दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा है कि ऑनलाइन स्कोर और क्रिकेट से संबंधित सूचनाएं इंटरनेट पर टीवी लाइव प्रसारण के 15 मिनट बाद ही अपडेट की जाएंगी। यह फैसला इंटरनेट के मौजूदा दौर में टीवी कंपनियों में पैदा हुई असुरक्षा की बानगी भर है।मैच के प्रसारण का अधिकार खरीदने वाली इन टीवी कंपनियों ने इंटरनेट पर लाइव अपडेट के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। खेल ही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया समाचारों के कंटेंट और विविधता की दौड़ में भी पिछड़ता जा रहा है।इंटरनेट के आने से सूचना संप्रेषण की गति कई गुना बढ़ गई है। पिछले एक दशक में लाइव समाचार ब्लॉग, समाचार वेबसाइट, व्यक्तिगत ब्लॉग वगैरह की संख्या, और साख जिस तेजी से बढ़ी है, उसका सीधा असर 24 घंटे के समाचार चैनलों पर पड़ रहा है। भारत में 1991 के खाड़ी युद्ध के दौरान इन समाचार चैनलों की जो शुरुआत हुई थी, अगले दो दशकों तक इनकी उपयोगिता को कोई सीधी चुनौती नहीं मिली। पर इंटरनेट के विकास और बढ़ती पहुंच ने इन लाइव समाचार चैनलों की प्रासंगिकता और उपयोगिता पर ग्रहण लगाना शुरू कर दिया है।
तहरीर चौक पर हुई विशाल क्रांति की तस्वीरें, लाइव समाचार और निजी ब्लॉग जिस तेजी से दुनिया भर के लोगों तक पहुंचे, वह सभी के लिए अभूतपूर्व अनुभव था। वर्ष 2012 में लगभग 80 लाख लोगों ने फेलिक्स बोमगर्टनेर की अंतरिक्ष से छलांग को यू-ट्यूब पर लाइव देखा। पिछले कुछ वर्षों में मीडिया परिदृश्य में ऐसे अनगिनत बदलाव आए हैं।पारंपरिक खबरिया चैनलों के सामने अनगिनत चुनौतियां हैं। पहली है पूंजी की समस्या, जहां एक औसत खबरिया चैनल को चलाने के लिए करोड़ों रुपये और ढेर सारे कर्मचारियों की आवश्यकता होती है, वहीं लाइव न्यूज ब्लॉग को कोई व्यक्ति अकेले सिर्फ अपने लैपटॉप या यहां तक कि मोबाइल फोन की मदद से बहुत कम खर्च में चला सकता है। माइक्रो-ब्लॉगिंग वेबसाइटें जैसे ट्विटर और किसी घटना विशेष की पल-पल की खबर देने वाले लाइव ब्लॉग जिस गति से खबरें और उन पर टिप्पणियां लोगों तक पहुंचा रहे हैं, 24 घंटे चलने वाले न्यूज चैनल तो उसके आस-पास भी नहीं ठहरते हैं।दूसरी चुनौती यह है कि लगातार प्रसारण इन चैनलों की मजबूरी होती है और अगर ताजा खबर न हो या किसी खबर का इंतजार हो रहा हो, तो उन्हें दर्शक को बांधे रखने के लिए बेवजह समय बिताना पडम्ता। खबरिया चैनलों की बहुत सारी बातचीत अक्सर बेमतलब और उबाऊ हो जाती है। खासकर दिन के समय दफ्तरों में काम कर रहे लोगों के पास खबर पाने का तरीका टीवी न होकर उनका कंप्यूटर या मोबाइल फोन ही होता है। इस सबके बावजूद समाचार चैनल खत्म हो रहे हैं, ऐसा अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन लोगों को उनका विकल्प मिल रहा है, और लोग आगे बढ़कर उसे अपना भी रहे हैं।
हिंदुस्तान में 26/02/14 को प्रकाशित
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