नया मीडिया अपना कारोबार व इश्तिहार भी बढ़ा रहा है।इंटरनेट ने उम्र का एक चक्र पूरा कर लिया है। इसकी खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो ली, अब इसके दूसरे पहलुओं पर भी ध्यान जाने लगा है।इंटरनेट शुरुवात में किसी ने नहीं सोचा होगा कि यह एक ऐसा आविष्कार बनेगा जिससे मानव सभ्यता का चेहरा हमेशा के लिए बदल जाएगा | आग और पहिया के बाद इंटरनेट ही वह क्रांतिकारी कारक जिससे मानव सभ्यता के विकास को चमत्कारिक गति मिली|इंटरनेट के विस्तार के साथ ही इसका व्यवसायिक पक्ष भी विकसित होना शुरू हो गया|प्रारंभ में इसका विस्तार विकसित देशों के पक्ष में ज्यादा पर जैसे जैसे तकनीक विकास होता गया इंटरनेट ने विकासशील देशों की और रुख करना शुरू किया और नयी नयी सेवाएँ इससे जुडती चली गयीं | इंटरनेट ऐंड मोबाइल एसोसिएशन और आईएमआरबी इंटरनेशनल के एक संयुक्त शोध के अनुसार, मार्च 2015 में भारत में ऑनलाइन विज्ञापन का बाजार 3,575 करोड़ रुपये का हो चुका है, जो 2014 के आंकड़े से करीब 30 प्रतिशत ज्यादा है। ऑनलाइन विज्ञापन की इस बढ़त में भारत में स्मार्ट फोन की बढ़ती संख्या का बड़ा योगदान है। लेकिन विज्ञापनों का यह बढ़ता बाजार अपने साथ समस्याएं भी ला रहा है। भारत जैसे देश में यह समस्या ज्यादा गंभीर इसलिए हो जाती है, क्योंकि यहां इंटरनेट का विस्तार बहुत तेजी से हो रहा है, मगर नेट जागरूकता की खासी कमी है। भारत में इंटरनेट के ज्यादातर प्रयोगकर्ताओं के लिए यह एक नई चीज है और वे कुछ चालाक विज्ञापनदाताओं की चाल का शिकार भी बन जाते हैं।भारत में विज्ञापनों का नियमन करने वाले संगठन भारतीय विज्ञापन मानक परिषद, यानी एएससीआई ने भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ शिकायत करने के लिए बाकायदा एक व्यवस्था बना रखी है। लेकिन इंटरनेट अन्य विज्ञापन माध्यमों जैसा नहीं है। इंटरनेट के विज्ञापनों पर नजर रखना कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण काम है, क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि भ्रामक विज्ञापन का शिकार बनने वाला भारत के किसी शहर में हो, जबकि विज्ञापनदाता सात समंुदर पार किसी दूसरे देश में। प्रिंट माध्यम के लिए तो इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी जैसी संस्था है, जो विज्ञापन एजेंसी को मान्यता देती है और किसी शिकायत पर वह मान्यता खत्म भी कर सकती है।वी आर सोशल की डिजिटल सोशल ऐंड मोबाइल 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं। इसके अनुसार, एक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है। इंटरनेट पर एक घंटा 58 मिनट, सोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24मिनट।इस वक्त भारत में 97.8 करोड़ मोबाइल और 14 करोड़ स्मार्टफोन कनेक्शन हैं,जिनमें से 24.3 करोड़ इंटरनेट पर सक्रिय हैं और 11.8 करोड़ सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। इस बीच टेलीकॉम कंपनी एरिक्सन ने अपने एक शोध के नतीजे प्रकाशित किए हैं, जो काफी दिलचस्प हैं। इससे पता चलता है कि स्मार्टफोन पर समय बिताने में भारतीय पूरी दुनिया में सबसे आगे हैं। एक औसत भारतीय स्मार्टफोन प्रयोगकर्ता रोजाना तीन घंटा 18 मिनट इसका इस्तेमाल करता है। इस समय का एक तिहाई हिस्सा विभिन्न तरह के एप के इस्तेमाल में बीतता है। एप इस्तेमाल में बिताया जाने वाला समय पिछले दो साल की तुलना में 63फीसदी बढ़ा है। स्मार्टफोन का प्रयोग सिर्फ चैटिंग एप या सोशल नेटवर्किंग के इस्तेमाल तक सीमित नहीं है, लोग ऑनलाइन शॉपिंग से लेकर तरह-तरह के व्यावसायिक कार्यों को स्मार्टफोन से निपटा रहे हैं।वैश्विक परामर्श संस्था मैकिन्सी कम्पनी का एक नया अध्ययन बताता है कि इंटरनेट साल 2015 तक भारत की जी डी पी (सकल घरेलू उत्पाद )में १०० बिलियन डॉलर का योगदान देगा जो कि वर्ष2011 के 30 बिलियन डॉलर के योगदान से तीन गुने से भी ज्यादा होगा अध्ययन यह भी बताता है कि अगले तीन साल में भारत दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा इंटरनेट उपभोक्ताओं को जोड़ेगा और देश की कुल जनसंख्या का 28 प्रतिशत इंटरनेट से जुड़ा होगा जो चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा जनसँख्या समूह होगा |निकट भविष्य में रेडियो, टीवी और समाचार-पत्रों की विज्ञापनों से होने वाली आय में कमी होगी, क्योंकि ये माध्यम एकतरफा हैं। मोबाइल के मुकाबले इन माध्यमों पर विज्ञापनों का रिटर्न ऑफ इन्वेस्टमेंट (आरओआई) कम है। मोबाइल आपको जानता है, उसे पता है कि आप क्या देखना चाहते हैं और क्या नहीं देखना चाहते हैं। मोबाइल फोन के इस्तेमाल से जुड़ा एक दिलचस्प आंकड़ा यह भी है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल उपभोक्ताओं की संख्या में कोई खास अंतर नहीं है। मोबाइल के जरिये अब बेहद कम खर्च पर देश के निचले तबके तक पहुंचा जा सकता है।