टीवी पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों के कारोबार की अगली कड़ी ज्यादा दिलचस्प होने वाली है। धारावाहिकों की दुनिया अभी तक सूचना तकनीक के बदलावों से अछूती है। हमारी दुनिया में जितनी तेजी से सब कुछ बदला है, उतनी तेजी से टीवी धारावाहिक नहीं बदले। सास-बहू को देखने की हमारी मजबूरी पहले जैसी ही बनी रही। शायद इसलिए कि इन धारावाहिकों के सामने किसी और विजुअल माध्यम की कोई चुनौती नहीं थी। दर्शकों को जो दिखाया जा रहा था, उसे देखने का कोई विकल्प न था। लेकिन अब इंटरनेट ने इन धारावाहिकों को चुनौती देना शुरू कर दिया है।
इंटरनेट के लिए ही धारावाहिक बनाने वाले द वाइरल फीवर के टीवीएफ को इंटरनेट मूवी डाटाबेस (आईएमडीबी) की दुनिया के 250 धारावाहिकों में जगह दी है। आईएमडीबी दुनिया भर के टीवी शो को दर्शकों के वोट के आधार पर रेटिंग देता है। टीवीएफ को अमेरिका के प्रमुख इंटरनेट धारावाहिकों द डेली शो, सूट्स आदि के मुकाबले 43वां स्थान मिला। दुनिया भर में ऐसे धारावाहिकों के निर्माण में तेजी आई है, जो टीवी नहीं, इंटरनेट पर आते हैं। इसकी शुरुआत साल 1992 में अमेरिका के साउथ पार्क के साथ हुई थी, यह चलन अब भारत में भी जोर पकड़ रहा है। सही मायने में इंटरनेट धारावाहिकों के लिए भारत में यह सही वक्त भी है। पिछले कुछ साल में टीवी देखने का ढर्रा काफी बदला है। दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देश के दर्शकों की मांग को पूरा करने के लिए ज्यादातर पारिवारिक कहानियां हैं, जिनमें युवाओं की कोई रुचि नहीं। वैसे भी आजकल कम से कम शहरों में पूरा परिवार एक साथ बैठकर टीवी नहीं देखता। स्माार्टफोन और कंप्यूटर ने हमारी इन आदतों को बदल दिया है। नई पीढ़ी की दुनिया अब मोबाइल और लैपटॉप में है, जो अपना ज्यादा वक्त इन्हीं साधनों पर बिताते हैं। जहां कोई कभी भी अपने समय के हिसाब से इन धारावाहिकों को देख सकता है। इंटरनेट के धारावाहिक कंटेंट के स्तर पर युवाओं की आशा और अपेक्षाओं की पूर्ति करते हुए नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। पिचर्स की हर कड़ी को लगभग डेढ़ करोड़ बार देखा गया है, जिसके और बढ़ने की संभावना है।
हालांकि इसके बावजूद इंटरनेट धारावाहिकों का उस गति से विस्तार नहीं हो पा रहा है, जिस गति से होना चाहिए। इसका बड़ा कारण यह है कि इससे कमाई का कोई निश्चित मॉडल अभी नहीं उभर सका है, विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा अभी भी टेलीविजन की झोली में चला जाता है। इंटरनेट धारावाहिक के निर्माता स्पॉन्सर का जुगाड़ करके अपना शो तैयार करते हैं। फिर ये अभी बड़े शहरों तक ही सीमित हैं और इंटरनेट की धीमी गति के चलते इन्हें देखना कोई बहुत अच्छा अनुभव भी नहीं होता। लेकिन इस सब को शुरुआती बाधाएं माना जा रहा है, हकीकत यही है कि टीवी निर्माताओं के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
इंटरनेट के लिए ही धारावाहिक बनाने वाले द वाइरल फीवर के टीवीएफ को इंटरनेट मूवी डाटाबेस (आईएमडीबी) की दुनिया के 250 धारावाहिकों में जगह दी है। आईएमडीबी दुनिया भर के टीवी शो को दर्शकों के वोट के आधार पर रेटिंग देता है। टीवीएफ को अमेरिका के प्रमुख इंटरनेट धारावाहिकों द डेली शो, सूट्स आदि के मुकाबले 43वां स्थान मिला। दुनिया भर में ऐसे धारावाहिकों के निर्माण में तेजी आई है, जो टीवी नहीं, इंटरनेट पर आते हैं। इसकी शुरुआत साल 1992 में अमेरिका के साउथ पार्क के साथ हुई थी, यह चलन अब भारत में भी जोर पकड़ रहा है। सही मायने में इंटरनेट धारावाहिकों के लिए भारत में यह सही वक्त भी है। पिछले कुछ साल में टीवी देखने का ढर्रा काफी बदला है। दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देश के दर्शकों की मांग को पूरा करने के लिए ज्यादातर पारिवारिक कहानियां हैं, जिनमें युवाओं की कोई रुचि नहीं। वैसे भी आजकल कम से कम शहरों में पूरा परिवार एक साथ बैठकर टीवी नहीं देखता। स्माार्टफोन और कंप्यूटर ने हमारी इन आदतों को बदल दिया है। नई पीढ़ी की दुनिया अब मोबाइल और लैपटॉप में है, जो अपना ज्यादा वक्त इन्हीं साधनों पर बिताते हैं। जहां कोई कभी भी अपने समय के हिसाब से इन धारावाहिकों को देख सकता है। इंटरनेट के धारावाहिक कंटेंट के स्तर पर युवाओं की आशा और अपेक्षाओं की पूर्ति करते हुए नवाचार को बढ़ावा दे रहे हैं। पिचर्स की हर कड़ी को लगभग डेढ़ करोड़ बार देखा गया है, जिसके और बढ़ने की संभावना है।
हालांकि इसके बावजूद इंटरनेट धारावाहिकों का उस गति से विस्तार नहीं हो पा रहा है, जिस गति से होना चाहिए। इसका बड़ा कारण यह है कि इससे कमाई का कोई निश्चित मॉडल अभी नहीं उभर सका है, विज्ञापनों का बड़ा हिस्सा अभी भी टेलीविजन की झोली में चला जाता है। इंटरनेट धारावाहिक के निर्माता स्पॉन्सर का जुगाड़ करके अपना शो तैयार करते हैं। फिर ये अभी बड़े शहरों तक ही सीमित हैं और इंटरनेट की धीमी गति के चलते इन्हें देखना कोई बहुत अच्छा अनुभव भी नहीं होता। लेकिन इस सब को शुरुआती बाधाएं माना जा रहा है, हकीकत यही है कि टीवी निर्माताओं के लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
हिन्दुस्तान में 18/09/15 को प्रकाशित लेख
17 comments:
bilkul shi keh re ho ap bdiya..
Yes it is true TV serials are in danger because of internet which is more preferred by public as compare to television.people are more involve in watching shows on you tube except house wife's.The number of people watching TV serial's have been decreased and internet has growing at a fast rate.
These mini-series and short films which are slowly but steadily on the rise are like a breath of fresh air for youngsters. Content-wise, they more relatable than our usual TV shows and they also have a touch of realism. They put their point across without becoming preachy – something which our mainstream shows usually lack. Besides, these shows can be a good platform for new artists who otherwise have difficulty in finding a head-start in the industry. It’s high time the channels and producers start thinking ahead of the TRP game and focus on providing good content to its audience.
Daily soaps have become a part of Indian culture.this program are watched religiously irrespective of its content .TV is doing a brilliant job with unique ideas.internet programs should be encouraged ......
Bohot acha,likha hai sir apne. Ekdam sahi bat
u r right sir....
INTERNET PE SERIAL DEKHNA SIRF SHAHRO TK HI SIMIT HAI AGR 1 CAROR 25 LAKH KI ABAADI KI BAAT
KI BAAT KRE TO SBKE LIYE YE MUMKIN NI HAI. PR ITNA ZARUR KAHUNGI KI INTERNET NE COUNTRY K YOUTH KO TV SERIAL KI TRF SE DIVERT KR DIYA HAI
MAAF KIJIYEGA POPULATION KA DATA MAINE GALAT MENTION KR DIYA HAI YE 1 ARAB 25 CRORE HAI
KL NIND KUCH ZYADA TARI THI.
