खेल हमेशा किसी न किसी वजह से चर्चा में रहते हैं वो चाहे कामन वेल्थ गेम्स हों या क्रिकेट वैसे जिंदगी भी तो एक खेल ही है न कभी आप बहुत मेहनत करते हैं पर फिर भी सफलता नहीं मिलती लेकिन जैसे जिंदगी चलती रहती है वैसे जिंदगी का खेल भी , जिंदगी में अगर खेल महतवपूर्ण हैं तो हमारी फ़िल्में भी इनसे कहाँ अछूती हैं बहुत सी फिल्मों की कहानी खेलों के इर्द गिर्द ही घूमती है फैमली ड्रामा के बाद खेल ही एक ऐसा विषय है जिसमें बॉलीवुड ने अपनी प्रयोगधर्मिता को दिखाया है .१९७७ में बनी शतरंज के खिलाड़ी हालाँकि प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास पर आधारित थी पर शतरंज के बहाने इस फिल्म ने भारत में अंग्रेजों के आने का समय और नवाबों के रवैये का अच्छा चित्रण किया था , १९८४ में बनी हिप्प हिप्प हुर्रे ने पहली बार फ़ुटबाल के खेल को बड़े परदे पर उतारा .हार और जीत तो हर खेल के साथ जुडी रहती है पर हार के डर से खेल नहीं छोड़ा जाता है इम्पोर्टेंट है खेल को खेलना अगर ये फिलोस्फी हम अपनी लाइफ में उतार लें तो जिंदगी का खेल टेंशन फ्री हो जाएगा .अस्सी के दशक में खेलों पर आधारित अन्य फिल्मों में बोक्सर(१९८४),आल राउंडर(१९८४),कभी अजनबी थे (१९८५)और मालामाल (१९८८)प्रमुख थी .जिसमें बोक्सर को छोडकर सभी की विषय वस्तु क्रिकेट ही थी आपको याद दिलाता चलूँ यही वह दौर था जब भारत ने १९८३ का क्रिकेट का वर्ल्ड कप जीता था और धीरे धीरे क्रिकेट का जादू लोगों के सर चढ़कर बोलने लगा था .असल में खेलों की दुनिया कभी हार न मानने की ह्यूमन इंस्टिंक्ट को रीप्रेसेंट करती है और यहीं खेल हमारी जिंदगी से जुड जाते हैं .नब्बे का दशक खेलों के लिहाज़ से ज्यादा बेहतरीन नहीं माना जा सकता सिर्फ दो फ़िल्में ऐसी थी जिनका कथानक खेलों से प्रेरित था अव्वल नंबर (१९९२) क्रिकेट , और जो जीता वही वही सिकंदर (१९९२) सायक्लिंग रेस पर आधारित थी .फिर आया २००० का दशक दुनिया और खेल में बहुत कुछ बदल चुका था खेल रात में फ्लड लाईट में खेले जाने लग गए खेलों को इन्तेरेस्तिंग बनाने के लिए उनके नियम में बदलाव हुआ और यही वक्त था जब हमारी जिंदगी के नियमों को मोबाईल और मल्टीप्लेक्स बदल रहे थे बदलाव के इस दौर में फिल्मों को भी बदलना था हमजोली फिल्म के जीतेन्द्र और लीना चंदावर्कर के बेडमिंटन मैच के बाद से अब तक काफी कुछ बदल चुका था .इस दशक में क्रिकेट को ध्यान में रखकर एक के बाद एक फ़िल्में आयें , जिनमे सबसे पहले लगान(२००३) का जिक्र करना जरूरी है ये वो पहली फिल्म थी जिसने पारम्परिक भारतीय सिनेमा की ताकत का एहसास दुनिया को कराया .लगान के अलावा स्टम्प्ड (२००३),इकबाल (२००५) हैटट्रिक (२००७) से सलाम इंडिया (२००७), दिल बोले हडिप्पा (२००७ ) ऐसी और फ़िल्में थी.
