Monday, April 17, 2023

सोशल मीडिया कंटेंट इंडस्ट्री से बढेगा रोजगार

 

बात ज्यादा पुरानी नहीं है |आज से पांच साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त भी आएगा जब आप कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करेंगे और पैसे भी कमाएंगे |बात चाहे यात्राओं की हो या खान –पान की या फिर फैशन की देश विदेश की बड़ी कम्पनिया ऐसे लोगों को जो इंटरनेट पर ज्यादा फोलोवर रखते हैं अपने प्रोडक्ट के विज्ञापन के लिए पैसे दे रही हैं और उनके खर्चे भी उठा रही हैं | इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं |सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए –नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं |इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना |इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है |अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग  वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया  है | अब वह वक्त जा चुका है जब सेलेब्रेटी स्टेट्स माने के लिए किसी को सालों इन्तजार करना पड़ता था |सोशल मीडिया रातों रात लोगों को सेलिब्रटी बना दे रहा है जिसमें बड़ी भूमिका ,फेसबुक ,इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब जैसी साईट्स निभा रही हैं |

मूल्यांकन सलाहकार फर्म (Valuation Advisory firm  Kroll) क्रोल  की एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारतीय ब्रांड्स ने अपनी इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर खर्च दोगुना कर दिया |पिछले एक साल में एक तिहाई भारतीय ब्रांड्स ने सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स पर अपना खर्च दो गुना कर दिया है | कोरोना महामारी ने बड़ी मात्रा में डिजिटलीकरण को प्रेरित किया , भारत में सोशल मीडिया की कंटेंट क्रियेटर इंडस्ट्री पच्चीस प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है और जिसके साल 2025 में 290|3 मिलीयन डालर हो जाने की उम्मीद है |  सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स   अब ब्रांड को एक बड़े दर्शक वर्ग पर कम खर्च में पहुंचने का एक सुलभ तरीका बन रहा है आज भारत में लगभग 80 मिलियन कॉन्टेंट क्रिएटर हैं, जिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,   इन्फ़्लुएन्सेर्स    और ब्लॉगर्स शामिल हैं। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आई क्यूब्स वायर के  एक शोध से पता चलता है कि लगभग 35 प्रतिशत  ग्राहकों के खरीदारी निर्णय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पोस्ट, रील्स और वीडियो देखकर लिए जा रहे हैं | affable|ai नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित इंफ्लुएंसर मार्केटिंग प्लेटफोर्म के आंकड़ों के अनुसार नैनो- इंफ्लुएंसर, जिनके पास 10,000 से कम फॉलोअर हैं, ने 2022 में इंस्टाग्राम पर सबसे अधिक इंगेजमेंट अर्जित की है |जबकि माइक्रो इंफ्लुएंसर जिनके दस हजार से पचास हजार के बीच फॉलोअर ने इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब पर ज्यादा दर्शक मिले पर उनकी इंगेजमेंट दर कम थी |

सोशल मीडिया यूजर्स अपनी बड़ी फैन फोलोइंग का फ़ायदा “सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर”  के तौर पर उठा रहें और यह एक विज्ञापन के नए माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है| सोशल मीडिया अब आम इंटरनेट यूजर्स को सितारा बना रहा है |

 देश  में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर, व्यक्ति और ब्रांड प्रमोशन का बड़ा औजार  बनकर सामने आया है |  सोशल मीडिया विज्ञापन का एक अपरंपरागत माध्यम  है | जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है |यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम) आदि का इंटरनेट के माध्यम से  उपयोग कर किसी भी नेट कनेक्टेड व्यक्ति तक पहुंच बना सकता है |

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर वह आम व्यक्ति होता है जिसकी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर काफी सारे फोलोवर होते हैं और वह अपनी इस लोकप्रियता का इस्तेमाल  विभिन्न तरह के उत्पाद बेचने में करता है | इसमें रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट दूसरे विज्ञापन  माध्यमों के मुक़ाबले अधिक है| देश के लाखों युवा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को एक करियर के अच्छे विकल्प के रूप में देख रहे हैं | सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जहाँ विज्ञापनों की दुनिया में एक नया आयाम गढ़ रहा है वहीं विज्ञापनों की दुनिया में सेलिब्रेटी स्टेट्स को खत्म भी कर रहा है |जहाँ हमारे आपके बीच के लोग ही स्टार बन रहे है |

