Friday, May 23, 2025

आर्थिकी में एआई का योगदान

 
कभी दुनिया में आईटी आउटसोर्सिंग के नाम से पहचाने जाने वाला भारत अब डिजिटल क्रांति की नई इबारत लिख रहा है। सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में अपने कौशल के दम पर भारत ने वैश्विक पहचान बनाई है,और अब भारतीय डेवेलपर्स आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में भी भारत को सिरमौर बनाने की राह में जुटे हुए हैं। हाल ही में आई गिटहब की एक रिपोर्ट के मुताबिक जेनेरेटिव एआई के क्षेत्र में भारत दुनिया में दूसरे पायदान पर पहुँच गया है और अनुमान है कि 2028 तक भारत कुल डेवेलपर्स की संख्या के मामले अमेरिका को पीछ छोड़ पहला स्थान हासिल कर लेगा। रिपोर्ट के मुताबिक गिटहब प्लेटफार्म पर भारतीय डेवेलपर्स की संख्या 2024 में 28 प्रतिशत बढ़कर 1.7 करोड़ के पार पहुँच गई है। दरअसल जेनरेटिव एआई का मतलब ऐसी एआई प्रणाली से है जिसमें न्यूरल नेटवर्कमशीन लर्निंग जैसी तकनीक की मदद से टेक्स्ट,इमेजऑ़डियो आदि प्रकार के नए डेटा का सृजन होता है। न्यूरल नेटवर्क सीखे गए पैर्टन और नियमों के आधार पर आउटपुट उपलब्ध कराता हैजो हूबहू मानव निर्मित कंटेंट जैसा होता है। 2023 में प्रकाशित ब्लूमबर्ग इंटेलिजेंस की एक रिपोर्ट के अनुसार ओwपन एआई के चैट जीपीटी और गूगल के बार्ड जैसे नवाचारों के आने से जेनरेटिव एआई के बाजार में भूचाल आ गया है। अगले 10 सालों में जेनरेटिव एआई का बाजार दुनियाभर में 1.3 ट्रिलियन डॉलर तक बढ़ने की संभावना है।
 जिसमें भारत एक अहम भूमिका निभाता दिखेगा। रिसर्च संस्था ईवाई की द एआई आइडिया ऑफ इंडिया शीर्षक से छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यदि भारत विभिन्न क्षेत्रों में जेनरेटिव एआई तकनीक का पूरी तरह से उपयोग करता है तो 2030 तक जेन-एआई भारतीय अर्थव्यवस्था में 359-438 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त योगदान दे सकता है। पिछले दो दशक में भारत ने आईटी के क्षेत्र में काफी प्रगति की हैआज अमेरिका की सिलिकन वैली से लेकर लंदन और सिडनी तक भारतीय इंजीनियर्स ने अपना योगदान दिया है। वहीं भारतीय सरकार की नीतियों जैसे डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी मुहिम से भी अब भारत में तकनीकी नवाचारों का ईको-सिस्टम बनाने की कवायद तेज हो गई है। जिनमे आईटी क्षेत्रसेमीकंडक्टर निर्माण और एआई से जुड़े उद्योग लगाये जा रहे हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एआई तकनीक का इस्तेमाल कृषिस्वास्थ्य सेवाशिक्षा और मीडिया जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर किया जा सकता हैजिससे भारत को इन क्षेत्रों में उल्लेखनीय सुधार देखने को मिल सकता है। हाल ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग और आईआईटी बॉम्बे द्वारा भारतजेन नाम से एक भारतीय जेनरेटिव एआई की शुरुआत की गईजिसके तहत नागरिकों को विभिन्न भाषाओं में जेनरेटिव एआई उपलब्ध कराया जाएगा। आज देश में जेनरेटिव एआई स्टार्टअप्स की संख्या में भी एक तीव्र वृद्धि दर्ज की जा रही है। बीते माह आई नैसकॉम की इंडियाज जेनरेटिव एआई  स्टार्टअप लैंडस्केप 2024 रिपोर्ट के मुताबिक पिछले एक साल में जेनरेटिव एआई से जुड़े स्टार्टप्स की संख्या 66 से 240 पहुँच गई है। 

