Thursday, March 27, 2025

शोर्ट कंटेंट का बढ़ता चलन

 

पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर शॉर्ट फॉर्म कंटेंट का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। इंस्टाग्राम रील्स , यूट्यूब शॉर्ट्स जैसे प्लेटफॉर्म्स अब हमारी दिनचर्या का अहम हिस्सा बन गए हैं। रील्स और शॉर्ट्स के जरिये लोग न सिर्फ मनोरंजन हासिल करते हैं, बल्कि नए ट्रैंड्स, जानकारियों और खबरों से भी अपडेट रहते हैं। अब यह सिर्फ टाइमपास के साधन की जगह लोगों की मानसिकता, सोचने के तरीके और व्यवहार को प्रभावित करने वाले शक्तिशाली उपकरण बन गए हैं। हालांकि, इसके साथ ही एक बड़ी चुनौती भी सामने आई है।  शॉर्ट फॉर्म कंटेंट्स में बेकार और बेमतलब कंटेंट की भी भरमार है। बीते साल  ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी वर्ड ऑफ द ईयर के लिए चुना गया 'ब्रेन रॉट' शब्द भी उसी मानसिकता को उजागर करता है जिसमें  हम घंटों तक स्क्रीन से चिपके रहते हैं और बेमतलब का कंटेंट स्क्रॉल करते है। कई शोध बतातें हैं कि सोशल मीडिया पर अनगिनत घटिया ऑनलाइन सामग्री को बहुत ज्यादा देखने से किसी व्यक्ति की मानसिक या बौद्धिक स्थिति में गिरावट हो सकती है। अत्यधिक स्क्रीन टाइम और गैर-गंभीर सामग्री हमारी सोच को सतही बना सकती है, जिससे हम गहरी सोच और आलोचनात्मक दृष्टिकोण से दूर हो जाते हैं।

स्टैस्टिका की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की आधी से अधिक आबादी सोशल मीडिया का उपयोग करती है। 2024 तक 5.17 अरब यूजर्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक्टिव हैं। वहीं भारत में यह आंकड़ा 46 करोड़ पहुँच गया है। आईआईएम अहमदाबाद के एक शोध के मुताबिक भारत में रोजाना लोग 3 घंटे से अधिक समय सोशल मीडिया पर बिताते हैं, जो वैश्विक औसत से कहीं अधिक है। वहीं आज की पीढ़ी जिसे जेन जी और जेन अल्फा कहा जाता है, अकसर अपने दिन का बड़ा हिस्सा सिर्फ रील्स देखते हुए गुजार देते हैं। जैसे ही खाली समय देखा , और शुरू कर दी अनगिनत बेतुके वीडियोज की स्क्रॉलिंग। इस तरह की आदत का असर उनकी कार्य क्षमता, मानसिक शांति और फैसले लेने पर भी पड़ता है। भारत की बात करें तो शॉर्ट वीडियोज एप में इंस्टाग्राम सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला प्लेटफॉर्म हैं। वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू के रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 39 करोड़ इंस्टाग्राम यूजर्स हैं। इंस्टाग्राम रील्स जैसे कंटेंट की आदत युवाओं में ध्यान अवधि को कम कर रही है। मनोवैज्ञानिक और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर ग्लोरिया मार्क के अनुसार शॉर्ट फॉर्म कंटेंट देखने से लोगों की ध्यान अवधि 47 सेकेंड से भी कम हो गई।
वहीं इन कुछ सेकेंड्स की रील्स ने लोगों की ध्यान अवधि को कम करने के साथ-  साथ हमारे सोचने, समझने की आदतों पर भी प्रभाव डाले हैं। उदाहरण के लिए कभी- कभी  सोशल मीडिया रील्स में देखी गई चीजें जैसे गाने, डायलॉग्स या जोक्स जो हम फीड पर देखते हैं, हम उन्हें अपने दिमाग में दोहराते रहते हैं। मसलन कोई मीम या गाना जो रील्स पर सुना है, वो न चाहते हुए भी दिन भर याद आता है और ऐसा सिर्फ आपके साथ ही नहीं हर रील स्क्रॉलर के साथ होता है। अगर हम डाटा पर आधारित गणना करें तो रोजाना 2 घंटे रील देखने पर हम पूरे साल में एक महीने सिर्फ रील्स के सामने बैठकर बर्बाद कर देंगे, जो किसी और काम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता था।
पर आखिर हम इस अनगिनत स्क्रॉलिंग के जाल में फंसते कैसे हैं? असल में हर नई और दिलचस्प रील देखने पर हमारे दिमाग डोपामीन रिलीज करता है। डोपामीन एक तरह का न्यूरोट्रांसमीटर है, जिसे खुशी और संतुष्टि का हॉर्मोन कहा जाता है। जब भी हम कोई मनोरंजक रील देखते हैं, तो हमारा दिमाग इसे एक छोटे इनाम की तरह लेता है और हमें अच्छा महसूस कराता है। शॉर्ट्स फॉर्म कंटेंट की लोकप्रियता को देखते हुए हाल ही में यूट्यूब ने अपनी शॉर्ट्स वीडियो पॉलिसी में कुछ महत्पूर्ण बदलाव किये हैं, जिनमें 3 मिनट तक के वीडियो को भी शॉर्ट्स कैटेगरी में रखे जाने का फैसला भी शामिल है।  जिससे लंबे और छोटे वीडियो के बीच की सीमा और भी धुंधली हो गई है।  दरअसल 2020 में भारत सरकार के टिक-टॉक एप पर प्रतिबंध लगाने के बाद सितंबर 2020 में यूट्यूब ने शॉर्ट्स कैटेगरी की शुरुआत की थी। जिसमें क्रियेटर्स 30 सेकेंड समय सीमा तक की शॉर्ट वीडियो को प्लेटफॉर्म पर डाल सकता था, जिसे बाद में 1 मिनट समय सीमा तक कर दिया गया था। शॉर्ट्स कैटेगरी को लाने का मुख्य उद्देश्य इंस्टाग्राम रील्स और टिक-टॉक जैसे प्लेटफ़ॉर्म से प्रतिस्पर्धा करना था। पहले के मुकाबले अब शॉर्ट्स वीडियो के क्षेत्र में गुणवत्तापूर्ण कंटेंट और बेवजह के कंटेंट का मिश्रण देखने को मिलता है। शॉर्ट्स वीडियो में मीम्स, न्यूज और इंफॉर्मेटिव कंटेंट सबसे अधिक ट्रेंडिंग कैटेगरी बनकर उभरे हैं। मगर इस तरह के कंटेंट से आय प्राप्त करना काफी मुश्किल है। फेसबुक पहले ही न्यूज कैटेगरी के वीडियो पर भुगतान और उनकी पहुंच कम कर चुका है। अब यूट्यूब ने 3 मिनट से कम अवधि के वीडियो के लिए विज्ञापन आधारित आय को सीमित कर दिया है। यूट्यूब पर एक हजार व्यूज पर गभग 0.01 डॉलर के करीब पैसा मिलता है। जो कि काफी कम है।  हालांकि इन वीडियो का मोनेटाइजेशन कम है लेकिन फिर भी लाखों क्रिएटर्स शॉर्ट-फॉर्म वीडियो को कमाई के एक नए स्रोत में देख रहे हैं।
 
