Wednesday, January 29, 2014

रवैया बदले, तो चले ई-गवर्नेंस की गाड़ी

मोबाइल एप्लीकेशंस यानी ऐप्स की दुनिया में भारत सरकार काफी देर से आई है, लेकिन वह कितने दुरुस्त ढंग से आई है, यह समझने के लिए शायद अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है। पिछले कुछ समय में ढेर सारे सरकारी विभागों, संस्थाओं और कंपनियों के मोबाइल एप्स लांच हुए हैं। केंद्र सरकार ही नहीं, कई राज्यों की सरकारें भी इस दिशा में बढ़ रही हैं। इस मामले में रेलवे और डाक विभाग के ऐप्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। केंद्र सरकार ने सौ से ज्यादा विभागों में मोबाइल गवर्नेंस पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। जहां तक ऐप्स का मामला है, तो इनके डाउनलोड और उपयोग वगैरह के आधिकारिक आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह चलन इतना तो बताता ही है कि इस मामले में गंभीरता आई है |भारत के लिए यह रास्ता महत्वपूर्ण इसलिए हो सकता है  कि मोबाइल हैंडसेट अकेला ऐसा माध्यम है, जिससे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचा जा सकता है। यह अकेला ऐसा माध्यम है, जो शहरों और कस्बों की सीमा लांघता हुआ तेजी से दूरदराज के गांवों तक पहुंच गया है। इसके साथ ही देश में कंप्यूटर के मुकाबले मोबाइल पर इंटरनेट सुविधा हासिल करने वालों की संख्या भी बढ़ चुकी है। लोगों के लिए तो यह कई तरह की सुविधाएं हासिल करने का महत्वपूर्ण माध्यम है ही, साथ ही सरकार के लिए भी यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इससे बहुत सी योजनाओं के वास्तविक कार्यान्वन पर नजर रखी जा सकती है। कई मामलों में नौकरशाही की बाधाओं को भी कम किया जा सकता है।इसे लेकर पिछले कुछ समय में देश में कई तरह के प्रयोग हुए हैं, जो काफी उम्मीद बंधाते हैं। खासकर रेलवे आरक्षण को लेकर जो प्रयोग हुए हैं। देश में ई-कॉमर्स को विस्तार देने और इसमें लोगों का भरोसा कायम करने का श्रेय भारतीय रेलवे को जाता है। इससे कुछ हद तक व्यवस्था में पारदर्शिता भी आई है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण काम हुआ है एसएमएस टिकटिंग का। रेलवे ने एसएमएस को रेल टिकट की मान्यता देकर कागज के अनावश्यक इस्तेमाल से मुक्ति का रास्ता तैयार किया। यह जरूर है कि दूसरे विभागों ने इस सिलसिले को इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ाया।सरकारी विभागों के ऐप्स की निर्भरता बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि वह आम जनता के लिए कितने उपयोगी साबित होते हैं। हम यह उम्मीद तो करते हैं कि लोगों को इन सब तरीकों से नौकरशाही की बाधाओं से मुक्ति दिलाई जा सकेगी, लेकिन सच यही है कि इन्हें लागू करने का जिम्मा अब भी उसी नौकरशाही के हवाले है। इसी नौकरशाही के कारण ई-गवर्नेंस की सोच एक हद तक पहुंचकर रुक गई। सरकारी विभाग अपनी वेबसाइट बनाकर अपने पुराने रवैये पर लौट आए। अगर हम चाहते हैं कि नया रुझान पूरी तरह कामयाब हो, तो इस रवैये को बदलना सबसे जरूरी है।
हिंदुस्तान में 29/01/14 को प्रकाशित 

