भारत की टेलीविजन देखने वाली जनता का नब्बे प्रतिशत हिस्सा मनोरंजक चैनल देखता है |दिसंबर 2011 तक भारत में 402 समाचार चैनल और 415 मनोरंजक चैनल अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं |सी एम् एस मीडिया लैब द्वारा टेलीविजन कार्यक्रमों के प्राईम टाईम विश्लेषण के शोध से यह पता चलता है कि सर्वाधिक देखे जाने वाले ६ चैनलों के प्राईम टाईम कार्यक्रमों में बीस प्रतिशत से ज्यादा कार्यक्रम नॉन फिक्शन (गैर काल्पनिक )श्रेणी के हैं |यह आंकड़े बताते हैं कि नॉन फिक्शन (गैर काल्पनिक) कार्यक्रम लोकप्रिय मनोरंजक चैनलों में ज्यादातर सप्ताहांत में प्रसारित किये जाते हैं जबकि इन्हीं चैनलों पर सोप ऑपेरा के लिए हफ्ते के पांच दिन आरक्षित रहते हैं फिर भी नॉन फिक्शन (गैरकाल्पनिक ) कार्यक्रमों में दर्शकों की रूचि ज्यादा बढ़ रही है |यह तो बात उन चैनलों की है जो मनोरंजन के अन्य कार्यक्रम भी दिखाते हैं पर बड़ा बदलाव वो चैनल ला रहे हैं जो मुख्यता इसी श्रेणी के कार्यक्रम दिखा रहे हैं| 1985 में मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखित धारावाहिक हम लोग से भारत में सोप ओपेरा की शुरुवात हुई और धीरे धीरे यह हर घर का हिस्सा बन गए ,कथानक और चरित्र भले ही बदलते रहे हों पर इनके कथ्य का मूल भाव परिवार और इंसानी रिश्ते के आस पास रहे बाद में एकता कपूर के “के” नाम से शुरू होने वाले धारावाहिकों ने ग्लैमर का तडका लगा दिया “हम लोग” के मध्यवर्ग से शुरू हुई इन धारवाहिकों की कहानी कब उच्च वर्ग के इर्द गिर्द घूमने लग गयी इसका एहसास भी हमें न हुआ पर “बुद्धू बक्सा” अब बुद्धू नहीं रहा है और दर्शक भी समझदार हो रहे हैं|सी एम् एस मीडिया लैब का ये सर्वेक्षण तो यही बता रहा है |वास्तविक रूप में दर्शकों को अभी भी मनोरंजन के लिए टेलीविजन पर निर्भरता ज्यादा है लेकिन उनकी रूचियाँ बदल रही हैं जिसे फैक्चुअल इंटरटेन्मेंट का नाम मिला है| दुनिया की जानी मानी प्रसारक और टेलीविजन हस्ती ओपरा विनफ्री पिछले दिनों भारत में थी और अपनी इस यात्रा को उन्होंने एक टीवी वृत्तचित्र का रूप देकर सारी दुनिया में प्रसारित किया गया और दुनिया ने भारत को ओपरा के नजरिये से देखा|वास्तविक तथ्य के साथ मनोरंजन भारत एक नई तरह की टेलीविजन क्रांति की तरफ बढ़ रहा है|जिसमे सोप ओपेरा,कोमेडी,और फ़िल्मी गाने के बगैर चैनल चल रहे हैं|इन चैनलों में लाईफ स्टाईल, यात्रा, विज्ञान और इंसानी जीवटता की सच्ची कहानियां हैं वो भी बगैर किसी लाग लपेट के |पिछले बीस सालों में टेलीविजन धारावाहिकों के कथ्यों में इंसानी रिश्तों की जटिलता को ही दिखाने की कोशिश की जाती रही है यदि किसी सामाजिक समस्या को उठाया भी गया तो टी आर पी और बाजार के दबाव में वो अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो पाए बाल विवाह जैसी गंभीर सामाजिक समस्या पर आधारित धारावाहिक 'बालिका वधू’ भी अब अपने उद्देश्य से भटक ससुराल के ड्रामा पर अटक गया,'मन की आवाज़ प्रतिज्ञा' एक आत्मविश्वासी लड़की की कहानी से शुरु हुआ लेकिन कहानी फिर भटक गई. प्रतिज्ञा उसी लड़के से शादी कर बैठती है जो उसे तंग करता है|'बैरी पिया' और 