अन्ना के आंदोलन ने देश के सोये हुए मध्यम वर्ग को एक नयी तरीके की राजनैतिक चेतना का एहसास कराया .मैं कोई राजनैतिक लेक्चर देने नहीं जा रहा .मैं तो बस उस माध्यम की शक्ति का एहसास आप सबको कराना चाहता हूँ जो हमारे जीवन में असर तो डालता है पर हम मानने को तैयार नहीं होते जी हाँ फ़िल्में जरा याद कीजिये अन्ना के समर्थन में हो सकता हो आपने भी कैंडल मार्च निकाला हो कुछ याद आया ये कैंडल मार्च का आइडिया ‘रंग दे बसन्ती’ फिल्म ने हमें दिया कि हाँ हम भी दुनिया बदल सकते हैं .फ़िल्में समाज का आईना होती हैं इस विषय पर मतभेद हो सकते हैं पर कोई भी फिल्म अपने वक्त और समाज से कट कर नहीं बन सकती आप इस तथ्य से असहमत हो सकते हैं पर इसे ख़ारिज नहीं कर सकते हाल ही आयी फिल्म आरक्षण इसका ताजा उदाहरण है मुद्दा यह महत्वपूर्ण नहीं है कि फिल्म आरक्षण समर्थक है या विरोध में पर इसी बहाने आरक्षण जैसे मुद्दे पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर लंबी लंबी बहस चलीं थोडा सा पीछे चलते हैं आज की यंगिस्तानी पीढ़ी महात्मा गाँधी को केवल राष्ट्र पिता के रूप में जानती थी उनका दर्शन क्या था हू केयर्स लेकिन फिल्म ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ ने समाज को गांधीगीरी का एक नया मंत्र दिया ,फिल्म के बहाने ही सही गाँधी जी का दर्शन दुबारा जाना समझा गया .हम अपनी फिल्मों को भले ही बहुत गम्भीरता से न लेते हों लेकिन सामाजिक परिवर्तन में इनकी एक बड़ी भूमिका रही है .लोगों की मानसिकता एक दिन में नहीं बदलती उसके लिए लगातार प्रयास की जरुरत होती है और ये काम फिल्मों के द्वारा बेहतरीन तरीके से होता है .मनोरंजन उद्योग के फलने फूलने से हम लगातार टीवी और उसी बहाने फिल्मों के संपर्क में रहते हैं . समाज की हर छोटी बड़ी समस्या पर जहाँ फ़िल्में बनी हैं वहीं फिल्मों ने हमें विरोध के नए प्रतीक दिए हैं .एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी बस्ती पर जब ‘धारावी’ फिल्म बनी तो लोगों को एहसास हुआ कि वहां पर रहने वाले लोगों का जीवन कितना मुश्किल है उनके जीवन स्तर को बेहतर करने का सरकारी प्रयास तेजी से इसी फिल्म के बाद हुआ .हमें आजादी मिले ज्यादा वक्त नहीं हुआ थाजब देश के कई हिस्सों में दस्यु आतंक सर चढ कर बोल रहा था और तब आयी ‘जिस देश में गंगा बहती है(1960)’ डाकुओं की समस्या और उनके पुनर्वास पर बनी कुछ अच्छी फिल्मों में से एक है .हमारे समाज और उसमे होने वाली घटनाएँ हमेशा फिल्मों के केंद्र में रही हैं .ऑनर किलिंग पर अभी आयी फिल्म ‘खाप’ हो या राजनीति का सच बयान करती फिल्म ‘राजनीति’ हो .फिल्मों के लिहाज से हर दशक अपने समय का प्रतिनिधित्व कर रहा होता है..आजादी से पहले जब छुआ छूत पर बात करना मुश्किल था ‘अछूत कन्या’ जैसीफिल्म ने बड़े सार्थक तरीके से इस समस्या को लोगों के सामने रखा इसी कड़ी में कुछ और नाम सुजाता ,अंकुर ,पार सद्गति ,दीक्षा ,समर जैसी फिल्मों के भी हैं जो समय के सच को बयान करती हैं .हम फिल्मों के असर से बच नहीं सकते आप ‘पीपली लाईव’ को भूले नहीं होंगे एक साथ देश के किसानों की समस्या और इलेक्टोनिक मीडिया की नौटंकी पर करारा व्यंग्य .ऐसा संयोग और विषय के साथ न्याय कम ही फ़िल्में कर पातीं हैं .हमारी फ़िल्में बदली हैं और बदल रही हैं और साथ साथ दुनिया भी तो अब हमारे भी बदलने का वक्त आ गया है तो शुरुवात आजसे ही क्यों न की जाए .