Tuesday, January 28, 2014

खूबसूरत यादों का एल्बम

बहुत ठण्ड है.मुझे पता है कि ऐसे मौसम को आप भी एन्जॉय कर रहे होंगे.सारी दुनिया में ठण्ड की चर्चा है,कोहरा,धुंध और ढेर सारी ठण्ड,यूँ तो ऐसे भी जाड़े का मौसम बहुत खास होता है खाने पीने से लेकर पहनने और घूमने का असली लुत्फ़ तो जाड़े में ही आता है. दिन छोटे और रातें बड़ी हों तो कहने ही क्या यानि मौजा ही मौजा.ऐसे ही एक शाम मैं  अपनी रजाई में दुबके हुए जाड़े की अपनी पुरानी  यादों में खोया था और फिर मुझे कुछ मिल गया आपको ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत नहीं.
 मुझे अपने लेख का टॉपिक मिल गया.हाँ भाई जाड़े का हमारे जीवन से और गहरा  रिश्ता है.जी हाँ वो रिश्ता है यादों का,यूँ तो यादों का कोई मौसम नहीं होता पर जाड़े के मौसम में जब माहौल सर्दी का हो तो यादें जी उठती हैं. आप मेरी बात पर आँख मूँद कर भरोसा मत कीजिये बल्कि साउथ हैम्पटन विश्वविद्यालय द्वारा कराई गई रिसर्च पर ध्यान दीजिए जो कहती है कि दिल को गर्माहट देने वाली यादें हमें ठंड सहने की क्षमता देती हैं और हम शारीरिक रूप से गर्म महसूस करते हैं.अब समझे आप कि जाड़ा दूसरे मौसम से क्यूँ अलग है.वैसे भी आजकल की फास्ट लाईफ में किसी के पास इतनी फुर्सत कहाँ है कि थोडा थम कर सुस्ताया जाए और जिंदगी का लुत्फ़ लिया जाए बोले तो रीयल हैंगआउटहम वर्च्युल होते जा रहे हैं
पर जाड़े का ये मौसम हमें  रुक कर  सोचने के लिए  मजबूर कर ही देता है.वैसे भी यादों के बगैर जीवन का कोई मतलब ही नहीं होगा.इंसान एक सोशल एनीमल है जो बगैर रिश्ते बनाये रह ही नहीं सकता और जब रिश्ते बनेंगे तो यादें भी होंगी.बगैर नींव के मकान नहीं बन सकता उसी तरह से सिर्फ रिश्ते नाम के लिए नहीं बनाये जाते बल्कि एहसास  के लिए बनाये जाते हैं वो एहसास ही तो है जो किसी आम से रिश्ते को ख़ास बना देता है. क्या आप किसी ऐसे शख्स को जानते हैं जिसके पास यादों का कोई खज़ाना न हो आप भी सोचिये जरा कि जाड़े की सुबह,दोपहर और शाम से हम सबकी कितनी सुहानी यादें जुडी हैं. वो कोहरे में डूबी अलसाई सुबह हो जब बिस्तर छोड़ने का मन नहीं करता या गुनगुनी धूप में नहाई दोपहर जिसकी याद अभी तक आपके दिल में ताज़ा है या फिर वो सुहानी शाम जब आप पहली बार किसी से मिले थे.मौसम में भले ही ठंडक थी पर दिल किसी के साथ के एहसास से दहक रहे थे.आपकी यादें भले ही मेरी यादों से अलग हों पर उनका एहसास सबको एक सा ही होता है क्यूंकि जो बीत जाता है वो बीत ही जाता है.बीता वक्त तो अब लौट कर नहीं आ पायेगा पर बीती यादों को वो एहसास हमें अपने आने वाले कल को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करेगा.कोई कितना भी अकेला क्यूँ हो न पर उसके साथ हमेशा कुछ बीती यादें जरुर होती हैं तो अगली बार फीलिंग लोनली का स्टेटस अपडेट करने से पहले जरा एक बार सोचियेगा क्या वाकई आप अकेले हैं?अरे आपके साथ कितनी यादें हैं उनमें से कुछ मीठी यादों को अपने आप से ही चुरा लीजिए और आँखें बंद कर खो जाइए अपनी दुनिया में विश्वास जानिये ये पल जिंदगी को बेहतर बनाने का हौसला देंगे और इन सब के लिए जाड़े के मौसम से भला और कुछ क्या हो सकता है.लोग घरों में बंद हों सड़कें वीरान सब तरफ सन्नाटा आप हों और आप की तन्हाई.वैसे भी बहुत दिन हुए जब आपने किसी याद को जी भर के नहीं जीया तो इस जाड़े को जीने के लिए किसी पुरानी याद को फिर से जीया जाए क्यूंकि ये जाड़ा भी हर जाड़े की तरह चला जाएगा आपको हर बार की तरह एक नयी याद देकर पर जाड़े की इन यादों से अपने तन मन को गरम रखियेगा क्यूंकि गर्मियां आते ही आपको जाड़े की याद आनी शुरू हो जायेगीतो इससे पहले ये सर्दियाँ आपकी यादों के एल्बम का हिस्सा बन जाएँ इनको जी लीजिए जिससे कल जब आप इन यादों को दुबारा जीयें तो अनायास ही आपके होंठों पर एक ऐसी  मीठी मुस्कान आ जाए जो किसी और की यादों का हिस्सा बन जाए अब देखिये न अगर मुझे पिछले जाड़े की याद न आयी होती तो भला क्या ये लेख आपकी यादों का हिस्सा बन पाता तो इस बार भी जाड़े में कुछ नयी यादें सहेजिये पर पुरानी यादों को धुंधला मत होने दीजिए.अपनी यादों पर पड़े कोहरे को हटाइए और जाड़े की उस सुहानी शाम का जश्न मनाइए जब आप सबसे ज्यादा खुश थे.
आई नेक्स्ट में 28/01/14को प्रकाशित 