भारत की सिलिकन वैली के नाम से प्रसिद्ध बेंगलुरु भारत के जेन-आई स्टार्टअप का प्रमुख केंद्र बना हुआ हैजो देश में कुल 43 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। वहीं अहमदाबादपुणेसूरत और कोलकाता जैसे शहर भी तेजी से उभरते हुए केंद्र बन रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एआई रिसर्च में भी भारत का कद लगातार बढ़ रहा है। अमेरिकाजर्मनी और जापान जैसे देशों के साथ मिलकर भारत एआई की चुनौतियों और अवसरों को हल करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है। एन एआई अपरच्यूनिटी फॉर इंडिया रिपोर्ट में गूगल ने भारत में डायबिटिक रेटिनोपैथी एआई मॉडल उपलब्ध कराने की घोषणा की है। इसकी मदद से अगले 10 साल में एआई असिस्टेंट स्क्रीनिंग की सुविधा दी जाएगी। वहीं गूगल भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर खेती की उपज बढ़ाने के लिए एआई मॉडल का भी निर्माण कर रहा है।इसके साथ ही दिग्गज चिप निर्माता एनवीडिया ने भी रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ भारत में एआई इंफ्रास्ट्रकचर के निर्माण करने की घोषणा की है। दोनों कंपनियों ने भारत में एआई कम्प्यूटिंग इंफ्रा और नवाचार केंद्र बनाने के लिए एक समझौता किया है। भारत सरकार ने भी देश में एआई स्टार्टअप को सशक्त बनाने के लिए इस साल इंडिया एआई मिशन को मंजूरी दी थीजिसके लिए कैबिनेट ने करीब 10 हजार करोड़ की राशि जारी की थी। इस कदम से एआई नवाचार में देश को ग्लोबल लीडर बनने में काफी मदद मिलेगी। वहीं भारत में एआई का बढ़ता प्रसार रोजगार के लिए बड़ा संकट बन सकता हैखासकर उन क्षेत्रों में जहाँ मशीनीकरण कार्यों को आसान बना रहा है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार एआई और ऑटोमेशन के कारण आने वाले सालों में लाखों पारंपरिक नौकरियों पर संकट आ सकता है।

 इसके बदले नए तकनीकी और विश्लेषणात्मक कौशल की माँग की वृद्धि होगीजिसके लिए सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर रीस्किलिंग प्रोग्राम्स चलाने पर भी ध्यान देना चाहिए।देश का डिजिटल विकास और एआई में निवेश यह भरपूर संकेत देता है कि आने वाले कुछ सालों में भारत एआई के क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभर सकता है। यह न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करेगाबल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूती देगा। अगर भारत अपने तकनीकी संसाधनों और नवाचारों को सही दिशा में इस्तेमाल करता है,तो एआई के क्षेत्र में अग्रणी बनने के साथ-साथ पूरी दुनिया में इसका नेतृत्व भी कर सकता है। हालांकि भारतीय तकनीकी शिक्षा संस्थान और कई कंपनियाँ इस दिशा में काम कर रही हैंताकि भविष्य में कार्यबल को एआई-सक्षम उद्योगों के लिए तैयार किया जा सके। इसके साथ ही सुरक्षा के मोर्चे पर भी साइबर हमलोंडीपफेक्स और फेक न्यूज के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए एक तंत्र की आवश्यकता है।

दैनिक जागरण में 23/05/2025 को प्रकाशित 

Wednesday, May 21, 2025

सॉफ्ट पावर भी कमाल की चीज है

 

भारत की सॉफ्ट पावर वैश्विक मंच पर तेजी से उभर रही है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) शिखर सम्मेलन की सह-अध्यक्षता की, जिसने भारत को एआई क्षेत्र में अग्रणी के रूप में प्रस्तुत किया। पहले किसी राष्ट्र की शक्ति उसकी सैन्य और आर्थिक क्षमता से मापी जाती थी, लेकिन आज सॉफ्ट पावर, यानी संस्कृति, विचारों और मूल्यों के माध्यम से प्रभाव डालने की क्षमता, राष्ट्र की ताकत का पैमाना है। अमेरिकी राजनीतिक विशेषज्ञ जोसेफ न्ये ने सॉफ्ट पावर की अवधारणा को प्रतिपादित किया, जो बिना दबाव या आक्रामकता के अन्य देशों को प्रभावित करने का साधन है। यह किसी राष्ट्र को आकर्षक बनाने का जरिया है, जिसे न संख्याओं में मापा जा सकता है और न ही हथियारों से हासिल किया जा सकता है।

