Friday, March 20, 2015

अब इंटरनेट पर छायेंगी भारतीय भाषाएँ

इंटरनेट शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा | आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली| इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया|प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा पर जैसे जैसे तकनीक विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया और नयी नयी सेवाएँ इससे जुडती चली गयीं  | भारत सही मायने में कन्वर्जेंस की अवधारणा को साकार होते हुए देख रहा हैजिसका असर तकनीक के हर क्षेत्र में दिख रहा है। भारत की विशाल जनसंख्या इस परिवर्तन के मूल में है। इंटरनेट पर अंग्रेजी भाषा का आधिपत्य खत्म होने की शुरुआत हो गई है। गूगल ने हिंदी वेब डॉट कॉम से एक ऐसी सेवा शुरू की हैजो इंटरनेट पर हिंदी में उपलब्ध समस्त सामग्री को एक जगह ले आएगी। इसमें हिंदी वॉयस सर्च जैसी सुविधा भी शामिल है। गूगल का यह प्रयास ज्यादा से ज्यादा लोगों को इंटरनेट से जोड़ने की दिशा में उठाया कदम है। इस प्रयास को गूगल ने इंडियन लैंग्वेज इंटरनेट एलाइंस (आईएलआईए) कहा है। इसका लक्ष्य 2017 तक 30 करोड़ ऐसे नए लोगों को इंटरनेट से जोड़ना हैजो इसका इस्तेमाल पहली बार स्मार्टफोन या अन्य किसी मोबाइल फोन से करेंगे।
गूगल के आंकड़ों के मुताबिकअभी देश में अंग्रेजी भाषा समझने वालों की संख्या 19.8 करोड़ हैऔर इसमें से ज्यादातर लोग इंटरनेट से जुड़े हुए हैं। तथ्य यह भी है कि भारत में इंटरनेट बाजार का विस्तार इसलिए ठहर-सा गया हैक्योंकि सामग्रियां अंग्रेजी में हैं। आंकड़े बताते हैं कि इंटरनेट पर 55.8 प्रतिशत सामग्री अंग्रेजी में हैजबकि दुनिया की पांच प्रतिशत से कम आबादी अंग्रेजी का इस्तेमाल अपनी प्रथम भाषा के रूप में करती हैऔर दुनिया के मात्र 21 प्रतिशत लोग ही अंग्रेजी की समझ रखते हैं। इसके बरक्स अरबी या हिंदी जैसी भाषाओं मेंजो दुनिया में बड़े पैमाने पर बोली जाती हैंइंटरनेट सामग्री क्रमशः 0.8 और 0.1 प्रतिशत ही उपलब्ध है। बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट और विभिन्न सोशल नेटवर्किंग साइट्स जिस तरह लोगों की अभिव्यक्तिआशाओं और अपेक्षाओं का माध्यम बनकर उभरी हैंवह उल्लेखनीय जरूर हैमगर भारत की भाषाओं में जैसी विविधता हैवह इंटरनेट में नहीं दिखती।आज 400 मिलियन भारतीय अंग्रेजी भाषा की बजाय हिंदी भाषा की ज्यादा समझ रखते हैं लिहाजा भारत में इंटरनेट को तभी गति दी जा सकती हैजब इसकी अधिकतर सामग्री हिंदी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में हो।आज जानकारी का उत्तम स्रोत कहे जाने वाले प्रोजेक्ट विकीपिडिया पर तकरीबन पेज 22000 हिंदी भाषा में हैं ताकि भारतीय यूजर्स इसका उपयोग कर सकें। भारत में लोगों को इंटरनेट पर लाने का सबसे अच्छा तरीका है उनकी पसंद का कंटेंट बनाना यानि कि भारतीय भाषाओं को लाना|वैश्विक परामर्श संस्था मैकेंजी का एक नया अध्ययन बताता है कि 2015 तक भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में इंटरनेट 100 अरब डॉलर का योगदान देगाजो 2011 के 30 अरब डॉलर के योगदान के तीन गुने से भी ज्यादा होगा। अध्ययन यह भी बताता है कि अगले तीन साल में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा। इसमें देश के ग्रामीण इलाकों की बड़ी भूमिका होगी। मगर इंटरनेट उपभोक्ताओं की यह रफ्तार तभी बरकरार रहेगीजब इंटरनेट सर्च और सुगम बनेगा। यानी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को इंटरनेट पर बढ़ावा देना होगातभी गैर अंग्रेजी भाषी लोग इंटरनेट से ज्यादा जुड़ेंगे।