Saturday, June 22, 2024

बच्चों को कब देना चाहिए फोन

 स्मार्टफोन ने एक चक्र पूरा कर लिया है .अब समय है इस मुद्दे पर चर्चा की जानी चाहिए कि हमारे बच्चों को इसकी कितनी जरुरत है |दुर्भाग्य से भारत में इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है |फर्ज़ करिये अगर आपकी 10 साल की बेटी को मंगल ग्रह की पहली मानव बस्ती में शामिल होने के लिए चुना जाएऔर वह जाने के लिए पूरी तरह तैयार है...तभी आपको पता चले कि इस मिशन के अरबपति आर्किटेक्ट ने उस लाल ग्रह के जहरीले वातावरण को नजरअंदाज किया है,,,,जिसमें बच्चों के 'कंकाल,दिल,आँखें और दिमाग में विकृतियाँहोने की संभावनाएं शामिल हैं.तो क्या आप अपनी बेटी को इस मिशन पर जाने देंगे ?जौनाथन हैड्ट ने अपनी किताब "द ऐंगक्शस जेनरेशन" की शुरुआत इसी उदाहरण के साथ की हैजिसे ब्लैक मिरर कहा गया है. इस उदाहरण में मंगल ग्रह को सोशल मीडिया की खतरनाक दुनिया का प्रतीक माना गया है|कॉमन सेंस मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 10 साल की उम्र में आज 42 प्रतिशत बच्चों के पास स्मार्टफोन है. 12 साल की उम्र तक यह 71 प्रतिशत तक पहुंच जाता है और 14 की उम्र तक 91 प्रतिशत बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन होता है|इस डिजिटल दुनिया ने हमारे युवाओं में चिंता,डिप्रेशन और आत्महत्या जैसी विकृतियों से भर दिया है। 2000 के 2010 के दशक की शुरुआत तकहाई स्पीड इंटरनेट और सोशल मीडिया ऐप्स से लैस स्मार्टफोन हर तरफ फैल गये।भारत भी इसमें अपवाद नहीं है |दुनिया में दुसरे नम्बर पर सबसे ज्यादा मोबाईल धारकों वाले देश में बच्चे मोबाईल के साथ क्या कर रहे हैं|इसकी चिंता किसी को नहीं है |

मोबाइल फोन की घंटी  एक  नशे की लत की तरह हैलगातार बच्चों का ध्यान भटकाती है और बच्चों को उस दुनिया में ले जाती है जो हमारे नियंत्रण से बाहर है।बच्चों के ध्यान भटकाने के लिए सिर्फ फोन ही नहींबल्कि असली(रीयल)  खेल आधारित बचपन का खत्म हो जाना भी एक बड़ा कारण है|भारत में यह बदलाव २००० के दशक से  शुरु हुआ जब अभिभावकों ने अपने बच्चों की किडनैपिंग और अनजान खतरों से बचाने के लिए भय आधारित पैरंटिंग करना शुरू कर दिया जिसका परिणाम हुआ  कि बच्चों के अपने खेलने का समय घटता चला गया और उनकी गतिविधियों पर माता पिता का नियंत्रण बढ़ गया।इसका दूसरा बड़ा कारण शहरों में खेल के मैदानों का खत्म हो जाना भी है |अनियोजित शहरीकरण ने बच्चों के खेलने की जगह खत्म कर दी |इसका असर बच्चों के मोबाईल स्क्रीन में खो जाने में हुआ |