भारत में चूँकि अभी इंटरनेट बाजार में पर्याप्त संभावनाएं हैं इसलिए अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का यह दौर चलेगा पर कुछ चिंताएं भी है भारत के इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग को विनियमन की आवश्यकता है ताकि तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण  से बचा जा सके। जनवरी में, भारत के उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने घोषणा की कि ऐसे में ये गाइडलाइंस ग्राहक हितों की रक्षा के लिए जरूरी हैं| सोशल मीडिया पर ऐड्स करने वाले सेलेब्रिटीज़ भी इसके दायरे में होंगे| किसी भी भ्रामक विज्ञापन व  इन्हें नहीं मानने पर इंफ्लूएंसर्स को 10 लाख तक का जुर्माना देना होगा| लगातार अवमानना पर 50 लाख तक जुर्माना देना होगा| साथ ही एंडोर्स करने वाले को 2 से 6 महीने तक किसी भी एंडोर्समेंट करने  से रोका जा सकता है| उस प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने की कार्रवाई भी सम्भव है|

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को आत्म-नियंत्रित करने की आवश्यकता है जिससे वे  नीति निर्माण में भाग ले सकें ताकि इस उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव हो| परम्परागत विज्ञापनों में शामिल खिलाड़ियों और सिने कलाकारों के प्रति लोगों का मोह एकदम से कम तो नहीं हुआ है पर इसकी शुरुआत जरुर हो गयी है |इन दोनों की लड़ाई में कौन जीतेगा इसका फैसला वक्त को करना है|

नवभारत टाईम्स मे 17/04/2023 को प्रकाशित 

Thursday, April 13, 2023

सोशल मीडिया रील्स का बोलबाला


 सोशल  मीडिया साईट्स ने हमारे हमारे जीवन को एक इवेंट में तब्दील करके एक आम इंसान को सेलीब्रेटी होने का एहसास करवाया |जहाँ उसे अपने दैनिक जीवन में होने वाले घटनाक्रम को लोगों के साथ साझा करके अपने ख़ास होने का एहसास हुआ|जहाँ जन्मदिन से लेकर शादी तक सब कुछ भव्य तरीके से साझा किया जा रहा था ,लेकिन फिर भी कुछ कमी थी |हम सेलीब्रेटी जैसा महसूस तो कर रहे थे पर हम सेलेब्रेटी थे नहीं |इस कमी को पूरा किया रील ने. शार्ट वीडियो एप्स की जिस कहानी की शुरुआत टिक टोक से शुरू हुई थी जून 2020 में उसके बैन होने के बाद एक लंबा रास्ता तय कर चुकी है |एम् एक्स शोर्ट विडियोमौज ,जोश ,चिंगारी,मित्रों जैसे एप भी इस दुनिया में तहलका मचाये हुए हैं युवाओं और किशोरों में शोर्ट वीडियो बनाने की सुविधा देने वाली वेबसाईट एप्स की  बढ़ती लोकप्रियता का बड़ा कारण बढ़ती फेक न्यूज की आमद और चारित्रिक हनन की कोशिशों के बीच लोकप्रिय सोशल नेटवर्किंग साईट्स ट्विटर और फेसबुक पर एक सामान्य उपभोक्ता का अनुभव अब उतना सुहाना नहीं रहाजितना आज से कुछ साल पहले रहा करता था |ऐसे में वो उपभोक्ता जो समाचार और राजनीति से इतर कारणों से सोशल मीडिया पर थे एक विकल्प की तलाश में थे जिसकी भरपाई  रील्स   ने बखूबी कर दी |आज हर कोई रील बना रहा है |स्कूल जाते बच्चों से लेकर बड़े फिल्म स्टार्स तक दुनिया के दूसरे सबसे बड़े और सबसे तेजी से बढ़ते इंटरनेट यूजरबेस को होस्ट करने वाले देश में  जहाँ हर कोई कैमरे के सामने सेलेब्रेटी बनना चाहता हैजहाँ फ़िल्में उनके संवाद और गाने  हमारे जीवन में इस हद तक घुसे हुए हैं कि कि उसके बगैर जीवन की कल्पना करना मुश्किल  हैवहां रील्स की सफलता आश्चर्यजनक नहीं है |

