मार्शल मैक्लुहान ने जब 1964 में जब “माध्यम ही संदेश है” जैसा क्रांतिकारी वाक्य दुनिया को दिया था तो किसी को भी उम्मीद नहीं थी उनका यह कथन कैसे आने वाले वक्त में जनमाध्यमों की दशा –दिशा तय करने वाला हो जाएगा |सच यह है कि किसी भी वक्त में कौन सा जनमाध्यम लोगों के बीच लोकप्रिय होगा यह उस वक्त के समाज के तकनीकी चरित्र पर निर्भर करेगा |मतलब समाज में उस जनमाध्यम का बहुतायत में प्रयोग किया जाएगा जिसकी तकनीक बहुसंख्यक वर्ग तक उपलब्ध होगी |भारत में अखबार ,रेडियो से शुरू हुआ यह सिलसिला टीवी से होता हुआ इंटरनेट तक आ पहुंचा |लम्बे वक्त तक रेडियो भारत में रेडियो ने एकछत्र राज किया फिर उसे टीवी से चुनौती मिली |भारत में टेलीविजन चैनल क्रांति अभी पैर पसार ही रही थी कि इंटरनेट के आगमन ने विशेषकर मोबाईल इंटरनेट ने खेल के सारे मानक ही बदल दिए |अब सूचना, शिक्षा और मनोरंजन का मतलब सिर्फ और सिर्फ इंटरनेट हो गया है और भारत अपवाद नहीं है |एक्सेन्चर कम्पनी का डिजीटल कंज्यूमर सर्वे “विनिंग एक्सपीरियंस इन द न्यू वीडियो वर्ल्ड” यह बता रहा है कि सारी दुनिया में चित्र और ध्वनि माध्यम के रूप में टेलीविजन तेजी से अपनी लोकप्रियता खो रहा है और लोग डिजीटल प्लेटफोर्म (कंप्यूटर और स्मार्ट फोन ) पर टीवी के कार्यक्रम देखना ज्यादा पसंद कर रहे हैं 2016 में 52 प्रतिशत व्यक्ति टीवी के कार्यक्रम देखने के लिए टेलीविजन का इस्तेमाल अपने पसंदीदा उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे 2017 में यह आंकड़ा गिरकर 23 प्रतिशत रह गया यानी कुल 55 प्रतिशत की गिरावट आई|इसी तरह 2016 में 32 प्रतिशत लोग टेलीविजन के कार्यक्रम देखने के लिए अपने पसंदीदा उपकरण के रूप में लैपटॉप और कंप्यूटर का प्रयोग कर रहे थे और यह आंकड़ा 2017 में बढ़कर 42 प्रतिशत हो गया है | इस सर्वे में दुनिया के छब्बीस देशों के छब्बीस हजार लोगों ने हिस्सा लिया |इस सर्वे में भारत का जिक्र विशेष तौर पर है जहाँ दर्शकों का टीवी कंटेंट देखने के लिए डिजीटल डीवाईस (कंप्यूटर और स्मार्ट फोन ) का प्रयोग टीवी के मुकाबले बहुत तेजी से हो रहा है और यह दर अमेरिका और इंग्लैण्ड जैसे विकसित देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा है |2016 के मुकाबले इस वर्ष भारत में यह गिरावट अठहत्तर प्रतिशत है |दर्शकों की रूचि में आया जीवन के हर क्षेत्र में असर डाल रहा है हाल के वर्षों मे आये डिजीटल बदलाव ने जनमाध्यमों के उपयोग पैटर्न को पूरी तरह बदल कर रख दिया |माध्यमों के डिजीटल होने से पहले रेडियो और टीवी भारतीय स्थितियों में एक सामूहिक जनमाध्यम हुआ करते थे जिसका उपभोग पूरा परिवार साथ किया करता था और इसलिए उनके कंटेंट में सामूहिकता पर जोर रहा करता था कारण तकनीक महंगी और लोगों की प्रतिव्यक्ति आय कम थी इसलिए जनमाध्यमों का उपयोग सिर्फ माध्यम उपभोग न बनकर एक उत्सव में परिणत हो जाता था |
डिजीटल उपकरणों के प्रति बढ़ती दीवानगी इस ओर इशारा कर रही है कि भारत सामूहिकता के इस दौर से निकल कर एक ऐसे समाज में बदल रहा है जहाँ “मैं” पर जोर है इसके कारण जनमाध्यमों में कंटेंट के स्तर पर लगातार विविधता आ रही है और सिर्फ डिजीटल उपकरणों को ध्यान में रखकर सीरियल और अन्य कार्यक्रम बन रहे हैं |शहरों में पूरे परिवार का एक साथ बैठकर टीवी देखना अब इतिहास होता जा रहा है । स्माार्टफोन और कंप्यूटर ने हमारी इन आदतों को बदल दिया है। नई पीढ़ी की दुनिया अब मोबाइल और लैपटॉप में है, जो अपना ज्यादा वक्त इन्हीं साधनों पर बीता रही है। परिवार भले ही एकल और छोटे होते जा रहे हैं पर डिजीटल उपकरणों की संख्या बढ़ती जा रही है क्योंकि डिजीटल उपकरण को लोग अपनी रुचियों के हिसाब से अनुकूलित कर सकते हैं |परम्परागत टेलीविजन यह सुविधा अपने दर्शकों को नहीं देता |पर कुछ तथ्य ऐसे भी हैं जिन पर चर्चा करना जरुरी है डिजीटल उपकरणों का अधिक प्रयोग दर्शकों को डिजीटल डिपेंडेंसी सिंड्रोम (डी डी सी ) की गिरफ्त में ला सकता है जिससे जब उन्हें इंटरनेट नहीं मिलता, तो बेचैनी होती और स्वभाव में आक्रामकता आ जाती है|डिजीटल संस्कृति अपनी अनुकूलन सुविधा के कारण इन्सान को अकेला बना रही है और टेलीविजन जैसे जनमाध्यमों के उपभोग में बदलाव की यह प्रवृति इस अकेलेपन को और बढ़ा सकती है |
नवोदय टाईम्स में 31/05/17 को प्रकाशित
3 comments:
DDC se aj har yuva grast ..aj k sandarbh me bilkul sateek lekh h..nice sir g
I do not even know how I stopped up right here,
but I believed this post was good. I do not know who you might
be but certainly you are going to a well-known blogger when you are not already.
Cheers!
He was selling this too much. I think about the feeling and
the rush all day and i want it to stop.
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