Tuesday, July 11, 2017

उम्र के इस पड़ाव पर

बचपन,जवानी ,और बुढ़ापा जीवन के ये तीन हिस्से माने गए हैं ,बचपन में बेफिक्री जवानी में करियर और बुढ़ापा मतलब जिन्दगी की शाम पर जीवन में एक वक्त ऐसा आता है जब न बचपने जैसी बेफिक्री रहती है न जवानी में
करियर जैसा कुछ  बनाने की चिंता और न ही अभी जिन्दगी की शाम हुई होती है यानि बुढ़ापा |शायद यही है अधेड़ावस्था जब जिन्दगी में एक ठहराव होता है पर यही उम्र का वो मुकाम है जब मौत सबसे ज्यादा डराती है |
उम्र के इस  पड़ाव पर जो कभी हमारे बड़े थे धीरे धीरे सब जा रहे हैं और हम बड़े होते जा रहे हैं पर मुझे इतना बड़प्पन नहीं चाहिए कि हमारे ऊपर कोई हो ही न | मुझे अच्छी तरह याद है बचपन के दिन जब मैंने होश सम्हाला ही था कितने खुशनुमा थे बस थोड़ा बहुत इतना ही पता था कि कोई मर जाता है पर उसके बाद कैसा लगता है उसके अपनों को ,कितना खालीपन आता है जीवन में इस तरह के न तो कोई सवाल जेहन में आते थे और न ही कभी ये सोचा कि एक दिन हमको और हमसे  जुड़े लोगों को मर जाना है  हमेशा के लिएमम्मी पापा का साथ दादी –बाबा  का सानिध्य,लगता था जिन्दगी हमेशा ऐसी ही रहेगी|सब हमारे साथ रहेंगे और हम सोचते थे कि जल्दी से बड़े हो जाएँ सबके साथ कितना मजा आएगा पर बड़ा होने की कितनी बड़ी कीमत हम सबको चुकानी पड़ेगी इसका रत्ती भर अंदाज़ा नहीं था | मौत से पहली बार वास्ता पड़ा 1989 में बाबा जी का देहांत हुआ |
जल्दी ही हम सब अपनी जिन्दगी में रम गए| जिन्दगी अपनी गति से चलती रही तीन साल बाद फिर गर्मी की छुट्टियों में दादी की मौत देखी वह भी अपनी आँखों के सामने |मुझे अच्छी तरह से याद है वह गर्मियों की अलसाई दोपहर थी उस सुबह ही जब मैं सुबह की सैर के लिए निकल रहा था दादी अपने कमरे में आराम से सो रही थीं ,मुझे बिलकुल अंदाजा नहीं था कि अगली सुबह वह अपने बिस्तर पर नहीं बर्फ की सिल्लियों पर लेटी होंगीं , जीवन की क्षण भंगुरता का सच में पहली बार एहसास हुआ दादी जल्दी ही यादों का हिस्सा बन गयीं |हम भी आगे बढ़ चले |जिन्दगी खुल रही थी ,भविष्य ,करियर ,परिवार के कई पड़ाव पार करते हुए जिन्दगी को समझते हुए बीच के कुछ साल फिर ऐसे आये जब हम भूल गए कि मौत सबकी होनी है |  बाबा की मौत के बाद से किसी अपने के जाने से उपजा खालीपन लगातार बढ़ता रहा हम जवान से अधेड़ हो गए और माता –पिता जी बूढ़े जिन्दगी थिरने लग गयी | आस –पास से अचानक मौत की ख़बरें मिलनी  बढ़ गईं हैं पड़ोस के शर्मा जी हों या रिश्तेदारी में दूर के चाचा- मामा जिनके साथ हम खेले कूदे बड़े हुए  धीरे –धीरे सब जा रहे हैं सच कहूँ तो उम्र के इस पड़ाव पर अब मौत ज्यादा डराती है |
प्रभात खबर में 11/07/17 को प्रकाशित 

18 comments:

Unknown said...

सर कोई नहीं चाहता की उसे कभी बुढ़ापा आये, क्योंकि वो अपने बुढ़ापे के दिनों में अपने बचपन की और जवानी की यादो को याद करते हुए सोचता है कि काश वो बचपन वो जवानी फिर से लौट आये, वो लोग फिर से लौट आये जिनके सामने उन्होंने अपने बचपन तथा जवानी बिता दी,और एक दिन वे हमें छोड़कर चले गए ।

Anonymous said...

I used to be able to find good information from your blog
articles.

शिवा की कलम said...

मैंने भी अपने पिताजी को अपनी छोटी-सी उम्र में खोया था, कहीं-न-कहीं मुझे आज भी उनकी कमी विचलित कर जाती है🤐😢

Unknown said...

This blog had me shocked because i have been through the phase of suddenly realising the pain of lossing somebody when my grand parents died. I was well aware that they were going to leave someday but what i was not aware of was that how will i feel about it? And i felt it painful, disastrous and emotionally void. We all realise the importance of everything except our own life, this phase of life which we are experiencing is really neither a young one nor an old one, so we become immune to so many things yet we react weirdly on some very simple things, but we also realise that life does not stop for anyone or anytime, and so we shouldnt too..

Unknown said...

मिलो मुस्कुराओ बस यही याद रखो उम्र का क्या है एक दिन ढल जाना है।

Prachi Arya said...

