जब कोई नयी तकनीक हमारे सामने आती है तो वह सबसे पहले अपनी ताकत से हमें परिचित कराती है उसके बाद शुरू होता है चुनौतियों का सिलसिला उन चुनौतियों से हम कैसे निपटते हैं उससे उस तकनीक की सफलता या असफलता निर्भर करती है इंटरनेट ने उम्र का एक चक्र पूरा कर लिया है। इसकी खूबियों और इसकी उपयोगिता की चर्चा तो बहुत हो ली, पर अब वक्त है इसके और आयामों पर चर्चा करने का |आज हमारी पहचान का एक मानक वर्च्युअल वर्ल्ड में हमारी उपस्थिति भी है और यहीं से शुरू होता है फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग से जुड़ने का सिलसिला, भारत में फेसबुक के सबसे ज्यादा प्रयोगकर्ता हैं पर यह तकनीक अब भारत में एक चुनौती बन कर उभर रही है चर्चा के साथ साथ आंकड़ों से मिले तथ्य साफ़ इस ओर इशारा कर रहे हैं कि स्मार्टफोन व इंटरनेट लोगों को व्यसनी बना रहा है| कहा जाता है कि मानव सभ्यता शायद पहली बार एक ऐसे नशे से सामना कर रही है, जिसका भौतिक इस्तेमाल नहीं दिखता पर यह असर कर रहा है यह नशा है डिजीटल सामग्री के सेवन का जो न खाया जा सकता है, न पिया जा सकता है,और न ही सूंघा जा सकता है फिर भी यह लोगों को लती बना रहा है | चीन के शंघाई मेंटल हेल्थ सेंटर के एक अध्ययन के मुताबिक, इंटरनेट की लत शराब और कोकीन की लत से होने वाले स्नायविक बदलाव पैदा कर सकती है|
मोबाइल ऐप (ऐप्लीकेशन) विश्लेषक कंपनी फ्लरी के मुताबिक, हम मोबाइल ऐप लत की ओर बढ़ रहे हैं। स्मार्टफोन हमारे जीवन को आसान बनाते हैं, मगर स्थिति तब खतरनाक हो जाती है, जब मोबाइल के विभिन्न ऐप का प्रयोग इस स्तर तक बढ़ जाए कि हम बार-बार अपने मोबाइल के विभिन्न ऐप्लीकेशन को खोलने लगें। कभी काम से, कभी यूं ही। फ्लरी के इस शोध के अनुसार, सामान्य रूप से लोग किसी ऐप का प्रयोग करने के लिए उसे दिन में अधिकतम दस बार खोलते हैं, लेकिन अगर यह संख्या साठ के ऊपर पहुंच जाए, तो ऐसे लोग मोबाइल ऐप एडिक्टेड की श्रेणी में आ जाते हैं। पिछले वर्ष इससे करीब 7.9 करोड़ लोग ग्रसित थे। इस साल यह आंकड़ा बढ़कर17.6 करोड़ हो गया है, जिसमें ज्यादा संख्या महिलाओं की है।
वी आर सोशल की डिजिटल सोशल ऐंड मोबाइल 2015 रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं के आंकड़े काफी कुछ कहते हैं| इसके अनुसार, एक भारतीय औसतन पांच घंटे चार मिनट कंप्यूटर या टैबलेट पर इंटरनेट का इस्तेमाल करता है। इंटरनेट पर एक घंटा 58 मिनट, सोशल मीडिया पर दो घंटे 31 मिनट के अलावा इनके मोबाइल इंटरनेट के इस्तेमाल की औसत दैनिक अवधि है दो घंटे 24 मिनट| इसी का नतीजा हैं तरह-तरह की नई मानसिक समस्याएं- जैसे फोमो, यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट, सोशल मीडिया पर अकेले हो जाने का डर। इसी तरह फैड, यानी फेसबुक एडिक्शन डिसऑर्डर| इसमें एक शख्स लगातार अपनी तस्वीरें पोस्ट करता है और दोस्तों की पोस्ट का इंतजार करता रहता है। एक अन्य रोग में रोगी पांच घंटे से ज्यादा वक्त सेल्फी लेने में ही नष्ट कर देता है। इस वक्त भारत में 97|8 करोड़ मोबाइल और14 करोड़ स्मार्टफोन कनेक्शन हैं, जिनमें से 24|3 करोड़ इंटरनेट पर सक्रिय हैं और 11|8 करोड़ सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं|