सोशल नेटवर्किंग प्लेट्फार्म्स के शॉर्ट्स वीडियो के प्रति बढ़ने रुझान के पीछे कई कारण हैं। शोध बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में लोगों की ध्यान अवधि पिछले दशकों के मुकाबले काफी घट गई है, लोग अब तेजी से छोटे-छोटे वीडियो देखना पसंद करते हैं जो उन्हें तत्काल संतुष्टि प्रदान करते हैं इसी वजह से इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म्स पर लोगों का रुझान कम अवधि के वीडियो की ओर ज्यादा हो रहा है। वहीं हबस्पॉट की एक रिपोर्ट  के मुताबिक 90 सेकेंड से छोटे वीडियो पर 50 प्रतिशत से अधिक रिटेंशन रेट प्राप्त होता है। इसी लिए हाल ही में दिग्गज कंपनी मेटा और गूगल ने शॉर्ट फॉर्म वीडियो फीचर्स में भारी निवेश किया है।अनगिनत स्क्रॉलिंग से लेकर आसानी से शेयर किये जाने वाले इस तरह के कंटेट की अधिक वायरल और लोकप्रिय बनने की संभावना बढ़ जाती है। वहीं मार्केटिंग रिसर्च संस्था गुडफैलाज के अनुसार बयासी प्रतिशत  ऑनलाइन बिजनेस अब वीडियो मार्केटिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं। वहीं ब्राण्ड्स को सफल होने के लिए शॉर्ट वीडियो कंटेंट को अपनाना सिर्फ अब एक विकल्प नहीं, बल्कि एक जरुरत हो गया है। भारत जिसने शॉर्ट वीडियो प्लेटफॉर्म टिक-टॉक पर प्रतिबंध है, वह इस बदलाव का प्रमुख हिस्सा है।अब यह क्रिएटर्स पर निर्भर करता है कि वे इन बदलावों को कैसे अपनाते हैं और अपने दर्शकों के लिए मूल्यवान कंटेंट तैयार करते हैं या गलत सूचनाओं को फैलाने  और अश्लीलता के एक अस्त्र के रूप में प्रयोग करते हैं |
दैनिक जागरण में 27/03/2025 को प्रकाशित 

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