Thursday, March 4, 2021

सिक्किम यात्रा :तीसरा भाग



महात्मा गांधी बाजार से होटल तक पहुँचने का रास्ता ड्राइवर तिलोक हमें अच्छी तरह समझा के गया था आपको सीढ़ियों से उतरना है और टैक्सी स्टैंड पर अम्दु बुलाई के लिए टैक्सी लेनी है वहीं हमारा होटल था जो इंदिरा बाई पास पर स्थित था कहना बड़ा आसान था पर मेरे जैसे आदमी के लिए थोडा मुश्किल था |इस कहानी को आगे बढ़ाने से पहले सिक्किम की टैक्सी के बारे में बता दूँ क्योंकि जहाँ तक मेरी जानकारी है ऐसी टैक्सियाँ पूरे भारत में कहीं न चलती होंगी |आपको जानकार हैरत होगी उत्तर भारत की मध्यम वर्ग की शान की शान की सवारी वैगन आर और आल्टो यहाँ ऑटो की तरह चलती हैं |


गाड़ियाँ वही रहती हैं बस आगे का बोनट पीले रंग से रंग दिया जाता है कुछ के ऊपर टैक्सी लिखा रहता है नहीं तो ये पीला रंग ही किसी कार के टैक्सी होने की निशानी है |पहाडी भाग होने के कारण रिक्शा चल नहीं सकता और तीन पहिये वाले ऑटो को चलाना खतरनाक हो सकता है |
ट्रैफिक बूथ और व्यवस्थित ट्रैफिक 
आपको पूरे सिक्किम में उत्तर भारत की ये शान की सवारी टैक्सी के रूप में चलती दिखेंगी |एक जिज्ञासा मेरे मन में ही रह गयी जिसका जवाब मैं तलाश नहीं पाया |आम तौर पर पहाडी भागों में (कश्मीर, उत्तराखंड ) ये माना जाता है कि आल्टो और वैगन आर छोटी गाड़ियाँ होती और कमोबेश कमजोर भी इसलिए पहाड़ों में इनका बहुतायत से इस्तेमाल नहीं होता वहां बड़ी भारी गाड़ियाँ जैसे इनोवा ,सूमो ,क्वालिस जैसी गाड़ियाँ सफल रहती हैं क्योंकि ये ज्यादा मजबूत रहती हैं पर सिक्किम में इनका इस्तेमाल क्यों ज्यादा होता है पता नहीं चल पाया |गंगटोक शहर में भी दुपहिया वाहन मुझे न के बराबर दिखे और सुदूर इलाकों में भी यही गाड़ियाँ दिखी इसका मतलब आमतौर एक सामान्य सिक्किम निवासी गरीब नहीं है क्योंकि सुदूर पहाड़ों में बसे गाँवों के घरों में भी चार पहिया वाहन खड़े दिखे |

वापस मुद्दे पर लौटते हैं मुझे बताया गया था अगर हम शेयर्ड टैक्सी लेंगे तो होटल तक किराया बीस रूपये प्रति व्यक्ति लगेगा और अगर पूरी टैक्सी लेंगे तो डेढ़ सौ रुपये हम टैक्सी स्टैंड पहुंचे ही थे कि हमारे साथ यात्रा कर रहे एक साथी यात्री अपनी पत्नी के साथ टैक्सी करने जा रहे थे उन्हें भी उसी होटल जाना था जब उन्होंने हमें देखा तो हमें भी अपने साथ आने के लिए कहा ये उनकी सदाशयता नहीं बल्कि पैसा बचाने का जुगाड़ था क्योंकि उन्होंने डेढ़ सौ में पूरी टैक्सी की थी पर टैक्सी वाले ने साफ़ –साफ़ कह दिया ड्राइवर समेत गाडी में पांच लोगों से ज्यादा नहीं बैठ सकते नियम सख्त है ढाई हजार रुपये का दंड लगेगा |नियम के प्रति ऐसी ईमानदारी अद्भुत थी वो बड़े आराम से हमें बैठा के पचास रुपये अतिरिक्त लेता तो भी हम फायदे में रहते पर उसने ऐसा नहीं किया |हमने एक सजी संवरी दूसरी टैक्सी ली जो लाल रंग की आल्टो थी जिसे एक खूबसूरत सांवला लड़का चला रहा था उसकी बोली से लगा उसका ताल्लुक बिहार से है पर मेरा अंदाजा गलत निकला उसकी जड़ें उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की थी पर वो पैदा यहीं हुआ था |पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगा तो माता –पिता ने गाडी खरीदवा दी उसकी वहां तीन गाड़ियाँ चलती थी उसने एक बोलेरो बलिया भी भेजी थी किराए पर चलवाने के लिए |मैंने पूछा कभी अपने माता –पिता के घर (बलिया ) जाते हो तो बोला साल में एक बार वहां जा के क्या करेगा वहां गोली पहले चलती बोली बाद में ,मैंने कहा फिर वही लोग जब बाहर के प्रदेश में जाते हैं तो ठीक कैसे हो जाते हैं उसका सीधा जवाब था यहाँ कानून टाईट है |मैं एक बार फिर सोच रहा था ऐसा क्यों ,किराया उतना ही पड़ा जितना हमें पहले बताया गया था न उससे कम न ज्यादा |
सडक पर बना पैदल पथ 
सिक्किम की टैक्सी 

