Thursday, July 20, 2023

नौकरियों का स्वरुप बदल देगा एआइ

 


इंटरनेट का  चरम रूप अब हमारे सामने आर्टिफिशयल इंटेलिजेंसरोबोटिक्स के रूप में सामने आ रहा है |चैट जी पी टी आने से पहले ये माना जा रहा था कि आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस का सामान्य इंसान के लिए प्रयोग अभी दूर की कौड़ी है पर पिछले ६ महीनों में करोडो लोग आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस पर आधारित चैट जी पी टी से जुड़े और निरंतर जुड़ते जा रहे हैं |उससे सूचना प्रौधिगिकी से रोजगारों पर पड़ने वाले असर की चर्चा शुरू हो गयी हैं |आप इसे यूँ समझ सकते हैं रेलवे आरक्षण में कम्प्यूट्रीकृत व्यवस्था से पहले आरक्षित टिकट बुक करने के लिए एक बुकिंग क्लर्क हुआ करता था |जो आरक्षित टिकट जारी करता था लेकिन अब बुकिंग कलर्क की कोई जरुरत ही नहीं अब ये सारा काम मोबाईल एप और वेबसाईट से होता है | जो बुकिंग क्लर्क का पद था वो अब लुप्त हो चुका है |इसलिए अब रेलवे इनकी नियुक्ति नहीं करता है |

आज से तीस साल पहले घटी यह प्रक्रिया इंसान और तकनीक के सहजीवन का उदाहरण बनी पर अब तो हर रोजगार में सिर्फ तकनीक का ही राज है | आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस इस गति को कई सौ गुना तेज कर रहा है |जाहिर है इसका असर नौकरियों पर पड़ने वाला है। इसे लेकर एक ताजा रिपोर्ट सामने आई है। वर्ल्ड इकोनमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट  फ्यूचर आफ जाब्स में भविष्‍य को लेकर कई  नई संभावना जाहिर की गई है। इसके अनुसार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ)मशीन लर्निंग और डाटा सेगमेंट के चलते अगले पांच सालों में देश में 22 प्रतिशत नौकरियों का स्वरूप बदल जाएगा।   वैश्विक स्तर पर नौकरियों में 23 प्रतिशत बदलाव होने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक इस दौरान 6.9 करोड़ नए रोजगार सृजित होंगे जबकि 8.3 करोड़ रोजगारों के खत्म होने की उम्मीद है। इस तरह अगले पांच सालों में दुनिया में एक चौथाई नौकरियां घट सकती हैं। इस दौरान नौकरियों में बढ़ोतरी की दर 10.2 प्रतिशत और गिरावट की दर 12.3 प्रतिशत रह सकती है। 803 कंपनियों के बीच कराए गए सर्वे के माध्यम से इस रिपोर्ट को तैयार किया गया है। जिन कंपनियों को सर्वे में शामिल किया गया हैउनमें 1.13 करोड़ लोग काम करते हैं और ये कंपनियां 27 सेक्टरों का प्रतिनिधित्व करती हैं। ये कंपनियां 45 देशों का प्रतिनिधित्व करती हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस वो तकनीक है जहां आप कंप्यूटर को इंसान की तरह काम करना सिखाते हैंजैसे एपल का सिरीगूगल असिस्टेंट या फिर एमेजन एलेक्सा. यहां आप कंप्यूटर को डाइरेक्ट करते हैं और वो आपके हिसाब से काम करता हैअपने सरलतम रूप मेंएआई को इस तरह से समझा जा सकता है कि उन चीजों को करने के लिए कंप्यूटर का उपयोग किया जाता  है जिनके लिए मानव बुद्धि की आवश्यकता होती है।