क्रिकेट पर ज्यादा फ़िल्में बनने का कारण लोगों में इस खेल के प्रति जुनून की हद तक लगाव है ऐसे में चक दे इंडिया एक नया नजरिया ले कर आयी सिनेमा के रूपहले परदे पर जिसका विषय एकदम नया और अनोखा था महिला होकी फिल्म ने सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किया और लोगों में होकी के प्रति एक नया जोश भरा .ऐसा नहीं है कि फ़िल्में पोपुलर स्पोर्ट्स को ध्यान में रखकरबनाई जाती हैं तीन पत्ती :ताश , तारा रम पम :रेसिंग , स्ट्राइकर: कैरम और लाहौर :किक बॉक्सिंग पर आधारित फिल्में है, जो डायवर्सिटी खेलों में है वो हमारी फिल्मों में भी दिखती है पर जैसे खेल को खेल भावना से खेला जाता है उसी तरह से जिंदगी के खेल को भी खेलिए आज अगर आप हारें तो कल जीत भी सकते हैं और अगर आज जीते हैं तो कल हार भी सकते हैं तो क्या कहते हैं इन फिल्मों के खेल के बारे में आप बताएगा जरुर
8 comments:
खेल के बहाने अच्छी खबर ली है। बधाई।
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प्यार का तावीज..
सर्प दंश से कैसे बचा जा सकता है?
खेलों पर आधारित एक और फिल्म आई थी "गोल", हालाँकि ये फिल्म ज्यादा नहीं चली पर फुटबाल के प्रति लोगो की दीवानगी को इसने भुनाया.. भारत में हमेशा से ही खेलों की दीवानगी देखी जाती रही है.. फिल्मो में खेलों का ये प्रयोग बेहतरीन है.
waise bhi khelo par kai filme bani hain jaise chack de india , lagan.all rounder, gool. aur logo ko protsahit kiya hai. humre yanha aab sabse jyda khel cricket hi khela jata hai aur uski lokpriyata pure world me hai. aur jitani bhi filme bani hain o cricket opar hi bani hain.gool filme bhi aye thi jo footbaal par hi bani aur film jayda nahi chal paye parantu footbaal ke prati logo hi diwangi ko bhunaya.bharat me khel ki lorpriyata lgatar bad rahi hai goan aur chote kasboo tak khel bahut hi jor pakad raha hai.
Aise kuch different filmein hi hoti hai jo hame ye ehsaas dilaati hai ki cricket ke alawa bhi bahut se game jin par hamara dhyaan nahi jaata,aur ham har waqt cricket ko hi importance dete hai,khel khel mein bahut umdaa saaz chheda....
sir indian movies me har us vishay ko bhunane ki koshish ki jati h jo popular hota h khel bhi unhi me se ek vishay h........india me cricket k prati diwangi jag-zahir hai fir b cricket k alava aur khelo par films banna sarahniya hai
Why soo much of importance is given only to cricket, and other games are ignored same thing can be seen in movies also, but still in some or the other way they are trying to divert the attention of masses towards other games also.
हमारे देश में खेलो पर बहुत सी फिल्मे बनती है,जिनमे से ज्यादातर क्रिकेट के ऊपर क्योंकि हमारे देश में क्रिकेट की प्रति दीवानगी है, क्रिकेट पर फिल्म बनेगी तभी तो फिल्मे हिट,सुपरहिट,होंगी क्योंकि क्रिकेट का क्रेज है हमारे देश में आप भारत की खेल फिल्मों का इतिहास देखिये 70% फिल्मे क्रिकेट पर बनी है,ये तो फिल्मो की बात है लेकिन खेल फिल्मे हमारे देश में खेलो को बढ़ावा देती है चाहे वह जो भी खेल हो । लेकिन खेल में किसी की जीत होती है तो किसी की हार क्योंकि खेल में जीत हार तो लगी रहती है,वैसे ही "हमारे जीवन में जीत ,हार तो रहती है" ये बात अगर हम सबको समझ आ जाये तो जिंदगी जीने का नजरिया ही बदल जयेगा ।
खेल ने कही न कही लोगो के दिलो में जगह बना ली है। तभी लोग उसे देखना पसंद कर रहे है फिर जाहे वह लाइव हो या खेल पर आधारित फ़िल्मी दुनिया । जैसा की साफ़ आपके लेख में देखा जा सकता है साल दर साल खेलो पर फिल्में बनती जा रही हैं ।
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