2016 में रिलायंस जिओ के लांच के बाद सस्ते डाटा के युद्ध ने इसको भारत में पाँव पसारने का बेहतरीन मौका  दिया कोई भी जिसके पास एक स्मार्ट फोन इंटरनेट कनेक्शन के साथ है अपना नाचता गाता वीडियो अपनी भाषा में  बना सकता  है|जिसमें तस्वीरें शब्द और सुंदर वीडियो इफेक्ट भी आसानी से पिरोये जा सकते हैं|रेड्शीर कंसल्टिंग फर्म की रिपोर्ट एंटरटेनमेंट एंड एडवरटाइजिंग राइडिंग द डिजीटल वेव के अनुसार वीडियो के ये लघु संस्करण फेसबुक और गूगल के बाद दूसरा सबसे बड़ा सेगमेंट है जहाँ लोग सबसे ज्यादा समय बिता रहे हैं |शोर्ट वीडियो बनाने की सुविधा देने वाली वेबसाईट एप्स के यूजर्स की संख्या साल 2025 तक 650 मिलीयन हो जायेगी |इसी रिपोर्ट के अनुसार शार्ट वीडियो एप्स आने वाले वक्त में ओ टी टी वीडियो कंटेंट को भी पछाड़ देगा |

डिजीटल विज्ञापनों की दुनिया में वीडियो के ये लघु संस्करण तेजी से अपनी जगह  बना रहे  हैं |साल 2019  से 2022 के बीच यह सेगमेंट 44  प्रतिशत की रफ़्तार  से बढ़ा |इसका कारण टियर टू शहरों में इंटरनेट का फैलाव है जिसने एक नयी मार्केट पैदा की है जहाँ ब्रांड उपभोक्ता तक सीधे पहुँच बना रहे हैं |लेकिन कुछ सवाल ऐसे भी हैं जिनके जवाब अभी खोजे जाने हैं उसमें पहला मुद्दा निजता का है |टियर टू शहरों  से आने वाले रील वीडियो ज्यादातर लोगों के निजी परिवेश को ही  दिखा रहे हैं |वो कहाँ रहते हैं क्या करते हैं उनके परिवार के सदस्य कौन -कौन हैं |काफी कुछ इनमें दिख जा रहा है |दूसरा मुद्दा है अश्लीलता का अपने रील्स प्लेटफोर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए लोग सॉफ्ट पोर्न और अश्लील चुटकुलों का सहारा ले रहे हैं |दूसरों के कंटेट को एडिट कर के अपना बना लेने की कोशिश यहाँ भी खूब  हो रही है |

अपनी रील में इंटरनेट पर पहले से मौजूद किसी मजाकिया क्लिप का इस्तेमाल करना नैतिकता द्रष्टि से उचित नहीं माना जा सकता है |कोई व्यक्ति रोड क्रास करते वक्त मेन होल में गिर जाता है और उसका फन्नी  वीडियो  किसी शार्ट वीडियो एप की मदद से इंटरनेट पर वायरल हो जाता है और फिर अनंतकाल तक के लिए सुरक्षित भी हो जाता है |क्या वह वीडियो उस व्यक्ति से अनुमति लेकर किसी एप पर डाला गया |जिसको देख कर हम कहकहे लगा रहे हैं |इंटरनेट के फैलाव ने बहुत सी निहायत निजी चीजों को सार्वजनिक कर दिया है|ये सामाजिक द्रष्टि से निजी चीजें जब हमारे चारों ओर बिखरी हों तो हम उन असामान्य परिस्थिति में घटी घटनाओं को भी सार्वजनिक जीवन का हिस्सा मान लेते हैं जिससे एक पर पीड़क समाज का जन्म होता है और शायद यही कारण है कि अब कोई दुर्घटना होने पर लोग मदद करने की बजाय वीडियो बनाने में लग जाते है कि न जाने उस वीडियो का कौन सा हिस्सा क्लिप बन कर हमारे आस -पास घूमने लगे अंत में सबसे बड़ा मुद्दा रील देखने में समय की बरबादी का है जिसमें दर्शक कोल्हू के बैल की तरह चलता तो बहुत है पर पहुंचता कहीं नहीं है |इंटरनेट की दुनिया में बिखरी हुई रील्स में फूहड़ चुटकुले ,दूसरों को तंग करने वाले मजाक का ज्यादा बोल बाला है |आने वाले वक्त में जैसे जैसे इन रील्स के दर्शक समझदार होते जायेंगे इन पर आने वाला कंटेंट भी बेहतर होगा |ऐसी उम्मीद की जा सकती है |