लोगों में डिजिटल तकनीक के प्रयोग करने की वजह बदल रही है। शहर फैल रहे हैं और इंसान पाने में सिमट रहा है|नतीजतन, हमेशा लोगों से जुड़े रहने की चाह उसे साइबर जंगल की एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां भटकने का खतरा लगातार बना रहता है| भारत जैसे देश में समस्या यह है कि यहां तकनीक पहले आ रही है, और उनके प्रयोग के मानक बाद में गढ़े जा रहे हैं| कैस्परस्की लैब द्वारा इस वर्ष किए गए एक शोध में पाया गया है कि करीब 73 फीसदी युवा डिजिटल लत के शिकार हैं, जो किसी न किसी इंटरनेट प्लेटफॉर्म से अपने आप को जोड़े रहते हैं| साल 2011 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया द्वारा किए गए रिसर्च में यह निष्कर्ष निकाला गया था की युवा पीढ़ी किसी भी सूचना को याद करने का तरीका बदल रही है, क्योंकि वह आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध है। वे कुछ ही तथ्यों को याद रखते हैं, बाकी के लिए इंटरनेट का सहारा लेते हैं| इसे गूगल इफेक्ट या गूगल-प्रभाव कहा जाता है|
इसी दिशा में कैस्परस्की लैब ने साल 2015 में डिजिटल डिवाइस और इंटरनेट से सभी पीढ़ियों पर पड़ने वाले प्रभाव के ऊपर शोध किया है| कैस्परस्की लैब ने ऐसे छह हजार लोगों की गणना की, जिनकी उम्र 16-55 साल तक थी। यह शोध कई देशों में जिसमें ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली, स्पेन आदि देशों के 1,000 लोगों पर फरवरी 2015 में ऑनलाइन किया गया| शोध में यह पता चला की गूगल-प्रभाव केवल ऑनलाइन तथ्यों तक सीमित न रहकर उससे कई गुना आगे हमारी महत्वपूर्ण व्यक्तिगत सूचनाओं को याद रखने के तरीके तक पहुंच गया है| शोध बताता है कि इंटरनेट हमें भुलक्कड़ बना रहा है, ज्यादातर युवा उपभोक्ताओं के लिए, जो कि कनेक्टेड डिवाइसों का प्रयोग करते हैं, इंटरनेट न केवल ज्ञान का प्राथमिक स्रोत है, बल्कि उनकी व्यक्तिगत जानकारियों को सुरक्षित करने का भी मुख्य स्रोत बन चुका है| इसे कैस्परस्की लैब ने डिजिटल एम्नेशिया का नाम दिया है| यानी अपनी जरूरत की सभी जानकारियों को भूलने की क्षमता के कारण किसी का डिजिटल डिवाइसों पर ज्यादा भरोसा करना कि वह आपके लिए सभी जानकारियों को एकत्रित कर सुरक्षित कर लेगा। 16 से 34 की उम्र वाले व्यक्तियों में से लगभग 70 प्रतिशत लोगों ने माना कि अपनी सारी जरूरत की जानकारी को याद रखने के लिए वे अपने स्मार्टफोन का उपयोग करते है| इस शोध के निष्कर्ष से यह भी पता चला कि अधिकांश डिजिटल उपभोक्ता अपने महत्वपूर्ण कांटेक्ट नंबर याद नहीं रख पाते हैं|एक यह तथ्य भी सामने आया कि डिजिटल एम्नेशिया लगभग सभी उम्र के लोगों में फैला है और ये महिलाओं और पुरुषों में समान रूप से पाया जाता है|
