशत महिलाएँ ही मोबाइल इंटरनेट से जुड़ी हैं। जो डिजिटलीकरण की दिशा में लैंगिक विभेद का स्पष्ट रेखांकन करता है और चुनाव के व्यापक दर्शन की अवहेलना करता है |पारम्परिक रूप से चुनाव में किसी के लिंग के आधार पर मतदान करने में भेद नहीं किया जा सकता |ऑनलाईन वोटिंग होने से महिलओं समेत समाज के सभी वंचित तबकों को निर्भय होकर वोटिंग करने की सहूलियत मिलेगी इसकी गारंटी नहीं ली जा सकती है देश में 2019 के लोकसभा चुनाव में 6500 करोड़ रुपये खर्च किये गए और प्रति व्यक्ति चुनाव में बहत्तर रूपये खर्च आया |ऑनलाईन वोटिंग में खर्च के एक बड़े हिस्से को कम किया जा सकता है |

तस्वीर का दूसरा पहलु यह है कि देश बैलेट  पेपर से ई वी एम् मशीन तक चुनाव प्रक्रिया में बहुत से ठोस नवाचार देख चुका है |जबकि जर्मनीअमेरिकाब्रिटेनफ्रांसजापानऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के सभी विकसित लोकतंत्र में कागज पर बने मतपत्र पर ही राष्ट्रीय चुनावों के लिए मतदान होते हैं और भारत को भी ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए. इसके कोई मजबूत तर्क नहीं है.अगर समस्या है तो इसका हल भी होगा देश को चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए ई वी एम् से आगे  देखना होगा पर यह काम एक दिन या एक झटके में नहीं हो सकता है |यह एक प्रक्रिया जिसको पूरा होने में बहुत वक्त लगेगा|इसकी शुरुआत अब प्रारंभ  हो जानी चाहिए|देश ने कोविड काल से बहुत सी चीजों को हाइब्रिड मोडल में आगे बढ़ता देखा है जिसमें कुछ लोग ऑनलाईन जुड़ते हैं कुछ ऑफ लाइन |देश में चुनाव प्रक्रिया हाइब्रिड मोड में करवाने के विकल्प तलाशे जाने चाहिए |कोरोना के बहाने ही सही पर इस दिशा  में बहस लगातार चलती रहनी चाहिए |

 दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 21/01/2022 को प्रकाशित 




 

Wednesday, January 19, 2022

एक लाईक और वोट का फर्क


 ठण्ड के इस   मौसम में  देश के पांच राज्यों में चुनाव की घोषणा ने राजनीति के  मौसम में गर्मी बढ़ा दी है. कोविड के कारण जब राजनीतिक रैलियों पर रोक है|ऐसे में डिजीटल मीडिया जंग का नया मैदान बना है.जहाँ हमारी आपकी सोशल मीडिया फीड राजनीतिक नारों से भरी हुई है.  ऐसे में हम या आप कोई  भी राजनीति  से बच नहीं सकता.वैसे सोशल मीडिया की भी अपनी एक राजनीति है. जो हमारे देश के लोकतंत्र की राजनीति से किसी तरह अलग नहीं है.वैसे आपका भी किसी न किसी सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर एक  एकाउंट होगा.  आपने कभी गौर किया कि आपकी फीड पर क्या होता हैवैसे भी गूगल  की इस दुनिया में ज्ञान यूँ ही कोई लेना नहीं चाहता.जैसे फेसबुक दोस्त कई तरह के होते उसी तरह वोटर भी कई तरह के होते हैं.कुछ ऐसे जो सोचते हैं कि हमारे एक वोट से क्या होता हैसरकार किसी की भी बने वो किसी को भी वोट देते हैं.हमारे कुछ फेसबुक दोस्त में से भी कुछ ऐसे ही  प्रोफेशनल लाइकर्स होते हैं.जो हर एक चीज को लाईक करेंगे. आप कुछ भी शेयर कीजिये. वो आयेंगे और लाईक करके चले जायेंगेआप भी ऐसे दोस्तों को धीरे धीरे गंभीरता से  लेना छोड़ देते हैं,और नए लाइकर्स पर ध्यान देना शुरू कर देते हैंपर ये प्रोफेशनल लाइकर्स आपकी फीड पर लाईक बढ़ा देते हैं. भले ही आपके द्वारा शेयर किया कंटेंट इस लायक न हो.  तो वोट करते वक्त सिलेक्टिव बनिए क्योंकि  यूँ ही किसी को भी वोट देने से जैसे बेकार फीड हिट हो जाती हैउसी तरह गलत आदमी चुनाव जीत जाता हैतो दोस्त  आपके एक लाईक और एक वोट से फर्क पड़ता है.वोटिंग के दिन कुछ लोग छुट्टी मनाते हैं और वोट देने नहीं जातेअब जरा अपने फेसबुक के मित्रों को याद करिए उनमें से कुछ ऐसे होंगे .जो सबकी फीड पर नजर तो रखते हैं पर न तो लाईक करते हैं और न ही कमेन्टऐसे ही लोग वोटिंग के दिन वोट नहीं करतेसब कुछ जानते समझते हुए भी वे अपनी जिम्मेदारियां नहीं समझतेअगर आपने  फेसबुक एकाउंट बनाया है तो कुछ एक्टीविटी भी करिए, और वोटिंग लिस्ट में आपका नाम है तो वोट देने जरुर जाइए.बात धीरे फ़ैल रही है कि छोटी -छोटी बातें कितना बड़ा असर रखती हैं.