मेरिका ने हॉलीवुड, मैकडॉनल्ड्स और पॉप म्यूजिक के जरिए अपनी सॉफ्ट पावर का विस्तार किया। दक्षिण कोरिया, जापान और चीन ने के-पॉप, एनीमे और तकनीक से वैश्विक प्रभाव बनाया। भारत भी इस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। जी20, एससीओ और ब्रिक्स जैसे मंचों पर भारत की भूमिका उसकी बढ़ती साख को दर्शाती है। बॉलीवुड, योग, आयुर्वेद और भारतीय व्यंजनों ने वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है। ब्रांड फाइनेंस की ग्लोबल सॉफ्ट पावर इंडेक्स 2024 के अनुसार, भारत ने सॉफ्ट पावर में 29वां स्थान हासिल किया, जिसमें कला और मनोरंजन में 7वां, सांस्कृतिक विरासत में 19वां और भोजन में 8वां स्थान शामिल है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस, जिसे 192 से अधिक देशों में मनाया जाता है, भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक है।

भारतीय सिनेमा ने भी सॉफ्ट पावर को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। राज कपूर की फिल्मों से लेकर दंगल, बाहुबली और आरआरआर तक ने वैश्विक बॉक्स ऑफिस पर धूम मचाई। नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे प्लेटफॉर्म्स ने भारतीय फिल्मों और सीरीज को विश्व स्तर पर पहुंचाया। हॉलीवुड में अब भारतीय किरदारों को मजबूत और गंभीर भूमिकाओं में दिखाया जाता है, जैसे सीटाटेल और मिस मार्वेल।

विज्ञान और तकनीक में भी भारत अग्रणी है। गिटहब की रिपोर्ट के अनुसार, जेनरेटिव एआई डेवलपर्स की संख्या में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर है और 2028 तक अमेरिका को पीछे छोड़ सकता है। इसरो के चंद्रयान और मंगलयान मिशनों ने भारत को अंतरिक्ष महाशक्ति के रूप में स्थापित किया। कोविड महामारी के दौरान भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी और यूपीआई जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने वैश्विक प्रशंसा अर्जित की। जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में, भारत ने अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन की स्थापना की, जिसमें 120 से अधिक देश शामिल हैं।

हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। शिक्षा में भारत, अमेरिका और यूरोप से पीछे है। क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में टॉप 200 विश्वविद्यालयों में भारत के केवल तीन संस्थान हैं। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स 2024 में भारत 39वें स्थान पर है। प्रति व्यक्ति आय, हैप्पीनेस इंडेक्स और ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति चिंताजनक है। गरीबी, प्रदूषण और बेरोजगारी जैसे मुद्दे देश की छवि को प्रभावित करते हैं।

भारत को सॉफ्ट पावर के रूप में स्थापित करने के लिए सांस्कृतिक कूटनीति, शिक्षा, स्वास्थ्य और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर ध्यान देना होगा। प्रसार भारती का वेव्स समिट और ओटीटी प्लेटफॉर्म इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। सॉफ्ट पावर केवल संस्कृति का आदान-प्रदान नहीं, बल्कि लोकतंत्र, मानवाधिकार और प्रामाणिक मूल्यों का प्रसार है। यदि भारत इस दिशा में सही कदम उठाए |

प्रभात खबर में 21/05/2025 को प्रकाशित 

Tuesday, May 20, 2025

इन्फ्ल्युंसर भी तो निष्पक्ष हों

 