 प्रभात खबर में 13/04/2023 को प्रकाशित 

तकनीकी मदद से पनपते भावनात्मक सम्बन्ध

 

मानव सभ्यता के ज्ञात इतिहास में किसी और चीज ने नहीं बदला है ,यह बदलाव बहु आयामी है बोल चाल  के तौर तरीके से  शुरू हुआ यह सिलसिला  खरीददारी  ,भाषा  साहित्य  और  हमारी अन्य प्रचलित मान्यताएं और परम्पराएँ  सब  अपना रास्ता बदल रहे हैं। यह बदलाव इतना  तेज है कि इसकी नब्ज को पकड़  पाना समाज शास्त्रियों  के लिए भी आसान नहीं है  और  आज इस तेजी  के मूल में एप ( मोबाईल एप्लीकेशन ) जैसी यांत्रिक  चीज  जिसके माध्यम से मोबाईल  फोन में  आपको किसी वेबसाईट को खोलने की जरुरत नहीं पड़ती |आने वाली पीढियां  इस  समाज को एक एप समाज के रूप में याद  करेंगी जब  लोक और लोकाचार  को सबसे  ज्यादा  “एप प्रभावित कर रहा  था |हम हर चीज के लिए बस एक अदद एप की तलाश  करते हैं |जीवन की जरुरी आवश्यकताओं के लिए  यह  “एप तो ठीक  था  पर  जीवन साथी  के चुनाव  और दोस्ती  जैसी भावनात्मक   और  निहायत व्यक्तिगत  जरूरतों   के लिए  दुनिया भर  के डेटिंग एप  निर्माताओं  की निगाह  में भारत सबसे  पसंदीदा जगह बन कर उभर  रहा है | 

उदारीकरण के पश्चात बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और रोजगार की संभावनाएं  बड़े शहरों ज्यादा बढीं ,जड़ों और रिश्तों से कटे ऐसे युवा  भावनात्मक  सम्बल पाने के लिए और ऐसे रिश्ते बनाने में जिसे वो शादी के अंजाम तक पहुंचा सकें  डेटिंग एप का सहारा ले रहे हैं |स्टेइस्टा सर्वे कंपनी के अनुसार इंटरनेट पर जितने लोग एक्टिव हैंउनमें से तीन प्रतिशत फिलहाल ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स या साइट का इस्तेमाल कर रहे हैं. 2025 तक इसकी संख्या बढ़कर 4.3 प्रतिशत हो जाएगी. वर्तमान में भारत में ऑनलाइन डेटिंग सेगमेंट में 53.6 करोड़ डॉलर का कारोबार हो रहा है. यह कारोबार 17. 61 प्रतिशत की सालाना दर से बढ़ रहा है. इन आंकड़ों से भारत में डेटिंग ऐप्स के भविष्य का अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन इस तस्वीर का एक और भी पहलू है |