आपने गौर किया होगा जब आप कुछ शेयर करते हैं तो कुछ लोग सार्वजनिक रूप से  उस स्टेटस अपडेट को न तो लाईक करते हैं न कमेन्ट. पर मेसेज बॉक्स में आ के बड़ी मीठी -मीठी बातें करते हैं. इधर आपकी चैट की बत्ती जली नहीं कि इनका हेलो हाय शुरू हो गया.आप भी जल्दी जान जाते हैं कि इनकी मीठी -मीठी बातों का मकसद आपसे कोई काम निकलवाना होता पर ये सार्वजनिक रूप से लोगों को  बताना नहीं चाहते कि वो आपसे जुड़े हुए हैं .आप खुद सोचिये आप क्या इतने फ्री हैं कि यूँ ही किसी से चैट करते हैं और अगर करते हैं तो आप इमोशनली कमज़ोर हैं. ऐसे लोग उन नेताओं की तरह होते हैं. जो डबल फेस्ड होते हैं इन्हें आपसे तब तक मतलब होता है जब तक चुनाव नहीं होते, उसके बाद छू मंतर. तो किसी भी राजनीतिक दल  के  झूठे वायदों पर यूँ ही आँख मूँद कर भरोसा मत कीजिये. थोडा अपनी अक्ल लगाइए क्योंकि  बात करना और अपनी बात पर खरा उतरना दो अलग अलग बातें हैं. जब आप सोशल नेट्वर्किंग साईट्स पर समझदारी दिखाते हैं तो जब बात देश और गवर्नेन्स की हो तो आपको समझदार होना ही पड़ेगा.तो अब फैसला आप कीजिये कि आप कैसे वोटर हैं.

प्रभात खबर में 19/01/2022 को प्रकाशित 

 

 

Tuesday, January 11, 2022

उपभोक्ता का डाटा में बदल जाना

 

साल 2019 में कैलिफोर्निया के गर्वनर गेविन न्यूसम ने अमेरिका में एक डाटा डिविडेंड बिल प्रस्तुत किया था |जिसमें उपभोक्ताओं के निजी डाटा से पैदा हुई सम्पति का बंटवारा उपभोक्ताओं के साथ किये जाने की मांग की गयी थी  | इंसान का एक डाटा (आंकड़े )में परिवर्तित हो जाना अपने समय की सबसे विलक्षण घटना है  और आज इससे मूल्यवान कोई चीज नहीं है |अब तो इन्फोमोनिक्स का युग आ चूका है जो आंकड़ों से जुड़ा है |डाटा आज की सबसे बड़ी पूंजी है यह डाटा का ही कमाल  है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कम्पनियां दुनिया की बड़ी और लाभकारी कम्पनियां बन गयीं है|डाटा ही वह इंधन है जो अनगिनत कम्पनियों को चलाए रखने के लिए जिम्मेदार हैं |वह चाहे तमाम तरह के एप्स हो या विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साईट्स सभी उपभोक्ताओं  के लिए मुफ्त हैं |असल मे जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है |वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है |इनमे से अधिकतर कम्पनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए  गए आंकड़ों को सम्हाल पाने में असफल रहती हैंजिसका परिणाम लागातार आंकड़ों की चोरी और उनके  दुरूपयोग के मामले सामने आते रहते हैं |साल 2020 में फेसबुक ने लगभग  छियासी बिलियन डॉलर और गूगल ने एक सौ इक्यासी  बिलियन डॉलर विज्ञापन से कमाए |

