Tuesday, November 11, 2014

बढ़ते ई-बाजार का सीमित आधार

सजे हुए परंपरागत बाजार अभी इतिहास की चीज नहीं हुए हैं, शायद होंगे भी नहीं, पर ऑनलाइन शॉपिंग ने उनको कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है। परंपरागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर सामान उपलब्ध हैं। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला फर्नीचर, कपड़ों, बीज, किराने के सामान से लेकर फल, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। यह लिस्ट हर दिन बढ़ती जा रही है। इस खरीदारी की दुनिया में घुसना इतना आसान है कि आप अपने बेडरूम से लेकर दफ्तर या गाड़ी से, कहीं से भी यह काम कर सकते हैं। ई-कॉमर्स पोर्टलों की बहार है। इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोशिएशन ऑफ इंडिया व केपीएमजी की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का ई-कॉमर्स का बाजार 9.5 बिलियन डॉलर का है, जिसके इस साल के अंत तक 12.6 बिलियन डॉलर हो जाने की उम्मीद है और 2020 तक यह देश की जीडीपी में चार प्रतिशत का योगदान देगा।
लोगों की व्यस्त दिनचर्या, शहरों में पार्किंग व ट्रैफिक की समस्या, आमदनी में इजाफा और सस्ते इंटरनेट की सुलभता कुछ ऐसे कारण हैं, जिन्होंने लोगों को डिजिटल कॉमर्स का हिस्सा बनने के लिए प्रेरित किया है। फॉरेस्टर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 3.5 करोड़ लोग ऑनलाइन खरीदारी करते हैं, जिनकी संख्या 2018 तक 12.80 करोड़ हो जाने की उम्मीद है। इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के मामले में भारत दुनिया में तीसरे नंबर पर है, पर यहां ई-कॉमर्स का भविष्य मोबाइल के हाथों में है। मार्केट रिसर्च संस्था आईडीसी के मुताबिक, भारत में स्मार्टफोन का बाजार 40 प्रतिशत की गति से बढ़ रहा है। मोबाइल सिर्फ बातें करने, तस्वीरों व संदेशों का माध्यम भर नहीं रह गए हैं। अब स्मार्टफोन में चैटिंग ऐप के अलावा, ई-शॉपिंग के अनेक ऐप लोगों की जरूरत का हिस्सा बन चुके हैं।
खरीदारी के अनेक विकल्पों और कीमतों का तुलनात्मक रूप से मूल्याकंन की सुविधा और आसान मासिक किश्तों में चीजें खरीदने का विकल्प कुल मिलाकर चीजें खरीदने को काफी आसान बना देते हैं। महत्वपूर्ण यह भी है कि ऑनलाइन खरीदारी ने किसी खास सामान की सिर्फ बड़े शहरों में उपलब्धता की स्थिति को समाप्त किया है। आप किसी भी शहर में रहकर कोई भी सामान खरीद सकते हैं। अभी तक बहुत से सामानों के लिए किसी को बड़े शहरों के बाजार पर ही निर्भर रहना पड़ता है। ऑनलाइन खरीदारी के संदर्भ में तस्वीर का दूसरा रुख उतना चमकीला भी नहीं है। एक तो मोबाइल डाटा की कीमत ज्यादा और रफ्तार कम है। फिर बड़े शहरों को छोड़ दिया जाए, तो छोटे शहरों और कस्बों में इंटरनेट सुविधाजनक नहीं है। अंग्रेजी भाषा पर निर्भरता की वजह से ऑनलाइन करोबार का दायरा सीमित है। फिर इस क्षेत्र में उपभोक्ता के हितों की रक्षा के लिए नियम-कायदे अभी नहीं बने हैं। शिकायत निवारण जैसे इंतजाम भी नहीं हैं।
हिन्दुस्तान में 11/14/14 को प्रकाशित 

5 comments:

Arpit Omer said...

भले ही ई-कॉमर्स पोर्टलों की बहार हो लेकिन अभी लोगों में ऑनलाइन शॉपिंग के प्रति थोडा कम विश्वास है कि जो वस्तु वेबसाईट पर देखकर खरीद रहे हैं क्या वही घर में भी आएगी या इसमें कोई घपला होगा ..... ऑनलाइन शॉपिंग में मोलभाव भी नहीं हो पाता इसलिए लोग कम प्रेफर करते हैं ऑनलाइन शॉपिंग करना ....
- अर्पित ओमर

Geetsangeet said...

इसके अलावा कम्पनियाँ कुछ सामान ऐसा भी
बेचती हैं जो खुले बाजार में उपलब्ध नहीं होता. इसे
स्पेशल एडिशन या लिमिटेड एडिशन कह कर बेचा
जाता है. ओफेर्स की बारीकी से जांच करने पर
समझ आता है मामला क्या है. कोरियर सेवा के
कम से कम तहसील तक ठीक ठाक पहुँचने की
संभावना के चलते कुछ कम्पनियाँ अर्ध ग्रामीण तक तो पहुँच गयी हैं. कुछ मदद स्मार्ट फोंस ने भी की है उनके ग्राहक संख्या बढ़ाने में

Tanupreet Kaur said...

I luv E-bazar..

Unknown said...

E bazar aaaj time me jada usse hoo rha hi leki kuch gata bhi hota hi issme ki hm pasand kuch krte hi saman kuch aa jata hi kabhi kabhi or fayda ye ki ghar baithe baithe jo chaiye ghar pe.

Sudhanshuthakur said...

भारत में ऑनलाइन खरीद-फरोख्त के तेजी से बढ़ते बाजार में अब चोरी की और नकली वस्तुओं की भी भरमार होने लगी है.

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