बजट वो साल भर का लेखा जोखा होता है जहाँ सरकार अपने आय और व्यय का लेखा जोखा देश के सामने रखती है |सरकार कोई व्यवसाई नहीं है |उसकी आमदनी का स्रोत हमारे आपके जैसे करोड़ों लोग होते हैं |जो विभिन्न करों के रूप में सरकार को आमदनी कराते हैं और बदले में उम्मीद करते हैं कि सरकार हमारा ध्यान रखे, स्कूल बनाये अस्पताल खोले| सरकारे ये करती भी हैं पर सरकारी संस्थाओं के प्रति एक देश के नागरिक जैसा भाव क्या हमारा होता है?बहुत साल पहले एक हास्य कविता सुनी थी कि रेलवे राष्ट्रीय सम्पति है और ट्रेन के डिब्बे से बल्ब चुरा के अपना हिस्सा घर ले जा रहा हूँ |नतीजा सरकार के उपर सुविधाओं पर ज्यादा खर्च करने का बोझ और यात्रियों को ज्यादा परेशानी | कोई भी सामान खरीदते वक्त किसी तरह टैक्स न देने की जुगत लगाना भी कुछ इसी तरह का मामला है |
इतने बड़े देश का बजट तभी सबकी इच्छाएं पूरी कर पायेगा जब सरकार की जेब भरी होगी और वो आपके उपर से टैक्स की लगाम कम करेगी पर यह तभी होगा जब हम सरकारी संपत्तियों को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति वाले भाव से देखते हुए उनका रखरखाव करें |
दैनिक जागरण में 02/02/2022 को प्रकाशित
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