जब तक ये लेख आपके हाथों में पहुंचेगा तो बादल आपको बारिश से भिगो चुके होंगे पर इस बार की बारिश कुछ खास है.इस बारिश में कई सालों बाद देश का बजट आ रहा है.यानि बारिश का बजट से कनेक्शन होने जा रहा है.फिर वही पुराना सवाल बादल,बारिश और बजट तो हम क्या करें.हम्म सवाल तो मेरे सामने भी है कि इस बार बारिश का बजट कैसा होगा. इसके अलावा इस बार बारिश पर अलनीनो का प्रभाव है. खैर इस सब से आपको क्या मतलब? आपके लिए तो बारिश का मौसम छई..छपा...छई करने और चाय पकौड़ी खाने का होता है. वैसे आपको बताता चलूँ बारिश सावन के महीने में ज्यादा होती है और आपने वो गाना तो जरुर सुना होगा “तेरी दो टकियां की नौकरी में मेरा लाखों का सावन जाए” आपको पता है सावन क्यूँ लाखों का है.अरे भाई देश का बजट मॉनसून पर डिपेंड करता है,यानि बारिश बहुत इम्पोर्टेंट है पर बजट तो तभी बनेगा जब “वी दा पीपल” काम करेंगे जिससे आमदनी होगी और सावन लाखों का नहीं अरबों का होगा और काम तभी होगा जब बारिश होगी क्यूंकि अभी भी हमारी इकोनोमी एग्रीकल्चर बेस्ड है और खेती के लिए पानी की जरुरत होती है.पानी के लिए हम ज्यादातर बारिश पर निर्भर हैं.तो ऐसे ही मौसम में चाय पीते हुए मैंने अखबारी सुर्ख़ियों में पढ़ा कि राजस्थान के नागौर जिले में पिछले सत्रह साल से अच्छी बारिश नहीं हुई है तो वहां के हालत खराब हैं, अब आप कहेंगे की इसे यहां लिखने का क्या मतलब. मतलब है तभी तो लिख रहा हूँ…. बारिश होते ही आपके दिमाग में पहला थॉट यही आता है न गरम गरम पकौड़ी और चाय हो,कहीं जाना न हो बस घर पर बैठा जाए पर हमेशा ऐसा हो नहीं पाता. चलिए बारिश का बजट कनेक्शन तो पहले एस्टेब्लिश कर लिया जाए,आजकल जमाखोरी की चर्चा बहुत हो रही है जमाखोरी की वजह बारिश की कमी है जिससे अनाज और सब्जियों की पैदावार कम होने की आशंका है.जमाखोर इसलिए सब्जियों को मार्केट में नहीं भेज रहे बाद में बढ़ी कीमत पर वो ज्यादा मुनाफा कमाएंगे और हमारा और देश का बजट बिगाड़ेंगे.अब आप कहेंगे कि बजट का बाजा जमाखोर ही बजा रहे हैं.पर क्या आपने सोचा कि बारिश के पानी की जमाखोरी हमने की होती तो सब्जियों की जमाखोरी करने वाले कुछ नहीं कर पाते.क्योंकि खेतों की सिंचाई के लिए हमें मॉनसून का मुंह नहीं ताकना पड़ता.देश में नागौर जैसे और भी इलाके हैं जहाँ के लोग हमारे आपके जैसे खुशनसीब नहीं हैं और आज भी बारिश के इंतज़ार में है.इसे समझने के लिए पर्यावरणीय नजरिये की जरूरत है. वहां जो हालत है वह मानवीय कुप्रबंधन का परिणाम है.कुछ सालों में नागौर जैसे हालात हर जगह होंगे. जरा सोचिये अगर अलनीनो के चलते मानसून की जरा सी देरी से बिजली और महंगाई का इतना बड़ा संकट खड़ा हुआ है लेकिन परवाह किसे है, लोग तो महंगाई के लिए बजट और सरकार को कोस लेंगे बस. बारिश तो छई... छपा.... छई के लिए है न जनाब.कहने का मतलब इतना सा है की हमारी हर छोटी छोटी परेशानियों के पीछे के तार भी हमारी छोटी छोटी लापरवाहियों से जुड़े होते हैं. बजट तो आ जाएगा पर बारिश की कमी के बारे में थोडा सीरियसली सोचने की जरुरत है. बजट के बाद पड़ने वाले प्रभावों पर सब अपनी ओपीनियन देंगे पर बारिश का बजट कनेक्शन कौन देखेगा ? इसे अनदेखी करने की भूल न करें. बारिश कम होने के पीछे के रीजन को समझें और उसमे अपनी रिस्पांसिबिलिटी को समझें.बारिश के पानी को बचाएं क्यूंकि जमीनी पानी का लेवल लगातार गिर रहा है और इस लेवल को बढ़ाने का एक ही तरीका रेन वाटर हार्वेस्टिंग यानि पानी की जमाखोरी की जाए और विश्वास रखिये इस जमाखोरी से देश का बजट सुधरेगा.अब तक आपको समझ में आ गया होगा कि बादल,बरसात और बजट का ये मौसम हम सबके लिए क्या मायने रखता है तो सोच क्या रहे हैं लग जाइए पानी की जमाखोरी में.देखो बारिश हो रही है.
आई नेक्स्ट में 10/07/14 को प्रकाशित
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