I also feel that instead of growing and improving over the years, the television industry is becoming more and more regressive( self sacrificing bahus,evil saas, plastic surgeries and reincarnation are still in!!) The quality of content has gone down tremendously. There were so many good television shows earlier which are loved and remembered by the viewers even today. Most programs which came in recent years ( most of them are STILL going on) were monotonous, bland or downright absurd. Even if something new and innovative comes up once in a blue moon, it is only a matter of time before the series will follow suit and become nonsensical and boring. While the programs on internet are much more entertaining. Also, they mostly deal with trending topics, be it 'start-up scenario' in Pitchers or feminism in 'Its a Man's World.' The television industry should work harder if it wants to survive!
जिस प्रकार से वेस्टर्न कल्चर इंडियन कल्चर पर छा गया है उसी तरह हमारे टीवी देखने के नज़रिये में भी बदलाव ला रहा है जिसके फलस्वरूप आज का युवा सीजन देखने का आदि हो रहा है।
Indian TV soaps are all about abysmal sadness, saas bahu chronicles, crooked reality, stunt shows and more nonsense. Why can’t the makers of these show move past the T.R.P game and produce shows that have some solid content.
this is interesting ,,, but in my view hr chiz ka apna ek mtlb hota h koi bhi chiz puri trh se khtm bhi nhi honi chihiye
धारावाहिको में होने वाले सास -बहु के हाई वोल्टेज ड्रामे का सबसे बड़ा नुक्सान ये हो रहा है कि कुछ रिश्ते जैसे सास को नकारात्मक श्रेणी में दाल दिया गया है | ऐसे धरावाहिक युवाओं को अपनी और खींचने में अब असफल होते जा रहे है |यही कारण है कि इन्टरनेट कि दुनिया में अब टी वी एफ कि वेब सीरीज युवाओं को अपनी और खींचने में कामयाब होती जा रही हैं |
दीया-बाती में संध्या आई.पी.एस ऑफिसर होने के बावजूद घर के तमाम काम कर पाती है, उसी प्रकार तारक मेहता में दया को सुपर वूमेन की तरह दिखाया गया है जो कभी थकती ही नहीं है। इसे देखकर रीयल सास ''रील बहू '' लाने के सपने देखने लगती है। इस तरह के तमाम उदाहरण हैं जिनसे सोच का दायरा विकसित नहीं हो पाता।
सामाजिक बदलाव एक स्वभाविक प्रक्रिया है और इस बदलाव को ना चाहते हुए भी हमे कही न कही स्वीकार करना ही पड़ता है वे दिन दूर नहीं जब चालीस पार के लोग भी मोबाइल पर ही सब काम करेगे जैसे - न्यूज़ पेपर पढ़ना, न्यूज़ देखना, सीरियल देखना आदि । तो स्वभाविक है की इन सास-बाहू धारावाहिकों पर कही न कही खतरा मडराने लगा है ।
इंटरनेट की दुनिया ने टीवी जगत को झटका तो दे ही दिया है और अब युवा वर्ग ने टीवी की तरफ से कुछ हद तक मुह मोड़ लिया है,वो दिन दूर नहीं जब सभी नौजवान पूरी तरह से,महिलाये,बुजुर्ग,सभी इन्टरनेट को अपना माध्यम पूरी तरह से बना लेंगे । शुरुवात तो हो चुकी है।
True it is, that the Internet series are overtaking the Television industry rapidly as the youth is having such an interest in them, you can watch anything that you want on Internet, let it be serials, short movies, trailers,standup comedy etc., anything, everything is easily available, saying that Internet is not a great source of income is not right in my view because the money that people are making through these Internet serials is uncountable TVF Pitchers being a great example of it.but we can say that there still are some parts of the country where people rely on television for their entertainment whether the cause can be illiteracy or lack of resources..
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