आज के बच्चे और उनके माता-पिता एक तरह के डिफेंस मोड में फंसे हुए हैंजिससे बच्चे चुनौतियों का सामना करनेजोखिम उठाने और नई चीजें एक्सप्लोर करने से वंचित रह जाते हैंजो उनको  मानसिक रूप से मजबूत करने और आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी है।यहाँ एक विरोधाभास है असल में माता-पिता को अपने बच्चों को वैसी ही परिस्थितियाँ देनी चाहिए जैसे  एक माली अपने पौधों को स्वाभाविक रूप से बढ़ने और विकसित होने के लिए देता हैपर यहाँ अभिभावक हम अपने बच्चों को एक बढ़ई की तरहबड़ा कर रहे हैं जो अपने सांचों को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में आकार देता है। असली  दुनिया में हम अपने बच्चों को अधिक सुरक्षा प्रदान करते हैं लेकिन डिजिटल दुनिया में उन्हें अपने हाल पर छोड़ देते हैं,जो कि उनके लिए खतरनाक साबित हो रहा है। स्मार्टफोन और अत्याधिक सुरक्षात्मक पालन पोषण के इस मिश्रण ने बचपन की संरचना को बदल दिया है और नई मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दिया है। जिनमें जीवन के प्रति असुरक्षा कम नींद आना और नशे की लत शामिल हैं। 

तथ्य यह भी है कि हम सभी ने बहुत लंबे समय तक बिना फोन के और बिना माता-पिता से त्वरित संपर्क कियेठीक ठाक जीवन जीया और काम किया है |।संयुक्त राष्ट्र की शिक्षाविज्ञान और संस्कृति एजेंसी यूनेस्को ने कहा कि इस बात के प्रमाण मिले हैं कि मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग शैक्षणिक प्रदर्शन में कमी से जुड़ा है तथा स्क्रीन के अधिक समय का बच्चों की भावनात्मक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।यूनेस्को ने अपनी 2023 ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटर रिपोर्ट में कहा कि डिजिटल तकनीक ने शिक्षा में स्वाभाविक रूप से मूल्य जोड़ा हैयह प्रदर्शित करने के लिए बहुत कम मजबूत शोध हुए हैं। अधिकांश साक्ष्य निजी शिक्षा कंपनियों द्वारा वित्त पोषित थे जो डिजिटल शिक्षण उत्पाद बेचने की कोशिश कर रही थीं। इसने कहा कि दुनिया भर में शिक्षा नीति पर उनका बढ़ता प्रभाव "चिंता का कारण" है।

इस रिपोर्ट में  चीन का हवाला दिया गया  है जिसने कहा कि उसने शिक्षण उपकरण के रूप में डिजिटल उपकरणों के उपयोग के लिए सीमाएँ निर्धारित की हैंउन्हें कुल शिक्षण समय के 30 प्रतिशत  तक सीमित कर दिया हैऔर छात्रों से नियमित रूप से स्क्रीन ब्रेक लेने की अपेक्षा की जाती है|फोन लोगों में सीखने की क्षमता को भी कर सकते हैंकई अध्ययनों में पाया गया कि स्कूल में फोन का इस्तेमाल एकाग्रता को कम करता हैऔर फोन का इस्तेमाल सिर्फ उपयोगकर्ता को ही नहीं प्रभावित करता। इसके लिए फोन फ्री स्कूल आन्दोलन  की संस्थापक साबिने पोलाक ने  सेकेंड "हैंड स्मोक" टर्म इजाद किया है। जिस तरह किसी व्यक्ति के द्वारा छोड़ा गया सिगरेट का धुआं पास खड़े व्यक्ति को नुकसान पहुँचाता हैउसी तरह भले किसी छात्र के पास फोन न होवो फिर भी क्लास में दूसरों द्वारा फोन के इस्तेमाल किये जाने से प्रभावित होता है। वहीं यह उपकरण शिक्षकों के लिए भी तनावपूर्ण होते हैं|भारत में इस दिशा में अभी तक कोई ठोस पहल न होना चिना का विषय है |

इसके कई कारण भी है जिसमें तकनीक का अचानक हमारे जीवन में आना और छा जाना भी शामिल हैजहाँ माता पिता और उनके बेटे बेटियाँ एक साथ मोबाइल फोन चलाना सीख रहे हैं |इस समस्या से बचने के प्रमुख तरीकों कि वे अपने बच्चों को स्मार्टफोन देने में देरी करें और स्कूल इस निर्णय में उनका समर्थन करें। अपने बच्चों पर नजर रखने के लिए माता-पिता फ्लिप फोनस्मार्ट वॉचट्रैकिंग डिवाइसेस जैसे उपकरणों की मदद ले सकते हैं। नैतिक शिक्षा जैसे विषयों में फोन और सोशल मीडिया का इस्तेमाल ,अपनी निजता कैसे बचाएं,साइबर बुलींग  जैसे विषयों को जोड़ा जाना आवश्यक है |अब बच्चों को जीवन जीने के तौर तरीके  सिखाने के साथ मोबाईल मैनर भी सिखाये जाएँ |

