पेट्रोल डीजल और कोयला ऊर्जा के मुख्य श्रोत हैं अगर देश के विकास को गति देनी है तो आधारभूत अवस्थापना में निवेश करना ही पड़ेगा और इसमें बड़े पैमाने पर निर्माण भी शामिल है निर्माण के लिए ऊर्जा संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेट्रोल डीजल और कोयला आसान विकल्प पड़ता है दूसरी और निर्माण कार्य के लिए बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटान और पक्के निर्माण भी किये जाते हैं जिससे पेट्रोल डीजल और कोयला के जलने से निकला धुंआ वातावरण को प्रदूषित करता है .
ऊर्जा के अन्य गैर परम्परा गत विकल्पों में सौर उर्जा और परमाणु ऊर्जा महंगी है और इनके इस्तेमाल में भारत काफी पीछे है .पर्यावरण की समस्या देश में भ्रष्टाचार की तरह हो गयी है जानते सभी है पर कोई ठोस कदम न उठाये जाने से सब इसे अपनी नियति मान चुके है .हर साल स्मोग़ की समस्या से दिल्ली और उसके आस –पास इलाके जूझते हैं. टाटा सेंटर फॉर डेवलपमेंट के सहयोग से क्लाइमेट इम्पैक्ट लैब शिकागो की रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2100 तक, जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में हर साल लगभग पंद्रह लाख से अधिक लोग मर सकते हैं . इसका असर सबसे अधिक छह राज्य में होगा .
इस रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश ,और महाराष्ट्र देश में
जलवायु परिवर्तन से होने वाली कुल मौतों का 64 प्रतिशत से ज्यादा का योगदान देंगे . पर्यावरण एक चक्रीय व्यवस्था है। अगर इसमें कोई कड़ी टूटती है, तो पूरा चक्र प्रभावित होता है। पर विकास और प्रगति
के फेर में हमने इस चक्र की कई कड़ियों से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया है। पूंजीवाद
के इस युग में कोई चीज मुफ्त में नहीं मिलती, इस सामान्य ज्ञान को हम प्रकृति के साथ जोड़कर न देख सके, जिसका नतीजा धरती पर अत्यधिक बोझ के रूप में सामने है.
दुर्भाग्य से भारत में विकास की जो
अवधारणा लोगों के मन में है उसमें प्रकृति कहीं भी नहीं है,हालाँकि हमारी विकास की अवधारणा पश्चिम की विकास सम्बन्धी अवधारणा की
ही नकल है पर स्वच्छ पर्यावरण के प्रति जो उनकी जागरूकता है उसका अंश मात्र भी
हमारी विकास के प्रति जो दीवानगी है उसमें नहीं दिखती है .
एक हीट-वेव या प्रदूषण की समस्या को केवल एक आपदा या सार्वजनिक स्वास्थ्य
समस्या के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि
होना यह चाहिए कि इसे समाज के अलग-अलग क्षेत्रों जैसे श्रम, पेयजल, कृषि और बिजली के विभागों के लिए भी
चिंता का विषय होना चाहिए .
No comments:
Post a Comment