'न आना इस देस लाडो' भी सामाजिक समस्याओं और ग़रीबों के सशक्तिकरण के मुद्दे को लेकर शुरु हुए पर पहचान छोड़ने में असफल रहे|दूसरी तरफ प्रयोगधर्मिता गैर काल्पनिक कार्यक्रमों का मूल आधार है मनोरंजन चैनलों में रीयल्टी शो सबसे ज्यादा हावी हैं जो कि ज्यादातर पश्चिमी देशों के आयातित फोरमेट पर हैं| रियल्टी शो ने भारतीय टेलीविजन के परदे को हमेशा के लिए बदल दिया ये शादियाँ करा रहे हैं लोगों को मिला रहे हैं उनकी समस्याएं सुलझा रहे हैं नयी प्रतिभाओं को सामने ला रहे हैं यानि घर के बड़े बूढ़े से लेकर यार दोस्त तक सभी भूमिकाओं को ये बुद्धू बक्सा बखूबी निभा रहा है|दर्शक इनको लेकर कभी हाँ ,कभी ना वाली स्थिति से उबर अब उपभोक्ता में तब्दील हो गए हैं | वहीं गैर काल्पनिक श्रेणी में एक और विधा उभर रही है जिसे फैक्चुअल इंटरटेन्मेंट के नाम से जाना जाता है जिसमे वास्तविक तथ्यों को मनोरंजक बना कर प्रस्तुत किया जाता है|जो समाचार और वृतचित्रों का मिला जुला रूप है जिसमे इतिहास को जीवंत किया जा रहा है और वर्तमान को दृश्य बंध |इस तरह के कार्यक्रम डिस्कवरी,और हिस्ट्री जैसे चैनलों पर प्रमुखता से दिखाया जा रहे है| कुछ ट्रक ड्राईवर दुनिया की दुर्गम सड़कों पर ट्रक चला रहे हैं तो कहीं हाथ से मछली पकड़ने की होड लगी,कहीं एक युवक सुपर मानवों की तलाश में दुनिया का चक्कर काट रहा है,कहीं एक यात्री दुनिया के अलग अलग देशों में अलग अलग व्यापार कर यात्रा के पैसे जुटा रहा है |हमारे आस पास के जीवन में इतना मनोरजन होगा किसी ने सोचा ना था इसीलिये अब इन्फोटेनमेंट की जगह फैक्चुअल इंटरटेन्मेंट ज्यादा पसंद किया जा रहा है ,महत्वपूर्ण बात ये है कि अब इस तरह के चैनलों में भारत बहुत तेजी से दिखने लग गया है इसका एक कारण है उदारीकरण के बाद एक बड़ा मध्यवर्ग उभरा है जो पर्यटन और खान पान से जुडी चीजों में खासी रूचि ले रहा है|जिसके लिए पर्यटन का मतलब धार्मिक स्थलों की यात्रा नहीं बल्कि अनदेखी जगहों को देखना है वहीं विदेशी भी भारत को एक बड़े बाजार के रूप में देख रहे हैं और इसके लिए वे भारत को समझना चाहते हैं जिसमे यात्रा और खान पान से सम्बन्धित कार्यक्रम काफी मददगार होते हैं|ये द्वीपक्षीय प्रक्रिया जहाँ दर्शकवर्ग को बढ़ा रही हैं वहीं व्यवसाय के लिहाज से एक बड़ा बाजार भी बन रहा है |कंटेंट के स्तर पर ये वृतचित्र जैसी विधा को आम दर्शक तक पहुंचा कर उसे लोकप्रिय कर रहे हैं|
इन सब कारणों से लाईफ स्टाईल आधारित चैनलों को बढ़ावा मिल रहा है और भारतीय स्थापत्य ,भोजन और वन्य जीवन से जुड़े कार्यक्रम प्रमुखता से दिखाए जा रहे हैं| क्षेत्रीय भाषाओँ में उपलब्धता के कारण दर्शक अपनी भाषा में इन कार्यक्रमों का लुत्फ़ ले पा रहे हैं | हालाँकि ये अभी शुरुवात है पर भारतीय टीवी स्क्रीन का चेहरा बदल रहा है |फैक्चुअल इंटरटेंमेंट का अभी कुल टेलीविजन कार्यक्रमों का मात्र 1.5% है और वर्ष 2008 से यह तीस प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है और इस का कुल व्यवसाय 200 से 250 करोड़ रुपैये के बीच है | और भविष्य में इसके तेजी से बढ़ने की उम्मीद है |
नेशनल दुनिया में 09/09/12 को प्रकाशित