कोलकाता के आरजी मेडिकल कॉलेज की महिला डॉक्टर की हत्या और रेप के मामले के खबरों में आने के बाद गूगल ट्रेंड्स पर पीड़िता के नाम से रेप वीडियो की खोजों में वृद्धि देखी गई। इससे पहले भी, जेडीएस नेता प्रज्वल रेवन्ना के कथित सेक्स स्कैंडल केस में भी इसी तरह का पैर्टन सामने आया था, जहाँ गूगल और पॉर्न साइट्स पर मामले से जुड़े वीडियो देखने की कोशिश की गई। इस तरह के वीडियो देखने वालों को महज कौतहुल या सेंशेलेनल कंटेंट की तलाश की आड़ में बरी नहीं किया जा सकता। इस तरह से सर्च करने वाले लोगों में एक गहरी संवेदनहीनता झलकती है, जिसमें वे पीड़िता का दर्द और उसकी पीड़ा को महज एक मनोरंजन का साधन समझ लेते हैं। भारत में रेप और असहमति से बनाये गये इन सेक्स वीडियोज का बड़ा कारोबार है, इसकी जड़ें शहरों के ठिकानों से लेकर ऑनलाइन बाजारों तक फैली हुई हैं। पहले ये वीडियो देश के कस्बों और शहरों के एक कोने में सीडी और पेन ड्राइव के माध्यम से बेचे जाते थे। लेकिन इंटरनेट के आने के साथ, यह काला कारोबार अब इन्हीं इन्क्रिप्टेड ऐप्स पर चला गया है, जहाँ एक बार ऑनलाइन हो जाने के बाद क्लिप्स को रोकना संभव नहीं है।
वाहट्सअप, टेलीग्राम जैसे मैसेजिंग ऐप्स पर एन्क्रिप्शन की आड़ में इस तरह के वीडियो के लिंक खुलेआम बेचे जा रहे हैं। फैक्ट चैकिंग संस्था बूम की एक रिपोर्ट के मुताबिक इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म्स पर भी ये अपराधी अपनी पैठ जमाये हुए हैं। इंस्टाग्राम से ये अपराधी लिंक के जरिये प्राइवेट टेलीग्राम चैनल पर ले जाते हैं जहाँ यह काला कारोबार होता है। वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया साइट्स पर अगर आप ऐसे एक आपत्तिजनक पेज को फॉलो करते हैं तो एल्गोरिदम और भी इसी तरह के अकाउंट आपको सुझाता है। लिंक के लिए यूपीआई, इंस्टेंट पे से भुगतान करने के बाद इच्छुक सब्सक्राइबर को टैराबॉक्स और क्लाउड एग्रीगेटर ऐप्स की ओर ले जाया जाता है। जहां वे इन अवैध और अमानवीय सामग्री तक पहुँच कर उसे डाउनलोड कर सकते हैं। एक बार डाउनलोडिंग के बाद इसे ट्रेस करना या रोकना लगभग असंभव हो जाता है। साल 2023 में सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार ने सोशल मीडिया साइट्स जैसे फेसबुक, यूट्यूब और टेलीग्राम जैसी कंपनियों को इस तरह की सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए नोटिस जारी किया था। इसके बाद यूट्यूब ने अपनी नई कम्युनिटी गाइड लाइन्स के मुताबिक अक्टूबर से दिसंबर माह के बीच करीब 25 लाख वीडियो को अपने प्लेटफॉर्म से हटाया था।
मनोचिकित्सक मानते हैं कि इस तरह की सामग्री देखने से व्यक्ति की यौन और हिंसा के प्रति सामान्य दृष्टि विकृत हो गई है। भारत जैसे देश में जहां यौन शिक्षा की कमी भी इस समस्या को और गंभीर कर देती इस समस्या का समाधान हम सिर्फ कानून से नहीं , बल्कि जागरूकता लाकर ही कर सकते हैं। ताकि हम न केवल इस तरह की सामग्री को नकारे, बल्कि इसके खिलाफ खड़े हों। हमें समझना होगा कि इस तरह का हर क्लिक, हर शेयर किसी की जिंदगी को तबाह कर सकता है।
प्रभात खबर में 28/11/24 को प्रकाशित