Wednesday, February 2, 2022

जनता के साथ सरकारें भी दुविधा में ,किस राह चलें

 


इस देश में दो ही चीज आम होते हुए भी ख़ास हैं|पहला “आम चुनाव” और दूसरा “आम बजट” जिससे देश के आम आदमी का जीवन प्रभावित होता है| देश का बजट आ चुका है, विद्वान लोग बताएंगे कि बजट कितना बेहतर है पर मैंने जबसे होश सम्हाला है एक आम आदमी के नजरिये से एक चीज हमेशा हुई |चीजें सस्ती और महंगी होने के अलावा, हर बजट के बाद जिस पार्टी  की सरकार होती है  वो उसे क्रांतिकारी बताती है तो विपक्षी पार्टी उसे निराशाजनक बताते हैं|ये खेल लगातार चलता आ रहा है भले ही सरकार बदलती रही हो|भारत जैसे विविधता वाले देश में जनता के सामान्य व्यवहार का सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। सरकारों के ऊपर जहाँ लोक लुभावन योजनाएं चलाने की मजबूरी रहती है वहीं दूसरी ओर  देश को विकास के पथ पर अग्रसर करने का दायित्व भी। आज देश की बहुसंख्यक जनता के साथ -साथ देश को नेतृत्व देने वाली सरकारें भी दुविधा में है की वो किस राह चलें|हर बार की तरह से इस बार भी कुछ लोग बजट से प्रसन्न होंगे और कुछ  लोग निराश|

बजट वो साल भर का लेखा जोखा होता है जहाँ सरकार अपने आय और व्यय का लेखा जोखा देश के सामने रखती है |सरकार कोई व्यवसाई नहीं है |उसकी  आमदनी का स्रोत हमारे आपके जैसे करोड़ों लोग होते हैं |जो विभिन्न करों के रूप में सरकार को आमदनी कराते हैं और बदले में उम्मीद करते हैं कि सरकार हमारा ध्यान रखे, स्कूल बनाये अस्पताल खोले| सरकारे ये करती भी हैं पर सरकारी संस्थाओं के प्रति एक देश  के नागरिक जैसा भाव क्या हमारा होता है?बहुत साल पहले एक हास्य कविता सुनी थी कि रेलवे राष्ट्रीय सम्पति है और ट्रेन के डिब्बे से बल्ब चुरा के अपना हिस्सा घर ले जा रहा हूँ |नतीजा सरकार के उपर सुविधाओं पर ज्यादा खर्च करने का बोझ  और यात्रियों को ज्यादा परेशानी | कोई भी सामान खरीदते वक्त किसी तरह टैक्स न देने की जुगत लगाना  भी कुछ इसी तरह का मामला है | 

इतने बड़े देश का बजट तभी सबकी इच्छाएं पूरी कर पायेगा जब सरकार की जेब भरी होगी और वो आपके उपर से टैक्स की लगाम कम करेगी पर यह तभी होगा जब हम सरकारी संपत्तियों को अपनी व्यक्तिगत संपत्ति वाले भाव से देखते हुए उनका रखरखाव करें |

दैनिक जागरण में 02/02/2022 को प्रकाशित 

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