ए आई  बाजार पर कब्जा करने के लिए इन दिनों माइक्रोसॉफ्ट के “चैटजीपीटी” और गूगल के “बार्ड” के बीच चल रही प्रतिस्पर्धा इसका एक उदाहरण है | इसे इस तरह समझा जा सकता है एक बैंक में एक आर्टिफिशल इंटेलिजेंस सिस्टम लगाया गया है जो लोगों के द्वारा भेजे गए ईमेल संदेशों को अपने आप जवाब दे देता  है। इससेजो लोग ई मेल का का जवाब देने  के लिए रखे  गए थेवे अधिकांशतः अनुपयोगी हो जायेंगे या उन्हें अपने अंदर कोई नयी स्किल सीखनी होगी जिससे वे बैंक के लिए उपयोगी बने रहें |अब चुनौती यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की वजह से जिनके रोजगार जायेंगे |उनका क्या होगा ?इस बहस के बीच औद्योगिक क्षेत्र में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का  जमकर स्वागत किया जा रहा है इसके पीछे तर्क  यह  है कि इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होगीलागत में कमी आएगी। इंटरनेट के  प्रयोगकर्ताओ के मामले में दुनिया के दूसरे सबसे बड़े देश के सामने कई चुनौतियां है |जैसे  कि देश की शिक्षा व्यवस्था अभी इस तकनीक के साथ कदमताल करने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दौर में तकनीकी तौर पर दक्ष युवा तैयार करने के लिए देश  को अपनी शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम के साथ-साथ शिक्षकों में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। लेकिन इतना तय है कि आने वाले समय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का हर औद्योगिक सेक्टर में तेजी से उपयोग बढ़ने वाला है।

प्रभात खबर में 20/07/2023 को प्रकाशित 

Monday, July 10, 2023

आपका डाटा कितना सुरक्षित है

 

देश में  व्यक्तिगत डेटा और निजता की सुरक्षा को लेकर कानून की आवश्यकता की मांग लम्बे समय से चली  आ रही है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक ने बुधवार को डिजिटल व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक को मंजूरी दे दी। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार 20 जुलाई से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में इस विधेयक को कानून की शक्ल दे सकती है|भारत आंकड़ों की सुरक्षा के मुद्दे पर यूरोप और अमेरिका से काफी पीछे चल रहा है |डाटा संरक्षण और गोपनीयता पर यूरोप में 2018 से ही लागू है लेकिन इंटरनेट जिस तेजी से दुनिया बदल रहा है |उससे नया बहुत जल्दी पुराना होता जा रहा है कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकी आधारित भाषा मोडल के बढ़ते इस्तेमाल ने भारत में आ रहे व्यक्तिगत डेटा और निजता सुरक्षा कानून में कई अन्य नए मुद्दों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है क्योंकि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकी आधारित भाषा मोडल में  मुख्य भूमिका इंटरनेट पर उपलब्ध डाटा की ही  है |

