कोरोना काल ने ,मानव सभ्यता के बदलाव की तस्वीर को एक झटके में बदल दिया |मानव सभ्यता में इतना बड़ा बदलाव इससे पहले आग पानी और पहिये की खोज के बाद ही आये थे फिर इंटरनेट ने तस्वीर बदली और समाज में बहुत सी क्रांतिकारी घटनाएँ घटीं और ऑन लाइन का दौर आ गया पर अभी भी बहुत से लोग इंटरनेट से दूर थे क्योंकि उनके पास उन कामों के लिए परम्परागत विकल्प थे जिससे इंटरनेट से मानव सभ्यता का चेहरा जितनी तेजी से बदलना चाहिए था वो गति नहीं थी |लेकिन कोरोना वायरस के कारण उत्पन्न हुई परिस्थितयों ने अचानक ही कई सारे बदलाव कर दिए |घर और ऑफिस का अंतर मिट गया बहुत से पुराने रोजगार हमेशा के लिए अतीत हो रहे वहीं कई नए क्षेत्रों में रोजगार का सृजन हो रहा है जिसमें सिर्फ कंप्यूटर और इंटरनेट का ही राज होगा|इस सारी प्रक्रिया से देश की राजनीतिक प्रक्रिया भी अछूती नहीं रही |देश के इतिहास में पहली बार कोरोना के कारण उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में चुनाव आयोग ने रैली पर रोक 22 जनवरी तक लगा रखी है| आयोग ने राजनीतिक दलों को इंडोर मीटिंग के लिए 300 लोग अधिकतम या हाल की 50 प्रतिशत कैपिसिटी तक छूट दी है। कोरोना काल से पहले शायद ही किसी ने कभी कल्पना की हो कि पांच प्रदेश में चुनाव की रणभेरी बज चुकी हो पर कोइ भी चुनावी रैली भौतिक रूप से न हो रही हो |उधर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि वह कोरोना के खतरे को देखते हुए ऑनलाइन वोटिंग कराए। ऑनलाईन वोटिंग के पक्ष में कई तरह के तर्क दिए जाते हैं कि देश का धन और मानव श्रम बचेगा |चुनाव प्रक्रिया और गतिशील हो जायेगी |चुनाव में चुनाव आयोग, प्रशासन के सभी अंगों की सहायता लेता है जिससे प्रशासन के दैनिक कार्य चुनाव तक या तो बाधित रहते हैं या उनकी गति धीमी हो जाती है |ऑनलाईन वोटिंग पर्यावरण के लिहाज से भी अनुकूल होगी |
वैसे ई वोटिंग कोई नयी अवधारणा नहीं है। कई कंपनियां किसी मुद्दे पर जनता की सीधी राय जानने के लिए एप का सहारा लेती हैं। ऐसे में बिना बिना कतार में लगे या फिर अपना समय खर्च किए बिना आसानी से देश में वोटिंग क्यों नहीं की जा सकती है। वैसे भी जब वर्चुयल रैलियां हो रही हैं तो ऑनलाइन वोटिंग क्यों नहीं हो सकती।इंटरनेट के ज़माने से ही पूर्व देश में पोस्टल वोटिंग का प्रावधान रहा है। जो लोग सेना में हैं या बाहर भारतीय दूतावासों में काम करते हैं, वे इस अधिकार का उपयोग करते हैं। पोस्टल वोटिंग और ई-वोटिंग में अंतर सिर्फ इतना है कि पोस्टल वोटिंग में चुनाव तिथि के सात दिन पहले तक वोट भेजने की अनुमति होती है जबकि ई-वोटिंग में उसी दिन, उसी समय वोटिंग संभव हो जाती है|