नवभारत टाईम्स में 22/06/2024 को प्रकाशित 

Tuesday, June 18, 2024

गर्मियों को सुहाना बनायें

 

बचपन में अक्सर मैं सोचा करता था छुट्टियाँ इतनी कम क्यों होती हैं सुख के दिन जल्दी बीत जाते हैं. ऐसा लगता है पर दिन तो अपने समय के हिसाब से ही बीतता है. ये बात अलग है कि हमें पता नहीं पड़ता.अरे भाई गर्मी का मौसम उफान पर है. अपने हिसाब से बीतेगा पर हम हैं कि इंतज़ार नहीं कर पा रहें और ऐसे में  आप सबको जाड़ा जरुर याद आ रहा होगा. जो जब था तब हम कहते थे कि बहुत ठण्ड पड़ रही है. इंसान भी अजीब जीव होता है जब जो चीज चल रही होती है उसका लुत्फ़ उठा नहीं पाता और उसके जाने के बाद उसको याद करता है. बीते समय की यादें दिल को गर्माहट दे जाती हैं तो गर्मी के इस मौसम में शरीर और दिमाग को ठंडा रखिये पर दिल को गर्म रखिये. उन रिश्तों के लिए जो आपकी यादों में हैं और ये हम नहीं कह रहे बल्कि  इमोशन पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में यह निष्कर्ष निकला है कि यादें हमारे दिल को गर्मी देती हैं.याद से याद आया गर्मी की शाम बड़ी सुहानी होती हैं क्योंकि दिन बड़े और रात छोटी होती है. 
इसलिए दिन को महसूस करने का मौका मिलता है.नहीं समझे भाई मौसम कोई भी  हो उनके  साथ हमारी कोई ना कोई यादें जरुर जुडी होती हैं. वही यादें जो  कभी गर्मी में सर्दी का एहसास  कराती हैं तो  कभी सर्दी में गर्मी का भाई सारा खेल एहसास का है,क्योंकि बातें भूल जाती हैं यादें याद आती हैं.अब जब बात याद की चाल पडी है तो आइये समझे याद के इस फलसफे को हम सब अपने जीवन  में कितना कुछ देखते हैं, महसूस करते हैं, पर यादें तो वही बनती है, जिन्हें हम याद रखना रखना चाहते हैं.कुछ चीजें हम कभी भूल नहीं पाते पहला स्कूल ,पहला दोस्त पहला प्यार. जानते हैं क्यों ?ये वो लम्हे होते हैं.जो हमें हमारे होने का एहसास कराते  हैं.जिंदगी तो आगे बढ़ने का नाम है.लेकिन  बहुत कुछ पीछे छूट जाता है इस आगे बढ़ने के चक्कर मेंअच्छा आप मेरी बात पर ध्यान मत दीजिए जरा सोचिये आप गर्मी से परेशान हैं पर पिछली जितनी गर्मियां आपने देखी हैं और उससे परेशान भी  हुए हैं पर उसके साथ आपकी कोई ना कोई याद जुडी होगी. 
हर साल जब गर्मी पड़ती है तब हम सब भूल कर बस ये चाहते हैं कि ये गर्मियां जल्दी खत्म  हों पर रिश्तों में आयी ये गर्मी जाड़ा आपको दे जाता है. जिसका फायदा हम गर्मियों में उठाते हैं क्योंकि जाड़े की ठण्ड ने आपको गर्मी की अहमियत समझा दी होती है. गर्मी जल्दी खत्म हो जायेगी तो आपके यादों के खजाने भर ही नहीं पायेंगे फिर आने वाले जाड़े को किस तरह झेलेंगे.वक्त है बीत ही जाता है पर यादें जरुर दे जाता है अब इन यादों को आप नहीं सहेंजेंगे तो सोचिये आपका जीवन कितना सूना सूना बीतेगा तो गर्मी के इस मौसम में अपनी यादों को सहेजिये और कुछ ऐसा कीजिये कि जीवन में ढेर सारी यादें जुड जाएँ.किसी दोस्त से बगैर किसी काम से मिलने चले जाएँ.उसे बताएं कि वो आपके लिए कितना जरूरी है . वैसे भी गर्मियों में जल्दी नींद किसे आती है.अगर आप अपने दोस्त को डिस्टर्ब नहीं करना चाहते तो लेट नाईट ई मेल या एस एम् एस कर दीजिए.तो इन्तजार किस बात का है इन गर्मियों को थोड़ा और सुहाना बनाते हैं .