इस डिजिटल होते दौर में सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक नया मंच प्रदान किया है। आज इस मंच का प्रभाव इतना व्यापक हो चुका है कि आम जनता से लेकर बड़ी-बड़ी कंपनियाँहर कोई इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर रहा है। इस कड़ी में सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स इस बदलाव के सबसे बड़े वाहक बने हैं। आजकल कुछ भी खरीदने से पहले हम सबसे पहले इन इंफ्लुएंसर्स की राय और समीक्षा देखते हैं । मोबाइल से लेकर क्रीम तक कौन सा उत्पाद खरीदना चाहिए ये लोग यूट्यूब रिव्यू या इंस्टाग्राम रील देखकर तय करते हैं। यह एक तरह की इंफ्लुएंसर्स मार्केटिंग संस्कृति है जिसने पारंपरिक मार्केटिंग के तौर तरीकों पीछे छोड़ दिया है। इंफ्लुएंसर अब केवल उत्पादों का प्रचार ही नहीं करते बल्कि उपभोक्ताओं के भरोसे और निर्णय प्रक्रिया को गहराई से प्रभावित करते है।
 यही वजह है कि आज हर ब्रांड अपनी डिजिटल पहचान को मजबूत करने के लिए इन इंफ्लुएंसर्स का सहारा ले रहा है। अक्सर हम सभी के साथ ऐसा होता है कि किसी आकर्षक विज्ञापन को देखकर हम किसी उत्पाद को खरीदने का मन बना लेते हैंलेकिन जब सोशल मीडिया पर उसके नकारात्मक रिव्यू देखते हैंतो हमारा विचार बदल जाता है। कई बार इंफ्लुएंसर्स की नकारात्मक समीक्षा ब्रांड्स और कंपनियों को नागवार गुजरती है। और वे उस इंफ्लुएंसर पर मानहानि या कानूनी दबाव बनाने की कोशिश करते हैं। हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बहस में हस्तक्षेप करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी ब्रांड की आलोचना वैज्ञानिक तथ्योंप्रमाणों और उपभोक्ता हितों पर आधारित हो तो उसे मानहानि नहीं माना जा सकता।
इतना ही नहीं कोर्ट ने व्यंग्य और अतिशयोक्ति को भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में स्वीकार किया है। दरअसल सैंस न्यूट्रिशन प्राइवेट लिमिटेड नामक एक कंपनी ने चार यूट्यूबर्स के खिलाफ मानहानि का केस किया था। इन यूट्यूबर्स ने अपने चैनल्स पर हेल्थ और न्यूट्रिशन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हुए कंपनी के प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता और उनके विज्ञापन दावों पर सवाल उठाए थे। जिसके बाद कंपनी ने इनके खिलाफ मानहानि का दावा कर अदालत का दरवाजा खटखटाया था। मगर मामले की सुनवाई के दौरान दिल्ली हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि  सोशल मीडिया पर तथ्य आधारित आलोचना कोई अपराध नहीं बल्कि अभिव्यक्ति का अधिकार है। इस फैसले के ने यह भी साफ कर दिया कि सोशल मीडिया अब केवल व्यक्तिगत राय तक सीमित नहीं हैबल्कि यह एक विशाल जनसंवाद और उपभोक्ता संवाद का मंच बन चुका है। 
वेबसाइट स्टेस्टिका के मुताबिक भारत में सोशल मीडिया यूजर्स की संख्या करीब 50 करोड़ पहुँच चुकी है।  वहीं केपीएमजी इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 80 लाख कंटेंट क्रिएटर्स हैं जिनमें वीडियो स्ट्रीमर्स,इन्फ़्लुएन्सेर्स और ब्लॉगर्स शामिल हैं।  डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी आईक्यूब्स वायर के अनुसारकरीब 35% ग्राहक सोशल मीडिया पोस्ट और रील्स देखकर ही अपने खरीदारी के फैसले लेते हैंजबकि मेट्रो शहरों में यह आँकड़ा 80% से भी ऊपर है। दिलचस्प बात यह है कि लोग अब बड़े-बड़े सेलेब्रिटी इन्फ्लुएंसर्स के बजाय उन पर ज्यादा भरोसा कर रहे हैं जिनके फॉलोअर्स की संख्या कम है। ऑडियंस ऑउटलुक फोरकॉस्ट 2025 रिपोर्ट के मुताबिक 84 प्रतिशत लोग एक मिलियन से कम फॉलोवर्स वाले इंफ्लुएंसर्स पर ज्यादा भरोसा करते हैं। एफैलेबल एआई इंफ्लुएंसर मार्केटिंग फर्म के अनुसारभारत में अब ब्रांड्स का रुझान माइक्रो और नैनो इंफ्लुएंसर्स की ओर तेजी से बढ़ रहा है। माइक्रो इंफ्लुएंसर्स वे होते हैं जिनके फॉलोअर्स की संख्या 10 से 50 हजार के बीच होती हैजबकि नैनो इंफ्लुएंसर्स के फॉलोअर्स 10 हजार से कम होते हैं। ब्रांड्स इन्हें बेहतर इंगेजमेंट दर और अपेक्षाकृत कम खर्च के कारण चुनते हैं। हाईप ऑडिटर की रिपोर्ट के अनुसार इंफ्लुएंसर मार्केटिंग पर औसतन हर 1 डॉलर खर्च करने पर ब्रांड्स को करीब 4 डॉलर का रिटर्न मिलता है। 
