मोबाइल एप्लीकेशंस यानी ऐप्स की दुनिया में भारत सरकार काफी देर से आई है, लेकिन वह कितने दुरुस्त ढंग से आई है, यह समझने के लिए शायद अभी थोड़ा और इंतजार करना पड़ सकता है। पिछले कुछ समय में ढेर सारे सरकारी विभागों, संस्थाओं और कंपनियों के मोबाइल एप्स लांच हुए हैं। केंद्र सरकार ही नहीं, कई राज्यों की सरकारें भी इस दिशा में बढ़ रही हैं। इस मामले में रेलवे और डाक विभाग के ऐप्स महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं। केंद्र सरकार ने सौ से ज्यादा विभागों में मोबाइल गवर्नेंस पर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है। जहां तक ऐप्स का मामला है, तो इनके डाउनलोड और उपयोग वगैरह के आधिकारिक आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन यह चलन इतना तो बताता ही है कि इस मामले में गंभीरता आई है |भारत के लिए यह रास्ता महत्वपूर्ण इसलिए हो सकता है कि मोबाइल हैंडसेट अकेला ऐसा माध्यम है, जिससे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से तक पहुंचा जा सकता है। यह अकेला ऐसा माध्यम है, जो शहरों और कस्बों की सीमा लांघता हुआ तेजी से दूरदराज के गांवों तक पहुंच गया है। इसके साथ ही देश में कंप्यूटर के मुकाबले मोबाइल पर इंटरनेट सुविधा हासिल करने वालों की संख्या भी बढ़ चुकी है। लोगों के लिए तो यह कई तरह की सुविधाएं हासिल करने का महत्वपूर्ण माध्यम है ही, साथ ही सरकार के लिए भी यह महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इससे बहुत सी योजनाओं के वास्तविक कार्यान्वन पर नजर रखी जा सकती है। कई मामलों में नौकरशाही की बाधाओं को भी कम किया जा सकता है।इसे लेकर पिछले कुछ समय में देश में कई तरह के प्रयोग हुए हैं, जो काफी उम्मीद बंधाते हैं। खासकर रेलवे आरक्षण को लेकर जो प्रयोग हुए हैं। देश में ई-कॉमर्स को विस्तार देने और इसमें लोगों का भरोसा कायम करने का श्रेय भारतीय रेलवे को जाता है। इससे कुछ हद तक व्यवस्था में पारदर्शिता भी आई है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण काम हुआ है एसएमएस टिकटिंग का। रेलवे ने एसएमएस को रेल टिकट की मान्यता देकर कागज के अनावश्यक इस्तेमाल से मुक्ति का रास्ता तैयार किया। यह जरूर है कि दूसरे विभागों ने इस सिलसिले को इतनी तेजी से आगे नहीं बढ़ाया।सरकारी विभागों के ऐप्स की निर्भरता बहुत हद तक इस बात पर निर्भर करेगी कि वह आम जनता के लिए कितने उपयोगी साबित होते हैं। हम यह उम्मीद तो करते हैं कि लोगों को इन सब तरीकों से नौकरशाही की बाधाओं से मुक्ति दिलाई जा सकेगी, लेकिन सच यही है कि इन्हें लागू करने का जिम्मा अब भी उसी नौकरशाही के हवाले है। इसी नौकरशाही के कारण ई-गवर्नेंस की सोच एक हद तक पहुंचकर रुक गई। सरकारी विभाग अपनी वेबसाइट बनाकर अपने पुराने रवैये पर लौट आए। अगर हम चाहते हैं कि नया रुझान पूरी तरह कामयाब हो, तो इस रवैये को बदलना सबसे जरूरी है।
हिंदुस्तान में 29/01/14 को प्रकाशित