इतना सन्नाटा क्यों है भाई ......,मेरी फेसबुक की वाल सूनी सूनी सी है .ज्यादा दिमाग लगाने का नहीं हाँ वैसे भी दिमाग लगाने का काम हमलोगों ने गूगल बाबा पर छोड़ दिया है ,समझ गए न, गूगल बाबा बोले तो इंटरनेट वैसे इन्टरनेट हमारे जीवन में अनेक परिवर्तन लाया है लाईफ पहले के मुकाबले कितनी आसान हुई पर यगिस्तानियों के बिहैवियर को बदलने में सबसे बड़ा रोल तो सोशल नेटवर्किंग साईट्स का रहा है. फ़िल्मी अंदाज़ में यूँ कहें इनके बिना जीना मरने से ज्यादा मुश्किल है.लोल से लेकर ओएमजी तक न जाने कितनी शब्दावलियां गढी हैं एक नयी लैंगुएज से हम सब रूबरू हुए हैं मैंने भी गूगल बाबा की मदद से जाना सिर्फ सोशल नेटवर्किंग साईट्स लिखने इक्कीस करोड़ साठ लाख रिजल्ट्स मिलते हैं पर अब इसकी स्वतंत्रता पर सवाल भी उठने लगे हैं .बचपने में मैंने कहीं पढ़ा था तकनीक अच्छी या बुरी नहीं होती उसका इस्तेमाल अच्छा या बुरा होता है वैसे भी कोई शौक जब आदत बन जाता है तो उसे एडिक्शन कहते हैं .फेसबुक और ट्विटर जैसी साईट्स हमें फ्रीडम ऑफ एक्प्रेशन देती हैं पर इसका ये मतलब नहीं है कि इस फ्रीडम का नाजायज़ फायदा उठाया जाए और इसके लिए हमें खुद रिस्पोंसिबल बनना पड़ेगा .हर चीज के लिए ला किसी भी सिवीलाईज्ड सोसाईटी के लिए अच्छा नहीं है .अब देखिये न मेरी एक मित्र क्रैंक काल्स से परेशान थी .पुलिस के पास वो जाना नहीं चाहती थी बस उन्होंने उसका एक अच्छा तरीका निकला जब भी उन्हें कोई क्रैंक कॉल आती उसका नंबर वो अपने वाल पर ये लिखकर डाल देतीं कि इस नंबर से क्रैंक कॉल आ रही हैं फिर क्या उस कॉल करने वाले की शामत आ जाती, कितना गांधीवादी तरीका है विरोध का पर अगर इस तरीके का इस्तेमाल हम यूँ ही किसी को परेशान करने के लिए करने लगें तो सोचिये क्या होगा.इजिप्ट और ट्यूनिसिया की क्रांति की बात छोडिये हमारी डेली लाईफ में इन सोशल नेटवर्किंग साईट्स के थ्रू कितनी प्रोब्लम सोल्व हो जाती हैं .मेरे भाई को एक ट्रेंड कंप्यूटर प्रोफेशनल की जरुरत थी उसने स्टेटस अप डेट किया और उसे काम का आदमी मिल गया.अब देखिये न इस आर्टिकल को लिखने की माथा पच्ची कर रहा था फेसबुक पर गया एक काम की कविता मिल गयी जो फेसबुक के इस्तेमाल पर ही है , मैंने सोचा आप सबसे शेयर कर लिया जाए “खूब मनाओ और भुनाओं तुम सारे अवसर उड़ाओ मज़ाक किसी का या करो तिरस्कार वैसे प्रोफाइल आपका, उसपर आपका अधिकार कोई आहत न हो यहाँ, इसका करना विचार…”एक बात और ये कविता मेरी नहीं पर हम में से कई लोग दूसरों की सामग्री को बगैर क्रेडिट किये हुए इस्तेमाल कर लेते हैं ऐसा नहीं करना चाहिए भले ही इंटरनेट सबके लिए पर क्रियेटर को उसका क्रेडिट दिया जाना चाहिए ऑन लाइन इस चोरी को रोकने के लिए अमेरिकी सरकार ‘स्टॉप ऑनलाइन पाइरेसी विधेयक’ लाने जा रही है. अब अगर हम दूसरों के कंटेंट को बिना उसकी परमिशन के इस्तेमाल न कर रहे होते तो शायद ये नौबत न आती.नियम हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं पर ये नियम दूसरों की बजाय हम खुद बनाये तो कितना अच्छा हो न वैसे भी हम उस पीढ़ी के हैं जो अपने नियम खुद बनाती है तो फिर सोशल नेटवर्किंग साईट्स के इस्तेमाल में ये पहल हम खुद क्यों नहीं करते तो फेसबुक की वाल पर इसी मुद्दे पर कुछ लिख डालिए .डर्टी पिक्चर में भले ही डायलोग हो कि जिंदगी जब एक बार मिली है तो दो बार क्या सोचना पर सोशल नेटवर्किंग साईट्स का जब भी इस्तेमाल करें दो बार सोच समझ कर करें क्योंकि आप की बात कितने लोगों तक जाने वाली है इसका अंदाज़ा आपको खुद नहीं है तो प्ले सेफ क्योंकि आपकी दी हुई चोट से बहुत से लोग परेशान हो सकते हैं फिर हम यांगिस्तानी तो रिस्पोंसिबल सिटीज़न हैं न तो प्रूव कीजिये अपने आप को .
आई नेक्स्ट में 19/01/12 को प्रकाशित लेख