मंदी एक इकनॉमिक रियलिटी है जो आई है तो जायेगी भी लेकिन बुराई की सबसे बड़ी अच्छाई यही है की वो बुराई है नहीं समझे दोस्तों बात सिंपल है लाइफ वैसे ही कॉम्पलिकेटेड है तो उसे और कॉम्पलिकेटेड क्यों बनाया जाए थोडा सिंपल सोचो यार मंदी इकोनोमी मे है हमारी सोच और जज्बे मे नहीं क्योंकि इस यंगिस्तान में हर यांगिस्तानी ज्यादा का इरादा तो कर ही सकता है . अभी मैं पढ़ रहा था कि मंदी के बाद कई इंडियन घर लौट रहे हैं कुछ अपने देश लौट रहे हैं कुछ अपने नेटिव प्लेस जहाँ वे नए अवसरों की तलाश में हैं अब आप सोचेंगे की मंदी में नौकरियां हैं कहाँ ?लेकिन यही तो अंदर की बात है क्रिएटिविटी का एक रूल है जब कुछ न समझ में आये तो उल्टा सोचो शायद इसीलिए ईस्ट ऑर वेस्ट इंडिया इज द बेस्ट जब आप सर्व नहीं कर सकते तो सर्विस प्रोवाइडर बन जाइये और दूसरों को सर्व करने का मौका दीजिये.इंडियन इकोनोमी कुछ मायनों में अनोखी है यहाँ असंगठित क्षेत्र बहुत बड़ा है यहाँ डेली यूज़ की हर चीज़ एक प्रोडक्ट में नहीं बदली है .मंदी इसलिए हमें इतना नहीं रुला रही है और अभी भी हम अपनी डेली लाइफ की बहुत से चीज़ें बगैर ब्रांड की परवाह किये बगैर यूज़ करते हैं इसलिए यहाँ डिमांड पैदा करने की गुंजाईश ज्यादा है फिर आप भूल रहे हैं हम बचपन से पढ़ते आ रहे हैं भारत एक कृषि प्रधान गावों का देश है इस एरिया में रिसर्च और डेवेलोपमेंट की काफी संभावनाएं हैं.कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा हर परेशानी कुछ नयी राहें दिखा ही देती है और जिससे जिन्दगी बेहतर ही होती है एवरेस्ट कोई एक दिन में फतह नहीं कर लिया गया था लोग कोशिश करते रहे और गलतियों से सीखते रहे । ये गलतियों से सीख का नतीजा था कि एवरेस्ट जीता गया ।हमारे सिटीज़ ओवर क्राउडेड हैं .उनका एम्प्लॉयमेंट बेस इंडस्ट्री और सर्विस है जो इस वक्त मंदी से सबसे जयादा प्रभावित है. हमारे गावं अभी भी विकास की मुख्य धारा से दूर हैं डेवेलपमेंट का दीपक यहाँ नहीं जला है और इसीलिए गाँव खाली हो रहे हैं और शहरों में भीड़ बढ़ रही है . हमारे शहर इस भीड़ को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं जिससे हर जगह भीड़ , शोर और प्रॉब्लम है.मंदी ने कम से कम हमें ये मौका तो दिया हम एक बार रुकें और सोचें कि हम कैसा और किसका डेवेलपमेंट चाहते हैं .आज का यूथ अब बैक टू दा रूट जा रहा है जहाँ अवसर भी हैं और पोटेंसियल भी .राजविंदर पाल सिंह एज MBA इन एडवर्टाइजिंग कई मल्टी नेशनल में काम कर चुके हैं अब मछली पालन से जुड़ गए हैं इस समय पंजाब के तेरह जगहों पर उनके फिश पोंड हैं वे गावों की पंचायतों को नजूल की ज़मीन पर फिश पोंड बनाने के लिए मोटिवेट कर रहे हैं जिससे नए रोज़गार पैदा किये जा सके.विनोद सैवियो सिंगापुर में एडवर्टाइजिंग एक्सीक्यूटिव थे .अब वे बंगलोर के पास कुनिगल में खेती कर रहे हैं और लोगों को रोज़गार दे रहे हैं . अशोक गोपाला एज ३९ इन्जीनियरिंग ग्रेजुएट एक मल्टी नेशनल में काम करते थे लेकिन अब वे रुड़की के पास खेती कर रहे हैं. ये एक्साम्पल भले ही कम हों लेकिन शुरुवात हो चुकी है और हर बड़े काम की शुरुवात छोटी चीज़ों से होती है . ये ट्रेंड डेडीकेटेड एजुकेटेड यूथ अगर गावों से जुड़ गया तो हमारे गावों की तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी .मंदी के बहाने ही सही हमें अपने गावों की याद तो आयी, नहीं तो शहरों में रहने वाले यूथ को गावों तो बस यादों में ही याद आता था . ये चेंज सोसाइटी के लिए तो अच्छा ही है इससे हमारी इकोनोमी को भी बूस्ट मिलेगा जिससे रोज़गार पैदा होगा और डिमांड बढेगी साथ साथ गावं भी आगे बढ़ेंगे . शहरों और गावों के बीच अंतर भी ख़तम होगा
आई नेक्स्ट मैं ९ अप्रैल को प्रकाशित
12 comments:
बहुत अच्छी जानकारी दी है आपने ,समकालीन विषय पर पोस्ट .बधाई .
काश व दिन जल्दी आता जब गावऔर शहर एक हो जाता
आपका सकारात्मक दृष्टिकोण अच्छा लगा ... शुभकामनाएं।
nirasha bhare mahaul me raah dikhane ki ye panktiyan aur mandi ke prati ye drishtikon kam se kam kuch logon ko dhadhs to badha hi sakta hai
sir i read ur topic mandi aur hum but i m sorry sir i m nt satisfied bccoz ur suggesting the people who are highly quqlified becoz o resession do farming can u do dis sir??? if u r at the place of them
जानकारीपूर्ण लेख.. आपका शुक्रिया सर ..
Sirji Mandi aayi hai to jaayegi bhi, yahan koi bhi cheez na sthir hoti hai na hi hamesha ke liye.....
Mandi ke bhane hi sahi aapne yuvao ko gaavo ke tarf rujhan to karaya varna aaj ke yuva gaav jaana nai pasnd karte ve mathar unhe apna 1 day picnic spot maante hai
bahut hi umda lekha , jankariyo se bharpoor.
mandi k ye alag prabhav pad kar acha laga sir.......
sir itni jaldi to in baton ko koi nahi apnayega lekin shayad aapki baat ke baare mein log soche..or jo log soch rahe hai jaise aapne bataya to bohat achi baat hai sir..we always welcome a postive change.
The living standards of people dependent on wages ang salaries are more affected by the recession.
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