जिसमें भारत एक अहम भूमिका निभाता दिखेगा। रिसर्च संस्था ईवाई की द एआई आइडिया ऑफ इंडिया शीर्षक से छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यदि भारत विभिन्न क्षेत्रों में जेनरेटिव एआई तकनीक का पूरी तरह से उपयोग करता है तो 2030 तक जेन-एआई भारतीय अर्थव्यवस्था में 359-438 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त योगदान दे सकता है। पिछले दो दशक में भारत ने आईटी के क्षेत्र में काफी प्रगति की है, आज अमेरिका की सिलिकन वैली से लेकर लंदन और सिडनी तक भारतीय इंजीनियर्स ने अपना योगदान दिया है। वहीं भारतीय सरकार की नीतियों जैसे डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी मुहिम से भी अब भारत में तकनीकी नवाचारों का ईको-सिस्टम बनाने की कवायद तेज हो गई है। जिनमे आईटी क्षेत्र, सेमीकंडक्टर निर्माण और एआई से जुड़े उद्योग लगाये जा रहे हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एआई तकनीक का इस्तेमाल कृषि, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और मीडिया जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किया जा सकता है, जिससे भारत को इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिल सकता है। हाल ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और आईआईटी बॉम्बे द्वारा भारतजेन नाम से एक भारतीय जेनरेटिव एआई की शुरुआत की गई, जिसके तहत नागरिकों को विभिन्न भाषाओं में जेनरेटिव एआई उपलब्ध कराया जाएगा। आज देश में जेनरेटिव एआई स्टार्टअप्स की संख्या में भी एक तीव्र वृद्धि दर्ज की जा रही है। बीते माह आई नैसकॉम की इंडियाज जेनरेटिव एआई स्टार्टअप लैंडस्केप 2024 रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में जेनरेटिव एआई से जुड़े स्टार्टप्स की संख्या 66 से 240 पहुँच गई है।
भारत की सिलिकन वैली के नाम से प्रसिद्ध बेंगलुरु भारत के जेन-आई स्टार्टअप का प्रमुख केंद्र बना हुआ है, जो देश में कुल 43 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। वहीं अहमदाबाद, पुणे, सूरत और कोलकाता जैसे शहर भी तेजी से उभरते हुए केंद्र बन रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एआई रिसर्च में भी भारत का कद लगातार बढ़ रहा है। अमेरिका, जर्मनी और जापान जैसे देशों के साथ मिलकर भारत एआई की चुनौतियों और अवसरों को हल करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। एन एआई अपरच्यूनिटी फॉर इंडिया रिपोर्ट में गूगल ने भारत में डायबिटिक रेटिनोपैथी एआई मॉडल उपलब्ध कराने की घोषणा की है। इसकी मदद से अगले 10 साल में एआई असिस्टेंट स्क्रीनिंग की सुविधा दी जाएगी। वहीं गूगल भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर खेती की उपज बढ़ाने के लिए एआई मॉडल का भी निर्माण कर रहा है।इसके साथ ही दिग्गज चिप निर्माता एनवीडिया ने भी रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ भारत में एआई इंफ्रास्ट्रकचर के निर्माण करने की घोषणा की है। दोनों कंपनियों ने भारत में एआई कम्प्यूटिंग इंफ्रा और नवाचार केंद्र बनाने के लिए एक समझौता किया है। भारत सरकार ने भी देश में एआई स्टार्टअप को सशक्त बनाने के लिए इस साल इंडिया एआई मिशन को मंजूरी दी थी, जिसके लिए कैबिनेट ने करीब 10 हजार करोड़ की राशि जारी की थी। इस कदम से एआई नवाचार में देश को ग्लोबल लीडर बनने में काफी मदद मिलेगी। वहीं भारत में एआई का बढ़ता प्रसार रोजगार के लिए बड़ा संकट बन सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मशीनीकरण कार्यों को आसान बना रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार एआई और ऑटोमेशन के कारण आने वाले सालों में लाखों पारंपरिक नौकरियों पर संकट आ सकता है।
इसके बदले नए तकनीकी और विश्लेषणात्मक कौशल की माँग की वृद्धि होगी, जिसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर रीस्किलिंग प्रोग्राम्स चलाने पर भी ध्यान देना चाहिए।देश का डिजिटल विकास और एआई में निवेश यह भरपूर संकेत देता है कि आने वाले कुछ सालों में भारत एआई के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभर सकता है। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूती देगा। अगर भारत अपने तकनीकी संसाधनों और नवाचारों को सही दिशा में इस्तेमाल करता है,तो एआई के क्षेत्र में अग्रणी बनने के साथ-साथ पूरी दुनिया में इसका नेतृत्व भी कर सकता है। हालांकि भारतीय तकनीकी शिक्षा संस्थान और कई कंपनियाँ इस दिशा में काम कर रही हैं, ताकि भविष्य में कार्यबल को एआई-सक्षम उद्योगों के लिए तैयार किया जा सके। इसके साथ ही सुरक्षा के मोर्चे पर भी साइबर हमलों, डीपफेक्स और फेक न्यूज के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।
अमर उजाला में 18/11/24 को प्रकाशित
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