प्रभात खबर में 18/06/2024 को प्रकाशित 


Saturday, June 8, 2024

सितारे हमारे आपके बीच के लोग

 बात ज्यादा पुरानी नहीं है |आज से पांच साल पहले किसी ने नहीं सोचा था कि एक ऐसा वक्त भी आएगा जब आप कुछ न करते हुए भी बहुत कुछ करेंगे और पैसे भी कमाएंगे |बात चाहे यात्राओं की हो या खान –पान की या फिर फैशन की देश विदेश की बड़ी कम्पनिया ऐसे लोगों को जो इंटरनेट पर ज्यादा फोलोवर रखते हैं अपने प्रोडक्ट के विज्ञापन के लिए पैसे दे रही हैं और उनके खर्चे भी उठा रही हैं इंटरनेट की दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण बात है इसकी गतिशीलता नया बहुत जल्दी पुराना हो जाता है और नई संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं |सोशल मीडिया प्लेटफोर्म नित नए रूप बदल रहे हैं उसमें नए –नए फीचर्स जोड़े जा रहे हैं |इस सारी कवायद का मतलब ऑडिएंस को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक अपने प्लेटफोर्म से जोड़े रखना |इसका बड़ा कारण इंटरनेट द्वारा पैदा हो रही आय भी है |अब सोशल मीडिया इतना तेज़ और जन-सामान्य का संचार माध्यम बन गया कि इसने हर उस व्यक्ति को जिसके पास स्मार्ट फोन है और सोशल मीडिया पर उसकी एक बड़ी फैन फोलोविंग  वह एक चलता फिरता मीडिया हाउस बन गया  है अब वह वक्त जा चुका है जब सेलेब्रेटी स्टेट्स माने के लिए किसी को सालों इन्तजार करना पड़ता था |सोशल मीडिया रातों रात लोगों को सेलिब्रटी बना दे रहा है जिसमें बड़ी भूमिका ,फेसबुक ,इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब जैसी साईट्स निभा रही हैं |मूल्यांकन सलाहकार फर्म (Valuation Advisory firm  Kroll) क्रोल  की एक नवीन रिपोर्ट के अनुसार एक साल में भारतीय ब्रांड्स ने अपनी इन्फ़्लुएन्सर मार्केटिंग पर खर्च दोगुना कर दिया |पिछले एक साल में एक तिहाई भारतीय ब्रांड्स ने सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स पर अपना खर्च दो गुना कर दिया है कोरोना महामारी ने बड़ी मात्रा में डिजिटलीकरण को प्रेरित किया भारत में सोशल मीडिया की कंटेंट क्रियेटर इंडस्ट्री पच्चीस प्रतिशत की रफ़्तार से बढ़ रही है और जिसके साल 2025 में 290|3 मिलीयन डालर हो जाने की उम्मीद है |  

सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सेर्स   अब ब्रांड को एक बड़े दर्शक वर्ग पर कम खर्च में पहुंचने का एक सुलभ तरीका बन रहा है आज भारत में लगभग 80 मिलियन कॉन्टेंट क्रिएटर हैंजिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,   इन्फ़्लुएन्सेर्स    और ब्लॉगर्स शामिल हैं। डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आई क्यूब्स वायर के  एक शोध से पता चलता है कि लगभग 35 प्रतिशत  ग्राहकों के खरीदारी निर्णय सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर पोस्टरील्स और वीडियो देखकर लिए जा रहे हैं | affable|ai नामक एक कृत्रिम बुद्धिमत्ता-संचालित इंफ्लुएंसर मार्केटिंग प्लेटफोर्म के आंकड़ों के अनुसार नैनो- इंफ्लुएंसरजिनके पास 10,000 से कम फॉलोअर हैंने 2022 में इंस्टाग्राम पर सबसे अधिक इंगेजमेंट अर्जित की है |जबकि माइक्रो इंफ्लुएंसर जिनके दस हजार से पचास हजार के बीच फॉलोअर ने इन्स्टाग्राम और यू ट्यूब पर ज्यादा दर्शक मिले पर उनकी इंगेजमेंट दर कम थी |सोशल मीडिया यूजर्स अपनी बड़ी फैन फोलोइंग का फ़ायदा “सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर”  के तौर पर उठा रहें और यह एक विज्ञापन के नए माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा हैसोशल मीडिया अब आम इंटरनेट यूजर्स को सितारा बना रहा है | देश  में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरव्यक्ति और ब्रांड प्रमोशन का बड़ा औजार  बनकर सामने आया है |  सोशल मीडिया विज्ञापन का एक अपरंपरागत माध्यम  है जो बाकी सारे मीडिया (प्रिंटइलेक्ट्रॉनिक और समानांतर मीडिया) से अलग है |यह एक वर्चुअल वर्ल्ड बनाता है जिसे उपयोग करने वाला व्यक्ति सोशल मीडिया के किसी प्लेटफॉर्म (फेसबुकट्विटरइंस्टाग्राम) आदि का इंटरनेट के माध्यम से  उपयोग कर किसी भी नेट कनेक्टेड व्यक्ति तक पहुंच बना सकता है |

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर वह आम व्यक्ति होता है जिसकी विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफोर्म पर काफी सारे फोलोवर होते हैं और वह अपनी इस लोकप्रियता का इस्तेमाल  विभिन्न तरह के उत्पाद बेचने में करता है इसमें रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट दूसरे विज्ञापन  माध्यमों के मुक़ाबले अधिक हैदेश के लाखों युवा सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को एक करियर के अच्छे विकल्प के रूप में देख रहे हैं सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर जहाँ विज्ञापनों की दुनिया में एक नया आयाम गढ़ रहा है वहीं विज्ञापनों की दुनिया में सेलिब्रेटी स्टेट्स को खत्म भी कर रहा है |जहाँ हमारे आपके बीच के लोग ही स्टार बन रहे है |

भारत में चूँकि अभी इंटरनेट बाजार में पर्याप्त संभावनाएं हैं इसलिए अभी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का यह दौर चलेगा पर कुछ चिंताएं भी है भारत के इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग उद्योग को विनियमन की आवश्यकता है ताकि तथ्यों के गलत प्रस्तुतीकरण  से बचा जा सके। जनवरी 2023 मेंभारत के उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने घोषणा की कि ऐसे में ये गाइडलाइंस ग्राहक हितों की रक्षा के लिए जरूरी हैंसोशल मीडिया पर ऐड्स करने वाले सेलेब्रिटीज़ भी इसके दायरे में होंगेकिसी भी भ्रामक विज्ञापन व  इन्हें नहीं मानने पर इंफ्लूएंसर्स को 10 लाख तक का जुर्माना देना होगालगातार अवमानना पर 50 लाख तक जुर्माना देना होगासाथ ही एंडोर्स करने वाले को से महीने तक किसी भी एंडोर्समेंट करने  से रोका जा सकता हैउस प्लेटफॉर्म को ब्लॉक करने की कार्रवाई भी सम्भव है|

सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर को आत्म-नियंत्रित करने की आवश्यकता है जिससे वे  नीति निर्माण में भाग ले सकें ताकि इस उद्योग पर सकारात्मक प्रभाव होपरम्परागत विज्ञापनों में शामिल खिलाड़ियों और सिने कलाकारों के प्रति लोगों का मोह एकदम से कम तो नहीं हुआ है पर इसकी शुरुआत जरुर हो गयी है |इन दोनों की लड़ाई में कौन जीतेगा इसका फैसला वक्त को करना है|

अमर उजाला में 08/06/2024 को प्रकाशित लेख 

Friday, June 7, 2024

एआइ जनित हमलों से सतर्कता

 ए आई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) के आने से प्रोफेशनल हैकर और शौकिया  हैकर के बीच का दायरा काफी सिमटा है और इंटरनेट का कोई भी दायरा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की पहुँच से अब दूर नहीं रहा है |इन्हीं में से ताजा मामला फिशिंग ई मेल्स से जुड़ा है|फ़िशिंग एक प्रकार का कम्प्यूटरीकृत हमला है जिसका उपयोग अक्सर उपयोगकर्ता का डेटा चुराने के लिए किया जाता हैजिसमें लॉगिन क्रेडेंशियल और क्रेडिट कार्ड नंबर शामिल हैं। यह तब होता हैजब एक साइबर अपराधी या हैकरएक विश्वसनीय संस्था का रूप धारण किये हुए लिंक को  किसी व्यक्ति के  ईमेलव्हाट्स एप संदेश  या टेक्स्ट संदेश को  खोलने के लिए उकसाता  है।जैसे ही वह व्यक्ति ऐसा करता है उसकी गोपनीय जानकारियां या धन उस साइबर अपराधी या हैकर तक पहुँच जाता है अमेरिका स्थित ईमेल सिक्योरिटी  कंपनी अब्नॉर्मल सिक्यूरिटी ने कहा कि उन्होंने अपने ग्राहकों के ई मेल में जनरेटिव एआई प्लेटफ़ॉर्मों से निर्मित  फिशिंग ईमेल देखे हैं। ये मेसेज  बहुत कुशलता  से बनाए गए हैं और एकदम असली  लगते हैं जिससे उन्हें पहली नजर में पता लगाना कठिन होता है |कोई जब ऐसे ई मेल देखता है तो उसे कहीं से भी ऐसा नहीं लगता है कि यह एक फिशिंग हमला हो सकता है |

वर्षों सेफिशिंग ईमेल्स की पहचान के लिए लोगों को चेताया जाता रहा है कि सबसे पहले  इ मेल की भाषा देखें|अक्सर ये तरीका काम भी करता था |कॉर्पोरेट प्रशिक्षण कार्यक्रमों ने कर्मचारियों को चेतावनी भी दी जाती  है कि वे फिशिंग ई मेल्स की पहचान के लिए वर्तनी की गलतियोंगलत  व्याकरण और अन्य त्रुटियों की खोज करने के लिए सतर्क रहेंजो ऐसे  लोगों के लिए सामान्य होती हैं जिनकी  अंग्रेजी संचार की पहली भाषा नहीं है या वे लोग कम पढ़े लिखे होते हैं ।लेकिन अब जनरेटिव एआई टूल्सजिसमें ओपनएआई  का लोकप्रिय  चैटजीपीटी भी शामिल हैऐसे ई मेल में  वर्तनी की गलतियों और अन्य त्रुटियों  को पलक झपकते ही  ठीक कर सकते हैं। इससे शौकिया हैकर्स के हाथों में भीएआई अब एक प्रभावी खतरा बन गया है क्योंकि अब ऐसे फिशिंग ई मेल्स जनरेटिव एआई टूल्स की मदद से  निहायत ही व्यक्तिगत ई मेल बनाये जा सकते हैं |

सोशल मीडिया के अधिक इस्तेमाल और अपनी निजता की परवाह न करने के कारण लोग अपनी बहुत सी जानकारियाँ इंटरनेट पर साझा करते रहते हैं |ऐसे में जिन लोगों को फिशिंग मेल्स किया जा रहा हैजनरेटिव एआई टूल्स  की मदद से उनके सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा का विश्लेषण करते हुए कुछ ही सेकंड में निहायत  व्यक्तिगत ईमेल बनाया जा सकता है |

