महात्मा गांधी बाजार से होटल तक पहुँचने का रास्ता ड्राइवर तिलोक हमें अच्छी तरह समझा के गया था आपको सीढ़ियों से उतरना है और टैक्सी स्टैंड पर अम्दु बुलाई के लिए टैक्सी लेनी है वहीं हमारा होटल था जो इंदिरा बाई पास पर स्थित था कहना बड़ा आसान था पर मेरे जैसे आदमी के लिए थोडा मुश्किल था |इस कहानी को आगे बढ़ाने से पहले सिक्किम की टैक्सी के बारे में बता दूँ क्योंकि जहाँ तक मेरी जानकारी है ऐसी टैक्सियाँ पूरे भारत में कहीं न चलती होंगी |आपको जानकार हैरत होगी उत्तर भारत की मध्यम वर्ग की शान की शान की सवारी वैगन आर और आल्टो यहाँ ऑटो की तरह चलती हैं |
गाड़ियाँ वही रहती हैं बस आगे का बोनट पीले रंग से रंग दिया जाता है कुछ के ऊपर टैक्सी लिखा रहता है नहीं तो ये पीला रंग ही किसी कार के टैक्सी होने की निशानी है |पहाडी भाग होने के कारण रिक्शा चल नहीं सकता और तीन पहिये वाले ऑटो को चलाना खतरनाक हो सकता है |
ट्रैफिक बूथ और व्यवस्थित ट्रैफिक |
वापस मुद्दे पर लौटते हैं मुझे बताया गया था अगर हम शेयर्ड टैक्सी लेंगे तो होटल तक किराया बीस रूपये प्रति व्यक्ति लगेगा और अगर पूरी टैक्सी लेंगे तो डेढ़ सौ रुपये हम टैक्सी स्टैंड पहुंचे ही थे कि हमारे साथ यात्रा कर रहे एक साथी यात्री अपनी पत्नी के साथ टैक्सी करने जा रहे थे उन्हें भी उसी होटल जाना था जब उन्होंने हमें देखा तो हमें भी अपने साथ आने के लिए कहा ये उनकी सदाशयता नहीं बल्कि पैसा बचाने का जुगाड़ था क्योंकि उन्होंने डेढ़ सौ में पूरी टैक्सी की थी पर टैक्सी वाले ने साफ़ –साफ़ कह दिया ड्राइवर समेत गाडी में पांच लोगों से ज्यादा नहीं बैठ सकते नियम सख्त है ढाई हजार रुपये का दंड लगेगा |नियम के प्रति ऐसी ईमानदारी अद्भुत थी वो बड़े आराम से हमें बैठा के पचास रुपये अतिरिक्त लेता तो भी हम फायदे में रहते पर उसने ऐसा नहीं किया |हमने एक सजी संवरी दूसरी टैक्सी ली जो लाल रंग की आल्टो थी जिसे एक खूबसूरत सांवला लड़का चला रहा था उसकी बोली से लगा उसका ताल्लुक बिहार से है पर मेरा अंदाजा गलत निकला उसकी जड़ें उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की थी पर वो पैदा यहीं हुआ था |पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगा तो माता –पिता ने गाडी खरीदवा दी उसकी वहां तीन गाड़ियाँ चलती थी उसने एक बोलेरो बलिया भी भेजी थी किराए पर चलवाने के लिए |मैंने पूछा कभी अपने माता –पिता के घर (बलिया ) जाते हो तो बोला साल में एक बार वहां जा के क्या करेगा वहां गोली पहले चलती बोली बाद में ,मैंने कहा फिर वही लोग जब बाहर के प्रदेश में जाते हैं तो ठीक कैसे हो जाते हैं उसका सीधा जवाब था यहाँ कानून टाईट है |मैं एक बार फिर सोच रहा था ऐसा क्यों ,किराया उतना ही पड़ा जितना हमें पहले बताया गया था न उससे कम न ज्यादा |
सडक पर बना पैदल पथ |
सिक्किम की टैक्सी |
भीगा भीगा मौसम |
यहाँ के पहाड़ों पर ख़ास बात है कि बांस के झुरमुट खूब मिलेंगे जो यहाँ के पहाड़ों को उत्तर भारत के पहाड़ों से अलग बनाते हैं दूसरी ख़ास बात उन पहाड़ों से गिरते हुए छोटे मोटे सैकड़ों झरने ,जहाँ कोई झरना बड़ा हो गया उसे एक टूरिस्ट स्पॉट मान लिया गया |यहाँ साल के पेड़ और बांस के झुरमुट आपका सर उठा के स्वागत करेंगे तो नामची की यात्रा हमने भीगे मौसम में शुरू की |गंगटोक के बाहरी हिस्से में कई भुट्टे बेचने वाली महिलाएं दुकान सजा कर बैठी थी और उनकी दुकान मक्के के खेतों से मिली हुई थी मतलब इससे ताजा भुट्टे आपको भारत के किसी पहाडी हिस्से में नहीं मिलने वाले |मैं तिलोक से सिक्किम के बारे में पूछ रहा था उसने भारत का सिर्फ एक शहर देखा था वो भी कोलकाता जहाँ उसकी पहली बीवी का घर था |पहली बीवी ? हाँ उसने मुझे छोड़ दिया तो मैंने दूसरी शादी कर ली जब हम लौटेंगे तो मेरी बीवी भी इसी गाडी में लौटेगी क्योंकि नामची उसका मायका था और वो अपने घर गयी थी | बच्चे ?मैंने पूछा |दो हैं उसने बताया लेकिन वो गंगटोक में घर पर हैं वो अकेले गयी है |तलाक कैसे होता है बोला हम लोग कोर्ट नहीं जाते सब समुदाय में ही हो जाता शांति से वैसे भी सिक्किम में लड़के कम और लड़कियां ज्यादा हैं और लड़कियां ज्यादा लड़के छोडती हैं |तिलोक कहीं बाहर नहीं जाना चाहता वो यह भी चाहता है टूरिस्ट यहाँ खूब आयें लेकिन यहाँ बसने के बारे में न सोचें |हम उस भीगते मौसम में आगे बढे चले जा रहे थे |खिड़कियाँ खोल दी गईं इतनी शुद्ध हवा न जाने फेफड़ो
जारी ...........
चौथा भाग पढने के लिए क्लिक करें
चौथा भाग पढने के लिए क्लिक करें
भारतीय रेल के मार्च 2021 अंक में प्रकाशित
2 comments:
2 मिनट लगा जैसे हम सिक्किम के टूर पे निकले हों। बहुत ही साफ शब्दों में लिखा है। आगे फिर क्या हुआ ?
Sir ek ek drisya ka jeevit vardan kiya h apne...pictures bhi khoobsurat h...
Post a Comment