2016 में रिलायंस जिओ के लांच के बाद सस्ते डाटा के युद्ध ने इसको भारत में पाँव पसारने का बेहतरीन मौका दिया | कोई भी जिसके पास एक स्मार्ट फोन इंटरनेट कनेक्शन के साथ है अपना नाचता गाता वीडियो अपनी भाषा में बना सकता है|जिसमें तस्वीरें शब्द और सुंदर वीडियो इफेक्ट भी आसानी से पिरोये जा सकते हैं|रेड्शीर कंसल्टिंग फर्म की रिपोर्ट एंटरटेनमेंट एंड एडवरटाइजिंग राइडिंग द डिजीटल वेव के अनुसार वीडियो के ये लघु संस्करण फेसबुक और गूगल के बाद दूसरा सबसे बड़ा सेगमेंट है जहाँ लोग सबसे ज्यादा समय बिता रहे हैं |शोर्ट वीडियो बनाने की सुविधा देने वाली वेबसाईट एप्स के यूजर्स की संख्या साल 2025 तक 650 मिलीयन हो जायेगी |इसी रिपोर्ट के अनुसार शार्ट वीडियो एप्स आने वाले वक्त में ओ टी टी वीडियो कंटेंट को भी पछाड़ देगा |
डिजीटल विज्ञापनों की दुनिया में वीडियो के ये लघु संस्करण तेजी से अपनी जगह बना रहे हैं |साल 2019 से 2022 के बीच यह सेगमेंट 44 प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ा |इसका कारण टियर टू शहरों में इंटरनेट का फैलाव है जिसने एक नयी मार्केट पैदा की है जहाँ ब्रांड उपभोक्ता तक सीधे पहुँच बना रहे हैं |लेकिन कुछ सवाल ऐसे भी हैं जिनके जवाब अभी खोजे जाने हैं उसमें पहला मुद्दा निजता का है |टियर टू शहरों से आने वाले रील वीडियो ज्यादातर लोगों के निजी परिवेश को ही दिखा रहे हैं |वो कहाँ रहते हैं क्या करते हैं उनके परिवार के सदस्य कौन -कौन हैं |काफी कुछ इनमें दिख जा रहा है |दूसरा मुद्दा है अश्लीलता का अपने रील्स प्लेटफोर्म को लोकप्रिय बनाने के लिए लोग सॉफ्ट पोर्न और अश्लील चुटकुलों का सहारा ले रहे हैं |दूसरों के कंटेट को एडिट कर के अपना बना लेने की कोशिश यहाँ भी खूब हो रही है |
अपनी रील में इंटरनेट पर पहले से मौजूद किसी मजाकिया क्लिप का इस्तेमाल करना नैतिकता द्रष्टि से उचित नहीं माना जा सकता है |कोई व्यक्ति रोड क्रास करते वक्त मेन होल में गिर जाता है और उसका फन्नी वीडियो किसी शार्ट वीडियो एप की मदद से इंटरनेट पर वायरल हो जाता है और फिर अनंतकाल तक के लिए सुरक्षित भी हो जाता है |क्या वह वीडियो उस व्यक्ति से अनुमति लेकर किसी एप पर डाला गया |जिसको देख कर हम कहकहे लगा रहे हैं |इंटरनेट के फैलाव ने बहुत सी निहायत निजी चीजों को सार्वजनिक कर दिया है|ये सामाजिक द्रष्टि से निजी चीजें जब हमारे चारों ओर बिखरी हों तो हम उन असामान्य परिस्थिति में घटी घटनाओं को भी सार्वजनिक जीवन का हिस्सा मान लेते हैं जिससे एक पर पीड़क समाज का जन्म होता है और शायद यही कारण है कि अब कोई दुर्घटना होने पर लोग मदद करने की बजाय वीडियो बनाने में लग जाते है कि न जाने उस वीडियो का कौन सा हिस्सा क्लिप बन कर हमारे आस -पास घूमने लगे | अंत में सबसे बड़ा मुद्दा रील देखने में समय की बरबादी का है जिसमें दर्शक कोल्हू के बैल की तरह चलता तो बहुत है पर पहुंचता कहीं नहीं है |इंटरनेट की दुनिया में बिखरी हुई रील्स में फूहड़ चुटकुले ,दूसरों को तंग करने वाले मजाक का ज्यादा बोल बाला है |आने वाले वक्त में जैसे जैसे इन रील्स के दर्शक समझदार होते जायेंगे इन पर आने वाला कंटेंट भी बेहतर होगा |ऐसी उम्मीद की जा सकती है |
प्रभात खबर में 13/04/2023 को प्रकाशित
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