गूगल पिछले 14 सालों सेसर्च(खोज ) पर काम कर रहा है। यह सर्च भविष्य में सबसे ज्यादा मोबाइल के माध्यम से किया जाएगा। विश्व भर में लोग अब ज्यादातर मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट चला रहे हैं। बढते स्मार्ट फोन के प्रयोग ने सर्च को और ज्यादा स्थानीयकृत किया है वास्तव में खोज ग्लोबल से लोकल हो रही है जिसका आधार भारत में तेजी से बढते मोबाईल इंटरनेट प्रयोगकर्ता हैं जो अपनी खोज में स्थानीय चीजों को ज्यादा महत्त्व दे रहे हैं,ये रुझान दर्शाते हैं कि भारत नेट युग की अगली पीढ़ी में प्रवेश करने वाला है जहाँ सर्च इंजन भारत की स्थानीयता को ध्यान में रखकर खोज प्रोग्राम विकसित करेंगे और गूगल ने स्पीच रेकग्नीशन टेक्नीक पर आधारित वायस सर्च की शुरुवात की है जो भारत में सर्च के पूरे परिद्रश्य को बदल देगी|स्पीच रेकग्नीशन टेक्नीक लोगों को इंटरनेट के इस्तेमाल के लिए किसी भाषा को जानने की अनिवार्यता खत्म कर देगी वहीं बढते स्मार्ट फोन हर हाथ में इंटरनेट पहले ही पहुंचा रहे हैं |आंकड़ों की द्रष्टि में ये बातें बहुत जल्दी ही हकीकत बनने वाली हैं |वैश्विक  परामर्श संस्था मैकिन्सी कम्पनी का एक नया अध्ययन बताता है कि इंटरनेट  साल 2015 तक  भारत की जी डी पी (सकल घरेलू उत्पाद )में १०० बिलियन डॉलर का योगदान देगा जो कि वर्ष2011 के 30 बिलियन डॉलर के योगदान से तीन गुने से भी ज्यादा होगा अध्ययन यह भी बताता है कि अगले तीन साल में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा और देश की कुल जनसंख्या का 28 प्रतिशत इंटरनेट से जुड़ा होगा जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसँख्या समूह होगा |इसलिए इंटरनेट सिर्फ अंग्रेजी भाषा जानने वालों का माध्यम नहीं रह गया है |
                   हिंदी को शामिल करते हुए इस समय इंटरनेट की दुनिया बंगाली ,तमिलकन्नड़ ,मराठी ,उड़िया गुजराती ,मलयालम ,पंजाबीसंस्कृत,  उर्दू  और तेलुगु जैसी भारतीय भाषाओं में काम करने की सुविधा देती है आज से दस वर्ष पूर्व ऐसा सोचना भी गलत माना जा सकता था पर इस अन्वेषण के पीछे भारतीय इंटरनेट उपभोक्ताओं के बड़े आकार का दबाव काम कर रहा था भारत जैसे देश में यह बड़ा अवसर है जहाँ मोबाईल इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या विश्व में अमेरिका के बाद सबसे ज्यादा है । इंटरनेट  हमारी जिंदगी को सरल बनाता है और ऐसा करने में गूगल का बहुत बड़ा योगदान है। आज एक किसान भी सभी नवीनतम तकनीकों को अपना रहे हैंऔर उन्हें सीख भी  रहे हैंलेकिन इन तकनीकों को उनके लिए अनुकूलित बनाना जरूरी है जिसमें भाषा का व कंटेंट का बहुत अहम मुद्दा है।इसलिए भारत में हिन्दी और भारतीय भाषाओं  में इंटरनेट के विस्तार पर बल दिया जा रहा है |
हिंदी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के विस्तार का दायरा अभी भले ही इंटरनेट खोज और वॉयस सर्च तक सिमटा हैमगर उम्मीद यही है कि इस प्रयोग का असर जीवन के हर क्षेत्र में पड़ेगा। इसका सबसे बड़ा फायदा ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को मिलेगाक्योंकि इंटरनेट पर हिंदी या अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में खेती से संबंधित बहुत ज्यादा सामग्री उपलब्ध नहीं हैऔर उनका अंग्रेजी ज्ञान सीमित है।
हिंदी में इंटरनेट का प्रसार बढ़ने से ग्रामीण क्षेत्र के किसान सबसे ज्यादा लाभान्वित होंगे।
राष्ट्रीय सहारा में 20/03/15 को प्रकाशित लेख 

