जांच में पाया गया कि Google ने कम से कम 2014 से उपभोक्ताओं को उनके स्थान ट्रैकिंग प्रथाओं के बारे में गुमराह करके राज्य उपभोक्ता संरक्षण कानूनों का उल्लंघन किया था| गूगल की कमाई का ज्यादातर हिस्सा लोगों की व्यक्तिगत जानकारियों के जरिए ही आता है| लोग अपने जरुरत की चीजों को अपने ब्राउजर में खोजते हैं चूँकि मोबाईल एक व्यक्तिगत माध्यम है तो लोग जहाँ भी जाते हैं मोबाईल उनके साथ रहता है और वे किन ऐप्स का इस्तेमाल करते हैं |यह सभी जानकारी गूगल के पास रहती है| ऐसे में इन डेटा के जरिए लोगों को उनकी पसंद का कंटेंट और ऐप्स उन्हें अपने स्क्रीन पर दिखने लगते हैं| इस मामले पर अमेरिका के चालीस राज्यों ने गूगल के साथ समझौते के तहत अब गूगल को राज्यों को कुल 32 अरब रुपये यानी करीब 400 मिलियन डॉलर का भुगतान करने का फैसला किया है| ध्यान देने वाली बात ये है कि यह अब तक का सबसे बड़ा प्राइवेसी समझौता है|
वही भारत जो कि दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट यूजर देश है वहां डेटा और डेटा प्राइवेसी को लेकर अभी भी कोई जागरूकता नहीं दिखती है|निजी जानकारियों को सुरक्षित रखने और इसके गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए सरकार ने 11 दिसंबर 2019 को लोकसभा में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल पेश किया था इस पर गठित संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने अपनी रिपोर्ट सदन के समक्ष नवम्बर 2021 में रख दी है जिस पर आगे चर्चा होनी है | उम्मीद की जा रही है कि इस बजट सत्र के बाद डिजीटल डाटा सुरक्षा बिल कानून का रूप ले लेगा |जिस तरह इंटरनेट की इस दुनिया में आंकड़े महत्वपूर्ण हो चले हैं इस बिल के कानून बनने में अभी वक्त है |देश में जिस तेजी से इंटरनेट का विस्तार हुआ उस तेजी से हम अपने निजी आंकडे (फोन ई मेल आदि) के प्रति जागरूक नहीं हुए हैं परिणाम तरह तरह के एप मोबाईल में भरे हुए जिनको इंस्टाल करते वक्त कोई यह नहीं ध्यान देता कि एप को इंस्टाल करते वक्त किन –किन चीजों को एक्सेस देने की जरुरत है |यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कॉन्टेक्ट तक पहुँचने की अनुमति माँगी तो ज्यादातर लोग बगैर यह सोचे की मौसम का हाल बताने वाला एप कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है उसकी अनुमति दे देंगे |अब उस एप के निर्मताओं के पास किसी के मोबाईल में जितने कोंटेक्ट उन तक पहुँचने की सुविधा मिल जायेगी|यानि एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ फिर उस डाटा ने और डाटा ने पैदा करना शुरू कर दिया |इस तरह देश में हर सेकेण्ड असंख्य मात्रा में डाटा जेनरेट हो रहा है पर उसका बड़ा फायदा इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कम्पनियों को हो रहा है |ऐसे में लोगों की डेटा प्राइवेंसी पर बहुत बड़ा सवाल उठता है|
दैनिक जागरण में 21/11/2022 को प्रकाशित
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