Tuesday, January 21, 2014

चिकित्सा पर्यटन का नया केंद्र

चिकित्सा पर्यटन, अर्थात सस्ती एवं बेहतर चिकित्सीय सुविधाओं एवं सेवाओं के लिए देश के ही भीतर अथवा दूसरे देशों में की जाने वाली यात्रा, पिछले  कुछ सालों में भारत में चिकित्सा पर्यटन एक प्रमुख पर्यटन उत्पाद के रूप में उभरा है।जिसके मूल में यहाँ की भौगौलिक विविधता और समर्द्ध ऐतिहासिक विरासत और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएँ यानि कोई विदेशी इलाज करने भारत आता है और आस पास के इलाकों को घूमकर स्वास्थ्य लाभ भी करता है|
हालांकि भारत को सिंगापूर ,मलेशिया थाईलेंड जैसे देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा करनी पड़ रही है पर यहाँ  इसके विस्तार एवं विकास की संभावनाएँ तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय की वर्ष 2012 – 13 में प्रकाशित वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार नवोन्नत चिकित्सा सुविधाएं, सुप्रसिद्ध हैल्थ केयर प्रॉफेश्नलस, उत्कृष्ट नर्सिंग सेवाएँ, अपेक्षाकृत कम प्रतीक्षा समय एवं भारत की आयुर्वेद व योग जैसी पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियां जो एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति के साथ मिलकर समग्र निरोगिता प्राप्त करने में सहायक होती हैं, कुछ ऐसे कारण हैं जो भारत को एक पसंदीदा चिकित्सा पर्यटन गंतव्य बनाते हैं।
गिरते रुपये ने भले ही भारतीय अर्थशास्त्रियों को परेशान कर रखा है परंतु चिकित्सा पर्यटन के लिए यह शुभ संकेत बनकर उभरा है क्योंकि रूपये की गिरती कीमत  ने देश  में पहले से ही सस्ती चिकित्सा सुविधाओं को विदेशियों के लिए और भी सस्ता बना दिया है। अभी देश में चिकित्सा पर्यटन उद्योग लगभग 7,500 करोड़ रूपये का है जिसकी  वर्ष 2015 तक बढ़कर 12,000 करोड़ रुपये हो जाने की उम्मीद है । भारत में चिकित्सीय सेवाओं के सस्ते होने का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दिल की बाइपास सर्जरी जिसके लिए अमेरिका में लगभग 1,50,000 डॉलर खर्च करने पड़ते हैं जबकि भारत में सिर्फ 5,000 से 6,000 डॉलर में यह काम हो जाता है। इसी तरह कूल्हे बदलने के लिए अमेरिका में 50,000 डॉलर खर्चने पड़ते हैं जबकि भारत में सिर्फ 7,000डॉलर। इसी तरह दांतों के रोपण, एंजियोप्लास्टी, लेसिक, जैसी  चिकित्सीय सुविधाएं अन्य देशों के मुक़ाबले यहाँ  सस्ती हैं। चिकित्सा पर्यटन के माध्यम से भारत सरकार बहुमूल्य विदेशी मुद्रा अर्जन कर अपने व्यापार घाटे को नियंत्रित कर सकती है और  रोजगार के नए अवसर पैदा करने में भी सहायक