यहीं कारण है कि ब्रांड्स अब अपने मार्केटिंग बजट का एक बड़ा हिस्सा इंफ्लुएंसर्स पर खर्च कर रहे हैं।फॉर्चुन बिजनेस के आंकड़ें बताते हैं कि 2024 तक दुनियाभर में इंफ्लुएंसर मार्केटिंग का कुल बाजार 20 बिलियन डॉलर को पार कर चुका है वहीं 2032 तक इसके 70 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। हाल ही में भारत में लाइफस्टाइलगेमिंगस्वास्थ्यऔर शिक्षा जैसे क्षेत्रों में कई इंफ्लुएंसर्स की तादाद काफी बढ़ गई है। इंफ्लुएंसर्स मार्केटिंग फर्म क्वोरूज की हालिया रिपोर्ट के अनुसारभारत में इन्फ्लुएंसर्स की संख्या में पिछले चार वर्षों में 322% की वृद्धि हुई है। साल 2020 में देशभर में 9.62 लाख इंफ्लुएंसर थे वहीं 2024 तक ये आंकड़ा 40 लाख के करीब पहुँच गया है। जिसमें फैशन और ब्यूटी के क्षेत्र में सबसे ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। लाइफस्टाइल इंफ्लुएंसर्स पर की गई एक स्टडी कांतर इंफ्लुएंसर प्लेबुक 2025 के अनुसार भारत में 67% लोग पारंपरिक विज्ञापनों की तुलना में फैशन और ब्यूटी प्रोडक्ट्स के लिए इंफ्लुएंसर की सिफारिशों पर ज्यादा भरोसा करते हैं। इंफ्लुएंसर्स आमतौर पर दो तरीके से किसी ब्रांड या प्रोडक्ट का प्रचार करते हैं। एक तो पेड और स्पॉन्सर्ड पोस्ट के जरिएजिसमें ब्रांड्स उन्हें पैसे देकर अपने प्रोडक्ट का प्रचार करवाते हैंऔर दूसरा स्वतंत्र समीक्षा  के ज़रिएजिसमें इंफ्लुएंसर ईमानदारी से अपने  अनुभव उस प्रोडक्ट के लिए साझा करते हैं। हालांकि ग्राहक अक्सर पेड और स्पॉन्सर्ड वीडियो पर कम भरोसा करते हैं। यूएसए में किये गए मार्केटिंग चार्ट्स के एक सर्वे के मुताबिक 47 प्रतिशत लोग पेड इन्फ्लुएंसर्स की बातों को अविश्वसनीय मानते हैं। इसके विपरीतस्वतंत्र और निष्पक्ष रिव्यू को उपभोक्ता अधिक प्रामाणिक और भरोसेमंद मानते हैंक्योंकि उन्हें इसमें व्यावसायिक पक्षपात की संभावना कम लगती है। 
 यही कारण है कि जब इंफ्लुएंसर किसी उत्पाद की ईमानदार समीक्षा करता है चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक तो उपभोक्ता उसे विशेष महत्व देते हैं। इस संदर्भ में रेवंत हिमतसिंका उर्फ फूडफार्मर का मामला उल्लेखनीय है। साल 2023 में उन्होंने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो में कैडबरी बॉर्नवीटा में मौजूद चीनी और अन्य तत्वों को बच्चों के लिए हानिकारक बताया था। जवाब में कैडबरी ने उन्हें कानूनी नोटिस भेजाऔर दबाव में आकर उन्हें वीडियो हटाना पड़ा था। हालांकि इस घटना ने सोशल मीडिया पर व्यापक बहस छेड़ दी थी और उपभोक्ताओं और अन्य इंफ्लुएंसर्स ने रेवंत के समर्थन में आवाज भी उठाई। दिल्ली हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया हैजो इंफ्लुएंसर्स को तथ्य और वैज्ञानिक आधारित आलोचना करने की आजादी देता है। आज इंफ्लुएंसर मार्केटिंग एक शक्तिशाली उपकरण बन चुका है जो ब्रांड्स और उपभोक्ताओं के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी की भूमिका निभा रहा है। वहीं जैसे-जैसे इंफ्लुएंसर्स की भूमिका उपभोक्ता व्यवहार को आकार देने में और अहम होती जा रही है वैसे-वैसे  उनके लिए निर्भीकनिष्पक्ष और स्वतंत्र बने रहना जरूरी हो गया है। क्योंकि सोशल मीडिया का दायरा बढ़ने के साथ इंफ्लुएंसर्स की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है।भारत में इनका भविष्य क्या होगा इसका फैसला समय को करना है |

  अमर उजाला में  20/05/2025 को प्रकाशित लेख 


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