खुली अर्थव्यवस्था,विशाल जनसँख्या जो खर्च करने के लिए तैयार है और तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था ये सारी चीजें एक ऐसे भारत का निर्माण कर रही हैं जहाँ व्यापार करने की अपार संभावनाएं हैं भारत तेजी से बदल रहा है पर आंकड़ों के आईने में अभी भारत बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के व्यापार के लिए एक आदर्श देश नहीं बन पाया है |मॉर्गन स्टेनली की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के शहर अभी भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव से जूझ रहे हैं |इस रिपोर्ट में भारत के दौ सौ शहरों का अध्ययन किया गया है रिपोर्ट में शामिल शहरों में छाछ्ट प्रतिशत के पास अभी भी कोई सुपर मार्केट नहीं है |कोल स्टोरेज की पर्याप्त संख्या में न होने के कारण अधिकतर भारतीय अपने दैनिक जीवन से जुडी हुई चीजों की खरीद फरोख्त आस पास की दुकानों से खरीदते हैं |पचहतर प्रतिशत भारतीय शहरों (रिपोर्ट में शामिल शहर )में कोई बेहतरीन पांच सितारा सुविधाओं से युक्त होटल नहीं है|
देश की अर्थव्यवस्था तभी तेज गति से दौड़ेगी जब निवेश तेजी से होगा जिससे उत्पादन बढेगा और विदेशी निवेश तभी तेजी से बढेगा जब पर्याप्त आधारभूत सुविधाओं की उपलब्धता होगी पर हमारे शहर आवश्यक आधारभूत सुविधाओं के अभाव का सामना कर रहे हैं|अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार ने मेक इन इण्डिया और स्मार्ट सिटी परियोजना पर काम शुरू किया|मेक इन इण्डिया कार्यक्रम का उद्देश्य देश में सौ मिलीयन रोजगार का स्रजन करना और देश की जी डी पी में उत्पादन योगदान को सत्रह प्रतिशत से बढ़ाकर पच्चीस प्रतिशत करना है |कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब पर पर इस कार्यक्रम की सफलता निर्भर करती है|सबसे पहला है आधारभूत ढांचे का विकास एक ऐसी जगह जहाँ से व्यवसाय का विकास किया जा सके जिसमें शामिल है सडक, बिजली और रेल व्यवस्था का नेटवर्क,बहुत प्रयास के बावजूद भारत अभी भी पर्याप्त सड़कें नहीं बना पाया है| बंदरगाहों की संख्या और रेल नेटवर्क का विस्तार भी उस गति से नहीं हुआ है जिसकी उद्योग जगत को दरकार है |दो साल पहले उत्तर पूर्व राज्य के किसानों को अपनी शानदार फसल को औने पौने दाम पर इसलिए बेच देना पड़ा था क्योंकि पर्याप्त परिवहन सुविधा न होने के कारण उस फसल को भारत के दुसरे राज्यों में भेजा जाना संभव नहीं था|चीन से समुद्र के रास्ते मुंबई माल आने में बाढ़ दिन लगते हैं वहीं उसी सामान को सडक से उत्तरांचल पहुँचने में बीस दिन लग जाते हैं |तथ्य यह भी है कि आधारभूत सुविधाएँ एक दिन में विकसित नहीं हो सकती इसके लिए सरकार को प्रयास करना होगा और निवेश के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देना चाहिए और यह निवेश महज आर्थिक न होकर सामाजिक और ग्रामीण भी होना चाहिए|आर्थिक जगत टैक्स सुधारों का लम्बे समय से इन्तजार कर रहा है जिसमें समान वस्तु एवं सेवा कर, इंटेलेक्चुअल प्रोपर्टी राईट्स पालिसी और बैंकरप्सी कोड जैसे अहम् नियम शामिल हैं जिन पर लम्बे समय से फैसला लंबित है |पिछले साल विश्व बैंक की इज ऑफ़ डूईंग बिजनेस इंडेक्स में भारत बारह स्थान चढ़कर एक सौ तीसवें नंबर पहुंचा पर यह स्थान मैक्सिको और रूस जैसे देशों से काफी पीछे है जो क्रमश: अड़तीस और इक्यावन स्थान पर हैं और जहाँ व्यसाय शुरू करने का अवसर भारत के मुकाबले कहीं ज्यादा सरल है इस इंडेक्स में हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान हमसे बस थोड़ा ही पीछे है जो एक सौ अड़तीसवें स्थान पर है | एक और चुनौती जिससे भारत जूझ रहा है विकास की इस दौड़ में गाँवों के पीछे छूट जाने का भय, मेक इन इण्डिया में होने वाला अधिकाँश निवेश शहर केन्द्रित है या उन जगहों पर होगा जहाँ आधारभूत ढांचा पहले से उपलब्ध है| निवेश की पहली शर्त आधारभूत ढांचा होने से भारत के गाँव एक बार गिर आगे बढ़ने से वंचित रह जायेंगे जिस तेजी से शहर विकसित हो रहे हैं क्योंकि उनकी क्रय शक्ति कम है जिससे निजी निवेशक गाँव में निवेश करने से हिचकते हैं और आधारभूत ढांचे का सबसे बुरा हाल गाँवों में ही है| ऐसे में उनके विकास की जिम्मेदारी एक बार फिर सरकार भरोसे रह जायेगी| इस कार्यक्रम में गाँवों की अनदेखी की जा रही है सारा जोर शहरों पर है|शहर केन्द्रित विकास का यह मोडल भारत की परिस्थितियों में कितना सफल होगा इसका फैसला होना अभी बाकी है क्योंकि विकास का तात्पर्य समेकित विकास से है न कि सिर्फ शहरों के विकास से है| मेक इन इंडिया कार्यक्रम की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार व्यवस्था गत खामियों को कितनी जल्दी दूर करती है और आधारभूत सुविधाओं को कितनी जल्दी उपलब्ध कराती है |
अमर उजाला में 23/02/16 को प्रकाशित