हो सकता है। सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने चिकत्सीय सेवाओं के लिए भारत आने वाले पर्यटकों के लिए विशेष “चिकित्सा वीज़ा” की व्यवस्था की है। इससे चिकित्सा पर्यटकों को वीज़ा के लिए इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारतीय पर्यटन मंत्रालय के तेरह  विदेशी दफ्तर चिकित्सीय कारणों से भारत आने की इच्छा रखने वाले पर्यटकों द्वारा पटे रहते हैं। यहाँ  आने वाले चिकित्सा पर्यटकों में विकसित देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका,आदि से लेकर पड़ोसी मुल्कों जैसे पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, आदि देशों के भी पर्यटक शामिल हैं।
भारत में चिकित्सा पर्यटकों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है परंतु सब कुछ उतना अच्छा भी नहीं है । सिंगापुर और थायलैंड जैसे देश इस मामले में हमसे कहीं आगे हैं। आधारभूत  सुविधाओं के अभाव में भारत में चिकित्सा पर्यटन का विकास उतनी  तेज़ी से नहीं हो पा रहा है जितना की होना चाहिए। नीतिगत प्रश्न भी इसके विकास में बाधा डाल रहे हैं। देश  में एक बड़ी जनसंख्या के पास आज भी मूलभूत चिकित्सा सुविधाएं नहीं पहुँच पा रही हैं ऐसे में धनी विदेशियों के लिए चिकत्सकीय सुविधाओं का प्रबंध करने के औचित्य को सही सिद्ध करना कठिन है। चिकित्सा को उद्योग बना देने से इस पेशे में आंतरिक रूप से निहित सेवा भाव के ख़तम हो जाने  होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मानव अंगों की तस्करी इस उद्योग का एक और स्याह पक्ष है विकसित देशों में मानव अंग आसानी से उपलब्ध नहीं हैं और भारत जैसे गरीब देश में पैसों के लालच अथवा ताकत के प्रभाव का प्रयोग कर गरीबों के उत्पीड़न की संभावना बराबर बनी रहती है। चिकित्सा पर्यटकों की बेहतर क्रय क्षमता सरकारी अस्पतालों से बेहतर डॉक्टरों को दूर कर देगी और आम भारतीय पैसे के अभाव में उच्च स्तरीय चिकित्सीय सुविधाओं से वंचित रह जाएँगे और देश अपने डॉक्टरों की पढ़ाई पर जो पैसा  खर्च करता है उसका लाभ देशवाशियों को न मिलकर दूसरों को मिलेगा। चिकित्सा पर्यटन जहाँ  निजी  अस्पतालों को बढ़ावा दे रहा है  जो कि आने वाले समय में चिकित्सा के क्षेत्र में पहले से ही मौजूद विसंगतियों को और बढ़ाएगा |अत: चिकित्सा पर्यटन के लिए एक दीर्घकालीन  नीति बनाने की आवश्यकता है जिससे इस उद्योग से हुए फायदे का लाभ एक आम भारतीय बेहतर स्वास्थ्य सुविध्याएं प्राप्त करने में उठा  सके|
अमर उजाला में 21/01/14 को प्रकाशित 

Tuesday, January 14, 2014

तू भी ऑनलाइन है ........

