कई बार तो दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली कोई भी घटना समाचार चैनलों पर आने से पहले ही यू-ट्यूब पर दिख जाती है। तस्वीर का दूसरा पक्ष यह भी है कि इन वीडियो की सत्यता परखने का कोई जरिया आमतौर पर उपलब्ध नहीं है। वीडियो सच्चा है या झूठा, इसे आप नहीं समझ सकते। अक्सर झूठे वीडियो ही ज्यादा दिखाई देते हैं। फेसबुक ने इस समस्या को देखते हुए कंटेंट की प्रामाणिकता को पुख्ता करने के लिए स्टोरीफुल कंपनी के साथ फेसबुक वायर सेवा शुरू की है। इंटरनेट पर कंटेंट की प्रामाणिकता अब एक बड़ी समस्या बन चुकी है। मुजफ्फरनगर दंगों के विकराल होने के पीछे ऐसे ही कुछ फर्जी वीडियो का योगदान सामने आया, जो भारत के थे ही नहीं। ऐसे वीडियो बहुत तेजी से फैलते हैं और समाज पर उनका असर भी तुरंत दिखता है। आमतौर पर लोग जो देखते हैं, उसे सच मान लेते हैं, भले ही उसकी असलियत कुछ भी हो। इस बात की पुष्टि करने का कोई तरीका उपलब्ध नहीं है कि क्या वीडियो नया है या पुराना और संदर्भ से बिल्कुल अलग है।
मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस समस्या से निपटने के लिए सिटिजन एविडेंस लैब नाम की एक वेबसाइट शुरू की है। इस वेबसाइट के माध्यम से दुनिया भर के पत्रकार, वकील और मानवाधिकार के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ता इंटरनेट पर उपलब्ध वीडियो की प्रामाणिकता परख सकेंगे। इस वेबसाइट में दिए गए टूल्स द्वारा यू-ट्यूब जैसी वेबसाइट पर पोस्ट किए गए वीडियो के बारे में कई बातें जान सकेंगे, जो उन्हें उन वीडियों की प्रामाणिकता और सत्यता जांचने में सहायता करेंगी। इससे वीडियो पोस्ट करने वाले के पूर्व व्यवहार, पोस्ट करने का समय, वीडियो बनाने का समय जैसी जानकारियां प्राप्त की जा सकेंगी। बेशक, इससे मदद मिलेगी, लेकिन इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारियों, खासकर तस्वीरों और वीडियो का सच जानने का प्रयास अभी बस शुरू ही हुआ है, यह संघर्ष काफी लंबा होगा।
हिन्दुस्तान में 21/07/14 को प्रकाशित
3 comments:
i agree with your view point because we are unawre of the video being true or false.
i agree with your view point because we are unawre of the video being true or false.
एक समय था जब हम किताबों की कही सुनी बातों को सच समझते थे। उन पर विश्वास करते थे और उनका अनुसरण करते थे। हालाँकि हमें ये पता नहीं होता था की वो बातें सही हैं या गलत। लेकिन आज का जमाना इंटरनेट या यूं कहे गूगल बाबा का है।
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