इन डेटिंग एप से बनने वाले सम्बन्धों की कोई सामाजिक स्वीकृति नहीं रहती | डेटिंग एप से पहले सम्बन्ध साथ पढ़ाई लिखाई करने ,मोहल्ले या फिर साथ कम करते वक्त  की परिधि में बनते थे जिसमें काफी कुछ समानता हुआ करती थी |भले ही ये सम्बन्ध निजता के दायरे में आते थे पर आस -पास के लोगों को इनके बारे में एक अंदाज़ा हुआ करता था |यह अंदाजा बात बिगड़ने की सूरत में एक ढाल का काम किया करता था | श्रद्धा हत्याकांड अपने आप में एक बानगी है कि इंटरनेट की दुनिया में लगातार विचरने वाली युवा पीढी कितनी अकेली होती जा रही है |चैटिंग एप के स्क्रीन शॉट वायरल हो जाने की संभवनाओं के चलते लोग इस पर अनौपचारिक और अन्तरंग चर्चा करने से बचते हैं |मिल जुल के समस्याओं को समझाने का वक्त किसी के पास नहीं है | क्या डेटिंग ऐप्स पर मिले लोगों को एक-दूसरे के बारे में ज्यादातर जानकारी नहीं होती है?

सिर्फ नाम पता और तस्वीर देखकर मुलाक़ात तय कर ली जाती हैं और फिट उन मुलाकातों में जो कुछ दिख रहा है वो कितना असली है |इसकी गारंटी कोई भी नहीं ले सकता क्योंकि डेटिंग एप्स पर आने वाले  लोगों का कोई वेरिफिकेशन नहीं होता है और इसी बिंदु से असली समस्या शुरू होती है |नेटफ्लिक्स पर द टिंडर स्विंडलर वृत्तचित्र एक ऐसी ही सच्ची घटना का प्रस्तुतीकरण है जिसमें एक व्यक्ति अपने इन्स्टाग्राम अकाउंट के जरिये महिलाओं को ठगता है |चूँकि डेटिंग या रिश्ते जैसी चीजें वैसी भी बहुत निजी तरह का मामला होता है फिर उसमें असफलता जैसी चीजें लोग अपने अभिन्न मित्रों से बताने में संकोच करते हैं |सोशल मीडिया और डेटिंग एप जैसा प्लेटफोर्म पर अपनी पीड़ा रखना या मदद मांगना तो दूर की बात है |ऐसे में कोई भी व्यक्ति जो रिश्तों में ईमानदार नहीं है उसका मायाजाल चलता रहता है और उसकी वास्तविकता कभी सबके सामने नहीं आ पाती |

ट्रूली मैडलीवू ,टिनडर,आई क्रश फ्लश और एश्ले मेडिसन ,बम्बल जैसे डेटिंग एप भारत में काफी लोकप्रिय हो रहे हैं जिसमें एश्ले मेडिसन जैसे एप किसी भी तरह की मान्यताओं को नहीं मानते हैं आप विवाहित हों या अविवाहित अगर आप ऑनलाईन किसी तरह की सम्बन्ध की तलाश में हैं तो ये एप आपको भुगतान लेकर सम्बन्ध बनाने के लिए प्रेरित करता है |

हालंकि डेटिंग एप का यह कल्चर अभी मेट्रो और बड़े शहरों  तक सीमित है पर जिस तरह से भारत में स्मार्ट फोन का विस्तार हो रहा है और इंटरनेट हर जगह पहुँच रहा है इनके छोटे शहरों में पहुँचते देर नहीं लगेगी |पर यह डेटिंग संस्कृति भारत में अपने तरह की  कुछ समस्याएं भी लाई है जिसमें सेक्स्युल कल्चर को बढ़ावा देना भी शामिल है |वैश्विक सॉफ्टवेयर एंटी वायरस  कंपनी नॉर्टन बाई सिमेंटेक के अनुसार ऑनलाइन डेटिंग सर्विस एप साइबर अपराधियों का मनपसंद प्लेटफार्म बन चुका है। भारत के लगभग 38 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने कहा कि वह ऑनलाइन डेटिंग एप्स का प्रयोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति  जो मोबाइल में डेटिंग एप रखते हैउनमें से करीब 64 प्रतिशत  महिलाओं और 57 प्रतिशत  पुरुषों ने सुरक्षा संबंधी परेशानियों का सामना किया है। आपको कोई फॉलो कर रहा हैआप की पहचान चोरी होने के डरके साथ-साथ उत्पीड़ित और कैटफिशिंग के शिकार होने का खतरा बरकरार रहता है।

दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 13/04/2023 को प्रकाशित 

 

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