मजेदार तथ्य यह है कि फेसबुक कोई भी उत्पाद नहीं बनाता है और इसकी आमदनी का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है और आप क्या विज्ञापन देखेंगे इसके लिए आपको जानना जरुरी है |यही से आंकड़े महत्वपूर्ण हो उठते हैं | 25 मई2018 को यूरोपीय संघ के नेतृत्व में जीडीपीआर (जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) को पूरी तरह से लागू किया और इस तरह यूरोपीय संघ (इयू) में डाटा प्रोटेक्शन कानूनों की दिशा में एक मील का पत्थर स्थापित किया गया . जनरल डाटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन (जीडीपीआर) एक नियंत्रण व्यवस्था है जिसके तहत समूचे यूरोपीय संघ में नागरिकों के डाटा प्रोटेक्शन अधिकारों को मजबूत बनाया गया है और इसे मानकीकृत‍ किया गया है | इसके तहत माना जाता है कि उपभोक्ता ही आंकड़ों का असली स्वामी या मालिक है | इस कारण से संगठन को उपभोक्ता से स्वीकृति लेनी पड़ती है तभी उपभोक्ता के आंकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है या फिर उपभोक्ता से स्वीकृति मिलने के बाद ही आंकड़ों को समाप्त किया जाता है .  निजी जानकारियों को सुरक्षित रखने और इसके  गलत इस्तेमाल को रोकने  के लिए सरकार ने 11 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश किया था इस पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने अपनी रिपोर्ट सदन के समक्ष नवम्बर 2021 में रख दी है जिस पर आगे चर्चा होनी है |जिस तरह इंटरनेट की इस दुनिया में आंकड़े महत्वपूर्ण हो चले हैं इस बिल के कानून बनने में अभी वक्त है |देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ उस तेजी से हम अपने निजी आंकडे (फोन ई मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं परिणाम तरह तरह के एप मोबाईल में भरे हुए जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि एप को इंस्टाल करते वक्त किन –किन चीजों को एक्सेस देने की जरुरत है |यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कॉन्टेक्ट तक पहुँचने की अनुमति माँगी तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे की मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है उसकी अनुमति दे देंगे |

अब उस एप के निर्मताओं के पास किसी के मोबाईल में जितने कोंटेक्ट उन तक पहुँचने की सुविधा मिल जायेगी|यानि एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |यह भी उल्लेखनीय है कि डेटा चुराने के लिए बहुत से फर्जी एप गूगल प्ले स्टोर पर डाल दिए जाते हैं और गूगल भी समय समय  पर ऐसे एप को हटाता रहता है पर ओपन प्लेटफोर्म होने के कारण जब तक ऐसे एप की पहचान होती है तब तक फर्जी एप निर्माता अपना काम कर चुके होते हैं |ग्रोसरी स्टोर और कई तरह के क्लब जब कोई उपभोक्ता वहां से कोई खरीददारी करता है या सेवाओं का उपभोग करता है तो वे उपभोक्ताओं के आंकड़े ले लेते हैं लेकिन उन आंकड़ों पर उपभोक्ताओं पर कोई अधिकार नहीं रहता है |उपभोक्ता अधिकारों के तहत अभी आंकड़े नहीं आये हैं |किसी भी उपभोक्ता को ये नहीं पता चलता है कि उसकी निजी जानकारियों का (आंकड़ों )किस तरह इस्तेमाल होता है और उससे पैदा हुई आय का भी उपभोक्ता को कोई हिस्सा नहीं मिलता |आंकड़ों की दुनिया में भी वर्ग संघर्ष का दौर शुरू हो गया है किसी के निजी आंकड़ों की कीमत उसकी इंटरनेट पर कम उपस्थिति से तय होती है यानि अगर आप कई तरह की सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर हैं तो आपका डाटा यूनिक नहीं रहेगा लोगों के निजी डाटा सिर्फ कम्पनियों के प्रोडक्ट को बेचने में ही मदद नहीं कर रहे बल्कि  यह आंकड़े हमें  भविष्य के समाज के लिए तैयार भी कर रहे हैं जिसमें एआई यनी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक बड़ी भूमिका निभाने वाला है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंप्यूटर विज्ञान की वह शाखा है जो कंप्यूटर के इंसानों की तरह व्यवहार करने की धारणा पर आधारित है जो  मशीनों की सोचनेसमझनेसीखनेसमस्या हल करने और निर्णय लेने जैसी संज्ञानात्मक कार्यों को करने की क्षमता पर कार्य करता है पर भविष्य का भारतीय समाज कैसा होगा यह इस मुद्दे पर निर्भर करेगा कि अभी हम अपने निजी आंकड़ों के बारे में कितने जागरूक है |

अमर उजाला में 11/01/2022 में प्रकाशित 

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