आई नेक्स्ट ६ सितम्बर २०११ को प्रकशित
21 comments:
तथ्य परक आलेख,आभार.
sir hamesha ki tarah aapka article jani pahchani cheezo ko ek naye tareeke se dikha gaya.
llekin sir, mujhe lagta hai ki, candle march me shamil hone vale zyadatar log glamour motivated hite hain. sociological point of view se kahu toh "a guided MOB". jaha log motivated to hain per un karno se nahi jinke liye protest hai. zyadatar log ye jante hi nahi hai ki vo protest ke liye kyu aaye hai. aakhir aapko malum to hona chahiye ki jis cheez ke liya aap sadko per aa gaye hain vo hai kya...
अब हमारे भी बदलने का वक्त आ गया है तो शुरुवात आजसे ही क्यों न की जाए .सही कहा आपने ....
meaningful films hamesha se hi samaj ko rasta dikhati aayi hain. agar kaha jaye ki aaj hamari personality films se hi prerit hai to galat nai hoga.. hamare kapde, bolchal, rehan-sahan, sab par films ka prabhav dikhta hai..
anna ke andolan ne desh ke young ko to jaga diya aur unke kartavya ka ahasaas dilaya.filme saja ka aina hoti hain rang de basanti ussi aine ka exmple hai. aarakshan fil bani to aarakshan ke liye but is film me coaching par jyada jor diya, jo mudda tha us se ye film hut gaye.agar desh ko ek naye disha deni hai to young genration ko age aana hi padega. aab humare bhi badale ka waqt aaa gaya ha.
anna ke andolan ne desh ke young ko to jaga diya aur unke kartavya ka ahasaas dilaya.filme saja ka aina hoti hain rang de basanti ussi aine ka exmple hai. aarakshan fil bani to aarakshan ke liye but is film me coaching par jyada jor diya, jo mudda tha us se ye film hut gaye.agar desh ko ek naye disha deni hai to young genration ko age aana hi padega. aab humare bhi badale ka waqt aaa gaya ha.
filme samaj ka aaina hoti hai cahe wo paar ho ya aarakshan inke dwara sc/st k ladai ko dikhaya gaya us waqt roti par jao dete the aur ab apne aadhikaro k liye ladte hai filmo samay samay par ye eahsas dilaya hai aur un stithiyo ki aur dhayan dilaya hai jin par parda daal diya jata hai
अब वाकई समय है जागने का..बदलने का और एक नयी शुरुआत करने का.. सिर्फ कागजों में हम दुनिया से टक्कर नहीं ले सकते.. आज का भारत युवा भारत है.. कही से भी सीखिए, फिल्मो से, अपने बड़ो से, अन्ना से पर अब हाथ पर हाथ रख कर बैठने का वक़्त नहीं है.. मैने शुरुआत कर दी है..
sirji kabhi filmon mein dikhaye hue kuch patra aur scenes bahut achchi achchi cheezen sikha deta hai, par jahan tak baat rahi candle light march ki to unme kayi aaye hue loagon ko apne aane ka motiove tak nahi pata hota hai...sochte hai bheed juti hai ham bhi aa jaaye aur limelight ka hissa ban jaaye
Your article was very inspiring but any one has to work for the upliftment and benefit of the society rather than thinking of their own profit.
sir ish lekh mai aapne bilkul sahi kha..hmey jyadatar movie koi na koi message jarur deti aur kahi na kahi koi message deti hai...chahe vo aarakshan ho..rang de basanti , phir milenge....bas hum zarurat hai ki hum unsy sakhne...aapka yeh lekh ek kadam hai hmey ish aur sochne ke liye..
sir so true u had written.....aur mere hisab se films hme inspire hi ni krti balki aur knowledgable b bnati h jaise ki paa,my name is khan aur ghuzarish k zariye hme aisi rare diseases k bare me malum hua jinka k ham phle nam tak ni jante te.......dats y ye kha b jata h cinema is a source of infotenment
Film to humesa hi khuch na khuch sikh deti aai hai par hum sayad sikh lena bhul jate hai ya yu kahe ki bachpan se humare dimag me dues dues ka bhara gya ki filme kahrab hoti hai par ab syad ye najjariya badal raha hai par sr aap ki di hui sikh hum kabhi nai bhulege paka
sir aapne sahi kaha filme humein deekh deti hai bas baat yeh hai ki him unse kitna seekh rahe hai munnabhai mbbs aayi sabne maze lekar dekhi bhi lekin kya aapko lagta hai ki uska asar hua??...koi kisi ke gher ke aage thuk de to use munnabhai mbbs yaad nahi aayegi pehle woh ladega..lolz......