वर्चुअल दुनिया में खोए रहने वाले के लिए सब कुछ लाइक्स व कमेंट से तय होता है|वास्तविक जिंदगी की असली समस्याओं से वे भागना चाहते हैं और इस चक्कर में वे इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने लगते हैं, जिसमें चैटिंग और ऑनलाइन गेम खेलना शामिल हैं। और जब उन्हें इंटरनेट नहीं मिलता, तो उन्हें बेचैनी होती और स्वभाव में आक्रामकता आ जाती है और वे डिजीटल डिपेंडेंसी सिंड्रोम (डी डी सी ) की गिरफ्त में आ जाते हैं |इससे निपटने का एक तरीका यह है कि चीन से सबक लेते हुए भारत में डिजिटल डीटॉक्स यानी नशामुक्ति केंद्र खोले जाएं और इस विषय पर ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलाई जाए|
ज्यादा प्रयोग के कारण डिजिटल डिवाइस से हमारा एक मानवीय रिश्ता सा बन गया है, पर तकनीक पर अधिक निर्भरता हमें मानसिक रूप से पंगु भी बना सकती है। इसलिए इंटरनेट का इस्तेमाल जरूरत के वक्त ही किया जाए|
राष्ट्रीय सहारा में 03/05/16 को प्रकाशित लेख
22 comments:
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पंडित किशन महाराज और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
सचेत करने के लिये आभार !
The post proves the phrase "Excess of anything is Bad" in true sense. Internet is a smart thing introduced to the world, where people unsmartly use it. I agrre with the line where it says that the cities are expanding and the people are human is adjusting itself into a small place. the growth of digital forest has somehow darken and misleading the human. Instead of looking at the brighter side people are falling prey to the negatives. Not pointing out everyone but a major part i can say.
yeh blog hum yuwaon ke sochne ka dar kholta hai. internet aur smartphone ka prayog hume apne dimag ka upyog krne se rok raha hai aur hume haqeeqat ki duniya se door le ja raha hai aur sath hi sath humare rishte bhi humse door kar raha hai. hume iss baat se jagruk karne ke liye dhanywaad.
इन्टरनेट संचार का ऐसा माध्यम बनता जा रहा है कि बिना इसके जीवन का अस्त्तिव ही नही है सभी अपनों को कम इंटर्नेट को अधिक वक़्त दे रहे है इसकी ज़रुरत ऐसी हो गयी ह जैसे मनुष्य के लिए हवा ...
मोबाइल इंटरनेट और सोशल मीडिया हमें दूर बैठे लोगों से तो जोड़ता है मगर आजकल जिस तेजी इसका प्रयोग किया जा रहा है वो उन लोगों से दूर कर रहा है जो आपके करीब रहते है|आजकल लोग अपने फ़ोन में इतना व्यस्त रहते है कि घर में एक -दूसरे से बात करने का समय नहीं निकल पाते |वे लोग जो हर समय सोशल मीडिया पे अपनी फोटो साझा करना जरुरी समझते है उनकी ख़ुशी अब सोशल मीडिया पर ही निर्भर रह गयी है| कोई अच्छा कमेंट आया तो खुश और अगर मनचाहा कमेंट न आये तो दुखी|
manzilein chahe kitni bhi unchi kyn na ho,
raasta pairo ke neeche se ho k niklta h..