बचपन में बड़े होने की जल्दी, जवानी में नौकरी का दबाव और बुढ़ापे में मौत का डर....
बचपन सच में सबसे अच्छा होता है जहां न कोई चिंता न कोई दबाव, बस मौज मस्ती... लेकिन मेरे बचपन में मुझे इस चीज़ का रत्ती भर भी अंदाजा नहीं था की जो ये जल्दी बड़े होने का इंतज़ार मैं कर रही हूँ ये मुझे मेरे सुनहरे वक़्त से अलग करता जा रहा है। main हमेशा सोचती थी की बड़ो की ज़िन्दगी सबसे अच्छी होती है क्यूंकि बड़ो को कोई डाटता नहीं, उन्हें स्कूल नहीं जाना पड़ता और न ही उन्हें होमवर्क की कोई टेंशन होती है, लेकिन जब बड़ी हुई तो पता चला की ये एक ऐसा चक्र है जिसका फेरा कभी ख़त्म नहीं होता। बड़ो को टीचर या माँ- बाप की न सही लेकिन अपने बॉस की दांत ज़रूर सुन्नी पड़ती है, स्कूल न सही लेकिन समय पर ऑफिस जाना पड़ता है और तो और होमवर्क नही लेकिन ऑफिस असाइनमेंट समय से पूरा करने का दबाव बना रहता है। कहने का मतलब ये है की आने वाले वक़्त का सोचते रहेंगे तो जो अभी साथ है वो भी गुज़र जाएगा और फिर इस गुज़रे हुए वक़्त को याद करके अफ़सोस करेंगे की काश ये वक़्त लौट आता।

Raksha Singh said...

This article is quite nostalgic and took me to my past. It's bitter truth of life which you said in your article "Jo kabhi hamare bade the dheere dheere sab jaa rhe hai." Which made me realize that in the fight of getting more and more things on my side i am also going to loose something.
"Sochte the ki jaldi se badde ho jae sabke sath kitna maza aega." This line shows the innocence and worry free life of childhood..

Unknown said...

This is the most realistic story I have ever read but at the same time I am feeling so lost this time because everyone has to face these things someday. I never allow my mind to think so deep as it always gives me a huge fear. I dont think so I have guts to accept this reality of life. Hats off that you accept this and you can talk about these things .

Aparna said...

This is the reality of life, the one who is born has to die .We all have to face this in our life. No matter how strong we are the death of our loved ones cause a complete break down. I have also experienced it once when I lost my grandmother, my grandfather who was the strength of the whole family he was shattered and it was very difficult for us to see him in that condition."Umar Kay iss padav per " dar sabko lagta .

Aparna said...

This is the reality of life, the one who is born has to die. But this is most difficult to see our loved ones leaving us. At this stage no matter how strong you are it will (the death) of your loved ones will break you completely. I have experienced it once when I lost my grandmother. My grandfather who was the strength of our family was completely shattered and it was very difficult for us to see him in that condition."Umar Kay iss padav per" dar sabko lagta hai.

Vivek kashyap said...

सर ये प्रकर्ति का नियम है कि इंसान पैदा ही मारने के लिए, हम नही चाहते कि हमारे अपने हमसे दूर जाए लेकिन जीवन भर कोई किसी के साथ नही रहता है। इसी का नाम ज़िन्दगी है।

Hamlet said...

Sar kya Such me jindgi ke aakhiry samay yani ki maut sabhi ko darati chahe vah koi shadhu sant hi kyo na ho jo maut ko keval shareer badalne bhar ki sangya fete had.

Unknown said...

उम्र एक नंबर है लकिन यह बातें सच है कि बढ़ती उम्र के साथ हमारे पास आज पैसे और रिसोर्सेज तो बहुत है जो कभी बचपन में नहीं हुआ करते थे पर आज अपनों के लिए समय और अपने ही पास नहीं है जिनकी बचपन में कोई कमी नहीं थी |

Unknown said...

This is the truth of our life one day each one of us is going to be old so we should realise the importance of our parents and grandparents in our life and we should get time for them because these people are full of values and knowledge and we can get much from them.

PawanBeetuWrites said...

This article has really touched me, and it has reflected the truth of life.

Gyani Baba said...

उम्र का हर पड़ाव चाहते, न चाहते स्वीकारना पड़ता है ये जीवन का सच है। बढ़ते उम्र के साथ आने वाली अवस्था के प्रति जीने की जिज्ञासा बनी रहती है, वर्तमान के सुख औए दुख का वजन करते हुए व्यतीत करते रहते हैं तथा गुजरे हुए उम्र को फिर से जीने की अभिलाशा पाले रहते है, जो कभी हो नही सकता।

Gyani Baba said...

उम्र का हर पड़ाव चाहते, न चाहते स्वीकारना पड़ता है ये जीवन का सच है। बढ़ते उम्र के साथ आने वाली अवस्था के प्रति जीने की जिज्ञासा बनी रहती है, वर्तमान के सुख औए दुख का वजन करते हुए जीवन व्यतीत करते रहते हैं तथा गुजरे हुए उम्र को फिर से जीने की अभिलाशा पाले रहते है, जो कभी हो नही सकता।

Anonymous said...

सर ये प्रकर्ति का नियम है कि इंसान पैदा ही मारने के लिए, हम नही चाहते कि हमारे अपने हमसे दूर जाए लेकिन जीवन भर कोई किसी के साथ नही रहता है। इसी का नाम ज़िन्दगी है। Vivek kashyap

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