टेक्नोलॉजी के साथ हमारी सोच भी हो स्मार्ट

एपल ने अपनी नई स्मार्ट वाच लांच कर दी है यानि अब  वह दिन दूर नहीं जब  स्मार्ट वाच हर कलाई पर सजी दिखेगी वैसे भी आजकल स्मार्ट होने का जमाना है वो चाहे फोन हो या टीवी या फ्रिज सब स्मार्ट होने चाहिए अब तो स्मार्ट चश्मे और घर भी बनने लग गए हैं.वैसे स्मार्ट होने में कोई बुराई भी नहीं है अब सुबह हो गयी है अभी आप सब भी नहा धोकर स्मार्ट बन कर घर से निकलेंगे. शरीर और चीजों को  तो स्मार्ट बनाया जा सकता है और बनाया जा भी रहा है लेकिन जब बात महिलाओं की आती है तब हमें  एक बार सोचना पड़ता है कि क्या हम वाकई एक स्मार्ट एज में जी रहे हैं.तकनीक जितनी तेजी से बदल रही है अगर उतनी तेजी से हमारी मानसिकता बदलती तो दुनिया ज्यादा खुबसूरत दिखती.
एक छोटा सा एक्सामपल है मेरी तरह आपके पास बहुत से प्रमोशनल एस एम् एस आते होंगे.मेरे पास अक्सर एक एस एम् एस आता है. मेरा नाम ए बी सी (लडकी का नाम) अकेले हो,बोर हो रहे हो तो मुझे इस नंबर पर फोन करो.हम इस एस  एम् एस को पढ़कर बस डीलीट कर देते हैं.मेरे दिमाग में ऐसे मेसेज को देखकर ख्याल आया कि आखिर इस तरह के विज्ञापन संदेशों की जरुरत क्यों है.मजेदार बात है कि ऐसे एस एम् एस लड़कियों को भी भेजे जाते हैं कायदे से तो उनके पास लड़कों के नाम से एस एम् एस भेजे जाने चाहिए और दूसरी बात क्या बातें करने के लिए लड़कियां ही फ्री बैठी रहती हैं.ये छोटा सा एस एम् एस हमारे समाज के लोगों के जेहन में क्या चल रहा है ,उसकी बानगी भर है क्योंकि ऐसे एस एम् एस विज्ञापन हवा में नहीं बनते कहीं न कहीं समाज में एक सोच है कि लड़कियों से रोमांटिक बात करना पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार है.पर यही हरकत अगर कोई लडकी करना शुरू कर दे तो क्या होता है उसको बताने की जरुरत नहीं.लड़कियों को जितनी तेजी से हमारा समाज कैरक्टर सर्टिफिकेट देता है,उसकी आधी तेजी लड़कों के लिए आ जाए तो देश की लड़कियों का जीवन थोडा बेहतर हो जाए.
अच्छा आप मेरी बात यूँ न मान लीजिये चलिए जरा याद कीजिये अपने मोहल्लों के चौराहों से लेकर दुकानों तक सुबह शाम लड़के झुण्ड लगाये आती जाती लड़कियों को घूरते ,फब्तियां कसते  अपने स्मार्ट फोन के साथ  जीवन का आनंद उठाते दिखते हैं कि नहीं दिखते.इससे एक बात तो साबित होती है कि हमारे समाज में लड़कियां नहीं लड़के ज्यादा फ्री रहते हैं ,न तो  उन्हें घर के सामान्य काम काज करने होते हैं न ही उनके किसी काम पर समाज से तुरंत कैरक्टर सर्टिफिकेट मिलने का डर होता है. ऐसा द्रश्य किसी भी शहर, कस्बे में देखा जा सकता है और लड़कियों को छोड़ दिया जाता है अपनी लड़ाई खुद लड़ने के लिए वो भी अकेले पर इस पूरे प्रोसेस में लड़कियां बहुत अकेले होती हैं.यानि विज्ञापन भी जेंडर स्टीरियो टाइपिंग का शिकार हैं क्योंकि उनको बनाने वाले भी इसी समाज के लोग हैं और उनका पालन पोषण इसी तरह की चीजों को देखते हुआ है और उनकी मानसिकता भी वैसी बन गयी है.एस एम् एस विज्ञापन से आगे टीवी विज्ञापनों पर चलें तो वहां भी कहानी कुछ ऐसी ही है जहाँ लैंगिक असमानता साफ़ साफ़ दिखती है.आलम यह है कि पुरुषों के अंडर गारमेंट से लेकर शेविंग क्रीम और गाड़ी तक के टायर में महिलाओं का इस्तेमाल एक सेक्स सिम्बल के रूप में किया जा रहा है| आप यूँ भी समझ सकते हैं कि मैं अकेली हूँ बोर हो रही हूँ जैसे एस एम् एस विज्ञापनों की सोच को टेलीविजन पर असीमित विस्तार मिल जाता है,जहाँ किसी भी कमोडिटी को महिलाओं के साथ दिखाया जाना जरुरी है.आप भी सोच रहे होंगे कि बात तो स्मार्ट वाच और गैजेट से शुरू हुई थी पर मामला इतना गंभीर होगा आपने सोचा न था.जी हैं स्मार्ट टेक्नोलॉजी  स्मार्ट सोच के साथ अच्छी लगती है नहीं तो ‘ये बन्दर के हाथ में उस्तुरा’ जैसी बात हो जायेगी. जरा सोचियेकैसा हो जब किसी  सूप के ऐड मे छोटी छोटी भूख पापा शांत कराये और मेनी पोको पेंट्स में बच्चे  को पापा अच्छी नींद सुलायें.ह्रदय  को स्वस्थ रखने वाले विज्ञापन में पत्नी की सेहत का ख्याल पति भी करे.वाशिंग पाउडर से लेकर टॉयलेट सफाई  के विज्ञापन में महिलाओं के साथ –साथ पुरुष भी कदम से कदम मिलाकर चलते दिखें.
अगर ऐसा कभी  हो पायेगा तो दुनिया भर के  स्मार्ट गैजेट के पास रखने की यूटीलटी सिद्ध होगी क्योंकि हमारी सोच भी टेक्नोलॉजी  की तरह स्मार्ट है.आप कब से अपनी सोच को स्मार्ट बना रहे हैं .
आई नेक्स्ट में 20/03/15 को प्रकाशित 