मोबाइल मार्केटिंग एसोसिएशन के अनुसार,भारत में वित्तीय वर्ष 2013 में मोबाइल विज्ञापन 60 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। वैश्विक परिदृश्य में शोध संस्था ई मार्केटियर के अनुसार, मोबाइल विज्ञापनों से होने वाली आय में 103 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। साल 2014 की पहली तिमाही में इंटरनेट विज्ञापनों पर व्यय की गई कुल राशि का 25 प्रतिशत मोबाइल विज्ञापनों पर किया गया। इसमें बड़ी भूमिका फ्री मोबाइल ऐप निभा रही हैं, जिनके साथ विज्ञापन भी आते हैं। इस बात ने विज्ञापनदाताओं का भी ध्यान बहुत तेजी से अपनी ओर आकर्षित किया है। इस समय भारत में दिए जाने वाले कुल मोबाइल विज्ञापनों का लगभग 60प्रतिशत टेक्स्ट के रूप में होता है। आधुनिक होते मोबाइल फोन के साथ अब वीडियो और अन्य उन्नत प्रकार के विज्ञापन भी चलन में आने लगे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2015 तक भारत में मोबाइल के माध्यम से इंटरनेट का उपभोग करने वालों की संख्या 16 करोड़ से भी अधिक हो जाएगी।मोबाइल फोन एक अत्यंत ही व्यक्तिगत माध्यम है और इसीलिए इसके माध्यम से इसको उपयोग करने वाले के बारे में सटीक जानकारी एकत्रित की जा सकती है।
राष्ट्रीय सहारा में 05/10/15 को प्रकाशित
10 comments:
There is not even a single page where you wouldn't find advising. It get frustrating sometime advertisement flashing and popping up every second is so distracting and mundane .completely agree with you sir. Can I share this post on Facebook.
I agree Sir, it’s high time that we start talking about the other side of internet as well. The collection of user information by publishers and advertisers is one of the biggest concerns of online advertising since it is a major threat to our privacy. Besides, even those ads which are ignored by the users may influence the user subconsciously which may result in people spending money unnecessarily (like in case of online shopping ads). It’s very important that people are made aware of online/internet advertising considering that it is emerging as the new marketing tool at such an increasing rate.
आपके इस लेख की माशल ने मेरे उन्ही सावालो पर प्रकाश डाला है जिन से मैं झूझ रही हूँ। क्यूंकि नेट पर काम करना उतना ही मुश्किल है जितना एक भागा दौड़ी के काम करना इन अनचाहे विज्ञापन ने काम करने की प्रगति को धीमा कर रखा है। कभी कभी तो विज्ञापन ऐसे भी होते है जिन्हे देखना भी अपने आप में शर्म है।
In India Internet is largely dependent on advertising for its revenue generation. This is due to the increasing number of mobile phones and other devices. Accessibility to internet has become uncomplicated now most of the people have smart phones and internet connection. It sometimes become annoying as it disturbs our browsing. I feel personally sometimes advertisement draws more attention towards them then the actual content and because of that the real meaning is lost. Because of those continuous disturbing advertisements the use of add blockers have increased.
The collection of user information poses a threat to our security and privacy.
the main disadvantages of advertisement on net is that .. transaction issues
.. internet frauds
information on credit card can easily be stolen ,,,
it frustate everybody when when we no need of that particular service.and we only touches screen and it activates automatically... so these fraud should be remove by authority
yes this is the important topic to discuss because when we work on internet such type of adds distract our concentration and 50-60% chances are introduced when we follow these types of adds
Every coin has two different sides. Same is the case with internet. With the growing usage of internet, the crimes associated with it are also increasing. Several cases of account hacking have been registered in India as well as across the world. However, the technology is still so powerful that strict provisions are being researched for safe and secure usage of world wide web. I personally believe that the upcoming generation will definitely create a brighter prospective of internet usage along with maintaining complete security.
THE OTHER SIDE REVEALS WE HAVE COMPLETLY BECOME A SLAVE OF INTERNET IT MONITORS US
सही कहा सर आपने इन अनचाहे,फरेबी विज्ञापनों,ने नेट पर धीरे धीरे कब्ज़ा कर लिया है। न चाहते हुए भी यह हमारे सामने आ जाते है। बहुत से विज्ञापन तो ऐसे होते है जिनका कोइबमतलब नहीं होता । फिर भी वो हमारे सामने किसी न किसी रूप में आ ही जाते है।
जिस प्रकार कुछ दिन पहले नेटनुट्रलि को लेकर मुहिम चलाई गई थी उसी प्रकार इंटरनेट पर विज्ञापन के लिए भी लोगो को जागरूक बनाने का समय आ गया है। तभी हम वो उस चीज को देख सकते है जो हम देखना चाहते है ना कि जो वो दिखाना चाहते है।(विकास वर्मा)
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