for digital world
ragrads pranjal
इन्टरनेट ने हमारी लाइफ को बदल कर रख दिया है । कुछ अच्छे बदलाव हुए है तो कुछ बुरे । इन्टरनेट ने हमे भुलक्कड़ बना दिया है,क्योंकि पहले हम किसी भी बात को आसानी से याद कर लेते थे किसी भी जानकारी के लिए किताबे पढ़ते थे लेकिन आज हम गूगल करते है। खाना मिले या न मिले फेसबुक ,और व्हाट्सएप्प पर लॉगिन जरुरु होना चाहिए। लोगों में लोगों के प्रति प्यार कम हो गया है पहले लोग अपने दूर दोस्त सगे संबधियों का इंतज़ार करते थे की कब हम उनसे मिलेंगे एक उत्साह रहता था लेकिन इन्टरनेट ने इस दूरी को तोह कम कर दिया लेकिन साथ ही प्यार को भी कम कर दिया क्योंकि अब तो ऑनलाइन विडियो चैटिंग का जमाना है । वही बच्चो मे इन्टरनेट का साइड इफ़ेक्ट साफ़ नज़र आता है,क्योंकि वो अपने स्मर्ट्स फ़ोन मे ज्यादा से ज्यादा समय ऑनलाइन गेम्स,चैटिंग,या ऑनलाइन मूवीज मे बिताते है 15 से 30 साल के लोगो को इंटरनेट की लत सी लग गई है। क्योंकि उनको फेसबुक पर लाइक और कॉमेंट्स चाइये, यही नहीं अब तो लोग इन्टरनेट पर प्यार भी करने लगे है,शादियां भी करने लगे है। संस्कृति का तो कोई मतलब ही नहीं रहा । और इंटरनेट पर प्यार और शादियां का इफ़ेक्ट किसी न किसी न्यूज़ चैनल मे ब्रेकिंग न्यूज़ या किसी न्यूज़ पेपर में बुरी खबर आ ही जाती है इंटरनेट का ज्यादा से ज्यादा शिकार तो आज कल 15 से 20 साल के बच्चे हो रहे है जिनके लिए लाइफ का मतलब सोशल मीडिया या इन्टरनेट है ।
Internet hum log ke liye zaroori hai, Aj ke daur Mein yh hum sbki bhut bdi kamzoori hai,.Achey Ho ya bure roop yeh leta hai, Soch pr nirbhr Ho toh zameen se asmaan tak pauchene ka naya roop yeh leta hai...
सबसे ज़्यादा वे लोग इंटर्नेट का प्रयोग करते हैं, जो identity crisis का शिकार होते हैं।
To find their value on social media, they lose their values in real life...They have start living a Virtual/Digital Life. Their social and personal relationships will never survive for good. Valid point ,sir.
इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग लोगो को दिमाकी रूप से अपंग भी बनाता जा रहा है लोग आजकल अपने हर प्रश्न का उत्तर इंटरनेट के माध्यम से ही प्राप्त करना चाहते है।वो अपने दिमाक के द्वारा दिए गए उत्तर पे उतना भरोसा नही कर पाते जितना कि गूगल द्वारा दिए गए उत्तर पे आसानी से कर लेते है।
Everything has its advantages and its disadvantages.It depends on us that how efficiently we use it.Excess of anything is bad and thus we should use it wisely.We should not depend on internet for each and everything.Hence,we must start using our brains too.
most people have an image of themselves that they can not be in real lives, internet gives them the platform to live up to that image, especially the social networking websites. these sites let people project themselves how they would want to be, hence the popularity with the youth which ultimately leads to frustration and various disorders.
Internet is the most powerful invention but if used in the Positive direction. Internet can prove to be very productive for every person but these days due to the social networking sites such as Facebook taking over. Internet is producing adverse effects on the students especially those students studying in college. As it is rightly said something that has some positive effects also has some of the negative effects.