नए साल में आप सब जरुर खुशियों के साथ टैग हो गए होंगे,खुशियों के साथ हैंग आउट जारी होगा और चिली वेदर में चिलेक्स कर रहे होंगें अब चूँकि नया साल है तो मैंने सोचा क्यूँ न आपके साथ एक नयी लैंग्वेज में कम्युनिकेट किया जाए मैंने कहीं पढ़ा था इस नए साल में कुछ नया कीजिये जो किया है उसके सिवा कुछ कीजिये तो मैंने भी सोचा कि कुछ ऐसा करूँ जो पहले न किया हो पर ऐसा क्या ? बड़ा वाला क्वेशन मार्क था तभी मेरे व्हाट्स एप पर एक मेसेजनुमा जोक आया कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है... अगर तुम  १०:३० बजे ही सो जाती है तो तुम्हारे  व्हाट्सएप्प पर "लास्ट सीन २:३० ए एम" क्यों दिखाता हैहा हा और मेरे दिमाग की बत्ती जल गयी असल में नए नए मोबाईल एप हमारी जिन्दगी में किस तरह असर डाल रहे हैं इसका अंदाजा हमें खुद नहीं है.एसएमएस में तो आप झूठ बोल कर निकल सकते थे कि मेसेज नहीं मिला पर ये नए नए चैटिंग एप और लास्ट सीन वाला स्टेट्स आपकी सारी हकीकत आपके दोस्तों और परिचितों के सामने बयां कर देते हैं.अब सोचने की बारी आपकी है यूँकि ये बात आपको क्यूँ बताई जा रही है और इससे आपको क्यूँ फर्क पड़े,गुड क्वेश्चन तो भाई मामला ये है कि फैमली प्लानिंग वाला स्लोगन तो  आपने सुना ही होगा कि बच्चे दो ही अच्छे हाँ भाई ज्यादा बच्चे आफ़त ही होते हैं उसी तरह से यारी दोस्ती करना अच्छी बात है पर यारी दोस्ती जब ज्यादा लोगों से हो जायेगी तो आपको समस्या आयेगी ही क्यूंकि एक ओर मोबाईलनेट  रेव्ल्युशन ने हमें ग्लोबली कनेक्टेड तो कर दिया ही है वहीं कहीं हम बैकवर्ड न घोषित कर दिए जाएँ इस दौड़ में जितने चैटिंग एप इंटरनेट पर उपलब्ध हैं वो सबके सब हमारे मोबाईल पर होने चाहिए इस ललक ने कब हमें इतना एक्सप्रेशन लेस कर दिया कि हमें अपने रीयल एक्सप्रेशन को भूल टेक्नीकल एक्सप्रेशन यानि इमोजीस के गुलाम बन गये.हंसी आये या ना आये हा हा लिख कर कोई स्माईली बना दो सामने वाला यही समझेगा कि आप बहुत खुश हैं पर क्या आप वाकई खुश हैं? क्यूँ अब मैं थोडा सा हंस लूँ, अक्सर हम चैट पर यही कर रहे होतें वर्च्युल चैटिंग में हम जीवन की रीयल प्रोब्लम का सल्यूशन ढूंढने लग गए हैं .हमारी फोनबुक में बहुत से लोगों के नंबर सेव रहते हैं और हम जितने ज्यादा चैटिंग एप डाउनलोड करेंगे हम उतने ही ज्यादा खतरे में रहेंगे क्यूंकि कोई न कोई चैटिंग एप हर कूल डूड के मोबाईल में रहता है और इससे कोई भी ,कभी भी आपको संदेसा भेज सकता है. यह जाने बगैर कि आप बात करने के मूड में हैं कि नहीं दूसरी चीज है आपकी प्राइवेसी,चैटिंग एप और कुछ न बताएं तो भी ये तो सबको बता ही देते हैं कि आप किसी ख़ास एप पर कितने एक्टिव हैं अगर इससे बचना है तो कुछ और एप डाउनलोड कीजिये. ये तो आप भी मानेंगे कि बगैर काम की चैटिंग खाली लोगों का काम है या आप इमोशनली वीक है और रीयल लाईफ में आपके पास कोई नहीं हैं जिससे आपकी उँगलियाँ मोबाईल के की पैड पर भटकती रहती हैं कि कहीं कोई मिल जाए?
मेरे यंगिस्तानी डूड लोगों मामले और भी हैं ज्यादा चैटिंग ये बताती है कि आप फोकस्ड नहीं हैं चैटिंग करने के लिए उम्र पडी है ये टाईम कुछ पाने का ,कुछ कर दिखाने का है.बात जिन्दगी की हो या रिश्तों की हम जितने सिलेक्टिव रहेंगे उतना ही सफल रहेंगे और यही बात एप और चैटिंग पर भी लागू होती है,जो आपके अपने है उन्हें वर्च्युल एक्सप्रेशन नहीं रीयल एक्सप्रेशन की जरुरत है.ईमोजीस आँखों को अच्छी लगती हैं पर जरुरी नहीं कि दिल को भी अच्छी लगे. जो रिश्ते दिल के होते हैं उन्हें दिल से जोडिये नहीं तो एक वक्त ऐसा आएगा जब आप होंगे और आपकी तन्हाई मोबाईल की फोनबुक भरी होगी पर दिल की गलियां सूनी होंगीं तो अपने अपनों से मिलने जुलने का सिलसिला बनाये रखिये बी सिलेक्टिव, बी फोकस्ड और हाँ दोस्ती  और चैटिंग कम ही अच्छी  