उसे जितने तरह के डाटा मिलेंगे उन्ही से सीख कर इस तरह के प्लेटफोर्म के जवाबों की सटीकता बढ़ती जायेगी |चैट जी पी टी और ओपन ए आई के चैट जी पी टी की बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने आंकड़ों के खेल को और ज्यादा दिलचस्प बना दिया है |ध्यान रहे कि भारत इंटरनेट का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है |इसी बीचगूगल ने अपनी गोपनीयता नीति में परिवर्तन किए हैंजिससे  यह स्पष्ट हो जाता है कि वह  सब कुछ रख सकता है जो कुछ भी हम ऑनलाइन डालते हैंताकि वह अपनी कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकियों को ज्यादा  बेहतर तरीके से विकसित कर सके। इसका सीधा अर्थ है कि गूगल हर उस सामाग्री को पढ़ने में सक्षम है जो आपने गूगल के किसी उत्पाद पर पोस्ट की है और  वह सारी  सामाग्री  अब कंपनी की संपत्ति हैं और उन सारी सामाग्रियों को वह एक चैटबॉट को भी भेज  रही है संशोधित गूगल नीति में यह साफ़ बताया  गया है कि "गूगल जानकारी का उपयोग अपनी  सेवाओं को सुधारने और नए उत्पादोंसुविधाओं और प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिए करता है जो उसके  उपयोगकर्ताओं और सार्वजनिक कल्याण के लिए फायदेमंद होते हैं। यह नीति आगे बताती है कि वे (गूगल )सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का उपयोग  एआई मॉडल्स को प्रशिक्षित करने और गूगल ट्रांसलेटबार्ड और क्लाउड एआई क्षमताओं से लैस जैसे उत्पादों और सुविधाओं को बेहतर  बनाने में मदद कर सकें |गूगल अपनी प्राइवेसी पॉलिसी को समय समय पर परिवर्तित करता रहता है|यह वाक्यांश स्पष्ट करता है कि इंटरनेट की दिग्गज कम्पनी के  एआई सिस्टम अपनी पिछली नीति में संशोधन करते हुए आपके ऑनलाइन पोस्ट किये गए विचारों का उपयोग कर सकते हैं। यह नया वाक्यांश हमें बताता है कि पिछली नीति में जहाँ ऑनलाइन पोस्ट की गयी सामाग्री का उपयोग केवल गूगल  अनुवादबार्ड और क्लाउड AI के लिए ही था  लेकिन अब यह उल्लेख किया गया है कि डेटा का उपयोग AI मॉडल के बजाय भाषा मॉडल के लिए किया जाएगा। गोपनीयता नीति में यह प्रावधान थोड़े विचित्र  है। आमतौर पर ये नीतियाँ बताती हैं कि कोई  कंपनी आपके द्वारा ऑनलाइन पोस्ट किये  गए  डाटा का उपयोग कैसे करती है। पर इस मामले में ऐसा लगता है कि गूगल को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डाटा को इकट्ठा करने और उसका उपयोग कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) परीक्षण क्षेत्र में करने का एकाधिकार मिला हुआ है |

यद्यपि नीति कई मामलों को स्पष्ट करती हैलेकिन यह कुछ रोचक  सवाल भी  उठाती है। जब हम इंटरनेट पर कुछ पोस्ट या लेखन करने के लिए सक्रिय होते हैं, , तो हम ये मानकर चलते हैं कि जो कुछ सार्वजनिक रूप से पोस्ट होता हैवही सार्वजनिक रूप से उपलब्ध भी होता है। लेकिन अब  हमें यह भी समझना होगा कि प्रश्न  केवल एक सार्वजनिक पोस्ट के बारे में नहीं हैबल्कि यह है  कि ऑनलाइन कुछ भी लिखने का क्या अर्थ है। अब यह भी संभव है कि आपके द्वारा दस  साल की उम्र में लिखी गई लंबे समय से भूला दी गयी कोई  ब्लॉग पोस्ट या शायद आपके द्वारा दिए गए किसी  रेस्टोरेंट  की  समीक्षा का इस्तेमाल  भी बार्ड और चैट जीपीटी जैसे बड़े AI मॉडल  भाषा मॉडल्स को विकसित करने में किया जा रहा हो |

अब यहाँ ये पश्न उठना भी लाजिमी है कि ये मॉडल अपनी जानकारी कहां से प्राप्त करते हैं। इसका जवाब ये है कि गूगल के बार्ड या ओपनएआई के चैटजीपीटी ने अपनी भाषा मॉडल्स को प्रशिक्षित करने के लिए इंटरनेट पर ऑनलाईन पोस्ट की गयी  विशाल सामाग्री का इस्तेमाल  किया है। लेकिन  अभी भी स्पष्ट नहीं है कि ऐसी प्रक्रिया  कानूनी है या नहींऔर इस सामाग्री पर कॉपी राईट किसका होगा |यहाँ एक और महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) प्रौद्योगिकी आधारित भाषा मोडल के सारे जवाब किसी न किसी साहित्यिक चोरी से निकले हैं |ऐसे बहुत से सारे सवालों के जवाब अभी दिए जाने हैं उम्मीद की जानी चाहिए कि व्यक्तिगत डेटा और निजता कानून में इन मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाएगा |

अमर उजाला में 10/07/2023 को प्रकाशित 

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