सिद्धांत में ऑनलाईन वोटिंग की अवधारणा बहुत लुभावनी लगती है पर भारत जैसे बड़े और विविधता वाले देश में ऑनलाईन वोटिंग की राह में कई बाधाएं है|कुछ तकनीकी है और कुछ सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक |चुनावों की सार्थकता तभी है जब वे पूरी तरह निष्पक्ष हों और इस प्रक्रिया में शामिल सभी दलों का इस पर भरोसा हो पर ऑनलाईन वोटिंग में इस बात की गारंटी कोइ नहीं ले सकता |ऑनलाइन वोटिंग के लिए कंप्यूटर सिस्टम और एप्लिकेशन की जरुरत होगी जिसमें बग और त्रुटियां हो सकती है और जैसे ही यह पूरा सिस्टम इंटरनेट पर आएगा पूरी दुनिया के भारत विरोधी हैकर सक्रिय हो उठेंगे| इसके अतिरिक्त चुनाव की सुरक्षा के लिहाज से यह भी एक जटिल मुद्दा है कि कोई भी कंप्यूटर या सिस्टम ऐसा नहीं है जिसे हैक नहीं किया जा सकता। वोटिंग एक निजी और गुप्त प्रक्रिया मानी जाती है पर ऑनलाईन वोटिंग में इस पूरी प्रक्रिया को गोपनीय बनाये रखना बड़ी चुनौती है |एक ऐसा देश जहाँ चुनाव प्रक्रिया में धन और बाहुबल की प्रधानता रहती है |ऑनलाईन वोटिंग में इसके माध्यम से इसे प्रभावित किया जा सकता है |दूसरी बात यह है कि यदि किन्ही कारणों से कोइ हैकर सिस्टम को हैक कर लेता है तो यह बात सार्वजनिक हो जाने का खतरा बना रहेगा तो किस व्यक्ति ने किस उम्मीदवार या किस पार्टी को वोट दिए हैं तो इससे मतदाता का नाम और उसकी पहचान सार्वजनिक हो जाएगी और इससे उसकी सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।इस तथ्य को समझने के लिए अक्सर लोगों के क्रेडिट कार्ड नम्बर और फोन नम्बर सार्वजनिक हो जाने की खबरों के माध्यम से समझा जा सकता है |ऑनलाईन वोटिंग में इस बात की गारंटी नहीं ली जा सकती कि मतदाताओं की पहचान गुप्त रखी जायेगी |
तीसरी और मुख्य बात भले ही इंटरनेट का विस्तार लगभग पूर देश में हो गया है,लेकिन इसकी अच्छी स्पीड और भरोसेमंद सेवा अभी भी हर जगह उपलब्ध नहीं है। आबादी के एक बड़े तबके के पास अभी भी इंटरनेट की सुविधा नहीं है। बच्चों की ऑनलाइन कक्षाओं के दौरान यह समस्या देश भर में देखी गई। चीन के बाद भारत दुनिया का सबसे बड़ा इंटरनेट उपभोक्ताओं वाला देश है |राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय द्वारा शिक्षा पर किये गए शोध से प्राप्त आंकड़ों के हिसाब से देश में केवल सत्ताईस प्रतिशत परिवार ही ऐसे हैं जहाँ किसी एक सदस्य के पास इंटरनेट की सुविधा है | किसी व्यक्ति के पास मोबाइल फोन का होना ‘डिजिटल’ होने का प्रमाण नहीं है। यहाँ तक कि यदि कोई व्यक्ति स्मार्टफोन का उपयोगकर्त्ता है, तो भी वह स्वयं को ‘डिजिटल सेवी’ नहीं कह सकता है, जब तक कि उसके पास इंटरनेट कनेक्टिविटी न हो और वह इंटरनेट पर प्रासंगिक और समय पर जानकारी प्राप्त करना न जानता हो। ऑनलाईन चुनाव के परिप्रेक्ष्य में यह एक बड़ी चुनौती होने वाली है | यूनिसेफ की मार्च 2021 में आई रिपोर्ट के अनुसार COVID-19 महामारी से पहले भारत में केवल एक चौथाई घरों (24 प्रतिशत) के पास इंटरनेट की सुविधा थी| टेलीकम्यूनिकेशन इन्फ़्रास्ट्रक्चर के मामले में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी आंकड़े