Tuesday, March 10, 2015

आओ कुछ लिखकर देखा जाए

आओ कुछ लिखकर देखा जाए 
शब्दों को कुछ पल जी कर देखा जाए 
आड़ी तिरछी रेखाओं की ज़ुबानी 
ये ज़िन्दगी कहती है अपनी कहानी 
श्वेत श्याम रंगों में लिपटा 
शब्दों का ये जीवन
देता है कितने विचारों को यौवन
आओ ............................कुछ लिखकर देखा जाए
शब्दों को कुछ पल जी कर देखा जाए 

Thursday, March 5, 2015

लड़कियां होली नहीं खेलती

होली खेली जाती है 
रंग मले जाते हैं 
लड़के होली खेलते हैं 
समाज के समतल धरातल पर 
लड़कियां रंग मलती हैं 
बंद चहार दीवारी के भीतर
उन्हें नहीं मिलता
समाज का समतल धरातल
होली खेलने के लिए
वो नहीं निकलतीं अकेले सड़कों पर
यूँ ही किसी के साथ होली खेलने
उन्हें चाहिए होता है किसी का साथ
वो त्यौहार भी मनातीं हैं डरते हुए
कभी किसी के गंदे स्पर्श का डर
तो कभी घूरती निगाहों का
और सबसे बड़ा डर अपने लड़की होने का
लड़कियां होली नहीं खेलती
लड़कियां रंग मलती हैं |