or jahan tak anna ke andolan mein march ka sawal hai to haan bohat se log rang de basnti se prerit honge shayad...but aap yeah bhi to dekhiye samandar mein ek kankar maarne se khoob door tak pani mein uchal aaya...
mein janti hun mein ek hi jagah pe do baten ker rahi hun lekin ab in dono baton ko jod diya jaye means munnabhai mbbs se saare logo per nahi lekin 100 mein 2-3 % logon pe to asar hua hoga or isi tarah anna ke andolan mein poori tarah se na sahi to kuch percent to log sochte honge...or yeh aisa beej hai jiska asar abhi nahi aaj se 15 -20 saal baad to dikhega.......
sir bhut acha hai lekh aapka. lekin meri najar mai dil ki kalam se.........desh ko bachana hai pradesh ko bchana hai har mohalle har chetr ko bchana hai, jagah-jagah jo wyapt ho chuka hai, mailrupi bhastachar ko mitana hai.....
desh ka bhla n ho payega, vikash bhi apna tham jayega karenge sabhi apni tham jayega, karenge sabhi apni manmani, nindra se logo ko jagana hai...
atyacharo ki bharmar hogi, gardan par latkti talwar hogi, jiwan sabhi ka dubhar ho jayega, wis rupi aiusagi ko neer banana hai.......
desh ko bachana hai, pradesh ko bchana hai, har mohalle har chetra ko bchana hai, jagah-jagah jo vyapt ho chuka ho chuka hai, mailrupi bharstachar ko mitana hai.
स्वदेश ,प्रेम रोग,उड़ान, जैसी आदि फिल्मों से हमे और हमारे समाज को काफी सीख मिली,और इन फिल्मों से समाज में बदलाव आया। फिल्मे हमारी समाज का आईना होती है,और फिल्मो से हमे सीख लेती रहेनी चाहिए। कम समय में बहुत कुछ सीखा देती है ये फिल्मे।
फिल्में हमे बहुत कुछ सिखाती है वो अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी अब वो हमारी सोच परनिर्भर करता है की हम फिल्मो से क्या सीखते है फिल्मो में जो कुछ भी दिखाया जाता है वो कही न कही हमारी जिंदगी पे गेहरा असर डालता है और हमे भी अपने आप को बदलना चाहिए जो सही हो उसी पर विचार करना चाहिए
फिल्में हमे बहुत कुछ सिखाती है वो अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी अब वो हमारी सोच परनिर्भर करता है की हम फिल्मो से क्या सीखते है फिल्मो में जो कुछ भी दिखाया जाता है वो कही न कही हमारी जिंदगी पे गेहरा असर डालता है और हमे भी अपने आप को बदलना चाहिए जो सही हो उसी पर विचार करना चाहिए।
I agree to your point, but now even to depict the most serious of the topic the film makers who are experimenting are not able to because of the censorship. For example the very famous Udta Punjab which had to go under several cuts before it gets on the 70 mm screen and even for Babumushai Bandookbaaz for the same.
सचमुच फिल्मों में समाज को बदलने की ताकत होती है | अफ़सोस यह है कि अच्छी फिल्मों की संख्या इतनी कम होती है किः लगता है जैसे फिल्मकारों ने अपनी ज़िम्मेदारी पूरी नहीं निभायी | ज्यादातर फिल्मों का इस्तेमाल जनता को जागरूक करने एवं सकारात्मक बदलाव लाने के बजाय फ़िज़ूल की प्रेम कहानी और बिना दिमाग लगाये पैसा कमाने की ओर होता है | सरकार को चाहिए की फिल्मों का इस्तेमाल tokenism के बजाय सोसाइटी डेवलपमेंट पर केन्द्रित करे और रील लाइफ की ताक़त को सोसाइटी रिफार्म एवं व्यक्तित्व निर्माण के लिए ज़ोरों शोरों से इस्तेमाल में लाये|
फिल्मे हमारे समाज का आईना होती है , अभी हाल में ही आई फिल्म मदारी और पिंक ने हमारे समाज की विकृतियों को
दर्शाया है .
Post a Comment