आई नेक्स्ट में 14/01/14 को प्रकाशित 

Wednesday, January 1, 2014

अतीत से सबक ले संजोना सपने

प्रिय दोस्त 2014
स्वागत है तुम्हारा है.आज के बाद मैं सिर्फ इतिहास की किताबों में मिलूँगा.इस विदाई को यादगार बनाने के लिए मैंने सोचा तुम्हें क्यूँ ना एक चिठ्ठी लिख दी जाए.ये हमारी नियति है कि तुम जब आओगे मैं चला जाऊँगा तो वैसे भी किसी भी  रिश्ते  में शेयरिंग बहुत जरूरी है .मैं जा तो रहा हूँ पर इसका मतलब यह नहीं है कि मेरा अब कोई वजूद नहीं रहा. जब जब तुम्हारा नाम लिया जाएगा तब मेरा नाम भी आएगा तो एक बात हमेशा याद रखना  भविष्य की ओर जरुर उम्मीद से देखना पर अपने अतीत को मत भूल जाना क्यूंकि अच्छे भविष्य का रास्ता अतीत से सबक सीख कर ही निकलता है क्यूंकि कभी कभी खुशियाँ भी आने वाले दुखों का जाल बुन रही होतीं हैं पर हमें पता नहीं पड़ता तो बेहतर यही है कि हॉप फॉर दा बेस्ट एंड प्रीपेयर फॉर दा वर्स्ट.तुम अभी जवान हो अपने टाईम और एनर्जी का पोजिटिव इस्तेमाल करना क्योंकि समय बीतते देर नहीं लगती तुम अपने निर्णय  लेने के लिए स्वतंत्र हो पर पर ध्यान रहे तुम एक ऐसे टाईम पीरियड के गवाह बनोगे जो ह्यूमन सिविलाएजेशन के हिसाब से रीव्युलुशनरी है.इंटरनेट जितनी तेजी से आज दुनिया बदल रहा है उतनी तेजी से दुनिया  इससे पहले कभी नहीं बदली तो तुम इंटरनेट से जितनी जल्दी दोस्ती कर लोगे उतना ही सफल रहोगे  वैसे भी तुम यूथ हो  और आज का यूथ कनेक्टेड रहना चाहता है. फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साईट्स से लेकर टिवटर तक हर जगह उन्हीं का बोलबाला है जो बोल रहे हैं कह रहें हैं अच्छा है बात से बात निकलनी चाहिए.लोग तभी सुनेंगे जब आप कुछ कहेंगे और जब आप सुनेंगे तो लोग कहेंगे.कहने सुनने के इस प्रोसेस को बंद मत करना.फैसले अपने हिसाब से लेना पर सुनना जरूरी है.मैं खुशनसीब रहा   जिसे   इस तरह की दुनिया में समय बिताने का मौका मिला जहाँ हम ग्लोबल कनेक्टेड हैं समय और स्थान की दूरियां मिट गयी हैं पर दिलों में दूरियां बढ़ रही हैं इन सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर अफवाहें भी  बहुत तेजी से फैलती हैं तो जो कुछ इन पर लिखा पढ़ा जा रहा है उन पर आँख मूँद कर भरोसा मत कर लेना.मुझे पता है तुम्हें ज्ञान लेना और देना पसंद नहीं है.भाषण तुम्हे बोर करता है अच्छी बात है कि तुम्हें अपने ऊपर भरोसा है पर अगर कहीं कन्फ्यूजन है तो राय लेने में संकोच मत करना क्यूंकि पूछने में कुछ नहीं जाता है बल्कि कुछ न कुछ आता जरुर है.