भीगा भीगा मौसम 
इस टैक्सी पुराण के बहाने मैं आपको गंगटोक की ट्रैफिक व्यवस्था के बारे में बताते चलूँ |पूरे शहर में सडक के किनारे –किनारे एक पैदल पथ है जिस पर पैदल चलने वाले लोग दिखेंगे |सडक संकरी हैं पर सड़कों पर सिर्फ गाड़ियाँ हैं लोग नहीं |टैक्सी सिर्फ टैक्सी स्टैंड पर रुकेगी चाहे आपका गंतव्य उससे कितना भी करीब क्यों न हो टैक्सी कहीं भी कभी भी नहीं रुकेगी |अगले दिन का एक वाकया है हम लोग घूम कर लौट रहे  थे और जोरदार बारिश हो रही थी सडक पर लोग नहीं थे पर हमारी टैक्सी होटल पर नहीं रुकी उसने  हमें भीगने से बचाने के लिए एक दूसरा रास्ता पकड़ा जो होटल के बेसमेंट में जाता था |वहां से होटल को फोन किया गया होटल वाले ने अपना वो बंद पड़ा बेसमेंट खोला जिससे चढ़ कर हम अपने कमरे तक पहुंचे |ये होती है नियमों के प्रति प्रतिबद्धता जिसका सम्मान भारत के जिस हिस्से में मैं रहता हूँ वहां नहीं दिखता |रात होते होते बादल उमड़ घुमड़ के बरसने लगे गंगटोक के होटल में एसी और पंखे नहीं होते इसलिए मैंने खिड़की खोल रखी थी मैं रात भर वर्ष्टि पड़े टापुर टुपुर सुनता रहा सुबह गंगटोक बादलों के आगोश में था और हमारा छान्गू झील जाने का कार्यक्रम बेकार हो चुका था क्योंकि बारिश से उस रास्ते पर भूस्खलन हुआ था और वह रास्ता पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया था इसी रास्ते पर आगे भारत चीन सीमा नाथू ला पास भी पड़ता है |सीमा देखने की मेरी कोई ख़ास इच्छा नहीं थी क्योंकि मैं राजौरी में भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा देख चुका था पर छान्गू झील न देख पाने का दुख जरुर था |अब हमारे कार्यक्रम में तबदीली हो रही थी अब हमें नामची घूमने जाना जो गंगटोक से लगभग सत्तर किलोमीटर दूर था |मैंने अपने ड्राइवर तिलोक से पूछा वहां क्या उसने कहा कुछ पूजा का है मैंने सोचा कुछ बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मामला होगा मेरे लिए ज्यादा मजेदार प्रकृति का साथ जो गाड़ियों में चलने के कारण हमें रास्ते में मिलता था | मैंने पहाड़ों पर इतनी ज्यादा हरियाली कहीं नहीं देखी थी और इतने घने जंगल मन को मोह लेते थे कश्मीर और उत्तराखंड में भी हरियाली है पर इतनी  नहीं आपको कहीं भी पचास मीटर से ज्यादा खाली पहाड़ नहीं  दिखेंगे चारों ओर सिर्फ पेड़ ही पेड |

यहाँ के पहाड़ों पर ख़ास बात है कि बांस के झुरमुट खूब मिलेंगे जो यहाँ के पहाड़ों को उत्तर भारत के पहाड़ों से अलग बनाते हैं दूसरी ख़ास बात उन पहाड़ों से गिरते हुए छोटे मोटे सैकड़ों झरने ,जहाँ कोई झरना बड़ा हो गया उसे एक टूरिस्ट स्पॉट मान लिया गया |यहाँ साल के पेड़ और बांस के झुरमुट आपका  सर उठा के स्वागत करेंगे तो नामची की यात्रा हमने भीगे मौसम में शुरू की |गंगटोक के बाहरी हिस्से में कई भुट्टे बेचने वाली महिलाएं दुकान सजा कर बैठी थी और उनकी दुकान मक्के के खेतों से मिली हुई थी मतलब इससे ताजा भुट्टे आपको भारत के किसी पहाडी हिस्से में नहीं मिलने वाले |मैं तिलोक से सिक्किम के बारे में पूछ रहा था उसने भारत का सिर्फ एक शहर देखा था वो भी कोलकाता जहाँ उसकी पहली बीवी का घर था |पहली बीवी ? हाँ उसने मुझे छोड़ दिया तो मैंने दूसरी शादी कर ली जब हम लौटेंगे तो मेरी बीवी भी इसी गाडी में लौटेगी क्योंकि नामची उसका मायका था और वो अपने घर गयी थी | बच्चे ?मैंने पूछा |दो हैं उसने बताया लेकिन वो गंगटोक में घर पर हैं वो अकेले गयी है |तलाक कैसे होता है बोला हम लोग कोर्ट नहीं जाते सब समुदाय में ही हो जाता शांति से वैसे भी सिक्किम में लड़के कम और लड़कियां ज्यादा हैं और लड़कियां ज्यादा लड़के छोडती हैं |तिलोक कहीं बाहर नहीं जाना चाहता वो यह भी चाहता है टूरिस्ट यहाँ खूब आयें लेकिन यहाँ बसने के बारे में न सोचें |हम उस भीगते मौसम में आगे बढे चले जा रहे थे |खिड़कियाँ खोल दी गईं इतनी शुद्ध हवा न जाने फेफड़ो 
में कब जाए |
भारतीय रेल के मार्च 2021 अंक में प्रकाशित 

2 comments:

Arpit Omer said...

2 मिनट लगा जैसे हम सिक्किम के टूर पे निकले हों। बहुत ही साफ शब्दों में लिखा है। आगे फिर क्या हुआ ?

Foodjustfood said...

Sir ek ek drisya ka jeevit vardan kiya h apne...pictures bhi khoobsurat h...

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