Friday, October 3, 2008

गाँधी जी के लिए

गाँधी जयंती मतलब टी वी पर गाँधी फ़िल्म , ड्राई डे , प्रभात फेरी रामधुन होलीडे बस अब हमारे लिए गाँधी जयंती के यही मायने हैं इस तेजी से बदलती दुनिया में हमें भी बदलना होगा नहीं तो पीछे छूट जाने का खतरा बना रहेगा तो इस बार गाँधी जयंती को मानाने का तरीका बदला जाएहम हैं नए अंदाज़ क्यों हो पुराना . लेकिन इसके लिए यह भी इम्पोर्टेंट है की गाँधी जी को और उनके विचारों को रियल सेंस में समझ लिया जाए गाँधी जी अभी आउट डेटेद नहीं हुए हैं वैसे गाँधी जी का दर्शन, गाँधी जितना ही सिंपल था. इसको समझने के लिए बुक्स पढने की जरूरत नहीं है जियो और जीने दो ख़ुद भी आगे बढो और दूसरों को आगे बढ़ने में मदद करो इसलिए गाँधी जयंती को हमें जिस तरह मनाने में खुशी मिलती है वही गाँधी जी को याद करने का सबसे बढ़िया तरीका है.आप सोच रहे होंगे की गाँधी का हमारी आज की लाइफ से क्या लेना देना ? थोड़ा सा दिमाग पर जोर डालिए ये सब कुछ हमारी जिन्दगी से जुडा हुआ मामला है गाँधी का दर्शन हमारी आज की लाइफ और दुनिया को बेहतर बना सकता है . गाँधी का जीवन ही उनका दर्शन था उनका सारा जीवन प्यार और अहिंसा की धुरी पर टिका हुआ था. गाँधी ने हमें प्यार और अहिंसा की ताकत का एहसास कराया माफी मांग लेना साहस का काम है कायरता नहीं. इस फिलोसफी को अगर हम अपनी लाइफ से जोड़े तो हमें लगेगा की यह तो आर्ट ऑफ़ लिविंग है. इसलिए जब तक लाइफ रहेगी गाँधी का आर्ट ऑफ़ लिविंग भी रहेगा.
अब इस आर्ट ऑफ़ लिविंग को भूलने का क्या रिजल्ट हो रहा है इसको समझने की कोशिश करते हैं .हमने कभी सोचा है कि हमारी आज की जिन्दगी इतनी कोम्प्लिकैटेद क्यों होती जा रही है ?एक झूट को सच बनाने के लिए सौ झूट बोलना पड़ता है चूँकि पैसेंस किसी के पास है नहीं इसलिए कोई वेट नहीं करना चाहता है. कम समय में बहुत कुछ पा लेने की चाह स्ट्रेस पैदा करती है और स्ट्रेस फ्रस्ट्रेशन और एंगर को पैदा करता है इन सारी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन गाँधी के दर्शन में है गाँधी कहा करते थे इस धरती में सभी की आवश्कताओं को पूरा करने की क्षमता है लेकिन किसी एक व्यक्ति के लालच को वह पूरा नहीं कर सकती. हमारे पास जो कुछ है उसमे संतुष्ट रहने की बजाय हम कुछ और पाने के आशा करते रहते हैं और अकारण तनाव का शिकार होते हैं. सच बोलना महज़ किताबी जुमला नहीं है बल्कि एक सच्चाई है क्योंकि सच , सच होता है और झूट , झूट है (मोबाइल पर हम दिन भर में कितना झूट बोलते हैं ) ये स्ट्रेस और फ्रस्ट्रेशन दिमाग में वाइलेन्स पैदा करता है. इस स्थिति से हम अपनी रियल लाइफ में रोज दो -चार होते हैं रिक्शे वाले से दो -चार रुपये के लिए झगडा ,सड़क पर पहले गाड़ी कौन निकालेगा और न जाने क्या -क्या .आख़िर क्यों ? हम पलट कर देखें की हमारी रोज की जिन्दगी में हम लोगों से प्यार से कितना बोलते हैं किसी परेशान आदमी की जगह हम अपने आप को रखकर देखें तो शायद प्रॉब्लम बिगाड़ने न पायें और सिचुअशन को ख़राब होने से बचाया जा सके .सही बात को सही तरह से रखा जाए तो उसका असर लंबा होता है . कानून को अपने हाथ में लेना ,हड़ताल किसी प्रॉब्लम का सॉल्यूशन नहीं हो सकता है .गाँधी भी प्रतिरोध करते थे और उनके प्रतिरोधों का ही परिणाम है कि आज हम आजाद हवा में साँस ले रहे हैं . वाइलेंस के लिए एक सभ्य समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए आत्म संयम से बड़ा कोई डिस्पिलिन नहीं है ये कुछ ऐसे जीवन मूल्य हैं जो गाँधी जी हमारे लिए छोड़ गए हैं ताकि जब कभी हयूमनिटी खतरे में हो ये ज्योति पुंज उसकी मदद करें . आज से गाँधी जी के आर्ट ऑफ़ लिविंग को अपनाइए देखिये जिन्दगी कितनी खुशगवार हो जायेगी आपकी और दूसरों की भी, और शायद ये सबसे अच्छा गिफ्ट होगा गाँधी जी को हमारी तरफ़ से

2 comments:

vipinkizindagi said...

achcha lekh hai.

archana chaturvedi said...

Kisi bhi insan ki kahi gei baat bekar nai jati jarurt us ko sahi tarike se samjhne ki or jindgi me laagu karne ki hai 'lage raho munna bhai' film se pahle bhi gandhi ji kahi hui baat utni sakti sali sayd hume nai lagti thi jitni film ke baad sabit hui to ise ye sabit hoti hai ki kahi na khai hum gandhi ko jaane ka dava bhi karte hai or jaan bhi nai pate hai

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