तुम गिर के सम्हलना जानते हो पर इन सबके साथ तुम्हें ये ख्याल रखना होगा कि तुम्हारा एटीट्यूड किसी के सम्मान को कम ना करे.मुझे पता है तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारी  इज्जत करें पर उसके लिए दूसरों को इज्ज़त देनी होगी मैंने कहीं पढ़ा था जो तुझसे झुककर मिलता होगा यकीनन  उसका कद तुझसे बड़ा होगा तो मेलमिलाप के लिए झुकना पड़े तो संकोच ना करना.आज तुम्हारे आने का जोरदार जश्न मनाया जाएगा पर मेरी तरह  जब तुम्हारे जाने का वक्त आएगा तो ऐसी हलचल नहीं होगी.सफलता  को बांटने वाले कई लोग मिल जाते हैं पर असफलता का सामना अकेले ही करना पड़ता है अगर इसके लिए तैयार रहोगे तो तुम्हारे दिन बड़े मजे में बीतेंगे.वक्त की प्रूफ रीडिंग मुश्किल नहीं नामुमकिन है समय की नब्ज पकड़ने की कोशिश करने में अपना वक्त मत बर्बाद करना अगर समय को समझना है तो बस  अपने आप को दूसरों की जगह रखकर सोचना  बस तुम समझ जाओगे कि लोग क्या चाहते हैं फिलहाल तो तुम पार्टी के मूड में होगे और तुम्हें होना भी चाहिए ये दिन तुम्हारा है कुछ भी करो जम कर करो पर ये मत भूलना कि हर चीज का एक वक्त होता है पार्टी के वक्त पार्टी और काम के वक्त काम दोनों में बैलेंस बहुत जरूरी है और यही सीक्रेट है सक्सेस का, नहीं तो लाईफ बहुत नीरस हो जायेगी.दोस्त कल तुम्हें भी जाना ही होगा और यही समय का नियम है हमारे हाथ में सिर्फ ईमानदारी  से काम करना ही है तो कल का इंतज़ार क्यों किया जाए.देश और दुनिया एक दिन में नहीं बदलते पर कंसिस्टेंट एफर्ट बहुत जरूरी है तो बस जाते जाते यही उम्मीद करूँगा कि तुम जब पुराने होगे तब भी इसी इनर्जी और डेडीकेशन से काम करोगे और मुस्कुराते हुए अगले साल के लिए जगह छोड़ दोगे क्यूंकि यही  ज़िन्दगी है
चलता हूँ फिर कभी न मिलने के लिए.अलविदा
शुभकामनाओं सहित
तुम्हारा
साल 2013 
अमर उजाला में 01/01/14 को प्रकाशित 

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