काफ़ी सोचनीय हैं| यूएन द्वारा जारी ई-गवर्नमेंट रिपोर्ट 2020 के मुताबिक़, टेलीकम्यूनिकेशन इन्फ़्रास्ट्रक्चर इंडेक्स में भारत की स्थिति औसत से भी नीचे है| इस इंडेक्स में हम 0.2 अंक पीछे हैं | ICRIER और थिंक टैंक LIRNEAsia की ओर से डिजिटल पॉलिसी पर केंद्रित एक नए नेशनल सैंपल सर्वे से कोविड के दौरान डिजिटल कनेक्टिविटी में चालीस प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई लेकिन डिवाइस की कमी, खराब सिग्नल और इस तरह की पढ़ाई महंगी होने की वजह से ज्यादातर बच्चे रिमोट एजुकेशन का लाभ लेने से वंचित रह गए| 13 करोड़ लोग 2020-21 के दौरान ऑनलाइन हुए| इससे देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ कर 47 करोड़ तक पहुंच गई भले ही यह रिपोर्ट बच्चों की शिक्षा पर हो इससे यह जरुर पता चलता है कि इंटरनेट के मामले में देश को अभी लंबा रास्ता तय करना है |
भारत में लिंग अंतराल दुनिया में सबसे अधिक है। जब यह मोबाइल उपयोग के स्वामित्त्व में तब्दील हो जाता है, तो यह लिंग अंतराल और अधिक हो जाता है। भारत में लगभग सोलह प्रतिशत महिलाएँ ही मोबाइल इंटरनेट से जुड़ी हैं। जो डिजिटलीकरण की दिशा में लैंगिक विभेद का स्पष्ट रेखांकन करता है और चुनाव के व्यापक दर्शन की अवहेलना करता है |पारम्परिक रूप से चुनाव में किसी के लिंग के आधार पर मतदान करने में भेद नहीं किया जा सकता |ऑनलाईन वोटिंग होने से महिलओं समेत समाज के सभी वंचित तबकों को निर्भय होकर वोटिंग करने की सहूलियत मिलेगी इसकी गारंटी नहीं ली जा सकती है | देश में 2019 के लोकसभा चुनाव में 6500 करोड़ रुपये खर्च किये गए और प्रति व्यक्ति चुनाव में बहत्तर रूपये खर्च आया |ऑनलाईन वोटिंग में खर्च के एक बड़े हिस्से को कम किया जा सकता है |
तस्वीर का दूसरा पहलु यह है कि देश बैलेट पेपर से ई वी एम् मशीन तक चुनाव प्रक्रिया में बहुत से ठोस नवाचार देख चुका है |जबकि जर्मनी, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के सभी विकसित लोकतंत्र में कागज पर बने मतपत्र पर ही राष्ट्रीय चुनावों के लिए मतदान होते हैं और भारत को भी ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए. इसके कोई मजबूत तर्क नहीं है.अगर समस्या है तो इसका हल भी होगा देश को चुनाव प्रक्रिया में सुधार के लिए ई वी एम् से आगे देखना होगा पर यह काम एक दिन या एक झटके में नहीं हो सकता है |यह एक प्रक्रिया जिसको पूरा होने में बहुत वक्त लगेगा|इसकी शुरुआत अब प्रारंभ हो जानी चाहिए|देश ने कोविड काल से बहुत सी चीजों को हाइब्रिड मोडल में आगे बढ़ता देखा है जिसमें कुछ लोग ऑनलाईन जुड़ते हैं कुछ ऑफ लाइन |देश में चुनाव प्रक्रिया हाइब्रिड मोड में करवाने के विकल्प तलाशे जाने चाहिए |कोरोना के बहाने ही सही पर इस दिशा में बहस लगातार चलती रहनी चाहिए |
दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण में 21/01/2022 को प्रकाशित