यह  एक बड़े खतरे की आहट है |आपको अचानक एक ऐसा ई मेल दिखेगा जो आपकी पत्नी  या किसी करीबी दोस्त  से आ रहा है। उसके लिखने की शैली बात चीत के मुद्दे सब असली जैसे लगेंगे पर वे असली होंगे नहीं |वे ये जानते हैं कि आपका सबसे अच्छा दोस्त कौन हैऔर वो आपको कैसे मेल लिखता है ऐसा इसलिए हो रहा है कि बड़े भाषा मॉडल्स जैसे कि चैटजीपीटी और गूगल का बार्डमानवों की तरह भाषा को समझते नहीं हैंलेकिन वे वाक्य संरचनासाहित्यिक शैली और स्लैंग कैसे काम करते हैंइसका विश्लेषण कर सकते हैं|अपनी इसी विश्लेषण क्षमता के आधार पर वे कभी-कभी तो  अद्वितीय सटीकता के साथ कोई दोस्त या पति अपने मेल में क्या  लिखेगा या लिख सकता है का पूर्वानुमान लगा सकते हैं |

बड़े भाषा मॉडल (LLMs) प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण कंप्यूटर प्रोग्राम होते हैं जो कृत्रिम न्यूरल नेटवर्क का उपयोग करके ए आई द्वारा निर्मित टेक्स्ट  बनाने में  सहायक होते हैं।ये टेक्स्ट अक्सर   सोशल मीडियासमाचार साइटोंइंटरनेट फोरम्स और अन्य स्रोतों से एकत्रित किया जा  सकते हैं फिर इस टेक्स्ट सामाग्री को हैकर्स अपने हिसाब से अनुकूलित कर सकते हैं जिसमें लेखन शैली की नक़ल भी शामिल है |अगर यही काम बगैर ए आई जेनरेटेड भाषा मोडलों के बगैर किया जाए तो इसमें महीनों लग सकते है जो काम अब सेकेंडों में हो सकता है |

चैटजीपीटी  और बार्ड में फिशिंग ईमेल जैसी  सामाग्री  निर्मित करने के इनबिल्ट सुरक्षा उपाय  है। लेकिन कई ओपन-सोर्स LLMs में कोई सुरक्षा उपाय नहीं हैंऔर हैकर्स डार्कनेट फोरम्स पर इच्छुक खरीदारों को मैलवेयर लिखने के लिए मॉडल लाइसेंस कर रहे हैं।

एआई को विश्वसनीय डीपफेक (जिसमें वीडियो और आवाज की नक़ल शामिल है) तैयार करने के लिए प्रयोग किया भी जा रहा है जो फेक न्यूज को फैलाने में एक बड़ा कारक है।लेकिन  ईमेलआवाज और वीडियो को शामिल करने वाले ऐसे हाइब्रिड हमले अब एक करीबी  वास्तविकता है। इसमें सबसे बड़ा खतरा है साइबर सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा का क्योंकि ए आई ऐसे हाइब्रिड हमलों को और  ज्यादा मारक बना सकता है ऐसी भी संभावना है कि हम आज जहाँ तक सोच भी नहीं सके हैं वो ऐसे  हमलों के बारे सोच सकता है |

शतरंज जैसे खेलों में एआई ने पहले ही सिद्ध कर दिया है कि वे इंसानों को परास्त कर सकते हैंइसी तर्ज पर देश में ऐसे साइबर हमले किये जा सकते हैं जिनका सामना करने के लिए हमारी सरकार या तंत्र तैयार ही न हो |हमें एक ऐसे रक्षात्मक एआई सिस्टम की आवश्यकता है  जिससे एआई-जनित साइबर हमलों का सामना किया जा सके।

दैनिक जागरण राष्ट्रीय संस्करण मे 07/06/2024 को प्रकाशित 

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