Internet ka jada use krna hmare liye harmful sabit ho rha hai kyuki ye hmare sochne ki shakti ko km kr rha hai
Internet ka jada use krna hmare liye harmful sabit ho rha hai kyuki ye hmare sochne ki shakti ko km kr rha hai
एक समय था जब किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त करने के लिए लाइब्रेरी में पुस्तकों को खोजना पड़ता था या फिर पत्र-पत्रिकाओं या मैगजीनों की खाक छाननी पड़ती थी। समय के बदलाव के साथ यह सब सुविधा सुगम हो गई और फिर आ गया इंटरनेट का ज़माना। आज इंटरनेट का नाम बच्चे-बूढ़े सभी जानते हैं, यह नाम नया नहीं रह गया है। यह जीवन का एक अटूट हिस्सा बन चुका है। इंटरनेट से जीवन सरल हो गया है।
अतः इंटरनेट से फायदे और नुकशान दोनों है। यह निर्भर करता है उपयोग करने वाले पर की वह इसे किस रूप में प्रयोग करता है ।
internet ek bahut acchi takniki hai ,esaki madad se bahut se kaam aasan ho jate hai parantu esake durupyog se kafi samay ka nuksan bhi ho sakta hai.Internet ke madyam se kafi logo ki hatya bhi ho chuki hai.Esliye esko accha aur kharab mana jata hai.
इंटरनेट का अत्यधिक उपयोग लोगो को दिमाकी रूप से अपंग भी बनाता जा रहा है लोग आजकल अपने हर प्रश्न का उत्तर इंटरनेट के माध्यम से ही प्राप्त करना चाहते है।वो अपने दिमाक के द्वारा दिए गए उत्तर पे उतना भरोसा नही कर पाते जितना कि गूगल द्वारा दिए गए उत्तर पे आसानी से कर लेते है।
AAJ KA DUIR TAKNEKI KA DUIR BN GAYA HAI,PICHALE KUCHA VARSO ME AISA NHI THA JO HAMARE KAM KO ASANI MILTI THEE,AAJ DEKHA JAYE TO HAMARE KAM KO BEHD ASANI SE KISE LAYBRERIYN OR SAKARI OFFICE ME AADI KISI BHI PURANE NO: KO DHUDHNE ASANI HOTI HAI,AAJ HAM APNE KAM KO INTERNET PAR KAM SAMYA ME HI KAR PATE HAI YAH TAKNIKI KA AWISKAR HI TO HAI.EK TARF YAH SAHI TO DUSHRI TARF NUKSHAN BHI HAI,KUCCHA LOG ESKA ENTA ESTEMAL KARTE HAI KI VO EK PAL NET KE BHINA NHI RAH PATE HAI,AOR VH INTRENET KE SAH BITAYE SAMAY BHI BINA KUCHHA KAM KA HI SABIT HOTA HAI,TO AISE SAMAY BITANE SE KYA FAYDA.LEKIN TAKNIKI ANE VALE SAMAY ME BHED ACHHE MANE JAYEGE. KYUKI ESSE SAAY OR MEHANT KAM LGTE HAI.
aaj kal ke daur me internet ka upyog sab ki jarurt bn gyi h fhir chahe wo social side ho ya koi online exam. Internet ke jariy hm sb log samay ke sath sath paper work bhi bcha lete h,lekin hm sb log jante h ki hr sikke ke do pahlu hote h usi tarah internet se hme fayde ke sath sath nuksan bhi hota h jaise ki internet banking me password ki hakking or kabhi kabhi kuch galat information bhi site he hoti h. internet ka jada prayog karane se hm apni internal memori ko bhi effected kr sakte h
aaj kal ke daur me internet ka upyog sab ki jarurt bn gyi h fhir chahe wo social side ho ya koi online exam. Internet ke jariy hm sb log samay ke sath sath paper work bhi bcha lete h,lekin hm sb log jante h ki hr sikke ke do pahlu hote h usi tarah internet se hme fayde ke sath sath nuksan bhi hota h jaise ki internet banking me password ki hakking or kabhi kabhi kuch galat information bhi site he hoti h. internet ka jada prayog karane se hm apni internal memori ko bhi effected kr sakte h
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