Tuesday, March 3, 2015

रंग भरे गाने या गानों में भरे रंग

  
होली एक बार फिर आ गयी है. रंगों से हमें सराबोर करने. होली शब्द नहीं प्रतीक है रंगों का. वैसे समय के साथ इस बदलती दुनिया में बहुत कुछ बदला है लेकिन होली के रंग नहीं बदले और कुछ ऐसा ही है हमारी फिल्मों के साथ.दशक, दौर और लोग  ज़रूर बदलते रहे पर होली का उल्लास,होली के रंग वैसे ही रहे. ऐसा ही है होली का त्यौहार जिसमें रंग है मस्ती है और न जाने क्या क्या .जब भी होली की बात होती है कुछ फ़िल्मी गीत बरबस हमारी जबान पर आ जाते हैं और हम भी फ़िल्मी होली की मस्ती में शामिल हो जाते हैं तो मैंने सोचा क्यों न इस होली पर सारे फ़िल्मी होली गीत को एक जगह रखकर उन सारी फ़िल्मी होली को याद किया जाए जो आज भी हमारे यादों के जेहन में जिन्दा है तो आज थोड़ा सा यादों के पन्ने पलटते हैं और  भारतीय हिंदी सिनेमा के लंबे इतिहास में से उन कुछ चुनिंदा फ़िल्‍मों का ज़िक्र करते हैं  जिनकी होली काफ़ी असरदार रही है.
होली का ज़िक्र हो और महबूब ख़ान की 'मदर इंडिया' की बात ना चले ऐसा कभी नहीं हो सकता. सुनील दत्त, नरगिस, राजकुमार, हीरालाल और अन्य कलाकारों के साथ फ़िल्माया गया ये होली गीत 'होली आई रे कन्‍हाई रंग छलके सुना दे बाँसुरी'.वी शांताराम की फ़िल्‍म नवरंग में भी होली का एक शानदार गीत था 'जा रे नटखट ना खोल मेरा घूंघट पलट के दूँगी तुझे गाली रे, मोहे समझो ना तुम भोली भाली रे'.फ़िल्‍म कोहिनूर में दिलीप कुमार और मीना कुमारी ने जब' तन रंग लो जी आज मन रंग लो' गाया तो लगा होली को एक नयी अभिव्यक्ति मिली.फ़िल्‍म शोले का 'होली के दिन दिल खिल जाते हैं रंगों में रंग मिल जाते हैं' जैसे सुहाने गाने आज भी सराहे जाते हैं .यशराज फिल्म्स ने फ़िल्‍म संसार को तीन यादगार होलियाँ दी हैं. 
'सिलसिला' की 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली', और उसके बाद आई 'मशाल' की होली हृदयनाथ मंगेशकर का संगीत और जावेद अख्तर के बोल. दिलीप कुमार गाते हैं—'यही दिन था यही मौसम जवाँ जब हमने खेली थी'. और अनिल कपूर वाली पंक्ति है—'अरे क्‍या चक्‍कर है भाई देखो होली आई रे, ये लड़की है या काली माई देखो होली आई रे'.यशराज प्रोडक्‍शंस की तीसरी होली थी फ़िल्‍म 'डर' की, जिसमें शाहरूख़ ख़ान ढोल बजाते हुए होली समारोह में बिन बुलाए चले आते हैं इस गाने के बोल हैं –'अंग से अंग लगाना पिया हमें ऐसे रंग लगाना'.फ़िल्‍म 'आखिर क्‍यों' में राकेश रोशन भी होली खेलते नज़र आए थे—'सात रंग में खेल रही हैं दिलवालों की होली रे'.फिल्म बागबान का एक गीत भी काफी लोकप्रिय हुआ था 'होली खेलें रघुबीरा अवध में होली खेलें रघुबीरा'.ये गाना इस लिए भी खास है क्योंकि इससे पहले के होली गीतों में कृष्ण या नंदलाल ही होली खेलते दिखाए सुनाये गए थे पर पहली बार अवध में श्री राम होली खेलते दिखे.जब इस गीत पर अमिताभ बच्चन ने तान छेड़ी तो लगा वे सिलसिला फिल्म के होली गीत से आगे निकल गए हैं.इसी तरह विपुल शाह की फ़िल्‍म 'वक्‍त- रेस अगेन्‍सट टाइम' का गाना 'डू मी अ फ़ेवर लेट्स प्‍ले होली' आज भी किशोरों की पसंद बना हुआ है.अक्षय कुमार और प्रियंका चोपड़ा ने अपने चुलबुले अभिनय से इसे और यादगार बना दिया.वैसे होली गीतों में हमेशा उल्लास ही रहा हो ऐसा नहीं है.सुनील दत्त पर फ़िल्‍माया और किशोर कुमार का गाया फिल्म 'ज़ख्‍मी' का ये गीत "'ज़ख्‍मी दिलों का बदला चुकाने, आए हैं दीवाने दीवाने, दिल में होली जल रही है'.या शक्ति सामंत की फ़िल्‍म 'कटी पतंग' का गाना जिसमें किशोर कुमार गाते हैं 'आज ना छोड़ेंगे हमजोली खेलेंगे हम होली' और लता जी की आवाज़ में ये जवाब 'अपनी अपनी किस्‍मत देखो, कोई हँसे कोई रोए' कुछ ऐसे उदहारण हैं जिसमें गम और पीड़ा है. फिल्म नदिया के पारमें जब सचिन ने होली पर जोगी जी धीरे धीरे गया तो मानों पूरा देश उस तान में उनका साथ देने लग गया. 2013 में  आयी फिल्म जवानी दीवानीका होली गीत बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारीयुवाओं की जल्दी ही पसंद बन गया और लम्बे समय तक लोगों की जुबान पर चढ़ा रहा. अब इसे गानों में भरे रंग कहा जाए या रंग भरे गाने फैसला करना मुश्किल है.इस होली पर इन रंग भरे गानों को गुनगुनाते रहिए और सराबोर होते रहिये होली की मस्ती में .
जनसत्ता में 06/03/15 को प्रकाशित 

पसंद आया हो तो